December 26, 2012

STORY 1

हाथ मैं झोला लटकाए एक बुजुर्ग महिला बस मैं चडी, सीट खाली नही देख एकदम से वह निराश हो गयी,
फिर भी जैसा कि बस मैं चड़ने वाला हर यात्री सोचता है कि शायद किसी सीट पर अटकने की जगह मिलजाए, वह भी पीछे की और चली,
तभी उसकी नजर एक सीट पर पड़ी, उस पर बस एक ही युवक बेठा था, आंखों मैं संतोष की चमक आ गयी, पास जाने पर जब उस पर कोई कपडा या कुछ सामान नही दिखायी दिया।
उसने धम्म से शरीर को छोड़ दिया सीट पर,
अरे रे कहाँ बेठ रही हो, यहाँ सवारी आएगी,
आंखों मैं उभरी चमक घुप्प से गायब हो गयी , आगे और सीट देखने की हिम्मत उसमें नही रही और वह वहीं सीटों के बीच फर्श मैं ही बेठ गयी,
इसके बाद उस खाली सीट को देख कर कईं बार आंखों मैं चमक आती रही और बुझती रही,
तभी एक collage में पढनेवाली सुन्दर सी दिखने वाली लड़की बस मैं चडी ,
अन्य लोगों को खड़ा देख उसने समझ लिया कि वह सीट खाली नही है, एक सीट खाली देखकर मन हि मन समझ गई उस सीट पर कोई आना वाला है
और वह भी खड़ी हो गयी महिला के पास,
तभी आवाज आई बैठ जाइये न,यहाँ कोई नही आएगा,
इस आवाज पर लड़की ने मुड़कर देखा तो युवक उससे ही मुखातिब था, उसने आश्चर्य से पूछा कोई नही आएगा,
युवक उसी मुस्कान के साथ बोला,
जी नही,
इस पर लड़की मुडी और नीचे बेठी उस बुजर्ग महिला को बोली माँ जी आप ऊपर बैठ जाइये और उसने इतना कह कर बुजर्ग महिला को सीट में बैठा दिया,
अब युवक का चेहरा देखने लायक था, वह लड़की को खा जाने वाली नजरों से देख रहा था,

"दोस्तों याद रखे मानव कहलाना ही काफी नहीं है
आप के अन्दर मानवता का गुण होना भी जरुरी है"

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