THE DISCOVERY OF ZERO●
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आर्यभट ने शून्य का आविष्कार पांचवी शताब्दी में किया था.. तो 100 कौरव और दाशराज्ञ युद्ध में शामिल 10 राजाओ को पुराने लोगो ने कैसे गिना?
*************
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गिनती करना मनुष्य को आदिकाल से ही आता है... पर गिनती दो प्रकार की होती है
1. संख्यात्मक जैसे 999
2. शब्दात्मक जैसे... नौ सौ निन्यानवे
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पुराने सभी ग्रंथो में संख्याओ का उल्लेख शब्दात्मक रूप में... जैसे "दश" "सहस्त्र" "अर्बुद" आदि के रूप में मिलता है...इसलिए 100 कौरवो की संख्या को लेके किया परिहास स्वयं रिजेक्ट हो जाता है
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समस्या सिर्फ ये थी कि... जब संख्यात्मक रूप में कोई मैथमेटिकल कैलकुलेशन की जाती थी... तो शून्य का प्रयोग ना जानने के कारण... पुराने लोग... हर दसवे अंक को... नए नाम और सिंबल से प्रदर्शित करते थे
जैसे...
संस्कृत में 10 को दश 20 को विशंति कहते थे
रोमन में 10 को X, 50 को L तथा 100 को C, 1000 को M कहते थे
ग्रीक में 10 को आयोपा, 20 को काप्पा तथा 30 लेमडा कहते थे
And List Goes On... (Check Image In 1st Comment)
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अलग अलग संख्याओ के अलग अलग नाम और सिंबल याद रखना बहुत कठिन था
उदाहरण के लिए... अगर रोमन में 3288 को 3186 से गुणा करना हो तो... MMMCLXXXVIII × MMMCLXXXVI लिखना पड़ता था
इस जटिलता के कारण गुणा, भाग आदि प्रोसेस बहुत जटिल थी और इन संख्या पद्धतियों के आधार पर बहुत बड़ी कैलकुलेशन करना बीरबल की खिचड़ी पकाने समान ही मुश्किल होता था
(जिन्हें आसान लगता है... वे नेट पर How To Multiply In Roman Numerical लिख के देखे.. दिमाग घूम जाएगा)
इन विषमताओं के कारण ही 2000 साल से पहले... कोई उल्लेखनीय मैथमेटिकल और वैज्ञानिक प्रगति विश्व के किसी भी हिस्से में नहीं हुई जब तक... आधुनिक विज्ञान के पितामह आर्यभट का जन्म 476 ईसवी में... भारत की धरा पर नहीं हुआ
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आर्यभट ने शून्य की खोज नहीं की.. बल्कि उन्होंने ये प्रतिपादित किया कि... बजाय इतने सारे नम्बरो को इस्तेमाल करने की बजाय... हम शून्य के इस्तेमाल के साथ सिर्फ 1-9 तक के अंको के इस्तेमाल से... बड़ी से बड़ी संख्या लिख सकते हैं
अर्थात... आर्यभट की मुख्य खोज शून्य नहीं बल्कि "शून्य आधारित दशमलव संख्या प्रणाली" है
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यहाँ आर्यभट के देहांत के 48 साल बाद 598 ईसवी में जन्मे महान गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त का नाम इसलिए उल्लेख करना जरुरी है
क्योंकि.. आर्यभट ने अपने ग्रन्थ "आर्यभटीय" में शून्य के प्रयोग का सिर्फ सिद्धांत दिया था
शून्य के सिद्धांत से सम्बंधित मैथमेटिकल नियम... जैसे कि 1-0=1 तथा 1×0=0 आदि... ब्रह्मगुप्त ने दुनिया को सिखाये थे
तत्पश्चात... 12वी शताब्दी में जन्मे गणितज्ञ "भास्कराचार्य द्वितीय" ने शून्य से सम्बन्धित आखिरी और सबसे महत्वपूर्ण नियम प्रतिपादित किया
1÷0=Infinity !!!!
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भारतीयो की ये संख्या पद्धति सातवी शताब्दी में अरब व्यापारियो द्वारा अरब में ले जाई गई
जहा से... बाद में... घूमते फिरते इस ज्ञान का प्रचार प्रसार यूरोप में हुआ
यही कारण है कि... यूरोपियन इस संख्या पद्धति को "हिन्दू अरेबिक न्यूमेरिकल सिस्टम" कहते हैं
.
अल्बर्ट आइंस्टीन ने एक बार कहा था कि...
"हमें भारतीयो का शुक्रगुजार होना चाहिए... जिन्होंने हमें गिनना सिखाया... इसके बिना शायद... मॉडर्न साइंस की कोई भी खोज असंभव थी"
.
हमें फक्र होना चाहिए कि हमारी रगो में आधुनिक विज्ञान के पितामह आर्यभट्ट... ब्रह्मगुप्त... भास्कराचार्य जैसे महान लोगो का रक्त मौजूद है
बेशक... आज ये हमारे बीच मौजूद नहीं
But Their Legacy To Teach Us "How To Count" Will Remain Forever In The Heart Of Modern Science !!!
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आर्यभट ने शून्य का आविष्कार पांचवी शताब्दी में किया था.. तो 100 कौरव और दाशराज्ञ युद्ध में शामिल 10 राजाओ को पुराने लोगो ने कैसे गिना?
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गिनती करना मनुष्य को आदिकाल से ही आता है... पर गिनती दो प्रकार की होती है
1. संख्यात्मक जैसे 999
2. शब्दात्मक जैसे... नौ सौ निन्यानवे
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पुराने सभी ग्रंथो में संख्याओ का उल्लेख शब्दात्मक रूप में... जैसे "दश" "सहस्त्र" "अर्बुद" आदि के रूप में मिलता है...इसलिए 100 कौरवो की संख्या को लेके किया परिहास स्वयं रिजेक्ट हो जाता है
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समस्या सिर्फ ये थी कि... जब संख्यात्मक रूप में कोई मैथमेटिकल कैलकुलेशन की जाती थी... तो शून्य का प्रयोग ना जानने के कारण... पुराने लोग... हर दसवे अंक को... नए नाम और सिंबल से प्रदर्शित करते थे
जैसे...
संस्कृत में 10 को दश 20 को विशंति कहते थे
रोमन में 10 को X, 50 को L तथा 100 को C, 1000 को M कहते थे
ग्रीक में 10 को आयोपा, 20 को काप्पा तथा 30 लेमडा कहते थे
And List Goes On... (Check Image In 1st Comment)
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अलग अलग संख्याओ के अलग अलग नाम और सिंबल याद रखना बहुत कठिन था
उदाहरण के लिए... अगर रोमन में 3288 को 3186 से गुणा करना हो तो... MMMCLXXXVIII × MMMCLXXXVI लिखना पड़ता था
इस जटिलता के कारण गुणा, भाग आदि प्रोसेस बहुत जटिल थी और इन संख्या पद्धतियों के आधार पर बहुत बड़ी कैलकुलेशन करना बीरबल की खिचड़ी पकाने समान ही मुश्किल होता था
(जिन्हें आसान लगता है... वे नेट पर How To Multiply In Roman Numerical लिख के देखे.. दिमाग घूम जाएगा)
इन विषमताओं के कारण ही 2000 साल से पहले... कोई उल्लेखनीय मैथमेटिकल और वैज्ञानिक प्रगति विश्व के किसी भी हिस्से में नहीं हुई जब तक... आधुनिक विज्ञान के पितामह आर्यभट का जन्म 476 ईसवी में... भारत की धरा पर नहीं हुआ
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आर्यभट ने शून्य की खोज नहीं की.. बल्कि उन्होंने ये प्रतिपादित किया कि... बजाय इतने सारे नम्बरो को इस्तेमाल करने की बजाय... हम शून्य के इस्तेमाल के साथ सिर्फ 1-9 तक के अंको के इस्तेमाल से... बड़ी से बड़ी संख्या लिख सकते हैं
अर्थात... आर्यभट की मुख्य खोज शून्य नहीं बल्कि "शून्य आधारित दशमलव संख्या प्रणाली" है
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यहाँ आर्यभट के देहांत के 48 साल बाद 598 ईसवी में जन्मे महान गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त का नाम इसलिए उल्लेख करना जरुरी है
क्योंकि.. आर्यभट ने अपने ग्रन्थ "आर्यभटीय" में शून्य के प्रयोग का सिर्फ सिद्धांत दिया था
शून्य के सिद्धांत से सम्बंधित मैथमेटिकल नियम... जैसे कि 1-0=1 तथा 1×0=0 आदि... ब्रह्मगुप्त ने दुनिया को सिखाये थे
तत्पश्चात... 12वी शताब्दी में जन्मे गणितज्ञ "भास्कराचार्य द्वितीय" ने शून्य से सम्बन्धित आखिरी और सबसे महत्वपूर्ण नियम प्रतिपादित किया
1÷0=Infinity !!!!
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भारतीयो की ये संख्या पद्धति सातवी शताब्दी में अरब व्यापारियो द्वारा अरब में ले जाई गई
जहा से... बाद में... घूमते फिरते इस ज्ञान का प्रचार प्रसार यूरोप में हुआ
यही कारण है कि... यूरोपियन इस संख्या पद्धति को "हिन्दू अरेबिक न्यूमेरिकल सिस्टम" कहते हैं
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अल्बर्ट आइंस्टीन ने एक बार कहा था कि...
"हमें भारतीयो का शुक्रगुजार होना चाहिए... जिन्होंने हमें गिनना सिखाया... इसके बिना शायद... मॉडर्न साइंस की कोई भी खोज असंभव थी"
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हमें फक्र होना चाहिए कि हमारी रगो में आधुनिक विज्ञान के पितामह आर्यभट्ट... ब्रह्मगुप्त... भास्कराचार्य जैसे महान लोगो का रक्त मौजूद है
बेशक... आज ये हमारे बीच मौजूद नहीं
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