संस्कृति किताबों में नहीं रहती , न वह इतिहास का विषय है ।
संस्कृति केवल नाचगान और सांस्कृतिक- कार्यक्रमों का नाम नहीं है ।
संस्कृति जीवन -शैली है और विश्वबोध है ।
हमारी आचारप्रणाली , विचारप्रणाली , विश्वासप्रणाली ,अभिव्यक्तिप्रणाली और सौन्दर्यबोध का नाम संस्कृति है ।
इसमें कोई सन्देह नहीं कि संस्कृति में निरन्तरता का सूत्र है , जिसे आप परंपरा कह सकते हैं ।
यह अविच्छिन्नता जीवन की अविच्छिन्नता है ।
संस्कृति को जीवन से विच्छिन्न करके नहीं देखा जा सकता ।
संस्कृति जीवन के साथ चलती है , जीवन के प्रवाह में बहती है ।
संस्कृति जीवन में रहती है , जीवन को गति देती है, जीवन को प्रेरित और निर्देशित करती है ,जीवन-व्यवहार को नियमित करती है ।
मनुष्य की युगयात्रा आज एक ऐसे पडाव पर आ पंहुची है , जहां संसार की विभिन्न संस्कृतियों का संवाद हो रहा है !
संस्कृति बांधती नहीं है,मुक्त करती है।
धर्म बांधता नहीं है,मुक्त करता है क्योंकि वहां तेरा-मेरा नहीं है,वहां सर्व है।
धर्म का मैकेनिज्म कहें या धर्मसंस्था कहें,या महन्तई कहें ,या धार्मिकसंगठन कहें,वह बांधता है!
क्योंकि वहां तेरा- मेरा आजाता है !!
!बांधनेवाला तत्व तेरा- मेरा है, धर्म नहीं!!
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