#राजशिल्पसेअछूतपनकीयात्रा
ये है आज से 350 वर्ष पूर्व 1651 में निर्मित उदयपुर निर्मित जगदीश मन्दिर।
अब इसकी आर्थिक और सामाजिक पृष्ठिभूमि को देखा जाय। ऐसा अद्भुत वास्तुकला का उदाहरण आज भी मिलना असंभव है। 350 साल पहले आर्किटेक्ट नही होते थे, जो सीना चौड़ा करके घूमते हों।
राजशिल्पी अवश्य हुवा करते थे।
1600 के आसपास भारत विश्व की 30% जीडीपी का उत्पादक था। आज बजट आया है। आप जीडीपी का महत्व समझ सकते हैं।
इसके निर्माण हेतु गरीबों का खून नही चूसा जाता था जैसा कि आने वाले मात्र 100 साल बाद शुरू हो जाएगा।
कौन निर्मित करता था इनको?
ब्राम्हण क्षत्रिय वैश्य या शूद्र ?
इनको निर्मित करने वाले थे राजशिल्पी। शूद्र जिनको कौटिल्य ने बताया था वार्ता में करकुशीलव -"एक्सपर्ट इन टेक्नॉलॉजिकल साइंस"
यह अकेला मन्दिर नही है भारत मे। ऐसे हजारों मन्दिर हैं।
जब ईसाइयों ने यह पढ़ाया कि आर्य यानी सवर्ण बाहर से आये थे और उन्होंने यहां के मूल निवासियों को गुलाम बनाया। तब भारत की जीडीपी नष्ट होकर मात्र 1.8% बची थी। करोड़ो लोग भूंख और संक्रामक बीमारियों से मृत्यु की गोंद में समा गए। 1750 से 1947 के बीच भारत मे एक भी मन्दिर न बना। क्यों ?
न बनाने का धन था और न ही वे आर्किटेक्ट जिंदा बचे जिनको राजशिल्पी कहते थे।
आज से कुछ वर्ष पूर्व मुझे सिल बट्टा चाहिए था। जो लोग चिलबिला क्रासिंग से पहले गुजरे होंगे उन्हें याद होगा कि रेलवे लाइन के बगल कुछ झुग्गी झोपड़ियां थी। वे लोग सिल बट्टा बनाकर बेंचते थे।
मैंने गाड़ी रोककर एक सिल बट्टा खरीदा उसका मूल्य चुकाया और उस व्यक्ति से पूंछा कि भैया -" कौन जात हो?"
उसने बड़ी ठसक के साथ बताया कि साहब राजशिल्पी।
मैंने कहा कि अब सरकारी हिसाब से कौन जात हो।
उसने बताया कि अनुषुचित जाति।
उसकी ठसक में उसके जाति कुल का गौरव छलक रहा था। जाति का अर्थ होता है कुल, वंश वृक्ष।
इसका अर्थ कास्ट नही होता।
किसी कुल में जन्म लेने से कोई अगड़ा पिछड़ा कैसे होता है भाई?
लेकिन तुमको तुम्हारे अंग्रेजी बापों ने बताया कि कास्ट हिंदुओं की सबसे बुरी बीमारी है।
और बाबा साहेब और उनके चेलान्दु तबसे #Annihilation_Of_Caste किये जा रहे हैं।
ये है आज से 350 वर्ष पूर्व 1651 में निर्मित उदयपुर निर्मित जगदीश मन्दिर।
अब इसकी आर्थिक और सामाजिक पृष्ठिभूमि को देखा जाय। ऐसा अद्भुत वास्तुकला का उदाहरण आज भी मिलना असंभव है। 350 साल पहले आर्किटेक्ट नही होते थे, जो सीना चौड़ा करके घूमते हों।
राजशिल्पी अवश्य हुवा करते थे।
1600 के आसपास भारत विश्व की 30% जीडीपी का उत्पादक था। आज बजट आया है। आप जीडीपी का महत्व समझ सकते हैं।
इसके निर्माण हेतु गरीबों का खून नही चूसा जाता था जैसा कि आने वाले मात्र 100 साल बाद शुरू हो जाएगा।
कौन निर्मित करता था इनको?
ब्राम्हण क्षत्रिय वैश्य या शूद्र ?
इनको निर्मित करने वाले थे राजशिल्पी। शूद्र जिनको कौटिल्य ने बताया था वार्ता में करकुशीलव -"एक्सपर्ट इन टेक्नॉलॉजिकल साइंस"
यह अकेला मन्दिर नही है भारत मे। ऐसे हजारों मन्दिर हैं।
जब ईसाइयों ने यह पढ़ाया कि आर्य यानी सवर्ण बाहर से आये थे और उन्होंने यहां के मूल निवासियों को गुलाम बनाया। तब भारत की जीडीपी नष्ट होकर मात्र 1.8% बची थी। करोड़ो लोग भूंख और संक्रामक बीमारियों से मृत्यु की गोंद में समा गए। 1750 से 1947 के बीच भारत मे एक भी मन्दिर न बना। क्यों ?
न बनाने का धन था और न ही वे आर्किटेक्ट जिंदा बचे जिनको राजशिल्पी कहते थे।
आज से कुछ वर्ष पूर्व मुझे सिल बट्टा चाहिए था। जो लोग चिलबिला क्रासिंग से पहले गुजरे होंगे उन्हें याद होगा कि रेलवे लाइन के बगल कुछ झुग्गी झोपड़ियां थी। वे लोग सिल बट्टा बनाकर बेंचते थे।
मैंने गाड़ी रोककर एक सिल बट्टा खरीदा उसका मूल्य चुकाया और उस व्यक्ति से पूंछा कि भैया -" कौन जात हो?"
उसने बड़ी ठसक के साथ बताया कि साहब राजशिल्पी।
मैंने कहा कि अब सरकारी हिसाब से कौन जात हो।
उसने बताया कि अनुषुचित जाति।
उसकी ठसक में उसके जाति कुल का गौरव छलक रहा था। जाति का अर्थ होता है कुल, वंश वृक्ष।
इसका अर्थ कास्ट नही होता।
किसी कुल में जन्म लेने से कोई अगड़ा पिछड़ा कैसे होता है भाई?
लेकिन तुमको तुम्हारे अंग्रेजी बापों ने बताया कि कास्ट हिंदुओं की सबसे बुरी बीमारी है।
और बाबा साहेब और उनके चेलान्दु तबसे #Annihilation_Of_Caste किये जा रहे हैं।
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