ब्रह्माण्ड ताल और लय से रचा गया है। इसके संचालन में एक सुक्ष्म ध्वनि होती है। यह ध्वनि एक शक्तिशाली उर्जा है। पंचमहाभूत इस निसर्ग में व्याप्त है, उसीसे मानवीय शरीर बना हुआ है। इससे मानवीय आत्मतत्व ईश्वरीय परतत्व के साथ एकरूप होता है। ध्वनि अर्थात नाद को ब्रह्म कहते है, यह नाद ब्रह्म भगवती सरस्वती के आशीर्वाद से संपन्न होने वाली कला है। जब यह ध्वनि भिन्न-भिन्न स्वरों से स्वरबद्ध होती है तब वह अलग-अलग ताल और राग में निबद्ध हो जाती है। संगीत के ताल और राग मानवीय मनोवस्था का परिवर्तन करने में सक्षम होती है। उसके साथ शारीरिक परिवर्तन भी होते है। इसलिए संगीत से प्रवाहित होनेवाली ध्वनि ही सांगीतिक उपचार के रूप में पहचानी जाती है।
हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत गायक के शरीर और मन को प्रभावित करता है। उसी प्रकार श्रोताओं पर भी उसका प्रभाव पड़ता है। संगीत की शिक्षा ग्रहण करने से हमारे मन पर अच्छा प्रभाव होता है। इसी के द्वारा निसर्ग उपचार भी किया जा सकता है। अच्छा संगीत हमको शक्ति प्रदान करता है, शरीर में स्फूर्ति उत्पन्न करता है तथा आनंद और शांति की अनुभूति होती है। मनुष्य शरीर के प्रत्येक कण-कण में शक्ति का संचार रहता है जो संगीत सुनने के बाद मानसिक शांति प्रदान करता है। विशिष्ट प्रकार का संगीत विशिष्ट समय पर सुनने से ऐसा निर्देशित हुआ है की यह स्वस्थ शरीर रखने में मददगार होता है। ऐसा वैज्ञानिक रूप से सिद्ध किया गया है की शास्त्रीय संगीत से पीयूषिका – ग्रंथि उधिपित्त होती है जो अंतर्गत स्वरुप में शारीरिक संरचना और रक्त प्रवाह को प्रभावित करता है। आधुनिक चिकित्सा शास्त्र इस बात को स्वीकार करता है की ध्वनि तीव्र गति से मानवीय शरीर में प्रवेश कर सकती है और इसका उपयोग सातत्य से किया गया तो वह आधुनिक अल्ट्रा साउंड का कार्य भी करने में समर्थ है। स्वर वातावरण को कैसे प्रभावित करते है इसका उदाहरण सुप्रसिद्ध गायक तानसेन के गायन से दिया जा सकता है। जब उन्होंने दीप राग गाया तो अकबर के दरबार के दीपक जल उठे थे। आधुनिक चिकित्सा शास्त्र ध्वनि के इस सिद्धांत को स्वीकार करते है, इसलिए अनेक रोगों को ठीक करने के लिए इसका उपयोग करने का प्रयास किया जाता है।
पाश्चात्य देशों में संगीतीय उपचार पद्धति को स्वीकार गया है। अमेरिका के अनेक उपचार केन्द्रों पर उच्चरक्तचाप को ठीक करने के लिए गोरख कल्याण राग का प्रयोग किया जाता है। चेन्नई के राग रिसर्च सेंटर ने भारतीय शास्त्रीय संगीत के राग और उनका उपचार संगीत के माध्यम से कैसे किया जा सकता है इसका अभ्यास किया है। इस अध्ययन से यह स्पष्ट हो रहा है कि भारतीय शास्त्रीय संगीत अपचन, गठिया, उच्च रक्तचाप, अस्थमा, पुरानी सिरदर्द, कैंसर आदि रोगों के उपचार में लाभकारी स्थापित हुआ है। इसके माध्यम से किसी निश्चित राग से निश्चित रोग को ठीक किया जा सकता है यह बताया गया है। जैसे—
- टी.बी के लिए राग मेघमल्हार
- पुरानी सिरदर्द के लिए राग दरबारी कान्हड़ा और जैजैवंती
- उच्च रक्तचाप के लिए राग गोरख कल्याण, भीमपलासी और पुरिया
- अवसाद के लिए राग नटनारायण
- लकवे के लिए राग जैजैवंती
- त्वचा रोग के लिए राग आसावरी।
महान संगीतज्ञ पंडित विश्वमोहन भट्ट कहते है कि “पाश्चात्य देशों के श्रोता इस बात का आश्चर्य करते है कि भारतीय शास्त्रीय संगीत के गायक किसी भी प्रकार के नोटेशन अपने सामने न रखकर प्रस्तुति देते है। उनके स्वर भावनाओं से जुड़े होने के कारण श्रोताओं के मानसिक संवेदनाओं को प्रभावित करते है। इसलिए उन्हें स्वरों से ईश्वरीय आनंद कि अनुभूति होती है। इससे स्पष्ट होता है कि भारतीय शास्त्रीय संगीत मानवीय मन और शरीर दोनों को ही स्वस्थ करने में सक्षम है।