May 18, 2019

ब्राह्मण वंशावली का समाज की अन्य जातियों के उत्थान में योगदान


ब्राह्मण अर्थात THE BIG MIND 
एक ऐसा दिमाग जो भविष्य को अनुभव  करता हैं जो समाज के उत्थान और पतन दोनों का द्योतक हैं।  ब्राह्मण ने समाज के सभी जातियों को एक दूसरे से पिरोया हैं 

*ब्राह्मणों ने समाज को तोड़ा नहीं अपितु जोडा है..!

ब्राम्हणों  ने विवाह के समय समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े 
"दलित "को जोड़ते हुये अनिवार्य किया कि *दलित* स्त्री द्वारा बनाये गये चुल्हे पर ही सभी शुभाशुभ कार्य होगें..!
इस तरह सबसे पहले *दलित* को जोडा गया .....
धोबन के द्वारा दिये गये जल से ही कन्या सुहागन रहेगी इस तरह धोबी को जोड़ा...
कुम्हार  द्वारा दिये गये मिट्टी के कलश पर ही देवताओ के पूजन होगें यह कहते हुये कुम्हार को जोड़ा...       
मुसहर जाति जो वृक्ष के पत्तों से पत्तल/दोनिया बनाते है यह कहते हुये जोड़ा कि इन्हीं के बनाए गये पत्तल/दोनियों से देवताओं का पूजन सम्पन्न होगे...
कहार जो जल भरते थे यह कहते हुए जोड़ा कि इन्हीं के द्वारा दिये गये जल से देवताओं के पूजन होगें...
बिश्वकर्मा जो लकड़ी के कार्य करते थे यह कहते हुये जोड़ा कि इनके द्वारा बनाये गये आसन/चौकी पर ही बैठकर वर-वधू देवताओं का पूजन करेंगे ...
फिर वह हिन्दु जो किन्हीं कारणों से मुसलमान बन गये थे उन्हें जोड़ते हुये कहा गया कि इनके द्वारा सिले हुये वस्त्रों (जामे-जोड़े) को ही पहनकर विवाह सम्पन्न होगें...

फिर उस हिन्दु से मुस्लिम बनीं औरतों को यह कहते हुये जोड़ा गया कि इनके द्वारा पहनाई गयी चूडियाँ ही बधू को सौभाग्यवती बनायेगी...
धरिकार जो डाल और मौरी को दुल्हे के सर पर रख कर द्वारचार कराया जाता है,को यह कहते हुये जोड़ा गया कि इनके द्वारा बनाये गये उपहारों के बिना देवताओं का आशीर्वाद नहीं मिल सकता....                            डोम जो गंदगी साफ और मैला ढोने का काम किया करते थे उन्हें यह कहकर जोड़ा गया कि *मरणोंपरांत* इनके द्वारा ही प्रथम मुखाग्नि दिया जायेगा....
👉इस तरह समाज के सभी वर्ग जब आते थे तो घर की महिलायें मंगल गीत का गायन करते हुये उनका स्वागत करती थीं...
और पुरस्कार सहित दक्षिणा देकर बिदा करती थी...,
ब्राह्मणों का दोष कहाँ है..?...हाँ ब्राह्मणों का दोष है कि इन्होंने अपने ऊपर लगाये गये निराधार आरोपों का कभी खंडन नहीं किया, जो ब्राह्मणों के अपमान का कारण बन गया..! इस तरह जब समाज के हर वर्ग की उपस्थिति हो जाने के बाद ब्राह्मण नाई से पूछता था कि क्या सभी वर्गो की उपस्थिति हो गयी है...?
*नाई* के हाँ कहने के बाद ही ब्राह्मण मंगल-पाठ प्रारम्भ किया करते हैं..!
ब्राह्मणों द्वारा जोड़ने की  क्रिया को छोड़वाया कुछ ब्राह्मण विरोधी लोगों ने और दोष ब्राह्मणों पर लगा दिया..!
ब्राह्मणों  को यदि अपना खोया हुआ वह सम्मान प्राप्त करना है तो इन बेकार वक्ताओं के वक्तव्यों का कड़ा विरोध कर रोक लगानी होगी।......
देश में फैले हुये समाज विरोधी साधुओं और ब्राह्मण विरोधी ताकतों का विरोध करना होगा जो अपनी अज्ञानता को छिपाने के लिये *वेद और ब्राह्मण* कि निन्दा करतेे हुये पूर्ण भौतिकता का आनन्द ले रहे हैं.....!
याद रखो ब्राह्मण वो पण्डे नहीं जो मंदिर को दुकान बनाते हैं, ये ज्ञान के भण्डार हैं जिनसे इस श्रृष्टि की रचना हुई....!


इस पोस्ट का मेरे *ब्राह्मण* होने या मनुवादी का सरोकार नहीं है..!

मेरा  उद्देश्य अपनी पुरातन संस्कृति के अच्छे स्वरूप और सही अवधारणा के प्रस्तुतिकरण भर है ।

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