•“आयुर्वेद” शब्द “आयुः” और “वेद” शब्दों की संधि से बना है। “आयुः” का अर्थ है “अवस्था, उम्र, जीवन” और “वेद” का अर्थ है “ज्ञान”, अतः “आयुर्वेद का अर्थ हुआ “आयु से सम्बंधित ज्ञान”।
•आयुर्वेद को स्वास्थ्य रक्षा हेतु हिन्दू पद्धति माना जाता है।
•भारत, नेपाल, श्रीलंका आदि देशों के अनगिनत लोग आयुर्वेद पर ही विश्वास रखते हैं। व्यापक रूप से इसे हमारे ग्रह की अनवरत रूप से चलने वाली औषधि प्रणाली, जिसका उद्गम वैदिक काल से भी पहले ईसा पूर्व 5000 में हुआ था, माना जाता है।
•पौराणिक कथाओं के अनुसार आयुर्वेद के समस्त श्लोक स्वयं भगवान ब्रह्मा के मुख से निकले थे अर्थात् वे ब्रह्मवाक्य हैं।
•परम्परा के अनुसार, आयुर्वेद का प्रथम वर्णन अग्निवेश लिखित “अग्निवेश तंत्र” के रूप में हुआ। कालान्तर में महर्षि चरक ने इसे पुनः लिखा और इसका नाम “चरक संहिता” पड़ा।
•आयुर्वेद का एक अन्य मुख्य ग्रंथ सुश्रुत संहिता है जिसे कि भगवान धन्वन्तरि के प्रमुख शिष्य सुश्रुत ने ईसा पूर्व लगभग 1000 में लिखा था। सुश्रुत को “शल्य चिकित्सा” के जनक के रूप में माना जाता है और “सुश्रुत संहिता” में भगवान धन्वन्तरि के द्वारा बताये गये शल्य चिकित्सा की विधियों, जिन्हें कि सुश्रुत ने अपने अनुभवों और भी परिमार्जित किया, का वर्णन है। चरक संहिता और सुश्रुत संहिता दोनों ही ग्रंथ भारत के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों, तक्षशिला और नालंदा, में पाठ्यक्रम के रूप में सम्मिलित थे।
•यद्यपि आयुर्वेद का प्रतिपादन प्राचीन काल में हुआ किन्तु मध्यकाल में अनेकों विद्वानों ने उसका और अधिक विकास किया। चरक और सुश्रुत के बाद 7वीं शताब्दी के विद्वान वाग्भट, जिन्होंने “आयुर्वेद” ग्रंथ की रचना की, को आयुर्वेद का महान विद्वान माना जाता है। आयुर्वेद के एक अन्य जाने माने विद्वान हैं 8वीं शताब्दी के माधव जिन्होंने “निदान” ग्रंथ लिख कर उसके 79 सर्गों में अनेकों रोगों, उनके लक्षणों, कारणों, जटिलताओं आदि को सूचीबद्ध किया।
•पश्चिमी दिग्गजों के द्वारा उनकी चिकित्सा प्रणाली के विकास के लिये उसमें आयुर्वद के सार तत्वों को जोड़ने का भी प्रयास किया जा रहा है।
•आयुर्वेद की शिक्षा के लिये अमेरिका में 26 तथा यूरोप में भी दर्जनों स्कूल कार्यरत हैं।
•आयुर्वेद को स्वास्थ्य रक्षा हेतु हिन्दू पद्धति माना जाता है।
•भारत, नेपाल, श्रीलंका आदि देशों के अनगिनत लोग आयुर्वेद पर ही विश्वास रखते हैं। व्यापक रूप से इसे हमारे ग्रह की अनवरत रूप से चलने वाली औषधि प्रणाली, जिसका उद्गम वैदिक काल से भी पहले ईसा पूर्व 5000 में हुआ था, माना जाता है।
•पौराणिक कथाओं के अनुसार आयुर्वेद के समस्त श्लोक स्वयं भगवान ब्रह्मा के मुख से निकले थे अर्थात् वे ब्रह्मवाक्य हैं।
•परम्परा के अनुसार, आयुर्वेद का प्रथम वर्णन अग्निवेश लिखित “अग्निवेश तंत्र” के रूप में हुआ। कालान्तर में महर्षि चरक ने इसे पुनः लिखा और इसका नाम “चरक संहिता” पड़ा।
•आयुर्वेद का एक अन्य मुख्य ग्रंथ सुश्रुत संहिता है जिसे कि भगवान धन्वन्तरि के प्रमुख शिष्य सुश्रुत ने ईसा पूर्व लगभग 1000 में लिखा था। सुश्रुत को “शल्य चिकित्सा” के जनक के रूप में माना जाता है और “सुश्रुत संहिता” में भगवान धन्वन्तरि के द्वारा बताये गये शल्य चिकित्सा की विधियों, जिन्हें कि सुश्रुत ने अपने अनुभवों और भी परिमार्जित किया, का वर्णन है। चरक संहिता और सुश्रुत संहिता दोनों ही ग्रंथ भारत के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों, तक्षशिला और नालंदा, में पाठ्यक्रम के रूप में सम्मिलित थे।
•यद्यपि आयुर्वेद का प्रतिपादन प्राचीन काल में हुआ किन्तु मध्यकाल में अनेकों विद्वानों ने उसका और अधिक विकास किया। चरक और सुश्रुत के बाद 7वीं शताब्दी के विद्वान वाग्भट, जिन्होंने “आयुर्वेद” ग्रंथ की रचना की, को आयुर्वेद का महान विद्वान माना जाता है। आयुर्वेद के एक अन्य जाने माने विद्वान हैं 8वीं शताब्दी के माधव जिन्होंने “निदान” ग्रंथ लिख कर उसके 79 सर्गों में अनेकों रोगों, उनके लक्षणों, कारणों, जटिलताओं आदि को सूचीबद्ध किया।
•पश्चिमी दिग्गजों के द्वारा उनकी चिकित्सा प्रणाली के विकास के लिये उसमें आयुर्वद के सार तत्वों को जोड़ने का भी प्रयास किया जा रहा है।
•आयुर्वेद की शिक्षा के लिये अमेरिका में 26 तथा यूरोप में भी दर्जनों स्कूल कार्यरत हैं।
good!!!!!!!!!!!!
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