February 26, 2016

संस्कृति ?????


संस्कृति किताबों में नहीं रहती , न वह इतिहास का विषय है ।
संस्कृति केवल नाचगान और सांस्कृतिक- कार्यक्रमों का नाम नहीं है । 
संस्कृति जीवन -शैली है और विश्वबोध है ।
हमारी आचारप्रणाली , विचारप्रणाली , विश्वासप्रणाली ,अभिव्यक्तिप्रणाली और सौन्दर्यबोध का नाम संस्कृति है । 
इसमें कोई सन्देह नहीं कि संस्कृति में निरन्तरता का सूत्र है , जिसे आप परंपरा कह सकते हैं ।
यह अविच्छिन्नता जीवन की अविच्छिन्नता है ।
संस्कृति को जीवन से विच्छिन्न करके नहीं देखा जा सकता ।
संस्कृति जीवन के साथ चलती है , जीवन के प्रवाह में बहती है ।
संस्कृति जीवन में रहती है , जीवन को गति देती है, जीवन को प्रेरित और निर्देशित करती है ,जीवन-व्यवहार को नियमित करती है ।
मनुष्य की युगयात्रा आज एक ऐसे पडाव पर आ पंहुची है , जहां संसार की विभिन्न संस्कृतियों का संवाद हो रहा है !


संस्कृति बांधती नहीं है,मुक्त करती है।
धर्म बांधता नहीं है,मुक्त करता है क्योंकि वहां तेरा-मेरा नहीं है,वहां सर्व है।
धर्म का मैकेनिज्म कहें या धर्मसंस्था कहें,या महन्तई कहें ,या धार्मिकसंगठन कहें,वह बांधता है!
क्योंकि वहां तेरा- मेरा आजाता है !!
!बांधनेवाला तत्व तेरा- मेरा है, धर्म नहीं!!

No comments:

Post a Comment

All the postings of mine in this whole forum can be the same with anyone in the world of the internet. Am just doing a favor for our forum users to avoid searching everywhere. I am trying to give all interesting informations about Finance, Culture, Herbals, Ayurveda, phycology, Sales, Marketing, Communication, Mythology, Quotations, etc. Plz mail me your requirement - amit.knp@rediffmail.com

BRAND Archetypes through lens -Indian-Brands

There has been so much already written about brand archetypes and this is certainly not one more of those articles. In fact, this is rather ...