February 03, 2014

सिर के बालों का अध्यात्म के साथ कनेक्शन

सिर के बालों का अध्यात्म के साथ कनेक्शन



आश्रम में और बाहर भी कई जगहों पर, कुछ भिक्षु अपने सिर पर बाल नहीं रखते और कुछ भिक्षु अपने शरीर का एक भी बाल नहीं कटवाते। इन दोनों पहलुओं में क्या अंतर है?

आपने ध्यान दिया होगा कि जब आप किसी पेड़ की छंटाई करते हैं, तो वह पेड़ अपनी ऊर्जा उसी हिस्से पर केंद्रित कर देता है जिसकी छंटाई हुई होती है। अगले पंद्रह से तीस दिनों के भीतर पेड़ के उस हिस्से में जितने पत्ते आते हैं, वे पेड़ के दूसरे हिस्सों से काफी ज्यादा होते हैं। यही चीज आपके शरीर में होती है। अगर आप अपने बाल मुड़वाएं, तो आप देखेंगे कि आपकी ऊर्जा अचानक ऊपर की ओर जाने लगेगी । एक खास तरह की साधना करने वाले लोग ऐसा ही चाहते हैं। ऐसा नहीं है कि वे अपनी मर्जी से कभी भी बाल मुड़वा लेते हैं। वे अपने बाल शिवरात्रि को उतरवाते हैं, जो अमावस्या के एक दिन पहले आता है। उस दिन, अमावस्या के दिन और उसके अगले दिन, मानव-शरीर में ऊर्जा ऊपर की ओर उमड़ती है, जिसे हम थोड़ा और धक्‍का लगाना चाहते हैं।

बाल उसी दिन उतारे जाते हैं क्योंकि उससे साधना जुड़ी होती है। अगर साधना नहीं होगी, तो कोई खास अंतर नहीं पड़ेगा। कुछ लोग जानते होंगे कि कभी-कभी ऐसा भी होता है कि अगर कोई महिला जिसने जीवन में कभी अपना बाल नहीं उतरवाया हो, अगर अपने बाल मुड़वाती है, तो वह मानसिक रूप से असंतुलित हो जाती है। क्योंकि उस दिशा में ऊर्जा की अधिकता को वह संभाल नहीं पाती। अगर पहले से थोड़ा-बहुत असंतुलन हो, तो वह और बढ़ जाता है। लेकिन अगर उसे एक खास समझ के साथ किया जाए और उसे संभालने के लिए जरूरी साधना भी हो, तो वह आपके लिए फायदेमंद होता है। जो साधक सिर्फ अपना आध्यात्मिक कल्याण ही नहीं चाहता, बल्कि एक विशाल संभावना का साधन बनना चाहता है, वह प्रकृति में मौजूद छोटे से छोटे सहारे का इस्तेमाल करना चाहता है। अपना सिर मुड़वाना उसी का एक हिस्सा है।
जब कोई ऐसी स्थिति में पहुंच जाता है, जहां उसकी ऊर्जा उसके सिर से फूटने लगती है, अगर वह भौतिक शरीर के ऊपर मौजूद दो चक्रों को सक्रिय कर लेता है, तो वह अपने बाल नहीं उतारेगा। दरअसल तब हम बाल को बढ़ाना और उसे ऊपर बांध कर रखना चाहते हैं ताकि वह सुरक्षित रहे और उसे पोषण मिलता रहे। अगर बाल पर्याप्त नहीं हैं, तो हम कपड़े का इस्तेमाल करते हैं। भौतिक शरीर के ऊपर मौजूद दोनों चक्रों के क्रियाशील होने के बाद एक संभावना यह भी होती है कि शरीर थोड़ा कमजोर हो जाता है। वह शरीर से जरूरत से ज्यादा ऊर्जा खींचने लगता है, यही वजह है कि बहुत से योगियों का पैंतीस वर्ष की उम्र से पहले ही देहांत हो जाता है। वे ऊर्जा का एक निश्चित स्तर हासिल कर लेते हैं लेकिन वे शरीर के सभी अलग-अलग पहलुओं के बारे में नहीं जानते। वे नहीं समझते कि मानव-तंत्र कैसे काम करता है। मानव शरीर एक बहुत ही गूढ़ मशीन है। ईश्‍वर ने इसे बहुत जटिल और गूढ़ बनाया है। गूढ़ होने का मतलब सिर्फ उसे पेचीदा बनाना नहीं है। गूढ़ होने का मतलब है कि उसमें एक साधारण मशीन से अधिक संभावनाएं हैं।
अगर किसी की अपने शरीर के ऊपर अच्‍छी पकड़  नहीं है, तो अधिक बड़ी संभावनाएं आपको शरीर से अलग  कर देगी। शरीर से अलग जाने का मतलब है, शारीरिक रूप से कम सक्षम हो जाना या पूरी तरह शरीर को त्याग देना। इसीलिए हठ योग इतना महत्वपूर्ण है क्योंकि उससे शरीर का संचालन इस तरह किया जा सकता है कि आपकी ऊर्जा आपकी भौतिकता में जमी रहे, इसके पहले कि आप अधिक ऊंची संभावनाओं की ओर बढ़ें ।







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