भारत में गीत संगीत का विकास भी हुआ है तो जलवायु एवं वातावरण के अनुसार ही हुआ है कितना अद्भुत है मेरा देश ! उदाहरण हम पहाड़ी नृत्य शैली ले एवं मैदानी नृत्य शैली पहाड़ी क्षेत्रों में जैसे मणिपुर, जम्मू आदि के नृत्यो में आप पद्संचालन को धीमा पाएंगे।
�
इसके विपरीत मैदानी क्षेत्रों जैसे मध्यप्रदेश, पंजाब आदि के नृत्यों जैसे कत्थक आदि में आप पद्संचालन को तेज पाएंगे। इसका कारण पहाड़ी क्षेत्रों में प्राणवायु की कमी होती है एवं तेज पद्संचालन से प्राणवायु के अभाव से शीघ्र शरीर भारी हो जाएगा शिथिल हो जाएगा। जबकि मैदानी क्षेत्रों में ऐसा कोई रोध नहीं है। भारत में ऐसा ही जल वायु के, सभ्यता के, संस्कृति के अनुकूल ऐसा ही विकास गायन एवं वादन का हुआ है। उदाहरण पहाड़ी क्षेत्रों में ताल माध्यम धीमे व्यंजन मैदानी क्षेत्रों में ताल तेज ऊँचे व्यंजन। यह सब सहस्त्रों वर्षों की परंपरा में विकसित हुआ है।
�
किसी बड़े गायक अथवा नृतक से आप पूछें यह गायन अथवा नृत्य आप क्योँ कर रहे तो बहुतायत में वह कहते है ईश्वर प्राप्ति के लिए। वादकों से भी पूछने पर यही उत्तर मिलता है अर्थात गीत और संगीत भारत में ईश्वर प्राप्ति का अभिन्न अंग है। जिसका हमने नाश कर दिया स्थिति इतनी बुरी बना दी की अगर कोई युवा माइकल जैक्सन को नहीं जनता तो उसे पिछड़ा माना जाता है। जैसे २१ वी सदी का होने के लिए उसे जानना नितांत आवश्यक है ? भारत में जहाँ बालक के पैदा होने पर, विवाह होने पर, फसलों की कटाई करते समय, बुआई करते समय, घर में कटाई लाते समय अर्थात जीवन का हर कार्य संगीत, साथ रहता है यह तो भारत में ही है।
संभवतः इसी हेतु की लोगों को किसी कार्य में उब न लगे, बोझ न लगे, सभी कार्य गीत संगीत के साथ किये जाते है। एक तो लोक पक्ष एक शास्त्रीय पक्ष सैकड़ों किस्म के राग एवं रागनिया बड़े बड़े साधक जिन्हें साधने में वर्षों वर्ष लगा देते है। आप उनसे पूछें तो कहते है अभी अल्प ही सीखा है अभी बहुत शेष है। इतना अपार समुद्र है भारत संगीत की तीनों विधाओ का गीत गायन एवं वादन का।
�
इसके विपरीत मैदानी क्षेत्रों जैसे मध्यप्रदेश, पंजाब आदि के नृत्यों जैसे कत्थक आदि में आप पद्संचालन को तेज पाएंगे। इसका कारण पहाड़ी क्षेत्रों में प्राणवायु की कमी होती है एवं तेज पद्संचालन से प्राणवायु के अभाव से शीघ्र शरीर भारी हो जाएगा शिथिल हो जाएगा। जबकि मैदानी क्षेत्रों में ऐसा कोई रोध नहीं है। भारत में ऐसा ही जल वायु के, सभ्यता के, संस्कृति के अनुकूल ऐसा ही विकास गायन एवं वादन का हुआ है। उदाहरण पहाड़ी क्षेत्रों में ताल माध्यम धीमे व्यंजन मैदानी क्षेत्रों में ताल तेज ऊँचे व्यंजन। यह सब सहस्त्रों वर्षों की परंपरा में विकसित हुआ है।
�
किसी बड़े गायक अथवा नृतक से आप पूछें यह गायन अथवा नृत्य आप क्योँ कर रहे तो बहुतायत में वह कहते है ईश्वर प्राप्ति के लिए। वादकों से भी पूछने पर यही उत्तर मिलता है अर्थात गीत और संगीत भारत में ईश्वर प्राप्ति का अभिन्न अंग है। जिसका हमने नाश कर दिया स्थिति इतनी बुरी बना दी की अगर कोई युवा माइकल जैक्सन को नहीं जनता तो उसे पिछड़ा माना जाता है। जैसे २१ वी सदी का होने के लिए उसे जानना नितांत आवश्यक है ? भारत में जहाँ बालक के पैदा होने पर, विवाह होने पर, फसलों की कटाई करते समय, बुआई करते समय, घर में कटाई लाते समय अर्थात जीवन का हर कार्य संगीत, साथ रहता है यह तो भारत में ही है।
संभवतः इसी हेतु की लोगों को किसी कार्य में उब न लगे, बोझ न लगे, सभी कार्य गीत संगीत के साथ किये जाते है। एक तो लोक पक्ष एक शास्त्रीय पक्ष सैकड़ों किस्म के राग एवं रागनिया बड़े बड़े साधक जिन्हें साधने में वर्षों वर्ष लगा देते है। आप उनसे पूछें तो कहते है अभी अल्प ही सीखा है अभी बहुत शेष है। इतना अपार समुद्र है भारत संगीत की तीनों विधाओ का गीत गायन एवं वादन का।
No comments:
Post a Comment
All the postings of mine in this whole forum can be the same with anyone in the world of the internet. Am just doing a favor for our forum users to avoid searching everywhere. I am trying to give all interesting informations about Finance, Culture, Herbals, Ayurveda, phycology, Sales, Marketing, Communication, Mythology, Quotations, etc. Plz mail me your requirement - amit.knp@rediffmail.com