मान लीजिए मैं असम का व्यक्ति हूँ मुझे कुछ न्याय संबंधित परेशानी है तो पहले असमियां में वकील को समझाओ, वकील भाषांतर करे अंग्रेजी में उपरांत वह जज को समझाए। जज विचार कर अंग्रेजी में वकील को समाधान सुनाये, वकील अंग्रेजी का भाषांतर करे असमियां में, उपरांत मुझे समझावे... अरे भाई क्या सत्यानाश कर रखा है। इन सब में कितना समय एवं शक्ति की नष्ट हो रही है अगर यह भाषा की परतंत्रता नहीं होती तो मैं सीधे अपनी दुविधा, परेशानी न्यायाधीश को असमिया में बता देता और वह उसका समाधान कर मुझे बता देता
किसी तीसरे व्यक्ति (न्यायज्ञ) की आवश्यकता ही नहीं पड़ती भाषांतर के लिए।
बच्चों का निजी एवं कान्वेंट विद्यालयों में पिता माता के अंग्रेजी नहीं आने के कारण प्रवेश नहीं मिल पाना, किससे छिपा है ? आपका बालक कितना ही मेधावी क्योँ न हो अगर माता पिता को अंग्रेजी न आती हो तो, उन्हें निर्लज्जता के साथ कह दिया जाता है आप किसी और भाषा का विद्यालय खोज ले एवं बालक/बलिका को प्रवेश नहीं दिया जाता। ऐसे कान्वेंट विद्यालयों का तर्क होता है की अगर आपको अंग्रेजी नहीं आती तो जो गृहकार्य हम बच्चे को देंगे उसमें आप कैसे सहायता करेंगे ? इसी अन्याय के कारण करोड़ो-करोड़ो बच्चे इन विद्यालयों में केवल इस लिए नहीं जा पाते क्यूंकि उनके माता पिता को अंग्रेजी नहीं आती और अगर कभी प्रवेश हो ही जाता है तो मात्र अंग्रेजी नहीं आने के कारण उसमें कम अंक प्राप्ति के कारण विद्यार्थियों का समूल प्रतिशत घट जाता है एवं कभी कभी तो पुनः सभी विषयों की तयारी करनी पड़ती है।
किसी तीसरे व्यक्ति (न्यायज्ञ) की आवश्यकता ही नहीं पड़ती भाषांतर के लिए।
बच्चों का निजी एवं कान्वेंट विद्यालयों में पिता माता के अंग्रेजी नहीं आने के कारण प्रवेश नहीं मिल पाना, किससे छिपा है ? आपका बालक कितना ही मेधावी क्योँ न हो अगर माता पिता को अंग्रेजी न आती हो तो, उन्हें निर्लज्जता के साथ कह दिया जाता है आप किसी और भाषा का विद्यालय खोज ले एवं बालक/बलिका को प्रवेश नहीं दिया जाता। ऐसे कान्वेंट विद्यालयों का तर्क होता है की अगर आपको अंग्रेजी नहीं आती तो जो गृहकार्य हम बच्चे को देंगे उसमें आप कैसे सहायता करेंगे ? इसी अन्याय के कारण करोड़ो-करोड़ो बच्चे इन विद्यालयों में केवल इस लिए नहीं जा पाते क्यूंकि उनके माता पिता को अंग्रेजी नहीं आती और अगर कभी प्रवेश हो ही जाता है तो मात्र अंग्रेजी नहीं आने के कारण उसमें कम अंक प्राप्ति के कारण विद्यार्थियों का समूल प्रतिशत घट जाता है एवं कभी कभी तो पुनः सभी विषयों की तयारी करनी पड़ती है।
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