#सिचुएशनअंडरकंट्रोल!!
कोई 20-21 साल पुरानी बात होगी हमारे बटेश्वर के पशु मेले में तब तक रौनक हुआ करती थी खूब दूर से व्यापारी किसान बैल, ऊंट, घोड़ी वगैरह लेने यहां आते......
मेले में मनोरंजन वाली चीजें भी होती तो जिन्ह जानवरों में कोई इंटरेस्ट नहीं वो भी घूमने जाते.. ऐसे ही बटेश्वर मेले में घूमते मैंने एक तगड़ा नज़ारा देखा.... एक बड़ा ही मरखोर और तगड़ा सांड बिक्री के लिए लाया गया था
काला और बड़ा सांड नकेल के दोनों तरफ रस्सी लगा बांधा गया था एक तरफ एक नीम के पेड़ से तो दूसरी तरफ खूटा गाढ़ के....उसके सींगों में भी एक रस्सी फसा के इस तरह बाँधी गई थी के वो गर्दन ज्यादा ऊंची न उठा सके...!
अब इतने बंधनो के बाद भी सांड अपने अगले पैर से मिट्टी फैंक रहा था, नथुने फुला रहा था और पास आने वालों पर सींगों से हमले को प्रयासरत था.... एक आध ग्राहक उसे देखने आता भी तो उसका हमलावर रुख देख उसकी फ्लावर हो लेती...... कुल जमा उसके मालिक के अलावा कोई उसे हाथ तक नहीं लगा पा रहा था!!!
20 साल पहले तक गाँव-खेड़ों में कृत्रिम गर्भाधान की सुविधा नहीं थी बड़े पशु पालक अपने खुदके बढ़िया नस्ल के सांड और भेंसे पालते या हर गांव में ऐसे देवी के नाम दाग लगा छोड़े #ढिलाऊ_सांड और भेंसे होते थे जो आराम से खुल्ले चरते और खुद ही सूंघ कर अपनी जरूरत की जगह पहुंच जाते..... ये बड़ा पुरातन भारतीय तरीक़ा था जिसे सरकारों की चुटिया नीतियों ने बर्बाद कर दिया....!
एक विकल्प और होता था हर दो चार गांव के बीच नट समुदाय के लोग अपने झोपडे बना रहने लगते वो बढ़िया नस्ल के सांड और भैंसे रखते और गर्भाधान को लायी गयी गाय भैसों के मालिकों से इसके पैसे लेते....!
ऐसे ही एक नट और उसके साथ उसकी लहँगा वाली खूबसूरत और नाजुक सी बीवी ने उस सांड की मेले में कीमत लगाई..... सौदा पट गई पर वहां मौजूद हर आदमी बस ये देखना चाहता था के ये नट-नटनी इतने खतरनाक सांड को कैसे ले जाएँगे जिसके करीब जाने में सबकी फट रही थी...!
नट की बीवी सांड के पीछे जा चुप चाप खड़ी हो गयी.... और नट ने जौ का आटा एक तसले में घोल सांड के आगे पेस किया.. फिर कुछ हरा चारा डाला, पुराने मालिक के साथ उसपर हाथ फेरा..... सांड खा पी भी रहा था पर नट पर नथुने भी फुला रहा था..
इस बीच नटिनी ने एक लंबी सी लकड़ी के छोर पर पतली नायलोन की रस्सी के छोर से बना फंदा फसा लिया और सांड का पूरा ध्यान जब नट पर था उसने फंदा सांड की गोलियों (testicles) पर फसा कर कस दिया सांड ने टांगे फटकारी कूदा उछला पर नटिनी ने उचित दूरी पर खड़े हो रस्सी का दूसरा छोर पतंग की डोर बना लिया था.... नटिनी ने रस्सी को बस दो-तीन झटके दिए हल्के हल्के और सांड चुपचाप गर्दन नीचे कर जीभ और आंखे बाहर निकाल सिकुड़ कर खड़ा हो गया ....
अब नट ने आराम से उसकी रस्सी खोली और आगे आगे चल दिया.... पीछे उसकी बीवी पतंग की डोर संभाले थी.... सांड जैसे ही नट पर झपटने का मन करता एक हल्का सा झटका पीछे की रस्सी पर लगता और वो बिल्कुल #औकातमेंचलने_लगता....!
2014 में हमारे पड़ोस में भी एक ऐसा ही बिगड़ैल सांड था पाकिस्तान.... उसे पुचकारा गया, हाथ फेरा गया पर ससुरे की आदत खराब थी.... इसी पुचकार के बीच कब ससुरे के गोलों में फंदा फस गया उसे पता ही नहीं चला..... फंदा आर्थिक घेराबंदी का, फंदा अंतरराष्ट्रीय दबाव का, फंदा सर्जिकल स्ट्राइक का, एयर स्ट्राइक का.... अब जैसे ही वो नथुने फूलाता है हल्का सा पतंग वाला झटका और औकात में...!
2019 के बाद जिस तरह विश्वास का डायलॉग बोला जा रहा है..... जाने कायको मेरे को उस सांड की बहार निकली जीभ और फटी आंखे याद आरही हैं!!
खैर उम्मीद अच्छे की करनी चाहिए और मेरे को भी है शांतिप्रिय भाई लोग तुमको PM की पहल का फायदा उठा इस मुल्क ही नहीं वरन दुनियां में अपने लिए यकीन क़ायम करना चईये....!
अभी क्या है न के कहीं आओ जाओ तो तुम्हारी चड्डियां उतार तलासी होती है, तुम इबादत को भी झुको तो लोग सोचते हैं कहीं फट तो न जाएगा, तुमाई लुगाई को देख मौलवी लार टपकाता है के कब तुम तीर लफ़्ज़ निकालो और वो मन हरा करले...... तो छोड़ो चक्कर थोड़ा बहुत इंसान बनो, ये अरबी खच्चरों की रवायतें उन्ह मुबारक कह लौटाओ!
वैसे ज्यादा उम्मीद नहीं कर सकते..... तो फंदा तो हइये ही..... तो भाईजान लोग मर्ज़ी है आपकी क्यों के गोले हैं आपके!!
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