समझदार की मौत!!!
बादशाह अकबर के दरबार में जब तानसेन राग छेड देते तब रागों के मर्मज्ञ और रसिक लोग तो झूमते ही थे,बादशाह की देखादेखी वे लोग भी वाह-वाह कह कर जोर-जोर से सिर हिलाते थे ,जो जानते ही नहीं थे कि राग क्या होता है!उनकी रुचि भी नहीं थी,खुशामद का भाव था!रसिक की पहचान कैसे हो?
बादशाह अकबर के दरबार में जब तानसेन राग छेड देते तब रागों के मर्मज्ञ और रसिक लोग तो झूमते ही थे,बादशाह की देखादेखी वे लोग भी वाह-वाह कह कर जोर-जोर से सिर हिलाते थे ,जो जानते ही नहीं थे कि राग क्या होता है!उनकी रुचि भी नहीं थी,खुशामद का भाव था!रसिक की पहचान कैसे हो?
बादशाह का हुक्म हुआ कि तानसेन के गायन के समय जो सिर हिलावेगा ,उसका सिर कलम कर दिया जायेगा।
नंगी तलवार ले कर सैनिक खडे हो गये!
जब तानसेन ने राग छेडा तब डरके मारे वे लोग तो तन कर मूर्ति की तरह बैठे रहे, जो जानते ही नहीं थे कि संगीत क्या होता है।
किन्तु जब तानसेन ने राग अलापना शुरू किया,वातावरण में स्वर लहराने लगा तो जो रसिक थे, वे रस में डूब कर आपा भूल गये।झूमने लगे।
सिर कटे तो कटे ,पर रसिकों का सिर न हिले यह कैसे संभव था?
कहते हैं न, समझदार की मौत!!!
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