May 09, 2019

आज के तेज़ और व्यस्त जीवन को युवा कैसे संभालें?

प्रश्न 1 : आज का युवा वर्ग मोबाईल एप्प व नवीनतम उपकरणों के मोह में पड़ गया है। उनका दिन सोशल मीडिया पर एक पोस्ट करने से शुरू होता है, तथा एक ट्वीट के साथ समाप्त होता है। तो, ऐसी परिस्थिति में वे अपने जीवन पर नियंत्रण कैसे रख सकते हैं?

सद्‌गुरु: : जिन्होंने अपना जीवन अपने हाथों में नहीं लिया है, उनका ध्यान हमेशा कोई न कोई चीज़ भटकाती रहती है। तो उपकरण कोई समस्या नहीं हैं, समस्या अपनी आदतों से मजबूर होकर कोई काम करना है। हमें अपने युवाओं, बच्चों और बड़ों को भी यह समझाना होगा कि हमें अपने जीवन में किसी भी आदत से मजबूर नहीं होना है। खाना खाना, बैठना, खड़े होना, और काम करना, यह सभी चीज़ें जागरूकता के साथ होनी चाहिएं। अगर हम यह सब जागरूकता के साथ करते हैं, तो हमारा यंत्रों का उपयोग करना भी एक जागरूक प्रक्रिया हो जायेगा।

प्रश्न 2: आज युवाओं पर जानकारियों का जो प्रभाव पड़ता है, उसे देखते हुए वे अपनी रोजमर्रा की ज़िन्दगी को कैसे व्यवस्थित करें?
सद्‌गुरु:: हमें जानकारियों के बारे में शिकायत नहीं करनी चाहिये। 100 साल पहले, अगर हमसे केवल 100 कि.मी. की दूरी पर भी कोई दुर्घटना घटती थी, या कुछ अच्छा घटता था, तो उसके बारे में हमें एक महीने बाद पता चलता था। आज, सारी दुनिया में क्या हो रहा है यह आप को उसी क्षण पता चल जाता है। तो तकनीक अच्छी या ख़राब नहीं होती। इसमें अपना कोई गुण नहीं है -- ये इस बात पर निर्भर करता है कि आप इसे कैसे उपयोग में लाते हैं ?
आप जो भी अन्य तकनीकें इस्तेमाल करते हैं -- टेलीफोन, मोबाईल फोन, कम्प्यूटर या सोशल मीडिया -- वे उतनी उन्नत या गूढ़ नहीं हैं, जितना कि हमारा मानव तंत्र -- इस धरती पर सबसे उन्नत, सबसे बेहतर उपकरण। आप को पहले इसकी तरफ ध्यान देना चाहिये, फिर बाकी सभी को आप स्वाभाविक रूप से संभाल पाएँगे। वरना तकनीकों का जो अदभुत उपहार हमें मिला है, वह अत्यन्त तनावपूर्ण हो जायेगा।
प्रश्न 3 :आज का युवा, जिसका परिवार एवं मित्रों से सम्बन्ध टूटता जा रहा है, वह अपनी भावनात्मक बुद्धि के स्तर को कैसे बेहतर बना सकता है?
सद्‌गुरु::अधिकांश मनुष्यों में भावनायें सबसे बड़ा आयाम होती हैं, इसलिए भावनात्मक सुरक्षा सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। अगर एक मनुष्य वास्तव में जागरूक बन जाये तो भावनाओं से फर्क नहीं पड़ता, वरना भावनायें एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं।इसलिए बचपन से ही बच्चों को भावनात्मक सुरक्षा मिलनी चाहिये। इसका अर्थ यह है कि उनके आसपास, चारों ओर एक प्यार भरा वातावरण होना चाहिये इसलिए बचपन से ही बच्चों को भावनात्मक सुरक्षा मिलनी चाहिये। इसका अर्थ यह है कि उनके आसपास, चारों ओर एक प्यार भरा वातावरण होना चाहिये सिर्फ घर पर ही नहीं, बल्कि स्कूल में भी, गली में भी, जहाँ भी बच्चा जाये, उसे प्यार भरा, स्नेह भरा, स्वागतपूर्ण वातावरण मिलना चाहिये। यह सबसे महत्वपूर्ण बात है, जिसके बारे में हमें मानवता की खुशहाली के लिये ध्यान देना चाहिये।
प्रश्न 4 : पशुओं या पालतू जानवरों से युवा वर्ग कौन से पाठ सीख सकता है?
सद्‌गुरु: : आजकल, बहुत सारे लोग मनुष्यों से ज्यादा कुत्तों को पसंद कर रहे हैं क्योंकि अगर आप एक कुत्ते के साथ रहते हैं तो उसके साथ आपका प्रेम-प्रकरण 12 साल तो गारंटी के साथ चलेगा। हमें नहीं मालूम कि क्या ईश्वर प्रेम है, लेकिन कुत्ता निश्चित रूप से प्रेम है। आप ने अपने कुत्ते के साथ सुबह चाहे जैसा बर्ताव किया हो, लेकिन जब आप शाम को घर आते हैं तो वही कुत्ता जिस तरह से आपका स्वागत करता है, दुनिया की कोई पत्नी, पति या बच्चे वह नहीं कर सकते। अगर आप बहुत प्रेमपूर्ण हैं तो आप का जीवन खुशनुमा होगा। अगर आप खुश हैं, तभी आप जीवन के सभी आयामों को खोजने की कोशिश करेंगे।
इसलिये कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि बहुत से लोग अपने परिवार के लोगों की अपेक्षा, अपने कुत्तों से ज्यादा प्यार करते हैं। लेकिन जितना प्यार आप एक कुत्ते के लिये महसूस करते हैं, उतना ही किसी मनुष्य के लिये भी कर सकते हैं, क्योंकि प्रेम आप के कुत्ते, मित्र या परिवार के बारे में नहीं है, यह आप के बारे में है।
प्रेम आप के अंदर होता है। अगर आप बहुत प्रेमपूर्ण हैं तो आप का जीवन खुशनुमा होगा। अगर आप खुश हैं, तभी आप जीवन के सभी आयामों को खोजने की कोशिश करेंगे। वरना दुःख भरे विचार, भावनायें और शरीर ही आप को हमेशा व्यस्त रखेंगे। अगर आप अपने मन, शरीर और भावनाओं को खुशीभरा एवं प्रेमपूर्ण रखेंगे तो आप को जीवन में दुःखों का कोई डर नहीं रहेगा। जब आपको दुःखों का कोई डर नहीं रहेगा, तभी आप इस जीवन को संपूर्णता के साथ जी सकेंगे।

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