June 17, 2016

"जातियों की उत्पत्ति कब और कैसे हुयी? पुरातन समाज तो वर्ण में विभाजित था तो जातियों का नामकरण किसने किया? जैसे गुप्ता, जायसवाल, वर्मा, शर्मा, पांडे, तिवारी, त्रिपाठी आदि। इन जातिसूचक नामों के पीछे क्या रहस्य है?"

एक महाशय ने दो प्रश्न पूछे थे, उनके उत्तर निम्नोक्त हैं :--
(1) प्रश्न :--"जातियों की उत्पत्ति कब और कैसे हुयी? पुरातन समाज तो वर्ण में विभाजित था तो जातियों का नामकरण किसने किया? जैसे गुप्ता, जायसवाल, वर्मा, शर्मा, पांडे, तिवारी, त्रिपाठी आदि। इन जातिसूचक नामों के पीछे क्या रहस्य है?"
उत्तर :-- आपने जिन आस्पदों (Surnames) का उल्लेख किया है वे सब के सब कर्म पर आधारित वर्ण-व्यवस्था पर ही आधारित हैं, किन्तु हिन्दू समाज के अन्धयुग में वर्णसंकरता का बोलबाला हो गया । उदाहरणार्थ, ब्राह्मणों के लिए सामान्यतः "शर्मन्"  आस्पद का प्रयोग होता था , आज भी धार्मिक कृत्यों के संकल्प में सारे ब्राह्मणों को "शर्मन्" ही कहा जाता है । "वर्मन्" क्षत्रिय का आस्पद था । त्रिवेदी या तिवारी का अर्थ था तीन वेद पढ़े वाले ।  दूसरों को वेद पढ़ाने वाले "उपाध्याय" कहलाते थे, जिसका अपभ्रंश बना 'ओझा' और 'झा' । बाद के काल में भी नयी-नयी जातियाँ और उपजातियाँ बनीं तो कर्मानुसार ही, जैसे कि तेल का कार्य करने वाले तेली कहलाए, नमक (नोन, नून) का कर्म करने वाले "नोनिया"  हुए (ये औद्योगिक जातियाँ थीं, कृषिप्रधान नहीं)। भारत की सभी जातियों के मूल कर्मों का विश्लेषण करें तो पायेंगे कि भारत की बहुसंख्यक आबादी गैर-कृषि कर्म पर आश्रित थी, अंग्रेजी राज से पहले इतिहास के किसी भी युग में भारत कृषिप्रधान देश नहीं था । भारत पूरे संसार का औद्योगिक कर्मशाला था । रोमन साम्राज्य के लेखक भी शिकायत करते थे कि हर साल भारत से व्यापार में रोमनों को 60 करोड़ स्वर्ण मुद्राओं का घाटा होता था जिसकी पूर्ति के लिए रोमनों को तीन-तीन महादेशों में लूट-पाट करनी पड़ती थी । मुक्त व्यापार का ढकोसला करने वाले अंग्रेजों ने अन्यायपूर्ण तरीकों द्वारा भारतीय उद्योगों को नष्ट किया और गैर-कृषक जातियों को कृषि पर आश्रित होने के लिए बाध्य कर दिया । इतनी आबादी के लिए कृषियोग्य भूमि भी नहीं थी, अतः अधिकाँश गैर-कृषक जातियाँ भूमिहीन मजदूर बनने के लिए बाध्य हो गयीं । लगभग 19 वीं शती के मध्य से पहले भारत में एक भी भूमिहीन मजदूर नहीं था जो 1872 के बाद से किये गए जनगणना के आंकड़ों से सिद्ध होता है। आज़ादी के बाद भी किसान-विरोधी नीतियों के कारण भूमिहीन मजदूरों की सापेक्ष संख्या बढ़ती ही जा रही है, मँझोले किसान सीमान्त बनते जा रहे हैं, और सीमान्त किसान या तो भूमिहीन मजदूर बनते हैं या फिर आत्महत्या करने के लिए विवश हो जाते हैं । वर्ण और जाति में असमानता हिन्दू समाज की गुलामी के काल की दुर्घटना है । अधिकाँश जातियाँ गुलामी के काल की उपज हैं । आज भी हिन्दुओं को झूठा इतिहास, झूठा समाजशास्त्र, झूठा भारतीय-दर्शन, आदि पढ़ाया जा रहा है । इतना कूड़ा-कर्कट मैं अकेले दूर नहीं कर सकता, आप लोगों का भी दायित्व बनता है । हमारे विश्वविद्यालयों में सही पुस्तकें पढ़ाई जाएँ और यदि सही पुस्तकें उपलब्ध न हों तो सही शोध हों ताकि भविष्य में सही पुस्तकें प्रकाशित हो सकें ।
(2) प्रश्न :--"मुझे लगता है कि आर्य और द्रविड़ को इंगित करने हेतु ही श्रेष्ठता के क्रम में सुर और असुर शब्द की उत्पत्ति हुयी। मैं यह भी मानता हूँ कि स्वर्ग भारत के उत्तरी भूभाग जो कि हिमालय के अधीन था (प्राचीन तिब्बत, उत्तराखंड, हिमाचल, हिन्दुकुश और काश्मीर) को कहा गया और सुदूर दक्षिण जहां द्रविणों का वास था उसे पाताल लोक कहा गया।"
उत्तर :-- आर्य का अर्थ था "वैदिक संस्कारों में जो श्रेष्ठ हो"। "द्रविड़" शब्द भी आदरसूचक ही था । द्रव्य और द्रविड़ की सामान व्युत्पत्ति है, द्रविड़ का अर्थ है "सम्पन्न" । अर्थात जो धन में श्रेष्ठ हो । "श्रेष्ठ" से ही "सेठ"  शब्द बना है । "सुर" शब्द बाद का है, असुर प्राचीन है । "असुर"  का वैदिक अर्थ है  "जो सत्ता में हो, शक्तिशाली हो"। असुर का पर्याय है  "पूर्वदेव", अर्थात जो पहले देव थे किन्तु भोगवाद के कारण असुर बन गए । वास्तविक सुर और असुर दिव्य योनियाँ हैं, मनुष्य नहीं । देवलोक और पाताल भौतिक संसार में नहीं मिलेंगे । भौतिकवादियों को भ्रम है कि केवल भौतिक वस्तु का ही अस्तित्व है, शेष सब कुछ काल्पनिक है, जैसे कि आत्मा, परमात्मा, परलोक, कर्मों के फल, पाप-पुण्य, नैतिकता, आदि । "भौतिक"  का अर्थ है पाँच ज्ञानेन्द्रियों द्वारा जिस पञ्च-भौतिक प्र-पञ्च का संज्ञान हो । इन्द्रियाँ केवल ऐन्द्रिक वस्तुओं का ही संज्ञान कर सकती हैं, सूक्ष्म तत्वों का नहीं ।⁠⁠⁠⁠

9 comments:

  1. आपका यह ब्लॉग बहुत ही ज्ञानवर्धक और सराहनीय है | लोगो के कर्म के आधार पर जातियों का विभाजन हुआ जो आगे चलकर पीडी दर पीडी आगे बढती गई | लेकिन जैसे जैसे अब समय आगे बाद रहा है लोग अपने पेत्रक व्यवसाय छोरकर आगे दुसरे शेत्र में आगे बाद रहे है | Talented India News

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  2. बलौरा मिश्र जिनका गोत्र वत्स है के विषय में कुछ प्रकाश डालें

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  3. Mai kanyakubj brahamin hu mera aur bhi koi gotra h

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  4. Mai kanyakubj Brahmin hu bharadwaj ke alwa Bhi koi gotra h mera bata sakte h

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  5. Interesting knowledge for our cast and gotra etc.
    May I know I am Galyaan
    God then who is Rishi and kuldevi.

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  6. Pandey ka mtlb aur history bta diniye

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  7. Also Read भारत में जाति व्यवस्था की उत्पत्ति कैसे हुई? here https://hi.letsdiskuss.com/How-did-the-caste-system-originate-in-India

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