“ओम जय जगदीश हरे” भजन भला किसने गाया या सुना न होगा। यह हिन्दुओं का सर्वाधिक लोकप्रिय भजन है जिसे प्रायः मन्दिरों तथा घरों में भगवान की आरती उतारते समय गाया जाता है। “ओम जय जगदीश हरे” भजन लोगों के लिए एक प्रकार से सामान्य जीवन का अंग सा बन गया है किन्तु बहुत कम लोग जानते होंगे कि इस भजन को किसने और कब लिखा।
ओम जय जगदीश हरे के रचयिता हैं श्रद्धा राम फिल्लौरी जिनका जन्म जालंधर (पंजाब) के एक गाँव फिल्लौर में 30 सितम्बर 1837 को हुआ था। श्रद्धा राम जी ने सन् 1844 में अर्थात् मात्र सात वर्ष की उम्र में ही गुरुमुखी भाषा सीख लिया था। बाद में उन्होंने हिन्दी, संस्कृत और पारसी भाषाओं तथा ज्योतिष शास्त्र का भी अध्ययन किया।
श्रद्धा राम फिल्लौरी जी का गुरुमुखी और हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सन् 1868 में उन्होंने बाइबल का अनुवाद गुरुमुखी भाषा में किया था। उनकी गुरुमुखी रचना “सिखां दे राज दी विथिया” का प्रकाशन सन् 1866 में हुआ था तथा बाद में इस रचना का रोमन में अनुवाद भी हुआ। श्री श्रद्धा राम को भारत के प्रथम उपन्यासकार के रूप में भी जाना जाता है। उनके द्वारा लिखित प्रथम हिंदी उपन्यास “भाग्यवती” जिसको निर्मल प्रकाशन ने सन 1888 में प्रकाशित किया था।
श्री श्रद्धा राम जी को देश के स्वतन्त्रता आन्दोलनों में भाग लेने तथा अपने भाषणों में महाभारत के उद्धरणों का प्रयोग करने के कारण अंग्रेज़ों ने उनके गाँव फिल्लौर से देश निकला दे दिया था।
श्री श्रद्धा राम फिल्लौरी का स्वर्गवास मात्र 44 वर्ष की अल्पायु में 24 जून 1881 को लाहौर में हुआ।
ओम जय जगदीश हरे के रचयिता हैं श्रद्धा राम फिल्लौरी जिनका जन्म जालंधर (पंजाब) के एक गाँव फिल्लौर में 30 सितम्बर 1837 को हुआ था। श्रद्धा राम जी ने सन् 1844 में अर्थात् मात्र सात वर्ष की उम्र में ही गुरुमुखी भाषा सीख लिया था। बाद में उन्होंने हिन्दी, संस्कृत और पारसी भाषाओं तथा ज्योतिष शास्त्र का भी अध्ययन किया।
श्रद्धा राम फिल्लौरी जी का गुरुमुखी और हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सन् 1868 में उन्होंने बाइबल का अनुवाद गुरुमुखी भाषा में किया था। उनकी गुरुमुखी रचना “सिखां दे राज दी विथिया” का प्रकाशन सन् 1866 में हुआ था तथा बाद में इस रचना का रोमन में अनुवाद भी हुआ। श्री श्रद्धा राम को भारत के प्रथम उपन्यासकार के रूप में भी जाना जाता है। उनके द्वारा लिखित प्रथम हिंदी उपन्यास “भाग्यवती” जिसको निर्मल प्रकाशन ने सन 1888 में प्रकाशित किया था।
श्री श्रद्धा राम जी को देश के स्वतन्त्रता आन्दोलनों में भाग लेने तथा अपने भाषणों में महाभारत के उद्धरणों का प्रयोग करने के कारण अंग्रेज़ों ने उनके गाँव फिल्लौर से देश निकला दे दिया था।
श्री श्रद्धा राम फिल्लौरी का स्वर्गवास मात्र 44 वर्ष की अल्पायु में 24 जून 1881 को लाहौर में हुआ।
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