January 31, 2013

STORY 23

ईश्वर का प्रमाण
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भारतीय संस्कृति में ईश्वर का प्रमाण

एक दिन एक राजा ने अपने सभासदों से कहा, ‘क्या तुम लोगों में कोई ईश्वर के होने का प्रमाण दे सकता है ?’ सभासद सोचने लगे, अंत में एक मंत्री ने कहा, ‘महाराज, मैं कल इस प्रश्न का उत्तर लाने का प्रयास करूंगा।’
सभा समाप्त होने के बाद उत्तर की तलाश में वह मंत्री अपने गुरु के पास जा रहा था। रास्ते में उसे गुरुकुल का एक विद्यार्थी मिला।
मंत्री को चिंतित देख उसने पूछा, ‘सब कुशल मंगल तो है ? इतनी तेजी से कहां चले जा रहे हैं ?’

मंत्री ने कहा, ‘गुरुजी से ईश्वर की उपस्थिति का प्रमाण पूछने जा रहा हूं।’ विद्यार्थी ने कहा, ‘इसके लिए गुरुजी को कष्ट देने की क्या आवश्यकता है ? इसका जवाब तो मैं ही दे दूंगा।’ अगले दिन मंत्री उस विद्यार्थी को लेकर राजसभा में उपस्थित हुआ और बोला, ‘महाराज यह विद्यार्थी आपके प्रश्न का उत्तर देगा।’ विद्यार्थी ने पीने के लिए एक कटोरा दूध मांगा।
दूध मिलने पर वह उसमें उंगली डालकर खड़ा हो गया। थोड़ी-थोड़ी देर में वह उंगली निकालकर कुछ देखता, फिर उसे कटोरे में डालकर खड़ा हो जाता।
जब काफी देर हो गई तो राजा नाराज होकर बोला, ‘दूध पीते क्यों नहीं?
उसमें उंगली डालकर क्या देख रहे हो?’ विद्यार्थी ने कहा, ‘सुना है, दूध में मक्खन होता है, वही खोज रहा हूं।’
राजा ने कहा, ‘क्या इतना भी नहीं जानते कि दूध उबालकर उसे बिलोने से मक्खन मिलता है।’

विद्यार्थी ने मुस्कराकर कहा, ‘हे राजन, इसी तरह संसार में ईश्वर चारों ओर व्याप्त है, लेकिन वह मक्खन की भांति अदृश्य है। उसे तपसे प्राप्त किया जाता है।’ राजा ने संतुष्ट होकर पूछा, ‘अच्छा बताओ कि ईश्वर करता क्या है ?’

विद्यार्थी ने प्रश्न किया, ‘गुरु बनकर पूछ रहे हैं या शिष्य बनकर?’ राजा ने कहा, ‘शिष्य बनकर।’ विद्यार्थी बोला, ‘यह कौन सा आचरण है ? शिष्य सिंहासन पर है और गुरु जमीन पर।’ राजा ने झट विद्यार्थी को सिंहासन पर बिठा दिया और स्वयं नीचे खड़ा हो गया। तब विद्यार्थी बोला, ‘ईश्वर राजा को रंक और रंक को राजा बनाता है।’

मित्रो, ईश्वर कि उपस्थिति के किसी प्रमाण की क्या आवश्यकता है? हमारा इस संसार में होना ही इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है. वह तो कण कण में है. जैसे दूध में मक्खन और दही दिखाई नहीं देते, माचिस की तीली में आग नजर नहीं आती, ऐसे ही ईश्वर भी प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देते. वह हमसे पूर्ण समर्पण और पूरा विश्वास चाहते हैं .

ईश्वर के प्रत्यक्ष दर्शन के लिए एक पूर्ण सद्गुरु की तलाश करें !!!

January 14, 2013

संस्कृति - VALUE OF PI


संस्कृति- TAJ MAHAL OR TEJOMAHALAYA


मैं जब 10 वर्ष का था, उस समय मेरी  हिन्दी पुस्तक में एक पाठ ताजमहल पर था। जिस दिन वह पाठ पढ़ाया जाना था उस दिन कक्षा के सभी बालक अत्यधिक उल्लसित थे। उस पाठ में ताजमहल की भव्यता-शुभ्रता का वर्णन तो था ही, उससे अधिक उससे जुड़े मिथकों का वर्णन जिन्हें हमारे शिक्षक ने अतिरज्जित रूप से बढ़ा दिया था। मेरे बाल मन पर यह बात पूर्णरूप से अंकित हो गई कि यह विश्व प्रसिद्ध ताज मुगल सम्राट्‌ शाहजहाँ ने बनवाया था।

 एक विशेष कार्य से जीवन में पहली बार आगरा आया। वह विशिष्ट कार्य हम दोनों के मन पर इतना अधिक प्रभावी था कि मार्ग में एक बार भी यह ध्यान नहीं आया कि इसी आगरा में विश्व प्रसिद्ध दर्शनीय ताजमहल है। कार्य हो जाने पर जब हम लोग बालूगंज से आगरा किला स्टेशन की ओर लौट रहे थे तो लम्बी ढलान के नीचे चौराहे से जो एकाएक दाहिनी ओरदृष्टि पड़ी तो सूर्य की आभा में ताजमहल हमारे सम्मुख अपनी पूर्ण भव्यता में खड़ा था। हम दोनों कुछ क्षण तो स्तब्ध से खड़े रहे गये, तदुपरान्त किसी साईकिल वाले की घंटी सुनकर ह लोगों को चेत हुआ।

जहाँ पर हम लोग खड़े थे वहाँ पर चारों ओर की सड़कें चढ़ाई पर जाती थीं। ऐसा प्रतीत होता था कि दाहिनी ओर चढ़ाई समाप्त होते ही नीचे मैदान में थोड़ी दूर पर ही ताजमहल है, अतः हम लोग उसी ओर बढ़ लिये। ऊपर पहुँच कर यह तो आभास हुआ कि ताजमहल वहाँ से पर्याप्त दूर है, परन्तु गरीबी के दिन थे, अस्तु हम लोग पैदल ही दो मील से अधिक का मार्ग तय कर गये। उन दिनों ताजमहल दर्शन के लिये टिकट नहीं लेना पड़ता था। और गाइड करने का तो प्रश्न ही नहीं था, परन्तु जिन लोगों ने गाइड किये हुए थे लगभग उनके तसाथ चलते हुए हमने उनकी बबकवास र्पाप्त सुनी जो उस दिन तो अच्छी ही लगी थी।

उस प्रथम दर्शन में ताजमहल मुझे अपनी कल्पना से भी अधिक भव्य तथा सुन्दर लगा था। उसकी चित्रकारी तथा पत्थर पर खुदाई  कटाई का कार्य अद्‌भुत था, फिर भी मुझे एक दो बातें कचौट गई थीं। बुर्जियों, छतरियों, मेहराबों में स्पष्ट हिन्दू-कला केदर्शन हो रहे थे। मुखय द्वार के ऊपर की बनी बेल तथा कलाकृति उसी दिन मैं कई मकानों के द्वार पर आगरा में ही देख चुका था। मैंने अपने मित्र जी से अपनी शंका प्रकट की तो उन्होंने गाइडों की भाषा में ही शाहजहाँ के हिन्दू प्रिय होने की बात कह कर मेरा समाधान कर दिया, परन्तु मैं पूर्णतया सन्तुष्ट नहीं हुआ एवं मेरे अन्तर्मन में कहीं पर यह सन्देह बहुत काल तक प्रच्छन्न रूप में घुसा रहा।
मेरी जिज्ञासा को प्रोफेसर p.n oak ने शांत किया 


http://en.wikipedia.org/wiki/P._N._Oak

http://tajmahal.gaupal.in/bhumika 

और मेरे पीछे के ब्लॉग मैं आप ताजमहल के बारे मैं विस्तृत विवरण पद सकते हैं ..........



January 09, 2013

इलाज - सांप के काटने का




दोस्तो सबसे पहले साँपो के बारे मे एक महत्वपूर्ण बात आप ये जान लीजिये ! कि अपने देश भारत मे 550 

किस्म के साँप है ! जैसे एक


cobra है ,viper है ,karit है ! ऐसी 550 किस्म की साँपो की जातियाँ हैं ! इनमे से मुश्किल से 10 साँप है 

जो जहरीले है सिर्फ 10 ! बाकी सब non

poisonous है! इसका मतलब ये हुआ 540 साँप ऐसे है जिनके काटने से आपको कुछ नहीं होगा !!

बिलकुल चिंता मत करिए !

लेकिन साँप के काटने का डर इतना है (हाय साँप ने काट लिया ) और कि कई बार आदमी heart attack से 

मर जाता है !जहर से

नहीं मरता cardiac arrest से मर जाता है ! तो डर इतना है मन मे ! तो ये डर निकलना चाहिए !

वो डर कैसे निकलेगा ????

जब आपको ये पता होगा कि 550 तरह के साँप है उनमे से सिर्फ 10 साँप जहरीले हैं ! जिनके काटने से 

कोई मरता है ! इनमे से जो सबसे जहरीला साँप

है उसका नाम है ! russell viper ! उसके बाद है karit इसके बाद है viper और एक है cobra ! king cobra 

जिसको आप कहते है काला नाग !! ये 4 तो बहुत

ही खतरनाक और जहरीले है इनमे से किसी ने काट लिया तो 99 % chances है कि death होगी !

लेकिन अगर आप थोड़ी होशियारी दिखाये तो आप रोगी को बचा सकते हैं होशियारी क्या दिखनी है ???

आपने देखा होगा साँप जब भी काटता है तो उसके दो दाँत है जिनमे जहर है जो शरीर के मास के अंदर घुस 

जाते हैं ! और खून मे वो अपना जहर छोड़ देता है ! तो फिर ये जहर ऊपर की तरफ जाता है ! मान लीजिये 

हाथ पर साँप ने काट लिया तो फिर जहर दिल की तरफ जाएगा उसके बाद पूरे शरीर मे पहुंचेगा ! ऐसे

ही अगर पैर पर काट लिया तो फिर ऊपर की और heart तक जाएगा और फिर पूरे शरीर मे पहुंचेगा ! कहीं 

भी काटेगा तो दिल तक जाएगा !

और पूरे मे खून मे पूरे शरीर मे उसे पहुँचने मे 3 घंटे लगेंगे !

मतलब ये है कि रोगी 3 घंटे तक तो नहीं ही मरेगा !

जब पूरे दिमाग के एक एक हिस्से मे बाकी सब जगह पर जहर पहुँच जाएगा तभी उसकी death होगी 

otherwise नहीं होगी ! तो 3 घंटे का time

है रोगी को बचाने का और उस तीन घंटे मे अगर आप कुछ कर ले तो बहुत अच्छा है !

क्या कर सकते हैं ?? ???

घर मे कोई पुराना इंजेक्शन (injection) हो तो उसे ले और आगे जहां सुई(needle) लगी होती है वहाँ से 

काटे ! सुई(needle) जिस

पलास्टिक मे फिट होती है उस प्लास्टिक वाले हिस्से को काटे !! जैसे ही आप सुई के पीछे लगे पलास्टिक 

वाले हिस्से को काटेंगे

तो वो injection एक सक्षम पाईप की तरह हो जाएगा ! बिलकुल वैसा ही जैसा होली के दिनो मे बच्चो की 

पिचकारी होती है !

उसके बाद आप रोगी के शरीर पर जहां साँप ने काटा है वो निशान ढूँढे ! बिलकुल आसानी से मिल जाएगा 

क्यूंकि जहां साँप काटता है वहाँ कुछ

सूजन आ जाती है और दो निशान जिन पर हल्का खून लगा होता है आपको मिल जाएँगे ! अब आपको वो 

injection( जिसका सुई

वाला हिस्सा आपने काट दिया है) लेना है और उन दो निशान मे से पहले एक निशान पर रख कर उसको 

खीचना है ! जैसी आप निशान पर

injection रखेंगे वो निशान पर चिपक जाएगा तो उसमे vacuum crate हो जाएगा ! और आप खींचेगे तो 

खून उस injection मे भर

जाएगा ! बिलकुल वैसे ही जैसे बच्चे पिचकारी से पानी भरते हैं ! तो आप इंजेक्शन से खींचते रहिए !और 

आप first time निकलेंगे तो देखेंगे

कि उस खून का रंग हल्का blackish होगा या dark होगा तो समझ लीजिये उसमे जहर मिक्स हो गया है !

तो जब तक वो dark और blackish रंग blood निकलता रहे आप खिंचीये ! तो वो सारा निकल आएगा ! 

क्यूंकि साँप जो काटता है उसमे जहर

ज्यादा नहीं होता है 0.5 मिलीग्राम के आस पास होता है क्यूंकि इससे ज्यादा उसके दाँतो मे रह ही नहीं 

सकता ! तो 0.5 ,0.6 मिलीग्राम है दो तीन

बार मे आपने खीच लिया तो बाहर आ जाएगा !

और जैसे ही बाहर आएगा आप देखेंगे कि रोगी मे कुछ बदलाव आ रहा है थोड़ी consciousness (चेतना) 

आ जाएगी ! साँप काटने से व्यकित

unconsciousness हो जाता है या semi consciousness हो जाता है और जहर को बाहर खींचने से चेतना 

आ जाती है ! consciousness

आ गई तो वो मरेगा नहीं ! तो ये आप उसके लिए first aid (प्राथमिक सहायता) कर सकते हैं ! इसी 

injection को आप बीच से कट कर दीजिये

बिलकुल बीच कट कर दीजिये 50% इधर 50% उधर ! तो आगे का जो छेद है उसका आकार और बढ़ 

जाएगा और खून और जल्दी से उसमे भरेगा !

तो ये आप रोगी के लिए first aid (प्राथमिक सहायता) के लिए ये कर सकते हैं !
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दूसरा एक medicine आप चाहें तो हमेशा अपने घर मे रख सकते हैं बहुत सस्ती है homeopathy मे आती 

है ! उसका नाम है NAJA (N A J A ) !

homeopathy medicine है, किसी भी homeopathy shop मे आपको मिल जाएगी ! और इसकी 

potency है 200 ! आप

दुकान पर जाकर कहें NAJA 200 देदो !

तो दुकानदार आपको दे देगा ! ये 5 मिलीलीटर आप घर मे खरीद कर रख लीजिएगा 100 लोगो की जान 

इससे बच जाएगी ! और इसकी कीमत सिर्फ पाँच रुपए है ! इसकी बोतल भी आती है 100 मिलीग्राम की 

70 से 80 रुपए की उससे आप कम से कम 10000 लोगो की जान बचा सकते हैं जिनको साँप ने काटा है !

और ये जो medicine है NAJA ये दुनिया के सबसे खतरनाक साँप का ही poison है जिसको कहते है क्रैक 

! इस साँप का poison दुनिया मे सबसे खराब माना जाता है ! इसके बारे मे कहते है अगर इसने किसी को 

काटा तो उसे भगवान ही बचा सकता है ! medicine

भी वहाँ काम नहीं करती उसी का ये poison है लेकिन delusion form मे है तो घबराने की कोई बात नहीं ! 

आयुर्वेद का सिद्धांत आप जानते है

लोहा लोहे को काटता है तो जब जहर चला जाता है शरीर के अंदर तो दूसरे साँप का जहर ही काम आता है !

तो ये NAJA 200 आप घर मे रख लीजिये !अब देनी कैसे है रोगी को वो आप जान लीजिये ! 1 बूंद उसकी 

जीभ पर रखे और 10 मिनट बाद

फिर 1 बूंद रखे और फिर 10 मिनट बाद 1 बूंद रखे !! 3 बार डाल के छोड़ दीजिये !बस इतना काफी है !

और ये दवा रोगी की जिंदगी को हमेशा हमेशा के लिए बचा लेगी ! और साँप काटने के एलोपेथी मे जो 

injection है वो आम अस्तप्तालों मे

नहीं मिल पाते ! डाक्टर आपको कहेगा इस अस्तपाताल मे ले जाओ उसमे ले जाओ आदि आदि !!

और जो ये एलोपेथी वालो के पास injection है इसकी कीमत 10 से 15 हजार रुपए है ! और अगर मिल 

जाएँ तो डाक्टर एक साथ 8 से -10 injection ठोक देता है ! कभी कभी 15 तक ठोक देता है मतलब लाख-

डेड लाख तो आपका एक बार मे साफ !! और यहाँ सिर्फ 10 रुपए की medicine से आप उसकी जान बचा 

सकते हैं !

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तो ये जानकारी आप हमेशा याद रखे पता नहीं कब काम आ जाए हो सकता है आपके ही जीवन मे काम आ 


जाए ! या पड़ोसी के जीवन

मे या किसी रिश्तेदार के काम आ जाए! तो first aid के लिए injection की सुई काटने वाला तरीका और ये 

NAJA 200 hoeopathy

दवा ! 10 - 10 मिनट बाद 1 - 1 बूंद तीन बार रोगी की जान बचा सकती है !!

आपने पूरी post पढ़ी बहुत बहुत धन्यवाद ...........

January 07, 2013

STORY 22





“When I got home that night as my wife served dinner, I held her hand and said, I’ve got something to tell you. She sat down and ate quietly. Again I observed the hurt in her eyes.


... Suddenly I didn’t know how to open my mouth. But I had to let her know what I was thinking. I want a divorce. I raised the topic calmly. She didn’t seem to be annoyed by my words, instead she asked me softly, why?

I avoided her question. This made her angry. She threw away the chopsticks and shouted at me, you are not a man! That night, we didn’t talk to each other. She was weeping. I knew she wanted to find out what had happened to our marriage. But I could hardly give her a satisfactory answer; she had lost my heart to Jane. I didn’t love her anymore. I just pitied her!

With a deep sense of guilt, I drafted a divorce agreement which stated that she could own our house, our car, and 30% stake of my company. She glanced at it and then tore it into pieces. The woman who had spent ten years of her life with me had become a stranger. I felt sorry for her wasted time, resources and energy but I could not take back what I had said for I loved Jane so dearly. Finally she cried loudly in front of me, which was what I had expected to see. To me her cry was actually a kind of release. The idea of divorce which had obsessed me for several weeks seemed to be firmer and clearer now.

The next day, I came back home very late and found her writing something at the table. I didn’t have supper but went straight to sleep and fell asleep very fast because I was tired after an eventful day with Jane. When I woke up, she was still there at the table writing. I just did not care so I turned over and was asleep again.

In the morning she presented her divorce conditions: she didn’t want anything from me, but needed a month’s notice before the divorce. She requested that in that one month we both struggle to live as normal a life as possible. Her reasons were simple: our son had his exams in a month’s time and she didn’t want to disrupt him with our broken marriage.

This was agreeable to me. But she had something more, she asked me to recall how I had carried her into out bridal room on our wedding day. She requested that every day for the month’s duration I carry her out of our bedroom to the front door ever morning. I thought she was going crazy. Just to make our last days together bearable I accepted her odd request.

I told Jane about my wife’s divorce conditions. . She laughed loudly and thought it was absurd. No matter what tricks she applies, she has to face the divorce, she said scornfully.

My wife and I hadn’t had any body contact since my divorce intention was explicitly expressed. So when I carried her out on the first day, we both appeared clumsy. Our son clapped behind us, daddy is holding mommy in his arms. His words brought me a sense of pain. From the bedroom to the sitting room, then to the door, I walked over ten meters with her in my arms. She closed her eyes and said softly; don’t tell our son about the divorce. I nodded, feeling somewhat upset. I put her down outside the door. She went to wait for the bus to work. I drove alone to the office.

On the second day, both of us acted much more easily. She leaned on my chest. I could smell the fragrance of her blouse. I realized that I hadn’t looked at this woman carefully for a long time. I realized she was not young any more. There were fine wrinkles on her face, her hair was graying! Our marriage had taken its toll on her. For a minute I wondered what I had done to her.

On the fourth day, when I lifted her up, I felt a sense of intimacy returning. This was the woman who had given ten years of her life to me. On the fifth and sixth day, I realized that our sense of intimacy was growing again. I didn’t tell Jane about this. It became easier to carry her as the month slipped by. Perhaps the everyday workout made me stronger.

She was choosing what to wear one morning. She tried on quite a few dresses but could not find a suitable one. Then she sighed, all my dresses have grown bigger. I suddenly realized that she had grown so thin, that was the reason why I could carry her more easily.

Suddenly it hit me… she had buried so much pain and bitterness in her heart. Subconsciously I reached out and touched her head.

Our son came in at the moment and said, Dad, it’s time to carry mom out. To him, seeing his father carrying his mother out had become an essential part of his life. My wife gestured to our son to come closer and hugged him tightly. I turned my face away because I was afraid I might change my mind at this last minute. I then held her in my arms, walking from the bedroom, through the sitting room, to the hallway. Her hand surrounded my neck softly and naturally. I held her body tightly; it was just like our wedding day.

But her much lighter weight made me sad. On the last day, when I held her in my arms I could hardly move a step. Our son had gone to school. I held her tightly and said, I hadn’t noticed that our life lacked intimacy. I drove to office…. jumped out of the car swiftly without locking the door. I was afraid any delay would make me change my mind…I walked upstairs. Jane opened the door and I said to her, Sorry, Jane, I do not want the divorce anymore.

She looked at me, astonished, and then touched my forehead. Do you have a fever? She said. I moved her hand off my head. Sorry, Jane, I said, I won’t divorce. My marriage life was boring probably because she and I didn’t value the details of our lives, not because we didn’t love each other anymore. Now I realize that since I carried her into my home on our wedding day I am supposed to hold her until death do us apart. Jane seemed to suddenly wake up. She gave me a loud slap and then slammed the door and burst into tears. I walked downstairs and drove away. At the floral shop on the way, I ordered a bouquet of flowers for my wife. The salesgirl asked me what to write on the card. I smiled and wrote, I’ll carry you out every morning until death do us apart.

That evening I arrived home, flowers in my hands, a smile on my face, I run up stairs, only to find my wife in the bed -dead. My wife had been fighting CANCER for months and I was so busy with Jane to even notice. She knew that she would die soon and she wanted to save me from the whatever negative reaction from our son, in case we push through with the divorce.— At least, in the eyes of our son—- I’m a loving husband….

The small details of your lives are what really matter in a relationship. It is not the mansion, the car, property, the money in the bank. These create an environment conducive for happiness but cannot give happiness in themselves.

So find time to be your spouse’s friend and do those little things for each other that build intimacy. Do have a real happy marriage!
If you don’t share this, nothing will happen to you.

If you do, you just might save a marriage. Many of life’s failures are people who did not realize how close they were to success when they gave up...

January 06, 2013

STORY 21

डाइनिंग टेबल पर खाना देखकर


बच्चा भड़का

...

फिर वही सब्जी,रोटी और दाल में

तड़का....?
मैंने कहा था न कि मैं

पिज्जा खाऊंगा

रोटी को बिलकुल हाथ

नहीं लगाउंगा

बच्चे ने थाली उठाई और बाहर

गिराई.......?

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बाहर थे कुत्ता और आदमी

दोनों रोटी की तरफ लपके .......?

कुत्ता आदमी पर भोंका

आदमी ने रोटी में खुद को झोंका

और हाथों से दबाया

कुत्ता कुछ भी नहीं समझ पाया



उसने भी रोटी के दूसरी तरफ मुहं

लगाया दोनों भिड़े

जानवरों की तरह लड़े

एक तो था ही जानवर,
दूसरा भी बन गया था जानवर.....

आदमी ज़मीन पर गिरा,

कुत्ता उसके ऊपर चढ़ा

कुत्ता गुर्रा रहा था

और अब आदमी कुत्ता है

या कुत्ता आदमी है कुछ

भी नहीं समझ आ रहा था

नीचे पड़े आदमी का हाथ लहराया,

हाथ में एक पत्थर आया
कुत्ता कांय-कांय करता भागा........
आदमी अब जैसे नींद से जागा हुआ खड़ा

और लड़खड़ाते कदमों से चल पड़ा.....

वह कराह रहा था रह-रह कर

हाथों से खून टपक रहा था

बह-बह कर आदमी एक झोंपड़ी पर पहुंचा.......

झोंपड़ी से एक बच्चा बाहर आया और

ख़ुशी से चिल्लाया

आ जाओ, सब आ जाओ

बापू रोटी लाया, देखो बापू

रोटी लाया, देखो बापू

रोटी लाया.........!!!

January 03, 2013

संस्कृति -मेरी सोच आज की भारतीय संस्कृति INDIAN CULTURE पर



·
  • एक बार मेरा एक दोस्त बेर के पेड़ पर बेर के फल तोड़ रहा था।किसी कारणवश वो असंतुलित हो गया और नाचे गिर पड़ा।वो गिरा तो बहुत ऊंचाई से था पर उसके मित्र समूह में कुछ उसके विरोधी भी थे जो उसके गिरने पर हंसने लगे।तभी मेरे उस मित्र ने कहा कि हंस क्यों रहे हो सालों मैं पेड़ से गिरा थोड़े ही हूँ मैंने तो छलांग लगाई है वहाँ से।ह…हा…जब भी ये बात सोचता हूँ तो हंसी आ जाती है क्योंकि सच में उन विरोधियों का मुंह बंद कर दिया था उसने।
    यही हाल मैं अपने भारतीयों का देखता हूँ पर यहाँ मुझे हंसी नहीं आती दुःख होता है।क्योंकि यहाँ स्थिति उल्टी है।विरोधी की जगह मेरे देशवासी हैं और मेरे चालाक मित्र की जगह मेरे दुश्मन।

    जिस टाई को विदेशी अपनी नाक पोछने के लिए बांधते थे उस टाई को बांधना हमने अपनी शान समझ लिया।विदेशों में तो सर्दी है लोगों की नाक बहती रहती है पर हमारे यहाँ तो गर्मी है…..!
    विदेशी हमारी तरह रोटी-सब्जी या दाल-भात नहीं खाते हैं तो वे हाथ के बजाय कांटे-छूरी या चम्मच का प्रयोग करते हैं पर हम क्यों??चम्मच और कटोरी का मेल है।चूंकि कटोरी में खीर-सेवई जैसे तरल पदार्थ खाए जाते हैं तो चम्मच जरूरी है पर रोटी और सब्जी में चम्मच क्यों?हमारा हाल तो ऐसा हो गया है कि हम एक हाथ से रोटी खा भी नहीं पाते।रोटी तोड़ने के लिए हमें दोनों हाथ लगाने पड़ते हैं।चूंकि दाएँ हाथ में तो चम्मच होता है इसलिए बाएँ हाथ से ही रोटी का निवाला मुंह में डालते जाते है।चूंकि हाथ तो ज्यादा गंदा होता नहीं है इसलिए खाने के बाद हाथ धोने की बजाय बस हाथ झाड़कर काम चला लेते हैं हम।जो चम्मच की बजाय हाथ से खाना खाते हैं वो हमसे ज्यादा शुद्धता बरतते हैं क्योंकि खाने के बाद कम-से-कम वो हाथ तो धोते हैं पर फिर भी अगर हम अपने सामने किसी को हाथ से खाते देख लेते हैं तो हमें घिन आने लगती है कि कितना असभ्य और घिनौना है ये व्यक्ति जो चम्मच की बजाय हाथ गंदा कर रहा है।जो चीज हम मुंह में डालते हैं वही चीज किसी के हाथ में सट जाती है तो हमें घिन आने लगती है।आखिर हम सभ्य,आधुनिक और अंग्रेज़ के वफादार जो हैं और ये तो हाथ से खाने वाले साले असभ्य और गरीब भारतीय!
    हम भले ही हाथ से दाल-भात खाने में भी असमर्थ हों पर हम फिर भी सभ्य है।आखिर अंग्रेज़ होने का मुहर जो लग गया हमपर!
    अंग्रेजों को पानी की कमी होगी या ठण्ड के कारण हाथ भिंगोना नहीं चाहते होंगे तो वे पानी की बजाय कागज का प्रयोग करते हैं पर हमें तो ईश्वर ने गर्मी और प्रचुर पानी दिया है फिर हम क्यों इतने गंदे बन रहे हैं।खाने के बाद तो हाथ धोने की बात छोड़िए क्यों हम शौच के समय भी पानी के बजाय कागज से पोछने जैसा अत्यंत घिनौना काम करते हैं।??
    अंग्रेज़ तो चाहेंगे ही कि हम भी उनकी तरह बन जाएँ।आज जितने भी बड़े-बड़े विदेशी पिज्जा-हट,मैक-डोनाल्ड,कैफे-टाइम जैसे food-corner हैं जिसने उस दूकान में करोड़ों की पूंजी लगाई है जहां मंहगे-मंहगे कुर्सी-टेबल,सोफे आदि तो होते हैं पर हाथ धोने के लिए एक बेसिन तक नहीं होता।किस बात की ओर संकेत करता है ये।?
    परिस्थिति ऐसी हो चुकी है कि कल को अगर किसी बीमारी से सारे अंग्रेज़ टकले होने लगें तो भारतीय भी फैशन के नाम पर अपने-अपने सर के बाल मूडवाना शुरू कर देंगे।किसी कारण वश अगर वे लोग अपाहिज हो जाएँ और लाठी लेकर चलना उनकी मजबूरी हो जाय तो हम भी लाठी लेकर चलना अपनी शान समझने लगेंगे।अगर किसी दिन उन्हें कुत्ते का मूत्र भा जाए और वे पीना शुरू कर दे तो हमारे यहाँ भी कुत्ते का मूत मंहगी बोतलों में बिकना शुरू हो जाएगा और शान से हम कुतर-मूत्र की पार्टी भी मनाने लगेंगे॥

    भारतियों के लिए एक कहावत है कि हमेशा हमें दूसरों की बीबी पसंद आती है पर इसका मतलब ये तो नहीं ना कि हमारी बीबी अगर मेनका है और दूसरे की शूर्पनखा फिर भी हमें अपनी मेनका के बजाय शूर्पनखा ही पसंद आए

    गर्व करिए अपने भारतीय होने पर।हम भारतीय वो हैं जिसने पूरी दुनिया को पैंट पहनना और शुशु करना सिखाया है।हम भारतीय तो विश्वगुरु थे चेले-चटिए नहीं।हम चक्रव्रती सम्राट थे किसी के दास नहीं।याद कीजिए भीष्म जैसे हमारे महान पूर्वजों को और आजाद करिए अपने आपको विदेशियों की मानसिक गुलामी से।जो व्यक्ति अपना आत्मविश्वास और आत्मस्वाभिमान खो देता है वो बस एक गुलाम बनकर रह जाता है।ऐसा व्यक्ति कभी अपना विकास नहीं कर सकता।जगाना होगा हम भारतियों को अपना आत्मविश्वास क्योंकि हमें हमारे भारत माँ के खोए हुए सम्मान को फिर से वापस लाना है।हमारी रगों में जो हमारे महान पूर्वजों का खून दौड़ रहा है उसे लज्जित नहीं करना है हमें।हमें दिखा देना है अपने पूर्वजों को कि हम भी उन्हीं की महान संतान हैं जिनके चरणों में सारी दुनिया श्रद्धा से अपना सर झुकाती है

इलाज - चाय एक नुक्सान दायक पेय हैं (TEA IS HARMFULL )



मित्रो चाय के बारे मे सबसे पहली बात ये कि चाय जो है वो हमारे देश भारत का उत्पादन नहीं है ! अंग्रेज़ 

जब भारत आए थे तो अपने साथ चाय का पौधा लेकर आए थे ! और भारत के कुछ ऐसे स्थान जो अंग्रेज़ो 

के लिए अनुकूल (जहां ठंड बहुत होती है) वहाँ पहाड़ियो मे चाय के पोधे लगवाए और उसमे से चाय होने 

लगी !

तो अंग्रेज़ अपने साथ चाय लेकर आए भारत मे कभी चाय हुई नहीं !1750 से पहले भारत मे कहीं भी चाय 


का नाम और निशान नहीं था ! ब्रिटिशर आए east india company लेकर तो उन्होने चाय के बागान लगाए 

! और उन्होने ये अपने लिए लगाए !

क्यूँ लगाए ???

चाय एक medicine है इस बात को ध्यान से पढ़िये !चाय एक medicine है लेकिन सिर्फ उन लोगो के लिए 


जिनका blood pressure low रहता है ! और जिनका blood pressure normal और high रहता है चाय 

उनके लिए जहर है !!

low blood pressure वालों के लिए चाय अमृत है और जिनका high और normal रहता है चाय उनके 


लिए जहर है !
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अब अंग्रेज़ो की एक समस्या है वो आज भी है और हजारो साल से है !सभी अंग्रेज़ो का BP low रहता है ! 


सिर्फ अंग्रेज़ो का नहीं अमरीकीयों का भी ,कैनेडियन लोगो का भी ,फ्रेंच लोगो भी और जर्मनस का भी, 

स्वीडिश का भी !इन सबका BP LOW रहता है !

कारण क्या है ???

कारण ये है कि बहुत ठंडे इलाके मे रहते है बहुत ही अधिक ठंडे इलाके मे ! उनकी ठंड का तो हम अंदाजा 


नहीं लगा सकते ! अंग्रेज़ और उनके आस पास के लोग जिन इलाको मे रहते है वहाँ साल के 6 से 8 महीने 

तो सूरज ही नहीं निकलता ! और आप उनके तापमान का अनुमान लगाएंगे तो - 40 तो उनकी lowest 

range है ! मतलब शून्य से भी 40 डिग्री नीचे 30 डिग्री 20 डिग्री ! ये तापमान उनके वहाँ समानय रूप से 

रहता है क्यूंकि सूर्य निकलता ही नहीं ! 6 महीने धुंध ही धुंध रहती है आसमान मे ! ये इन अंग्रेज़ो की सबसे 

बड़ी तकलीफ है !!

ज्यादा ठंडे इलाके मे जो भी रहेगा उनका BP low हो जाएगा ! आप भी करके देख सकते है ! बर्फ की दो 


सिलियो को खड़ा कर बीच मे लेट जाये 2 से 3 मिनट मे ही BP लो होना शुरू हो जाएगा ! और 5 से 8 मिनट 

तक तो इतना low हो जाएगा जिसकी आपने कभी कल्पना भी नहीं की होगी ! फिर आपको शायद समझ 

आए ये अंग्रेज़ कैसे इतनी ठंड मे रहते है !घरो के ऊपर बर्फ, सड़क पर बर्फ,गड़िया बर्फ मे धस जाती है ! 

बजट का बड़ा हिस्सा सरकारे बर्फ हटाने मे प्रयोग करती है ! तो वो लोग बहुत बर्फ मे ररहते है ठंड बहुत है 

blood pressure बहुत low रहता है !

अब तुरंत blood को stimulent चाहिए ! मतलब ठंड से BP बहुत low हो गया ! एक दम BP बढ़ाना है तो 


चाय उसमे सबसे अच्छी है और दूसरे नमबर पर कॉफी ! तो चाय उन सब लोगो के लिए बहुत अच्छी है जो 

बहुत ही अधिक ठंडे इलाके मे रहते है ! अगर भारत मे कश्मीर की बात करे तो उन लोगो के लिए 

चाय,काफी अच्छी क्यूंकि ठंड बहुत ही अधिक है !!
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लेकिन बाकी भारत के इलाके जहां तापमान सामान्य रहता है ! और मुश्किल से साल के 15 से 20 दिन की 


ठंड है !वो भी तब जब कोहरा बहुत पड़ता है हाथ पैर कांपने लगते है तापमान 0 से 1 डिग्री के आस पास 

होता है ! तब आपके यहाँ कुछ दिन ऐसे आते है जब आप चाय पिलो या काफी पिलो !

लेकिन पूरे साल चाय पीना और everytime is tea time ये बहुत खतरनाक है ! और कुछ लोग तो कहते 


बिना चाय पीए तो सुबह toilet भी नहीं जा सकते ये तो बहुत ही अधिक खतरनाक है !
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इसलिए उठते ही अगर चाय पीने की आपकी आदत है तो इसको बदलीये !!

नहीं तो होने वाला क्या है सुनिए !अगर normal BP आपका है और आप ऐसे ही चाय पीने की आदत जारी 

रखते है तो धीरे धीरे BP high होना शुरू होगा ! और ये high BP फिर आपको गोलियो तक लेकर जाएगा !

तो डाक्टर कहेगा BP low करने के लिए गोलिया खाओ ! और ज़िंदगी भर चाय भी पियो जिंदगी भर 

गोलिया भी खाओ ! डाक्टर ये नहीं कहेगा चाय छोड़ दो वो कहेगा जिंदगी भर गोलिया खाओ क्यूंकि गोलिया 

बिकेंगी तो उसको भी कमीशन मिलता रहेगा !

तो आप अब निर्णय लेलों जिंदगी भर BP की गोलीया खाकर जिंदा रहना है तो चाय पीते रहो ! और अगर 


नहीं खानी है तो चाय पहले छोड़ दो !
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एक जानकारी और !

आप जानते है गर्म देश मे रहने वाले लोगो का पेट पहले से ही अम्लीय (acidic) होता ! और ठंडे देश मे 

रहने वाले लोगो का पेट पहले से ही क्षारीय (alkaline) होता है ! और गर्म देश मे रहने वाले लोगो का पेट 

normal acidity से ऊपर होता है और ठंड वाले लोगो का normal acidity से भी बहुत अधिक कम ! 

मतलब उनके blood की acidity हम मापे और अपने देश के लोगो की मापे तो दोनों मे काफी अंतर रहता 

है !

अगर आप ph स्केल को जानते है तो हमारा blood की acidity 7.4 ,7.3 ,7.2 और कभी कभी 6.8 के 


आस पास तक चला जाता है !! लेकिन यूरोप और अमेरिका के लोगो का +8 और + 8 से भी आगे तक 

रहता है !

तो चाय पहले से ही acidic (अम्लीय )है और उनके क्षारीय (alkaline) blood को थोड़ा अम्लीय करने मे 


चाय कुछ मदद करती है ! लेकिन हम लोगो का blood पहले से ही acidic है और पेट भी acidic है ऊपर 

हम चाय पी रहे है तो जीवन का सर्वनाश कर रहे हैं !तो चाय हमारे रकत (blood ) मे acidity को और 

ज्यादा बढ़ायी गई !! और जैसा आपने राजीव भाई की पहली post मे पढ़ा होगा (heart attack का 

आयुर्वेदिक इलाज मे )!

आयुर्वेद के अनुसार रक्त (blood ) मे जब अमलता (acidity ) बढ़ती है तो 48 रोग शरीर मे उतपन होते है ! 


उसमे से सबसे पहला रोग है ! कोलोस्ट्रोल का बढ़ना ! कोलोस्ट्रोल को आम आदमी की भाषा मे बोले तो 

मतलब रक्त मे कचरा बढ़ना !! और जैसे ही रक्त मे ये कोलोस्ट्रोल बढ़ता है तो हमारा रक्त दिल के वाहिका 

(नालियो ) मे से निकलता हुआ blockage करना शुरू कर देता है ! और फिर हो blockage धीरे धीरे इतनी 

बढ़ जाती है कि पूरी वाहिका (नली ) भर जाती है और मनुष्य को heart attack होता है !


तो सोचिए ये चाय आपको धीरे धीरे कहाँ तक लेकर जा सकती है !!

इसलिए कृपया इसे छोड़ दे !!!
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अब आपने इतनी अम्लीय चाय पी पीकर जो आजतक पेट बहुत ज्यादा अम्लीय कर लिया है ! इसकी 


अम्लता को फिर कम करिए !

कम कैसे करेंगे ??

सीधी सी बात पेट अम्लीय (acidic )है तो क्षारीय चीजे अधिक खाओ !

क्यूकि अमल (acidic) और क्षार (alkaline) दोनों लो मिला दो तो neutral हो जाएगा !!

तो क्षारीय चीजों मे आप जीरे का पानी पी सकते है पानी मे जीरा डाले बहुत अधिक गर्म करे थोड़ा ठंडा होने 


पर पिये ! दाल चीनी को ऐसे ही पानी मे डाल कर गर्म करे ठंडा कर पिये !

और एक बहुत अधिक क्षारीय चीज आती है वो है अर्जुन की छाल का काढ़ा 40 -45 रुपए किलो कहीं भी 


मिल जाता है इसको आप गर्म दूध मे डाल कर पी सकते है ! बहुत जल्दी heart की blockage और high 

bp कालोस्ट्रोल आदि को ठीक करता है !!

एक और बात आप ध्यान दे इंसान को छोड़ कर कोई जानवर चाय नहीं पीता कुत्ते को पिला कर देखो कभी 


नहीं पियेगा ! सूघ कर इधर उधर हो जाएगा ! दूध पिलाओ एक दम पियेगा ! कुत्ता ,बिल्ली ,गाय ,चिड़िया 

जिस मर्जी जानवर को पिला कर देखो कभी नहीं पियेगा !!

और एक बात आपके शरीर के अनुकूल जो चीजे है वो आपके 20 किलो मीटर के दायरे मे ही होंगी ! आपके 


गर्म इलाके से सैंकड़ों मील दूर ठंडी पहड़ियों मे होने वाली चाय या काफी आपके लिए अनुकूल नहीं है ! वो 

उनही लोगो के लिए है! आजकल ट्रांसपोटेशन इतना बढ़ गया है कि हमे हर चीज आसानी से मिल जाती है ! 

वरना शरीर के अनुकूल चीजे प्र्तेक इलाके के आस पास ही पैदा हो पाएँगी !!
तो आप चाय छोड़े अपने अम्लीय पेट और रक्त को क्षारीय चीजों का अधिक से अधिक सेवन कर शरीर 

स्व्स्थय रखे ...............

January 01, 2013

संस्कृति -मोक्ष्यपातं : सांप-सीढी का खेल




मोक्ष्यपातं : सांप-सीढी का खेल

सांप-सीढ़ी का खेल भरत में 'मोक्ष पातं' के नाम से बच्चों को धर्म सिखाने के लिए खेलाया जाता था।

सांप सीढ़ी का खेल तेरहवीं शताब्दीे में कवि संत ज्ञान देव (ज्ञानेश्वर  देव जी ; महारास्त्र ) द्वारा तैयार किया गया था इसे मूल रूप से मोक्षपट कहते थे।



जहां सीढ़ी मोक्ष का रास्ता है और सांप पाप का रास्ता है।

इस खेल की अवधारणा 13वीं सदी में कवि संत 'ज्ञानदेव' ने दी थी।

मौलिक खेल में जिन खानों में सीढ़ी मिलती थी वो थे- 12वां खाना आस्था का था, 51वां खाना विश्वास का, 57वां खाना उदारता का, 76वां ज्ञान का और 78वां खाना वैराग्य का था। और जीन खानों में सांप मिलते थे वो इस प्रकार थे- 41 वां खाना अवमानना का, 44 वां खाना अहंकार का, 49 वां खाना अश्लीलता का, 52 वां खाना चोरी का, 58 वां खाना झूठ का, 62 वां खाना शराब पीने का, 69 वां खाना उधर लेने का, 73 वां खाना हत्या का , 84 वां खाना क्रोध का, 92 वां खाना लालच का, 95 वां खाना घमंड का ,99 वां खाना वासना का हुआ करता था। 100वें खाने में पहुचने पे मोक्ष मिल जाता था।

1892 में ये खेल अंग्रेज इंग्लैंड ले गए और सांप-सीढ़ी नाम से प्रचलित किया।

पांसा (Dice):
काफी पुराने पुरातात्विक प्रमाण मिले हैं जिसमें हड़प्पा की खुदाई में कई स्थानों पर (Kalibangan, Lothal, Ropar, Alamgirpur, Desalpur and surrounding territories) Oblong (लम्बे) पांसे मिले हैं। उनमें से कुछ ईसा से 3 सदी पहले के हैं। पांसों के प्रमाण ऋग्वेद और अथर्ववेद में मिलते हैं।

शतरंज का खेल (The Game of Chess):
शतरंज के खेल का अविष्कार भारत ने किया था , इसका मौलिक नाम 'अष्ट-पदम्' था।
उसके बाद आज से 1000 साल पहले ये खेल 'चतुरंग' नाम से खेला जाने लगा और फिर 600 AD में Persians के द्वारा इसका नाम शतरंज रखा गया।

ताश का खेल (The Game of Cards):
ताश के खेल की शुरुआत भारत में हुयी थी उसका मूल नाम 'क्रीडा पत्रं' था।
पत्ते कपड़ों के बने होते थे जिन्हें गंजिफा कहा जाता था। ये एक शाही खेल था, इस मूल खेल में कई परिवर्तन होते गए और आज का 52 पत्तों वाला खेल निष्काषित हुआ।

इन महान देनों के साथ साथ वेद प्राचीन भारत की सुव्यवस्थित सभ्यता के प्रमाण भी हैं।

संस्कृति -(महाकुम्भ का वैज्ञानिक सिद्धांत)scientific theory of mahakumbh



महाकुम्भ का वैज्ञानिक सिद्धांत

सूर्य 14 जनवरी 2013 मंगलवार को रात्रि में लगभग 8 बजे मकर राशि में प्रवेश करेगा। तथा 14 मार्च 

2013 शुक्रवार को रात में कुम्भ राशि को छोड़ देगा।

वास्तव में मकर एवं कुम्भ राशियाँ दोनों ही शनि ग्रह की राशियाँ हैं। ये दोनों राशियाँ भयंकर अन्धकार 

सतह वाली राशियाँ हैं। कक्ष्या में बहुत दूर स्थित होने के कारण यह घुर्णन ऊर्जा (Kinetic Energy) बहुत 

ही अल्प मात्रा में उत्पन्न कर पाटा है। इसके अलावा इसकी सतह कार्बोफेनाथिलिक मेथोडाक्साइड से बनी 

होने के कारण सूर्य से निकलने वाली परावैगनी किरणों (Ultraviolet rays) को बहु आयाम (Multi 

Prospect) बनाकर पृथ्वी की तरफ मोड़ देती है। परिणाम स्वरुप पृथ्वी के प्राणियों के शरीर के अन्दर की 

श्रोणि मेखला (Pelvic Girdle) एवं सुषुम्ना (Spinal Chord) के प्रत्यावर्ती द्रव्यों (Fluids) के केन्द्रीय अम्ल 

(Nucleic Acid) आवेश रहित (Discharged) हो जाते है। आदमी की सोच, निर्णय, कार्य प्रणाली, कार्य 

प्रकृति एवम परकाया सम्बन्ध सब स्खलित हो जाता है।



BRAND Archetypes through lens -Indian-Brands

There has been so much already written about brand archetypes and this is certainly not one more of those articles. In fact, this is rather ...