जर्मन खगोलविद Johannes Kepler ने ग्रहों की गति का नियम दिया। 1609 AD में।
लेकिन भारतीय विद्वान आर्यभट्ट ने इसका वर्णन किया है। केपलर से बहुत बहुत पहले, 5 वीं ईसवी सदी में।
आर्यभटीयम के अध्याय 3 का 17 वां श्लोक देखिए....इसका मतलब निकलता है कि...
सारे ग्रहों-उपग्रहों में गति होती है। धुरी पर घूमने के साथ यह अपनी दीर्घवृत्ताकार कक्षा में भी चक्कर लगाते हैं। दोनों गतियों की दिशा नियत रहती है।
साभार - अनिल कुमार त्रिवेदी जी
लेकिन भारतीय विद्वान आर्यभट्ट ने इसका वर्णन किया है। केपलर से बहुत बहुत पहले, 5 वीं ईसवी सदी में।
आर्यभटीयम के अध्याय 3 का 17 वां श्लोक देखिए....इसका मतलब निकलता है कि...
सारे ग्रहों-उपग्रहों में गति होती है। धुरी पर घूमने के साथ यह अपनी दीर्घवृत्ताकार कक्षा में भी चक्कर लगाते हैं। दोनों गतियों की दिशा नियत रहती है।
साभार - अनिल कुमार त्रिवेदी जी
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आज चर्चा धरती की लट्टुई गति पर...। यह अपनी धुरी पर चक्कर लगाती है...। पश्चिम से पूर्व की ओर 23.5 अंश झुककर...। 23 घंटे 56 मिनट और 4 .091 सेकंड में...। माना जाता है कि फ्रांसीसी भौतिक विद Jean Bernard Leon Foucault ने 'Foucault पेंडुलम' बनाया। 1851 में। इससे धरती की दैनिक गति का पता चला...।
अब जिक्र आर्यभट्ट का करुंगा। 5 वीं सदी में इन्होंने आर्यभटीय लिखा। पुस्तक के अध्याय 4 का 9 वां श्लोक देखिए....।
अनुलोमगतिनौस्थः पश्यत्यचलं विलोमगं यद्वत्।
अचलानि भानि तद्वत् समपश्चिमगानि लड्.कायाम्।।
यानि जैसे ही एक व्यक्ति समुद्र में नाव से आगे बढ़ता है, उसे किनारे की स्थिर चीजें विपरीत दिशा में चलती दिखती हैं। इसी तरह स्थिर तारे लंका (भूमध्य रेखा) से पश्चिम की जाते दिखते हैं...।
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