From Ram to Babur : Ayodhya - a journey through time
इसके पश्चात फिर से राम भक्ति की परंपरा चलती रही, कई साहित्यिक एवं धार्मिक श्रोत अयोध्या महात्म्य में नज़र आते हैं जो १२ या १३ शताब्दी मे लिखा गया। अयोध्या महात्म्य में अनेकों जगह ऐसी कई बातें हैं, जो अयोध्या को महानतम मोक्ष मुक्तिदायक बनाते हैं।
तस्मात स्थानवं एशाने रामजन्म प्रवर्तते, जन्मस्थातं इदं प्रोक्त मोक्षादिफलसाधनं
विघ्नेश्वरात्पूर्वमागे वसिष्ठात उत्तरेतथा लौमशात पश्च्मे भागे जन्मस्थानं तत
अयोध्या मयात्म्य मे जन्मस्थान का विवरण और उसके निश्चित जगह का ब्यौरा है, और इसके साथ ही यह भी लिखा है कि रामनवमी के दिन जन्मस्थान के दर्शन से पुनर्जन्म टलता है। मोक्ष मिलता है, लाखों हिंदु अयोध्या महात्म्य मे लिखी बातों का विश्वास कर अयोध्या जाते रहे।
१५२६ मे मध्य एशिया के फरगाना प्रांत से बाबर का प्रवेश हुआ, १६ मार्च १५२७ को बाबर ने राणा सांगा को हरा कर दिल्ली पर कब्जा किया, यह मुगल साम्राज्य की शुरुआत थी, कुछ समय बाद बाबर ने अपने� सिपहसालार मीर बाकी को अयोध्या पर आक्रमण करने का आदेश दिया। " शहंशाह हिंद बादशाह बाबर के हुक्म व हजरत जलालशाह के हुक्म के बामुजिन अयोध्या मे रामजन्मभूमि को मिस्मार कर के उसकी जगह पर उसी के मलबे और मसाले से मस्जिद तामीर करने की इजाजत दे दी गई है, बाजरिये इस हुक्म नामे के तुमको बतौर इत्तिला से आगाह किया जाता है कि हिंदुस्तान के किसी सूबे से कोई भी हिंदू अयोध्या ना जाने पावे, जिस शख्स पर ये शुबहा हो कि वो वहॉ जाना चाहता है, उसे फौरन गिरफ्तार कर के दाखिल ए जिंदा कर दिया जावे, हुक्म का सख्ती से तामील हो, फर्ज समझ कर। "
(यह आदेश पत्र ६ जुलाई १९२४ के मॉडर्न रिव्यू के दिल्ली से प्रकाशित अंक मे प्रकाशित हुआ है.)
२३ मार्च १५२८ तक एक लाख सत्तर हजार से अधिक लोग जन्म भूमि स्थान पर लडते लडते मारे गये और अंत मे हार गये। मीर बाकी ने बाबर के आदेशों का पालन करते हुए जन्मस्थल मंदिर को ध्वस्त किया और उसी स्थान पर मस्जिद बनाई। कहा जाता है जब मीर बाकी के लोग मस्जिद बना रहे थे, तो प्रत्येक दिन को होने वाला काम रात को ढह जाता था. बाबर ने अपने आत्म चरित्र ताजुक ए बाबरी मे लिखा है।
" अयोध्या के राम जन्मभूमि मंदिर को मिस्मार करके जो मस्जिद तामीर की जा रही है उसकी दीवारें शाम को आप से आप गिर जाती हैं। इस पर मैने खुद जा के सारी बातें अपनी ऑखो से देख कर चंद हिंदू ओलियाओं कीरों को बुला कर ये मसला उन के सामने रखा। इस पर उन लोगों ने कई दिनों तक गौर करने के बाद मस्जिद में चंद तरमीमें करने की राय दी। जिनमें पाँच ख़ास बातें थी... यानी मस्जिद का नाम सीता पाक या रसोई रखा जाए, परिक्रमा रहने दी जाए, सदर गुंबद के दरवाजे में लकड़ी लगा दी जाए, मीनारें गिना दी जाए, और हिंदुओं को भजन पाठ करने दिया जावे। उनकी राय मैने मान ली, तब मस्जिद तैयार हो सकी। "
यहां एक विचार बहुत आश्चर्यजनक है, मीनारें किसी भी मस्जिद का एक प्रमुख हिस्सा होती है, जबकि परिक्रमा हिंदू मंदिरों का, बनाई गई मस्जिद में ये दो अपवाद हिंदुओं के मंदिर को बिना मूर्ति के मंदिर मे परिवर्तित करने जैसा ही है। इस ढांचे का नाम सीता पाक रखा गया जो बाद मे बाबरी मस्जिद नाम से प्रचारित किया गया।
१२ अप्रैल १५२८ से १८ सितंबर १५२८ तक के बाबर की दिनचर्या के विवरण उपलब्ध नही हैं, शायद दिनचर्या के ये पन्ने १७ मई १५२९ के तूफान मे या १५४० के हुमांयु के रेगिस्तान में निवास के कारण नष्ट हुए हों। ३ जून १५२८ को सनेथु के देवीदीन पांडे और महावत सिंह ने मीरबाकी पर हमला किया, स्वयं देवीदीन पांडे ने ५ दिन मे ६०० सैनिको को मार गिराया। किंतु बाद मे देवीदीन को मीरबाकी ने मार गिराया। १५२९ को ईद के दिन राणा रण विजय ने जन्मस्थल की मुक्ति के लिये फिर प्रयास किया, किंतु कुछ ना हो सका। १५३० मे बाबर की मृत्यु हुई, उसके पश्चात उसके पुत्र हुमायू ने गद्दी संभाली, उसके शासन काल मे १५३० से १५५६ तक रानी जयराज कुमारी और स्वामी महेश्वरा नंद ने जन्मस्थान की मुक्ति हेतु १० बार प्रयास किया। जन्मभूमि का नियंत्रण बार बार एक पक्ष से दूसरे पक्ष की ओर जाता रहा।
इसके पश्चात फिर से राम भक्ति की परंपरा चलती रही, कई साहित्यिक एवं धार्मिक श्रोत अयोध्या महात्म्य में नज़र आते हैं जो १२ या १३ शताब्दी मे लिखा गया। अयोध्या महात्म्य में अनेकों जगह ऐसी कई बातें हैं, जो अयोध्या को महानतम मोक्ष मुक्तिदायक बनाते हैं।
तस्मात स्थानवं एशाने रामजन्म प्रवर्तते, जन्मस्थातं इदं प्रोक्त मोक्षादिफलसाधनं
विघ्नेश्वरात्पूर्वमागे वसिष्ठात उत्तरेतथा लौमशात पश्च्मे भागे जन्मस्थानं तत
अयोध्या मयात्म्य मे जन्मस्थान का विवरण और उसके निश्चित जगह का ब्यौरा है, और इसके साथ ही यह भी लिखा है कि रामनवमी के दिन जन्मस्थान के दर्शन से पुनर्जन्म टलता है। मोक्ष मिलता है, लाखों हिंदु अयोध्या महात्म्य मे लिखी बातों का विश्वास कर अयोध्या जाते रहे।
१५२६ मे मध्य एशिया के फरगाना प्रांत से बाबर का प्रवेश हुआ, १६ मार्च १५२७ को बाबर ने राणा सांगा को हरा कर दिल्ली पर कब्जा किया, यह मुगल साम्राज्य की शुरुआत थी, कुछ समय बाद बाबर ने अपने� सिपहसालार मीर बाकी को अयोध्या पर आक्रमण करने का आदेश दिया। " शहंशाह हिंद बादशाह बाबर के हुक्म व हजरत जलालशाह के हुक्म के बामुजिन अयोध्या मे रामजन्मभूमि को मिस्मार कर के उसकी जगह पर उसी के मलबे और मसाले से मस्जिद तामीर करने की इजाजत दे दी गई है, बाजरिये इस हुक्म नामे के तुमको बतौर इत्तिला से आगाह किया जाता है कि हिंदुस्तान के किसी सूबे से कोई भी हिंदू अयोध्या ना जाने पावे, जिस शख्स पर ये शुबहा हो कि वो वहॉ जाना चाहता है, उसे फौरन गिरफ्तार कर के दाखिल ए जिंदा कर दिया जावे, हुक्म का सख्ती से तामील हो, फर्ज समझ कर। "
(यह आदेश पत्र ६ जुलाई १९२४ के मॉडर्न रिव्यू के दिल्ली से प्रकाशित अंक मे प्रकाशित हुआ है.)
२३ मार्च १५२८ तक एक लाख सत्तर हजार से अधिक लोग जन्म भूमि स्थान पर लडते लडते मारे गये और अंत मे हार गये। मीर बाकी ने बाबर के आदेशों का पालन करते हुए जन्मस्थल मंदिर को ध्वस्त किया और उसी स्थान पर मस्जिद बनाई। कहा जाता है जब मीर बाकी के लोग मस्जिद बना रहे थे, तो प्रत्येक दिन को होने वाला काम रात को ढह जाता था. बाबर ने अपने आत्म चरित्र ताजुक ए बाबरी मे लिखा है।
" अयोध्या के राम जन्मभूमि मंदिर को मिस्मार करके जो मस्जिद तामीर की जा रही है उसकी दीवारें शाम को आप से आप गिर जाती हैं। इस पर मैने खुद जा के सारी बातें अपनी ऑखो से देख कर चंद हिंदू ओलियाओं कीरों को बुला कर ये मसला उन के सामने रखा। इस पर उन लोगों ने कई दिनों तक गौर करने के बाद मस्जिद में चंद तरमीमें करने की राय दी। जिनमें पाँच ख़ास बातें थी... यानी मस्जिद का नाम सीता पाक या रसोई रखा जाए, परिक्रमा रहने दी जाए, सदर गुंबद के दरवाजे में लकड़ी लगा दी जाए, मीनारें गिना दी जाए, और हिंदुओं को भजन पाठ करने दिया जावे। उनकी राय मैने मान ली, तब मस्जिद तैयार हो सकी। "
यहां एक विचार बहुत आश्चर्यजनक है, मीनारें किसी भी मस्जिद का एक प्रमुख हिस्सा होती है, जबकि परिक्रमा हिंदू मंदिरों का, बनाई गई मस्जिद में ये दो अपवाद हिंदुओं के मंदिर को बिना मूर्ति के मंदिर मे परिवर्तित करने जैसा ही है। इस ढांचे का नाम सीता पाक रखा गया जो बाद मे बाबरी मस्जिद नाम से प्रचारित किया गया।
१२ अप्रैल १५२८ से १८ सितंबर १५२८ तक के बाबर की दिनचर्या के विवरण उपलब्ध नही हैं, शायद दिनचर्या के ये पन्ने १७ मई १५२९ के तूफान मे या १५४० के हुमांयु के रेगिस्तान में निवास के कारण नष्ट हुए हों। ३ जून १५२८ को सनेथु के देवीदीन पांडे और महावत सिंह ने मीरबाकी पर हमला किया, स्वयं देवीदीन पांडे ने ५ दिन मे ६०० सैनिको को मार गिराया। किंतु बाद मे देवीदीन को मीरबाकी ने मार गिराया। १५२९ को ईद के दिन राणा रण विजय ने जन्मस्थल की मुक्ति के लिये फिर प्रयास किया, किंतु कुछ ना हो सका। १५३० मे बाबर की मृत्यु हुई, उसके पश्चात उसके पुत्र हुमायू ने गद्दी संभाली, उसके शासन काल मे १५३० से १५५६ तक रानी जयराज कुमारी और स्वामी महेश्वरा नंद ने जन्मस्थान की मुक्ति हेतु १० बार प्रयास किया। जन्मभूमि का नियंत्रण बार बार एक पक्ष से दूसरे पक्ष की ओर जाता रहा।
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