From Akbar to Indian Independence : Ayodhya - a journey through time
हुमायूँ के बाद अकबर का शासन काल आया, उसने अपने राज्य को १२ भागो मे विभक्त किया, अनुमानित है कि अकबर के शासन काल मे हिंदुओं ने लगभग २० बार जन्मभूमि को स्वतंत्र कराने की लडाईयां लडी, अकबर ने हिंदुओं के अधिकार को मान्यता देते हुए मस्जिद के बिल्कुल आगे एक चबूतरा बनाने और पूजा करने का अधिकार दिया, यही चबूतरा आज राम चबूतरा के नाम से जाना जाता है। इसके साथ ही अकबर ने राम और सीता मुद्रित चांदी के सिक्के (रामटका) भी बनवाये. और रामायण की सचित्र किताबे भी बनवाई. अकबरनामा व आइना ए अकबरी के लेखक अबुल फजल अयोध्या को राम का निवास व हिंदुओ की पुण्यभूमि मानते हैं।
जहांगीर के शासन काल मे १६०८ व १६११ के बीच विलियम फिंच ने अयोध्या की यात्रा की, उन्होंने भी अयोध्या में राम के होने की पुष्टि अपने लेख में की जिसे विलियम फोस्टर ने अपनी पुस्तक " अर्ली� ट्रेवल्स इन इंडिया " मे शामिल किया। १८५८ के बाद औरंगजेब के सरदार जांबाज खान ने अयोध्या पर हमला किया किंतु परास्त हुआ, गुरु गोविंद सिंह जी के अकालियों ने उसे रुदाली और सादातगंज मे हराया। १६६४ मे औरंगजेब स्वयं अयोध्या पहुंचा और राम चबूतरा तोडने के साथ साथ १०००० हिंदुओ को भी मार डाला.� लेकिन उसके बाद भी रामनवमी का पर्व अयोध्या मे मनाया जाता रहा. नवाब सलामत खान ने भी अमेठी के राजा गुरदत्त सिंह और पिंपरा के राजकुमार सिंह के साथ लडाई की। सादिक अली ने भी जन्मस्थान पर कब्जा करने की ५ लडाईयां छेडी।
१७५१ मे अवध के दूसरे नवाब सफदरजंग ने मराठाओं के सरदार मल्हार राव होल्कर को पठानों के विरुद्ध लडने के लिये आमंत्रित किया। मल्हार राव होल्कर ने समर्थन के लिये एक शर्त रखी कि हिंदुओं को उनके ३ तीर्थ स्थल अयोध्या, काशी और प्रयाग वापस दिये जाने चाहिये। १७५६ मे दोबारा शुजाउद्दौला ने अफगानियों के विरुद्ध मराठों से सहायता मांगी, मराठों ने ३ तीर्थ स्थान वापस हिंदुओं को देने की मांग की, किंतु दुर्भाग्यवश मराठाओं को पानीपत के युद्ध मे हार का सामना करना पडा। अनेकों मुस्लिम और यूरोपीय लेखकों ने इस बात को लिखा है कि मीरबाकी ने बाबर के आदेशानुसार रामकोट मे एक मंदिर को तोड कर उस पर मस्जिद बनाई, वो ये भी कहते हैं कि राम जन्म भूमि पर राम की पूजा की परंपरा रही है, और ये भी कहते हैं कि रामनवमी के दिन संपूर्ण भारत से लोग यहां उत्सव के लिये आते हैं। इनमे से कुछ लेखक इस प्रकार हैं ...
" डी हिस्ट्री एंड जियोग्राफी ऑफ इंडिया " जोसफ ताईपेनथालर, द्वारा १७८५;
" सफियाई चहल नसाई बहादुर शाही " बहादुर शाह की पुत्री द्वारा, १७वीं/ १८वीं शताब्दी;
" रिपोर्ट बाई मोंट कमरी मार्टिन " एक ब्रिटिश सर्वेक्षक, १८३८;
" द इस्ट इन्डिया कंपनी गजेटीयर " एडवर्ड फाऊनटेन द्वारा, १८५४;
" हडियोकाई शहादत " मिर्ज़ा जान द्वारा, १८५६;
इसके बाद के अपेक्षाकृत शांतिकाल मे भी ऊधवदास और बाबा रामचरन दास ने नसीरुद्दीन हैदर और वाजिद अली शाह के शासन काल मे जन्मभूमि की मुक्ति के प्रयास जारी रखे। १८५७ मे आमिर अली ने जिहाद की घोषणा की और १७० आदमियों के साथ हनुमान गढी पर आक्रमण किया किंतु अपने जिहाद के साथ वह भी हार गया। इसके पश्चात १८५७ की क्रांति आई, जब हिंदू और मुस्लिम दोनों ने मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध लडाई की, तब एक मौलवी आमिर अली ने स्थानीय मुस्लिमो को समझा कर रामजन्मभूमि हिंदुओ को सौंपनी के लिये तैयार कर लिया। किंतु अंग्रेजो ने फूट डाल कर राज करने की अपनी रणनीति के द्वारा आमिर अली और बाबा रामचंद्र दास को अयोध्या मे ही एक इमली के पेड पर लटका कर फांसी दे दी। आज भी वह इमली का पेड उस घटना का प्रत्यक्षदर्शी बना अयोध्या मे खडा है।
सार्जेंट जनरल एडवर्ड बॉल्फर के एन्साइक्लोपिडिया ऑफ इंडिया में मंदिर के स्थान पर तीन मस्जिदों का उल्लेख किया गया है। एक जन्मस्थल पर, दूसरी स्वर्गद्वार पर और तीसरी त्रेता का ठाकुर पर ऊपर बताई गयी। किताबों के अतिरिक्त अन्य पुस्तकें भी हैं जिसमे इन बातों का उल्लेख आता है, यह किताबें हैं ...
" फ़साना-ए-इबरत " मिर्ज़ा राजम अली बेग द्वारा, १८६७;
" तरीक-ए-अवध " शेख मोहम्मद अली जरत द्वारा, १८६९;
" अ हिस्टोरिकल ऑफ फैजाबाद " पी.कार्नेगी द्वारा, १८७०;
" द गजेटीयर ऑफ द प्रोविंस ऑफ आगरा एंड ओउध " १८७७;
" द इम्पीरियल गजेटीयर ऑफ फैजाबाद " १८८१;
" गुमश्ते-हालात-ए-अयोध्या " मौलवी अब्दुल करीम द्वारा;
1१८८६ मे मौहम्मद असगर की याचिका पर न्यायमूर्ति कर्नल एफ ई ए शॉमायर ने अपने फैसले मे कहा.. " हिंदुओ की पवित्र भूमि पर मस्जिद बनाना दुर्भाग्यपूर्ण है, किंतु यह कार्य ३५६ वर्ष पूर्व १५३० मे किया गया। अतः इसका आज हल निकालना संभव नही है। " १९३४ मे अयोध्या मे हिंदू मुस्लिम दंगा हुआ, मस्जिद के आस पास हुए दंगे से ढांचे को नुकसान हुआ ...
हुमायूँ के बाद अकबर का शासन काल आया, उसने अपने राज्य को १२ भागो मे विभक्त किया, अनुमानित है कि अकबर के शासन काल मे हिंदुओं ने लगभग २० बार जन्मभूमि को स्वतंत्र कराने की लडाईयां लडी, अकबर ने हिंदुओं के अधिकार को मान्यता देते हुए मस्जिद के बिल्कुल आगे एक चबूतरा बनाने और पूजा करने का अधिकार दिया, यही चबूतरा आज राम चबूतरा के नाम से जाना जाता है। इसके साथ ही अकबर ने राम और सीता मुद्रित चांदी के सिक्के (रामटका) भी बनवाये. और रामायण की सचित्र किताबे भी बनवाई. अकबरनामा व आइना ए अकबरी के लेखक अबुल फजल अयोध्या को राम का निवास व हिंदुओ की पुण्यभूमि मानते हैं।
जहांगीर के शासन काल मे १६०८ व १६११ के बीच विलियम फिंच ने अयोध्या की यात्रा की, उन्होंने भी अयोध्या में राम के होने की पुष्टि अपने लेख में की जिसे विलियम फोस्टर ने अपनी पुस्तक " अर्ली� ट्रेवल्स इन इंडिया " मे शामिल किया। १८५८ के बाद औरंगजेब के सरदार जांबाज खान ने अयोध्या पर हमला किया किंतु परास्त हुआ, गुरु गोविंद सिंह जी के अकालियों ने उसे रुदाली और सादातगंज मे हराया। १६६४ मे औरंगजेब स्वयं अयोध्या पहुंचा और राम चबूतरा तोडने के साथ साथ १०००० हिंदुओ को भी मार डाला.� लेकिन उसके बाद भी रामनवमी का पर्व अयोध्या मे मनाया जाता रहा. नवाब सलामत खान ने भी अमेठी के राजा गुरदत्त सिंह और पिंपरा के राजकुमार सिंह के साथ लडाई की। सादिक अली ने भी जन्मस्थान पर कब्जा करने की ५ लडाईयां छेडी।
१७५१ मे अवध के दूसरे नवाब सफदरजंग ने मराठाओं के सरदार मल्हार राव होल्कर को पठानों के विरुद्ध लडने के लिये आमंत्रित किया। मल्हार राव होल्कर ने समर्थन के लिये एक शर्त रखी कि हिंदुओं को उनके ३ तीर्थ स्थल अयोध्या, काशी और प्रयाग वापस दिये जाने चाहिये। १७५६ मे दोबारा शुजाउद्दौला ने अफगानियों के विरुद्ध मराठों से सहायता मांगी, मराठों ने ३ तीर्थ स्थान वापस हिंदुओं को देने की मांग की, किंतु दुर्भाग्यवश मराठाओं को पानीपत के युद्ध मे हार का सामना करना पडा। अनेकों मुस्लिम और यूरोपीय लेखकों ने इस बात को लिखा है कि मीरबाकी ने बाबर के आदेशानुसार रामकोट मे एक मंदिर को तोड कर उस पर मस्जिद बनाई, वो ये भी कहते हैं कि राम जन्म भूमि पर राम की पूजा की परंपरा रही है, और ये भी कहते हैं कि रामनवमी के दिन संपूर्ण भारत से लोग यहां उत्सव के लिये आते हैं। इनमे से कुछ लेखक इस प्रकार हैं ...
" डी हिस्ट्री एंड जियोग्राफी ऑफ इंडिया " जोसफ ताईपेनथालर, द्वारा १७८५;
" सफियाई चहल नसाई बहादुर शाही " बहादुर शाह की पुत्री द्वारा, १७वीं/ १८वीं शताब्दी;
" रिपोर्ट बाई मोंट कमरी मार्टिन " एक ब्रिटिश सर्वेक्षक, १८३८;
" द इस्ट इन्डिया कंपनी गजेटीयर " एडवर्ड फाऊनटेन द्वारा, १८५४;
" हडियोकाई शहादत " मिर्ज़ा जान द्वारा, १८५६;
इसके बाद के अपेक्षाकृत शांतिकाल मे भी ऊधवदास और बाबा रामचरन दास ने नसीरुद्दीन हैदर और वाजिद अली शाह के शासन काल मे जन्मभूमि की मुक्ति के प्रयास जारी रखे। १८५७ मे आमिर अली ने जिहाद की घोषणा की और १७० आदमियों के साथ हनुमान गढी पर आक्रमण किया किंतु अपने जिहाद के साथ वह भी हार गया। इसके पश्चात १८५७ की क्रांति आई, जब हिंदू और मुस्लिम दोनों ने मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध लडाई की, तब एक मौलवी आमिर अली ने स्थानीय मुस्लिमो को समझा कर रामजन्मभूमि हिंदुओ को सौंपनी के लिये तैयार कर लिया। किंतु अंग्रेजो ने फूट डाल कर राज करने की अपनी रणनीति के द्वारा आमिर अली और बाबा रामचंद्र दास को अयोध्या मे ही एक इमली के पेड पर लटका कर फांसी दे दी। आज भी वह इमली का पेड उस घटना का प्रत्यक्षदर्शी बना अयोध्या मे खडा है।
सार्जेंट जनरल एडवर्ड बॉल्फर के एन्साइक्लोपिडिया ऑफ इंडिया में मंदिर के स्थान पर तीन मस्जिदों का उल्लेख किया गया है। एक जन्मस्थल पर, दूसरी स्वर्गद्वार पर और तीसरी त्रेता का ठाकुर पर ऊपर बताई गयी। किताबों के अतिरिक्त अन्य पुस्तकें भी हैं जिसमे इन बातों का उल्लेख आता है, यह किताबें हैं ...
" फ़साना-ए-इबरत " मिर्ज़ा राजम अली बेग द्वारा, १८६७;
" तरीक-ए-अवध " शेख मोहम्मद अली जरत द्वारा, १८६९;
" अ हिस्टोरिकल ऑफ फैजाबाद " पी.कार्नेगी द्वारा, १८७०;
" द गजेटीयर ऑफ द प्रोविंस ऑफ आगरा एंड ओउध " १८७७;
" द इम्पीरियल गजेटीयर ऑफ फैजाबाद " १८८१;
" गुमश्ते-हालात-ए-अयोध्या " मौलवी अब्दुल करीम द्वारा;
1१८८६ मे मौहम्मद असगर की याचिका पर न्यायमूर्ति कर्नल एफ ई ए शॉमायर ने अपने फैसले मे कहा.. " हिंदुओ की पवित्र भूमि पर मस्जिद बनाना दुर्भाग्यपूर्ण है, किंतु यह कार्य ३५६ वर्ष पूर्व १५३० मे किया गया। अतः इसका आज हल निकालना संभव नही है। " १९३४ मे अयोध्या मे हिंदू मुस्लिम दंगा हुआ, मस्जिद के आस पास हुए दंगे से ढांचे को नुकसान हुआ ...
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