*दुल्हन ने विदाई के वक़्त शादी को किया नामंजूर ‼* आंखों में आसूं आ जाएंगे बड़े ध्यान से पढ़ना
*(कहानी आपको सोचने पर विवश करेगी।)*
*शादी के बाद विदाई का समय था,*
*नेहा अपनी माँ से मिलने के बाद अपने पिता से लिपट कर रो रही थीं।*
*वहाँ मौजूद सब लोगों की आंखें नम थीं।*
*नेहा ने घूँघट निकाला हुआ था,*
*वह अपनी छोटी बहन के साथ सजाई गयी गाड़ी के नज़दीक आ गयी थी।*
*दूल्हा अविनाश अपने खास मित्र विकास के साथ बातें कर रहा था।*
*विकास -'यार अविनाश...*
*सबसे पहले घर पहुंचते ही होटल अमृतबाग चलकर बढ़िया खाना खाएंगे...*
*यहाँ तेरी ससुराल में खाने का मज़ा नहीं आया।*
*तभी पास में खड़ा अविनाश का छोटा भाई राकेश बोला*
*हा यार..पनीर कुछ ठीक नहीं था...*
*और रस मलाई में रस ही नहीं था।*
*और वह ही ही ही कर जोर जोर से हंसने लगा।*
*अविनाश भी पीछे नही रहा*
*अरे हम लोग अमृतबाग चलेंगे, जो खाना है खा लेना...*
*मुझे भी यहाँ खाने में मज़ा नहीं आया..रोटियां भी गर्म नहीं थी...।*
*अपने पति के मुँह से यह शब्द सुनते ही नेहा जो घूँघट में गाड़ी में बैठने ही जा रही थी,*
*वापस मुड़ी, गाड़ी की फाटक को जोर से बन्द किया...*
*घूँघट हटा कर अपने पापा के पास पहुंची...।*
*अपने पापा का हाथ अपने हाथ में लिया..*
*"मैं ससुराल नहीं जा रही पिताजी..."*
*मुझे यह शादी मंजूर नहीं।*
*यह शब्द उसने इतनी जोर से कहे कि सब लोग हक्के बक्के रह गए...*
*सब नज़दीक आ गए।*
*नेहा के ससुराल वालों पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा...*
*मामला क्या था यह किसी की समझ में नहीं आ रहा था।*
*तभी नेहा के ससुर राधेश्यामजी ने आगे बढ़कर नेहा से पूछा --*
*"लेकिन बात क्या है बहू ?"*
*शादी हो गयी है...*
*विदाई का समय है अचानक क्या हुआ कि तुम शादी को नामंजूर कर रही हो ?*
*अविनाश की तो मानो दुनिया लूटने जा रही थी...*
*"वह भी नेहा के पास आ गया"*
*अविनाश के दोस्त भी।*
*सब लोग जानना चाहते थे कि आखिर एन वक़्त पर क्या हुआ कि दुल्हन ससुराल जाने से मना कर रही है।*
*नेहा ने अपने पिता दयाशंकरजी का हाथ पकड़ रखा था...*
*नेहा ने अपने ससुर से कहा* *"बाबूजी मेरे माता पिता ने अपने सपनों को मारकर हम बहनों को पढ़ाया लिखाया व काबिल बनाया है।"*
*आप जानते है एक बाप केलिए बेटी क्या मायने रखती है ??*
*आप व आपका बेटा नहीं जान सकते क्योंकि आपके कोई बेटी नहीं है।*
*नेहा रोती हुई बोले जा रही थी-*
*आप जानते है मेरी शादी के लिए व शादी में बारातियों की आवाभगत में कोई कमी न रह जाये इसलिए मेरे पिताजी पिछले एक साल से रात को 2-3 बजे तक जागकर मेरी माँ के साथ योजना बनाते थे...*
*खाने में क्या बनेगा...*
*रसोइया कौन होगा...*
*पिछले एक साल में मेरी माँ ने नई साड़ी नही खरीदी क्योकि मेरी शादी में कमी न रह जाये...*
*दुनिया को दिखाने केलिए अपनी बहन की साड़ी पहन कर मेरी माँ खड़ी है...*
*मेरे पिता की इस डेढ़ सौ रुपये की नई शर्ट के पीछे बनियान में सौ छेद है....*
*"मेरे माता पिता ने कितने सपनों को मारा होगा..."*
*न अच्छा खाया न अच्छा पीया...*
*बस एक ही ख्वाहिश थी कि मेरी शादी में कोई कमी न रह जाये...*
*आपके पुत्र को रोटी ठंडी लगी!!!*
*उनके दोस्तों को पनीर में गड़बड़ लगी व मेरे देवर को रस मलाई में रस नहीं मिला...*
*इनका खिलखिलाकर हँसना मेरे पिता के अभिमान को ठेस पहुंचाने के समान है...।*
*नेहा हांफ रही थी...।*
*नेहा के पिता ने रोते हुए कहा* *लेकिन बेटी इतनी छोटी सी बात..।*
*नेहा ने उनकी बात बीच मे काटी*
*यह छोटी सी बात नहीं है पिताजी...*
*मेरे पति को मेरे पिता की इज्जत नहीं...*
*रोटी क्या आपने बनाई !*
*रस मलाई ... पनीर यह सब केटर्स का काम है...*
*आपने दिल खोलकर व हैसियत से बढ़कर खर्च किया है,*
*कुछ कमी रही तो वह केटर्स की तरफ से...*
*आप तो अपने दिल का टुकड़ा अपनी गुड़िया रानी को विदा कर रहे है ???*
*आप कितनी रात रोयेंगे क्या मुझे पता नहीं...*
*माँ कभी मेरे बिना घर से बाहर नही निकली...*
*कल से वह बाज़ार अकेली जाएगी...*
*जा पाएगी ?*
*जो लोग पत्नी या बहू लेने आये हैं वह खाने में कमियां निकाल रहे हैं...*
*मुझमे कोई कमी आपने नहीं रखी,*
*यह बात इनकी समझ में नही आई ??*
*दयाशंकर जी ने नेहा के सर पर हाथ फिराया*
*अरे पगली... बात का बतंगड़ बना रही है...*
*मुझे तुझ पर गर्व है कि तू मेरी बेटी है लेकिन बेटा इन्हें माफ कर दे....*
*तुझे मेरी कसम, शांत हो जा।*
*तभी अविनाश ने आकर दयाशंकर जी के हाथ पकड़ लिए*
*"मुझे माफ़ कर दीजिए बाबूजी..."*
*मुझसे गलती हो गयी...*
*मैं ...मैं उसका गला बैठ गया था..*
*रो पड़ा था वह।*
*तभी राधेश्यामजी ने आगे बढ़कर नेहा के सर पर हाथ रखा*
*मैं तो बहू लेने आया था लेकिन ईश्वर बहुत कृपालु है*
*उसने मुझे बेटी दे दी...*
*व बेटी की अहमियत भी समझा दी...*
*मुझे ईश्वर ने बेटी नहीं दी शायद इसलिए कि तेरे जैसी बेटी मेरी नसीब में थी...*
*अब बेटी इन नालायकों को माफ कर दें...*
*मैं हाथ जोड़ता हूँ तेरे सामने...*
*"मेरी बेटी नेहा मुझे लौटा दे।"*
*और दयाशंकर जी ने सचमुच हाथ जोड़ दिए थे व नेहा के सामने सर झुका दिया।*
*नेहा ने अपने ससुर के हाथ पकड़ लिए...'बाबूजी।*
*राधेश्यामजी ने कहा*
*"बाबूजी नहीं..पिताजी।"*
*नेहा भी भावुक होकर राधेश्याम जी से लिपट गयी थी।*
*दयाशंकर जी ऐसी बेटी पाकर गौरव की अनुभूति कर रहे थे।*
*नेहा अब राजी खुशी अपने ससुराल रवाना हो गयी थीं...*
*पीछे छोड़ गयी थी आंसुओं से भीगी अपने माँ पिताजी की आंखें,*
*अपने पिता का वह आँगन जिस पर कल तक वह चहकती थी..*
*आज से इस आँगन की चिड़िया उड़ गई थी किसी दूर प्रदेश में..*
*और किसी पेड़ पर अपना घरौंदा बनाएगी।*
*यह कहानी लिखते वक्त मैं उस मूर्ख व्यक्ति के बारे में सोच रहा था जिसने बेटी को सर्वप्रथम "पराया धन" की संज्ञा दी होगी।*
*बेटी माँ बाप का अभिमान व अनमोल धन होता है*
*"पराया धन नहीं।"*
*कभी हम शादी में जाये तो ध्यान रखें कि पनीर की सब्ज़ी बनाने में एक पिता ने कितना कुछ खोया होगा व कितना खोएगा...*
*अपना आँगन उजाड़ कर दूसरे के आंगन को महकाना कोई छोटी बात नहीं।*
*खाने में कमियां न निकाले... ।*
*बेटी की शादी में बनने वाले पनीर, रोटी या रसमलाई पकने में उतना समय लगता है जितनी लड़की की उम्र होती है।*
*यह भोजन सिर्फ भोजन नहीं,*
*पिता के अरमान व जीवन का सपना होता है।*
*बेटी की शादी में बनने वाले पकवानों में स्वाद कई सपनों के कुचलने के बाद आता है व उन्हें पकने में सालों लगते है*
*बेटी की शादी में खाने की कद्र करें।* 🙏
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October 10, 2019
Story- Emotional Story Daughter and Food
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