कॉलेजों और पाठ्यपुस्तकों की शिक्षा गुजर-बसर करने के तरीके सिखाते हैं। लेकिन अगर आप अपने जीवन के अनुभव को अधिक गहन और खूबसूरत बनाना चाहते हैं, तो जीवन में सद्गुरु की इन सीखों को आजमा कर देखिए…
सूत्र 1: एक चीज को नष्ट कीजिए
एक मिनट के लिए सोचें कि आपके जीवन में कम से कम एक गैरजरूरी चीज कौन सी है और उसे आज ही खत्म कर डालें। खत्म करने से मेरा मतलब यह नहीं है कि आप अपने बॉस, सास या पड़ोसी को खत्म करने के बारे में सोचने लगें। आपको खुद से संबंधित किसी चीज को नष्ट करना है, जो आपके जीवन के लिए जरूरी नहीं है। ‘मैं अपने गुस्से को खत्म कर दूंगा’ जैसी बातें आम तौर पर यूं ही बोली जाती हैं और इसे आप सिर्फ निश्चय से हासिल नहीं कर सकते, इसके लिए जागरूकता की जरूरत होती है।
किसी एक चीज के बारे में सोचिए, जिसके बिना आपका जीवन बेहतर होगा। और जिसके बारे में आप आज एक ठोस कदम उठाएंगे, चाहे वह कितनी भी छोटी बात हो। किसी छोटी सी चीज को लेकर तय कर लें कि अब चाहे जो हो जाए, आप वह काम नहीं करेंगे। ‘मैं अब गुस्सा नहीं करूंगा’ यह बात झूठ होगी क्योंकि गुस्सा करना या न करना अब तक आपके काबू में नहीं है, मगर आप ऐसा कुछ सोच सकते हैं कि ‘मैं गलत शब्द नहीं बोलूंगा।’
कोई ऐसी चीज चुनें जो आप कर सकते हैं और करेंगे। इन छोटे-छोटे कदमों से आपका जीवन रूपांतरित हो सकता है। मगर आपको वास्तव में अपनी सोची हुई चीज पर अमल करना होगा। जो चीज आप छोड़ देते हैं, उसे फिर से प्रकट नहीं होना चाहिए। अगर आप किसी चीज को नष्ट कर रहे हैं, तो उसे हमेशा के लिए खत्म हो जाना चाहिए। अगर आप जीवन के सत्य की ओर बढ़ना चाहते हैं, तो झूठ के साथ अपने संबंध को कम करना होगा। हो सकता है कि सारा कुछ तुरंत खत्म न हो, मगर आप एक-एक कदम बढ़ाकर उसे कम कर सकते हैं।
सूत्र 2: एक चीज शुरु कीजिए
जीवन को ध्यान से देखकर यह तय करें कि उसमें कौन सी चीज बदली जा सकती है और फिर इस बारे में कोशिश कीजिए। ऐसी चीजों पर अफसोस करना, जिन्हें आप बदल नहीं सकते, दरअसल यथास्थिति बरकरार रखने की एक तरकीब होती है। महीने में कम से कम एक बार, हर पूर्णिमा के दिन, पूरी जागरूकता के साथ खुद से संबंधित किसी छोटी सी चीज के बारे में सोचें, जिसे आप बदलना चाहते हों। जैसे, ‘हर बार भोजन करने से पहले मैं 10 सेकेंड इस भोजन के लिए आभार प्रकट करूंगा, जो मेरा हिस्सा बनने वाला है।’ या ‘हर बार जब मैं अपने जीवन के किसी अनिवार्य तत्व, जैसे मिट्टी, जल, वायु और बाकी चीजों का इस्तेमाल करूंगा, तो मैं उसके एक फीसदी की बचत करूंगा।’ या ‘मैं अपनी थाली में उतना ही भोजन लूंगा, जितना मैं खा सकता हूं।’ ये छोटी-छोटी चीजें आपके जीवन को बदल देंगी और आपको एक अलग शख्सियत प्रदान करेंगी।
सूत्र 3: एक चीज याद रखिए
एक जरूरी चीज जो हर इंसान को करनी चाहिए, वह है अपने मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक ढांचे में अपने जीवन के सबसे बुनियादी सत्य – नश्वरता को गूंथना। फिलहाल, लोगों को यह समझने में पूरी जिंदगी लग जाती है। कई बार तो यह समझने के लिए कि वे नश्वर हैं, उन्हें जरूरत होती है एक हर्ट अटैक यानी हृदयाघात की या शरीर में किसी जानलेवा गांठ की।
आपको अपने जीवन के हर क्षण का जश्न मनाना चाहिए और उसका आनंद उठाना चाहिए क्योंकि जीवन एक पल के लिए भी आपका इंतजार नहीं करता। अगर आप अमर होते, तो आप अवसाद, चिंता, पागलपन और कष्ट में सैंकड़ों साल बिता सकते थे और फिर अपने 500वें जन्मदिन पर खुश हो लेते। लेकिन ऐसा है नहीं। आप नश्वर हैं और समय हाथ से निकलता जा रहा है। इसलिए इस जीवन में आपके पास कुंठा, अवसाद, चिंता, गुस्से या किसी भी अप्रियता के लिए समय नहीं है।
आश्रम में मैं लोगों से कहता रहता हूं कि चाहे आप कोई भी काम कर रहे हों, हर दिन कम से कम एक घंटे आपको मिट्टी में अपनी उंगलियां साननी चाहिए। यह आपके शरीर को कुदरती तौर पर याद दिलाने का काम करेगा कि आप नश्वर हैं।
सूत्र 4: जीने का समझदारी भरा तरीका अपनाइए
आपको सुख कब मिलता है – जब आप अपने भीतर प्रेम से भरे होते हैं तब या जब क्रोध, द्वेष और ईष्या से भरे होते हैं तब? अपने आप को किस तरीके से रखना बुद्धिमानी भरा है? प्रेमपूर्ण ही न? मेरा कहने का मतलब सिर्फ यह है कि कृपया अपना जीवन बुद्धिमानी से बिताएं। यह किसी और की भलाई के लिए नहीं है। यह आपके सुख के लिए है। प्रेम से भरी दुनिया बनाकर आप किसी और का कल्याण नहीं कर रहे हैं। जीने का यही बुद्धिमानी भरा तरीका है।
अपनी दुनिया को प्रेमपूर्ण बनाने के लिए आपको कुछ ज्यादा या कम नहीं करना है, बल्कि अपने जीवन में आप जो कुछ भी करते हैं, उन्हीं छोटी-बड़ी गतिविधियों से आप एक प्रेमपूर्ण दुनिया बना सकते हैं। आप जो चाहते हैं, उस पर अगर आप लगातार ध्यान केंद्रित करके अपना जीवन जिएं, तो निश्चित रूप से वह आपके आस-पास घटित होगा।
सूत्र 5: खुशियां गिरवी न रखें
ज्यादातर लोगों ने अपने जीवन की खुशी, शांति और प्रेम बाहरी हालातों के पास गिरवी रख दी है। जब स्टॉक मार्केट ऊपर जाता है, तो आप खुश होते हैं, वह नीचे आता है, तो आप दुखी होते हैं। मगर जीवन की गुणवत्ता इससे तय नहीं होती कि आपके पास क्या है। दुनिया में खुशी से जीने की हमारी क्षमता हमारे घर के आकार या जो कार हम चलाते हैं, उस पर निर्भर नहीं है। ये चीजें आपके जीवन को आरामदेह और सुविधाजनक बनाती हैं, मगर आपके जीवन का असली गुण तो इससे तय होता है कि आप अपने भीतर कैसे हैं।
खुशी और शांति के साथ जीवन जीना आपके लिए कोई नई बात नहीं है। जब आप छोटे थे, तो आप ऐसे ही थे। इसलिए मैं आपको कहीं आगे ले जाने की बात नहीं कर रहा हूं, मैं बस आपके जीवन के शुरुआती बिंदु से शुरू करने की बात कर रहा हूं।
सूत्र 6: विनम्रता बुद्धिमानी है
एक मूर्ख और एक बुद्धिमान इंसान में यही अंतर है कि बुद्धिमान व्यक्ति जानता है कि वह कितना मूर्ख है, मगर मूर्ख यह नहीं जानता। अपनी मूर्खता को पहचानना बहुत बड़ी बुद्धिमानी है। इस अस्तित्व की किसी भी चीज को – चाहे वह पेड़ हो, घास की एक पत्ती हो, धूल का एक कण हो, एक परमाणु हो – क्या आप इनमें से किसी भी चीज को पूरी तरह जानते हैं? नहीं जानते हैं। जब आपकी बुद्धिमानी और बोध का स्तर यह है, तो दुनिया में आपको कैसे चलना चाहिए? आराम से, थोड़ी विनम्रता और अपने आस-पास की हर चीज के प्रति सम्मान और प्रेम की भावना के साथ। अगर प्रेम नहीं तो कम से आश्चर्य की भावना होनी चाहिए क्योंकि आप इस दुनिया की किसी भी चीज को नहीं समझते।
अगर आप सिर्फ इस तरह चलना सीख लें, तो आप आध्यात्मिक प्रक्रिया से बचे नहीं रह सकते। आपको किसी सीख या प्रवचन की जरूरत नहीं होगी। आध्यात्मिक प्रक्रिया आपके साथ वैसे भी घटित होगी। यही वजह है कि पूरब की संस्कृतियों में हमेशा आपको हर चीज के सामने सिर झुकाना सिखाया जाता है, चाहे वह कोई चट्टान हो, पशु हो या इंसान हो। जिस धरती पर आप चलते हैं, जिस हवा में सांस लेते हैं, जिस जल को पीते हैं, जिस भोजन को खाते हैं, जिन लोगों के संपर्क में आते हैं और अपने शरीर तथा मन समेत जिन चीजों का इस्तेमाल करते हैं, उनके प्रति सम्मान का भाव रखने से आपको अपनी हर कोशिश में सफलता मिलती है।
सूत्र 7: जैसे को तैसा देखिए
जिसे आप अपने भीतर की दुनिया कहते हैं, वह सिर्फ आपके आसपास की दुनिया का प्रतिबिंब होना चाहिए। हालांकि यह सोच पूरी तरह से उन नैतिक सिद्धांतों के खिलाफ हैं, जो कहते हैं कि बाहरी और भीतरी दुनिया का एक दूसरे से संपर्क नहीं होना चाहिए, वरना आप अपने आप-पास की चीजों से तुरंत प्रभावित होकर भ्रष्ट हो जाएंगे। यह सच नहीं है। आप अपने आसपास की चीजों से तभी भ्रष्ट होते हैं, जब आप हर चीज के बारे में अपनी राय बना लेते हैं।
आप एक चीज को अच्छा मानते हैं और दूसरे को खराब। जिसे आप अच्छा मानते हैं, उससे आप जुड़ जाते हैं। जबकि जिसे आप खराब मानते हैं, उससे तुरंत छुटकारा पाना चाहते हैं। और फिर ये चीजें आपको भीतर से संचालित करने लगती हैं। यह तरीका ठीक नहीं है। आपको अपने भीतर से इस तरह होना चाहिए कि जो चीज जैसी है, आप उसे उसी रूप में देख पाएं। अगर आप किसी चीज को, जैसी वह है, उससे अलग होकर देखते हैं तो इसका मतलब है कि आप अपनी राय और पूर्वाग्रहों से दुनिया में मिलावट करने की कोशिश कर रहे हैं।
स्रष्टा ने सृष्टि की रचना इस तरह की है कि उसे उसी तौर पर देखा जाए जैसी वह वाकई है, इसे वैसा बनाने की कोशिश मत कीजिए, जैसा आप इसे देखना चाहते हैं। यह एक अभद्रता है, फूहड़ता है, जिसे मानव जाति लगातार स्रष्टा की रचना के साथ करती आ रही है। यह सृष्टि अपने आप में इतनी शानदार रचना है, कि इसमें आपके करने के लिए बचा ही क्या है? अगर आप कुछ कर सकते हैं तो बस इसे अपने भीतर आत्मसात करने की कोशिश कीजिए। हालांकि वह भी आसान नहीं है, क्योंकि यह सृष्टि असाधारण रूप से बहुस्तरीय है। यहां एक के भीतर एक बहुत सारी असाधारण घटनाएं भी घटित हो रही हैं जो सब एक साथ, एक ही जगह और एक ही वक्त पर हो रही हैं।
हर चीज जिसे आप अतीत या भविष्य समझते हैं, वह सब यहीं पर है। अगर आप हर चीज को उस तरह देखेंगे, जैसी वह वाकई है, अगर यह पूरी सृष्टि आपके भीतर प्रतिबिंबित होने लगेगी, अगर आप अपने भीतर इस सृष्टि को उसी रूप में समा सकें, जैसी यह है, तो आप सृष्टि के स्रोत ही बन जाएंगे। भीतर और बाहर से इंसान को ऐसा ही होना चाहिए।
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