आँवला (Amla)
स्वाद में कसैला किन्तु स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यन्त गुणकारी!
आँवला माता के सदृष हमारा पोषण करने वाला फल है इसलिए इसे “धातृ फल” नाम दिया गया है। आयुर्वेद आँवले का गुणगाण करते जरा भी थकता नहीं है।
आँवला अत्यन्त शीतल तासीर वाला फल है। अपनी शीतलता से यह मनुष्य के दिमाग को शान्त रखते के साथ ही शक्ति भी प्रदान करता है। आँवले का नियमित सेवन करना स्मरण शक्ति को बढ़ाने में सहायक होता है।
आयुर्वेद में उदर से सम्बन्धित रोगों के लिए आँवले को रामबाण माना गया है। आँवले के चूर्ण को शहद के साथ मिला कर चाटने सेपेट व गले की जलन, खाना न पचना, खट्टी डकार, गैस व कब्ज आदि रोग दूर होते हैं।
त्वचा सम्बन्धी रोगों के लिए आँवले का सेवन अत्यन्त लाभकारी है, त्वचा स्वस्थ बनी रहती है।
आँवला स्नायु तंत्र को मजबूती प्रदान करता है तथा सौन्दर्य में वृद्धि करता है।
आँवले के सेवन से नये खून का निर्माण होता है रक्त सम्बन्धी समस्त विकार दूर होते हैं। आँवला हानिकारक टॉक्सिन को शरीर से बाहर निकालता है और रक्त को साफ करता है। गर्भावस्था में आँवला रक्त की कमी को दूर करता है।
आँवला यौवन शक्ति प्रदान करता है तथा आँवले का नियमित सेवन वृद्धावस्था को पास ही नहीं फटकने देता।
प्रतिदिन एक बड़ा चम्मच आँवले का रस शहद के साथ मिलाकर चाटने से मोतियाबिन्द में लाभ होता है।
रात को सोने से पहले आँवला खाने से पेट में हानिकारक तत्व इकट्ठे नहीं हो पाते तथा पेट साफ रहता है।
मूत्र सम्बन्धी परेशानी में भी आँवले का सेवन लाभकारी होता है।
दाँत व मसूड़ों में तकलीफ होने पर एक कच्चा आँवला नियमित रूप से खाने पर अवश्य ही लाभ होता है।
आँवला कफ को निकालता है।
आँवले का मुरब्बा शक्तिदायक होता है। आँवला एक अंण्डे से अधिक बल देता है।
ब्लडप्रेशर वालों के लिये आँवला बहुत फायदेमंद है।
शहद के साथ आँवले के रस का सेवन मधुमेह में लाभकारी है।
आँवले का रस पीने से नेत्र ज्योति बढ़ती है।
आँवले के चूर्ण का उबटन चेहरे पर लगाने से चेहरा साफ होता है और दाग धब्बे दूर होते हैं।
तुलसी –
•तुलसी आयुर्वेदिक चिकित्सा की एक प्रमुख औषधि है।
•विभिन्न औषधीय गुणों के निहित होने के कारण भारत में तुलसी का प्रयोग हजारों वर्षों से किया जा रहा है।
•तनाव दूर करने में तुलसी अत्यन्त सहायक है।
•सर्दी-जुकाम, सरदर्द, उदर तथा हृदय से सम्बंधित व्याधियों के उपचार के लिये तुलसी के रस का औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।
•तुलसी का प्रयोग अनेकों प्रकार से किया जा सकता है जैसे कि काढ़ा या चाय के रूप में, चूर्ण या पाउडर के रूप में, ताजी पत्ती के रूप में या घी मिला कर।
•भारत में तुलसी का धार्मिक महत्व है तथा देवी के रूप में इसकी पूजा की जाती है।
•हिन्दू धर्म में तुलसी नाम को अतुलनीय माना जाता है।
•तुलसी को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है तथा प्रतिवर्ष भगवान विष्णु के साथ तुलसी विवाह का त्यौहार भी मनाया जाता है।
उपचार
•आँख: आँख की अनेकों बीमारियों के लिये तुलसी का रस बहुत फायदेमंद है।
•दांत व मसूढ़े: तुलसी के पत्तों का चूर्ण संवेदनशील दांतों तथा मसूढ़ों के लिये अत्यधिक लाभदायक है।
•दंश: एंटी एलर्जिक गुण होने के कारण तुलसी के रस का प्रयोग सर्व व जहरीले कीड़ों के दंश के उपचार में किया जाता है।
•तनाव: प्रतिदिन तुलसी के 4-5 पत्ते चबाने से तनाव दूर होता है।
•माइग्रेन: तुलसी के पत्तों को कूट-पीस कर पेस्ट बनायें तथा मस्तक पर लेप करें, माइग्रेन में अवश्य फायदा होगा।
अश्वगंधा
अश्वगंधा, जिसे कि विन्टर चेरी भी कहा जाता है, एक अत्यन्त लोकप्रिय आयुर्वेदिक औषधि है। वनस्पति शास्त्र में इसे “withania somnifera” के नाम से जाना जाता है। अश्वगंधा का प्रयोग तनाव मुक्ति के लिये किया जाता है। अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि अश्वगंधा में “एन्टी इंफ्लेमेटरी”, “एंट ट्यूमर”, “एंटी स्ट्रेस” तथा “एंटीआक्सीडेंट” गुण पाये जाते हैं।
•आयुर्वेद में अश्वगंधा को एक ऐसा रसायन माना जाता है जो कि स्वास्थ्य तथा आयु में वृद्धिकारक है।
•अश्वगंधा मनोवैज्ञानिक क्रियाओं को सामान्य बनाये रखता है।
•अश्वगंधा के जड़ तथा फलियों को आयुर्वेदिक औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।
•भारत में अश्वगंधा का प्रयोग प्रायः मानसिक कमियों को दूर करने के लिये किया जाता है।
घृतकुमारी (घीक्वार – Aloe Vera)
घृतकुमारी, जिसे घीक्वार भी कहा जाता है, एक अनगिनत गुणों वाली आयुर्वेदिक औषधि है। घृतकुमारी का वनस्पति शास्त्रीय नाम “एलो वेरा” (Aloe Vera) है। अपने आर्द्रताकारी (moisturizing) तथा उम्रवृद्धिकारक गुणों के कारण बहुधा इसका प्रयोग स्किन लोशन के रूप में किया जाता है। रक्तसंचरण तंत्र, लीव्हर, प्लीहा आदि के लिये घृतकुमारी अत्यन्त लाभदायक है। पाचनशक्ति बढ़ाने तथा उदर सम्बंधी अनेकों रोगों के उपचार में भी यह बहुत प्रभावशील है।
उपचार
जलने, कटने तथा घाव में
•घृतकुमारी के पत्ते का गूदा जलने, कटने तथा घाव वाले स्थान में लगायें, तत्काल राहत अनुभव करेंगे।
फोड़े तथा छालों में
•एक चम्मच हल्दी में घृतकुमारी के पत्तों का गूदा मिला कर प्रभावित त्वचा में लगायें और पट्टी बांध दें।
त्वचा रोगों में
•घृतकुमारी के पत्तों के गूदा को प्रभवित त्वचा में लेप करने से त्वचा रोगों में अपेक्षित लाभ मिलता है।
•घृतकुमारी के पत्तों का गूदा प्रतिदिन 1-2 चम्मच खाने से बहुत फायदा मिलता है।
कब्ज में
•घृतकुमारी के पत्तों का गूदा प्रतिदिन 1-2 चम्मच खाने से बहुत फायदा मिलता है।
सावधानी: गर्भवती औरतों और पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिये घृतकुमारी के आन्तरिक सेवन करने की सख्त मनाही है।
स्वाद में कसैला किन्तु स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यन्त गुणकारी!
आँवला माता के सदृष हमारा पोषण करने वाला फल है इसलिए इसे “धातृ फल” नाम दिया गया है। आयुर्वेद आँवले का गुणगाण करते जरा भी थकता नहीं है।
आँवला अत्यन्त शीतल तासीर वाला फल है। अपनी शीतलता से यह मनुष्य के दिमाग को शान्त रखते के साथ ही शक्ति भी प्रदान करता है। आँवले का नियमित सेवन करना स्मरण शक्ति को बढ़ाने में सहायक होता है।
आयुर्वेद में उदर से सम्बन्धित रोगों के लिए आँवले को रामबाण माना गया है। आँवले के चूर्ण को शहद के साथ मिला कर चाटने सेपेट व गले की जलन, खाना न पचना, खट्टी डकार, गैस व कब्ज आदि रोग दूर होते हैं।
त्वचा सम्बन्धी रोगों के लिए आँवले का सेवन अत्यन्त लाभकारी है, त्वचा स्वस्थ बनी रहती है।
आँवला स्नायु तंत्र को मजबूती प्रदान करता है तथा सौन्दर्य में वृद्धि करता है।
आँवले के सेवन से नये खून का निर्माण होता है रक्त सम्बन्धी समस्त विकार दूर होते हैं। आँवला हानिकारक टॉक्सिन को शरीर से बाहर निकालता है और रक्त को साफ करता है। गर्भावस्था में आँवला रक्त की कमी को दूर करता है।
आँवला यौवन शक्ति प्रदान करता है तथा आँवले का नियमित सेवन वृद्धावस्था को पास ही नहीं फटकने देता।
प्रतिदिन एक बड़ा चम्मच आँवले का रस शहद के साथ मिलाकर चाटने से मोतियाबिन्द में लाभ होता है।
रात को सोने से पहले आँवला खाने से पेट में हानिकारक तत्व इकट्ठे नहीं हो पाते तथा पेट साफ रहता है।
मूत्र सम्बन्धी परेशानी में भी आँवले का सेवन लाभकारी होता है।
दाँत व मसूड़ों में तकलीफ होने पर एक कच्चा आँवला नियमित रूप से खाने पर अवश्य ही लाभ होता है।
आँवला कफ को निकालता है।
आँवले का मुरब्बा शक्तिदायक होता है। आँवला एक अंण्डे से अधिक बल देता है।
ब्लडप्रेशर वालों के लिये आँवला बहुत फायदेमंद है।
शहद के साथ आँवले के रस का सेवन मधुमेह में लाभकारी है।
आँवले का रस पीने से नेत्र ज्योति बढ़ती है।
आँवले के चूर्ण का उबटन चेहरे पर लगाने से चेहरा साफ होता है और दाग धब्बे दूर होते हैं।
तुलसी –
•तुलसी आयुर्वेदिक चिकित्सा की एक प्रमुख औषधि है।
•विभिन्न औषधीय गुणों के निहित होने के कारण भारत में तुलसी का प्रयोग हजारों वर्षों से किया जा रहा है।
•तनाव दूर करने में तुलसी अत्यन्त सहायक है।
•सर्दी-जुकाम, सरदर्द, उदर तथा हृदय से सम्बंधित व्याधियों के उपचार के लिये तुलसी के रस का औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।
•तुलसी का प्रयोग अनेकों प्रकार से किया जा सकता है जैसे कि काढ़ा या चाय के रूप में, चूर्ण या पाउडर के रूप में, ताजी पत्ती के रूप में या घी मिला कर।
•भारत में तुलसी का धार्मिक महत्व है तथा देवी के रूप में इसकी पूजा की जाती है।
•हिन्दू धर्म में तुलसी नाम को अतुलनीय माना जाता है।
•तुलसी को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है तथा प्रतिवर्ष भगवान विष्णु के साथ तुलसी विवाह का त्यौहार भी मनाया जाता है।
उपचार
•आँख: आँख की अनेकों बीमारियों के लिये तुलसी का रस बहुत फायदेमंद है।
•दांत व मसूढ़े: तुलसी के पत्तों का चूर्ण संवेदनशील दांतों तथा मसूढ़ों के लिये अत्यधिक लाभदायक है।
•दंश: एंटी एलर्जिक गुण होने के कारण तुलसी के रस का प्रयोग सर्व व जहरीले कीड़ों के दंश के उपचार में किया जाता है।
•तनाव: प्रतिदिन तुलसी के 4-5 पत्ते चबाने से तनाव दूर होता है।
•माइग्रेन: तुलसी के पत्तों को कूट-पीस कर पेस्ट बनायें तथा मस्तक पर लेप करें, माइग्रेन में अवश्य फायदा होगा।
अश्वगंधा
अश्वगंधा, जिसे कि विन्टर चेरी भी कहा जाता है, एक अत्यन्त लोकप्रिय आयुर्वेदिक औषधि है। वनस्पति शास्त्र में इसे “withania somnifera” के नाम से जाना जाता है। अश्वगंधा का प्रयोग तनाव मुक्ति के लिये किया जाता है। अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि अश्वगंधा में “एन्टी इंफ्लेमेटरी”, “एंट ट्यूमर”, “एंटी स्ट्रेस” तथा “एंटीआक्सीडेंट” गुण पाये जाते हैं।
•आयुर्वेद में अश्वगंधा को एक ऐसा रसायन माना जाता है जो कि स्वास्थ्य तथा आयु में वृद्धिकारक है।
•अश्वगंधा मनोवैज्ञानिक क्रियाओं को सामान्य बनाये रखता है।
•अश्वगंधा के जड़ तथा फलियों को आयुर्वेदिक औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।
•भारत में अश्वगंधा का प्रयोग प्रायः मानसिक कमियों को दूर करने के लिये किया जाता है।
घृतकुमारी (घीक्वार – Aloe Vera)
घृतकुमारी, जिसे घीक्वार भी कहा जाता है, एक अनगिनत गुणों वाली आयुर्वेदिक औषधि है। घृतकुमारी का वनस्पति शास्त्रीय नाम “एलो वेरा” (Aloe Vera) है। अपने आर्द्रताकारी (moisturizing) तथा उम्रवृद्धिकारक गुणों के कारण बहुधा इसका प्रयोग स्किन लोशन के रूप में किया जाता है। रक्तसंचरण तंत्र, लीव्हर, प्लीहा आदि के लिये घृतकुमारी अत्यन्त लाभदायक है। पाचनशक्ति बढ़ाने तथा उदर सम्बंधी अनेकों रोगों के उपचार में भी यह बहुत प्रभावशील है।
उपचार
जलने, कटने तथा घाव में
•घृतकुमारी के पत्ते का गूदा जलने, कटने तथा घाव वाले स्थान में लगायें, तत्काल राहत अनुभव करेंगे।
फोड़े तथा छालों में
•एक चम्मच हल्दी में घृतकुमारी के पत्तों का गूदा मिला कर प्रभावित त्वचा में लगायें और पट्टी बांध दें।
त्वचा रोगों में
•घृतकुमारी के पत्तों के गूदा को प्रभवित त्वचा में लेप करने से त्वचा रोगों में अपेक्षित लाभ मिलता है।
•घृतकुमारी के पत्तों का गूदा प्रतिदिन 1-2 चम्मच खाने से बहुत फायदा मिलता है।
कब्ज में
•घृतकुमारी के पत्तों का गूदा प्रतिदिन 1-2 चम्मच खाने से बहुत फायदा मिलता है।
सावधानी: गर्भवती औरतों और पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिये घृतकुमारी के आन्तरिक सेवन करने की सख्त मनाही है।
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