गर्भाधान के लिए उत्तम समय कौन-सा होना चाहिए ???
ऋतुकाल की उत्तरोत्तर रात्रियों में गर्भाधान श्रेष्ठ है लेकिन 11वीं व 13 वीं रात्रि वर्जित है।
यदि पुत्र की इच्छा करनी हो तो पत्नी को ऋतुकाल की 4,6,8,10 व 12वीं रात्रि में से किसी एक रात्रि का शुभ मुहूर्त पसंद कर समागम करना चाहिए।
यदि पुत्री की इच्छा हो तो ऋतुकाल की 5,7 या 9वीं रात्रि में से किसी एक रात्रि का शुभ मुहूर्त पसंद करना चाहिए।
कृष्णपक्ष के दिनों में गर्भ रहे तो पुत्र व शुक्लपक्ष में गर्भ रहे तो पुत्री पैदा होने की सम्भावना होती है।
रात्रि के शुभ समय में से भी प्रथम 15 व अंतिम 15 मिनट का त्याग करके बीच का समय गर्भाधान के लिए निश्चित करें।
गर्भाधान हेतु सप्ताह के 7 दिनों की रात्रियों के शुभ समय इस प्रकार हैं-क
रविवार – 8 से 9 और 9.30 से 3.00
सोमवार – 10.30 से 12.00 और 1.30 से 3.00
मंगलवार – 7.30 से 9 और 10,30 से 1.30
बुधवार – 7.30 से 10.00 और 3.00 से 4.00
गुरुवार 12.00 से 1.30
शुक्रवार – 9.00 से 10.30 और 12.00 से 3.00
शनिवार – 9.00 से 12.00
गर्भधारण के पूर्व कर्तव्यः
रात्रि के समय कम-से-कम तीन दिन पूर्व निश्चित कर लेना चाहिए। निश्चित रात्रि में संध्या होने से पूर्व पति-पत्नी को स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहन कर सदगुरू व इष्टदेवता की पूजा करनी चाहिए।
गर्भाधान एक प्रकार का यज्ञ है। इसलिए इस समय सतत यज्ञ की भावना रखनी चाहिए। विलास की दृष्टि नहीं रखनी चाहिए।
दम्पत्ति अपनी चित्तवृत्तियों को परमात्मा में स्थिर करके उत्तम आत्माओं का आवाहन करते हुए प्रार्थना करेः 'हे ब्रह्माण्ड में विचरण कर रही सूक्ष्म रूपधारी पवित्र आत्माओ ! हम दोनों आपको प्रार्थना कर रहे हैं कि हमारे घर, जीवन व देश को पवित्र तथा उन्नत करने के लिए आप हमारे यहाँ जन्म धारण करके हमें कृतार्थ करें। हम दोनों अपने शरीर, मन, प्राण व बुद्धि को आपके योग्य बनायेंगे।'
पुरुष दायें पैर से स्त्री से पहले शय्या पर आरोहण करे और स्त्री बायें पैर से पति के दक्षिण पार्श्व में शय्या पर चढ़े। तत्पश्चात शय्या पर निम्निलिखित मंत्र पढ़ना चाहिएः
अहिरसि आयुरसि सर्वतः प्रतिष्ठासि धाता
त्वां दधातु विधाता त्वां दधातु ब्रह्मवर्चसा भवेति।
ब्रह्मा बृहस्पतिर्विष्णुः सोम सूर्यस्तथाऽश्विनौ।
भगोऽथ मित्रावरूणौ वीरं ददतु मे सुतम्।।
हे गर्भ ! तुम सूर्य के समान हो। तुम मेरी आयु हो, तुम सब प्रकार से मेरी प्रतिष्ठा हो। धाता (सबके पोषक ईश्वर) तुम्हारी रक्षा करें, विधाता (विश्व के निर्माता ब्रह्मा) तुम्हारी रक्षा करें। तुम ब्रह्मतेज से युक्त होओ।
ब्रह्मा, बृहस्पति, विष्णु, सोम, सूर्य, अश्विनीकुमार और मित्रावरूण जो दिव्य शक्तिरूप हैं, वे मुझे वीर पुत्र प्रदान करें।
(चरक संहिता, शारीरस्थानः 8.8)
दम्पत्ति गर्भ के विषय मे मन लगाकर रहें। इससे तीनों दोष अपने-अपने स्थानों में रहने से स्त्री बीज को ग्रहण करती है। विधिपूर्वक गर्भाधारण करने से इच्छानुकूल फल प्राप्त होता है।
ऋतुकाल की उत्तरोत्तर रात्रियों में गर्भाधान श्रेष्ठ है लेकिन 11वीं व 13 वीं रात्रि वर्जित है।
यदि पुत्र की इच्छा करनी हो तो पत्नी को ऋतुकाल की 4,6,8,10 व 12वीं रात्रि में से किसी एक रात्रि का शुभ मुहूर्त पसंद कर समागम करना चाहिए।
यदि पुत्री की इच्छा हो तो ऋतुकाल की 5,7 या 9वीं रात्रि में से किसी एक रात्रि का शुभ मुहूर्त पसंद करना चाहिए।
कृष्णपक्ष के दिनों में गर्भ रहे तो पुत्र व शुक्लपक्ष में गर्भ रहे तो पुत्री पैदा होने की सम्भावना होती है।
रात्रि के शुभ समय में से भी प्रथम 15 व अंतिम 15 मिनट का त्याग करके बीच का समय गर्भाधान के लिए निश्चित करें।
गर्भाधान हेतु सप्ताह के 7 दिनों की रात्रियों के शुभ समय इस प्रकार हैं-क
रविवार – 8 से 9 और 9.30 से 3.00
सोमवार – 10.30 से 12.00 और 1.30 से 3.00
मंगलवार – 7.30 से 9 और 10,30 से 1.30
बुधवार – 7.30 से 10.00 और 3.00 से 4.00
गुरुवार 12.00 से 1.30
शुक्रवार – 9.00 से 10.30 और 12.00 से 3.00
शनिवार – 9.00 से 12.00
गर्भधारण के पूर्व कर्तव्यः
रात्रि के समय कम-से-कम तीन दिन पूर्व निश्चित कर लेना चाहिए। निश्चित रात्रि में संध्या होने से पूर्व पति-पत्नी को स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहन कर सदगुरू व इष्टदेवता की पूजा करनी चाहिए।
गर्भाधान एक प्रकार का यज्ञ है। इसलिए इस समय सतत यज्ञ की भावना रखनी चाहिए। विलास की दृष्टि नहीं रखनी चाहिए।
दम्पत्ति अपनी चित्तवृत्तियों को परमात्मा में स्थिर करके उत्तम आत्माओं का आवाहन करते हुए प्रार्थना करेः 'हे ब्रह्माण्ड में विचरण कर रही सूक्ष्म रूपधारी पवित्र आत्माओ ! हम दोनों आपको प्रार्थना कर रहे हैं कि हमारे घर, जीवन व देश को पवित्र तथा उन्नत करने के लिए आप हमारे यहाँ जन्म धारण करके हमें कृतार्थ करें। हम दोनों अपने शरीर, मन, प्राण व बुद्धि को आपके योग्य बनायेंगे।'
पुरुष दायें पैर से स्त्री से पहले शय्या पर आरोहण करे और स्त्री बायें पैर से पति के दक्षिण पार्श्व में शय्या पर चढ़े। तत्पश्चात शय्या पर निम्निलिखित मंत्र पढ़ना चाहिएः
अहिरसि आयुरसि सर्वतः प्रतिष्ठासि धाता
त्वां दधातु विधाता त्वां दधातु ब्रह्मवर्चसा भवेति।
ब्रह्मा बृहस्पतिर्विष्णुः सोम सूर्यस्तथाऽश्विनौ।
भगोऽथ मित्रावरूणौ वीरं ददतु मे सुतम्।।
हे गर्भ ! तुम सूर्य के समान हो। तुम मेरी आयु हो, तुम सब प्रकार से मेरी प्रतिष्ठा हो। धाता (सबके पोषक ईश्वर) तुम्हारी रक्षा करें, विधाता (विश्व के निर्माता ब्रह्मा) तुम्हारी रक्षा करें। तुम ब्रह्मतेज से युक्त होओ।
ब्रह्मा, बृहस्पति, विष्णु, सोम, सूर्य, अश्विनीकुमार और मित्रावरूण जो दिव्य शक्तिरूप हैं, वे मुझे वीर पुत्र प्रदान करें।
(चरक संहिता, शारीरस्थानः 8.8)
दम्पत्ति गर्भ के विषय मे मन लगाकर रहें। इससे तीनों दोष अपने-अपने स्थानों में रहने से स्त्री बीज को ग्रहण करती है। विधिपूर्वक गर्भाधारण करने से इच्छानुकूल फल प्राप्त होता है।
No comments:
Post a Comment
All the postings of mine in this whole forum can be the same with anyone in the world of the internet. Am just doing a favor for our forum users to avoid searching everywhere. I am trying to give all interesting informations about Finance, Culture, Herbals, Ayurveda, phycology, Sales, Marketing, Communication, Mythology, Quotations, etc. Plz mail me your requirement - amit.knp@rediffmail.com