July 06, 2012

संस्कृति - संगीत और ज्योतिष


प्राचीन भारत में तीन शास्त्रों को महत्वपूर्ण माना जाता था। वह तीन शास्त्र है भारतीय ज्योतिष अर्थात् गणित, भारतीय वैदिक शास्त्र (आयुर्वेद) और भारतीय संगीत अर्थात् “नाद योग”। मानवीय काल के इतिहास को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि जबसे मनुष्य में जागृति आई तब से यह तीनों शास्त्र मनुष्य के विकास में अग्रेसर रहे है।
ऋग्वेद में हजारों वर्ष पूर्व के नक्षत्रों की दर्शनी का वर्णन मिलता है। भारतीय चिंतको ने गृह तारे व नक्षत्रो की स्थिति, उनके भ्रमण और उसके कारण सृष्टि पर होने वाले परिणाम परिवर्तन का सूक्ष्म अध्ययन किया तथा उनके पारस्चरिक सम्बन्ध को अत्यंत शास्त्र शुद्ध एवं सूत्रबद्ध करके अपने ग्रंथो में समाविष्ट किया।
आकाश में भ्रमण करने वाले गृह अपनी गति का भ्रमण करते समय विशिष्ट प्रकार की ध्वनि का निर्माण करते है और उन ध्वनियों के मिश्रण से संगीत की निर्मिती होती है। ऐसा प्राचीन विचारकों का मत है। इसमें प्रमुखता से पायथागोरस का उल्लेख कर सकते है। उन्होंने भारत तथा अन्य देशों का भ्रमण करके निरुपित किया कि प्रत्येक गृह, उपग्रह, नक्षत्र और तारा भ्रमण करते समय ध्वनि उत्पन्न करता है तथा उन ध्वनियों के मिलने पर एक प्रकार का संगीत निर्मित होता है। यह नक्षत्र संगीत अथवा नक्षत्र नाद मनुष्य के जन्म के समय उसके मन या चित्त पर अंकित हो जाता है, वस्तुतः यह उसका जीवन संगीत ही होता है। यह सुसंवादी होने पर मनुष्य का जीवन सुखमय होता है तथा विसंवादी होने पर दुखी रहता है।
१९५० के आसपास “वैश्विक रसायन शास्त्र” नामक शास्त्र का उदय हुआ। इस शास्त्र का कथन है कि यह संपूर्ण विश्व एक पूर्ण शरीर है, इसका कोई भी अंग भिन्न नहीं है। गृह, तारे और नक्षत्रों से पृथ्वी के अणु परमाणु तक प्रभावित होते है। इससे यह स्पष्ट होता है कि आकाश में व्याप्त गृह-नक्षत्र का नाद संगीत भी पृथ्वी के अणु-परमाणु को प्रभावित करता है। इस निष्कर्ष पर पहुच सकते है कि ज्योतिष और संगीत दोनों पूरक है।
संगीत में सात स्वर है “सा रे ग म प ध नि” किन्तु तार सप्तक के “सां” को लिए बिना पूर्णता नहीं आती है। यह अंतिम “सां” आठवां स्वर नहीं है अपितु प्रथम “सा” की पुनरावृत्ति है। स्वर सात ही है। लेकिन इन स्वरों के कोमल और तीव्र ऐसे भेद होते है। ‘सा’ और ‘प’ में भेद नहीं होते इसलिए इनको अचल स्वर कहते है। “रे, ग, ध, नि” के कोमल और शुद्ध ये दो भेद होते है। इस प्रकार हमारे संगीत में कुल १२ स्वर होते है।
इसी प्रकार यदि हम ज्योतिष शास्त्र की चर्चा करे तो कुल गृह ९ है किन्तु प्रत्यक्ष गृह ७ ही है—रवि, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि। राहू और केतु यह केवल बिंदु है। इनका स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। रवि और चन्द्र को छोड़कर शेष सभी ग्रहों को दो-दो राशियों का स्वामी माना गया है। रवि तथा चन्द्र को अत्यंत महत्वपूर्ण गृह माना गया है। रवि मुख्य गृह है इसी दृष्टिकोण से यदि संगीत के विषय में देखा जाये तो ‘सा’ अथवा षड्ज को सभी स्वरों का पिता माना गया है। षड्ज (सा) एक मात्र स्वर है जो अन्य छः स्वरों का जन्म दाता भी कहा गया है क्योंकि उसी के आधार पर अन्य स्वरों की स्थिति तय होती है। इसलिए यह स्वर षड्ज कहलाता है और रवि तथा षड्ज की तुलना की जाती है।
षड्ज के समान ही महत्वपूर्ण स्वर पंचम अर्थात् ‘प’। इस स्वर में भी कोमल और तीव्र भेद नहीं होते। रवि के बाद का महत्वपूर्ण गृह है चन्द्र उसकी राशी कर्क निर्धारित की गयी है। पंचम स्वर का स्वामी चन्द्र तथा उसी क्रम में पंचम स्वर की कर्क राशी होगी।
अब अन्य स्वरों का सम्बन्ध देखते है। ऋषभ ‘रे’ स्वर ‘सा’ के निकट है। सा का स्वामी रवि है, इसलिए रे का स्वामी बुध ठहरता है। इसके बाद ‘ग’ स्वर आता है। बुध के बाद का गृह शुक्र है अर्थात् ‘ग’ का स्वामी शुक्र हुआ। अब ‘म’ अर्थात् इसका स्वामी मंगल है। इसके बाद ‘प’ का स्वामी चन्द्र पहले ही निश्चित हो चूका है। ‘प’ के बाद ‘ध’ आता है इस स्वर का स्वामी गुरु है। ‘नि’ अर्थात् निषाद ‘सा’ से सर्वाधिक अंतराल पर है और सूर्य भी शनि से सर्वाधिक दूरी पर स्थित है, इसलिए ‘नि’ स्वर का स्वामी शनि हुआ।
उपरोक्त्त सातों गृह और उनके सात स्वर इस प्रकार है—
स्वरग्रह
सारवि
रेबुध
शुक्र
मंगल
चन्द्र
गुरु
निशनि
सात ग्रहों में से रवि और चन्द्र को छोड़कर शेष पांच ग्रहों में प्रत्येक को दो राशी का स्वामित्व दिया गया है। उसी प्रकार सात स्वरों में से ‘सा’ और ‘प’ को छोड़कर शेष पांच स्वरों में से प्रत्येक शुद्ध एवं कोमल तीव्र ये दो भेद होते है। इसी आधार पर यह ग्रह और इनकी राशियाँ किस स्वर से सम्बंधित है यह दर्शाया गया है—
ग्रहराशिस्वर
रविसिंहसा
चन्द्रकर्क
मंगलमेष
वृश्चिक
म (शुद्ध)
म (तीव्र)
बुधमिथुन
कन्या
रे (शुद्ध)
रे (कोमल)
गुरुधनु
मीन
ध (शुद्ध)
ध (कोमल)
शुक्रवृषभ
तुला
ग (शुद्ध)
ग (कोमल)
शनिमकर
कुम्भ
नि (शुद्ध)
नि (कोमल)
इस प्रकार स्वर, राशि, ग्रह उनके तत्व तथा उनके सम्बन्ध का स्पष्टीकरण हुआ

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