हनुमान चालीसा«««««««
इसमें 40 चौपाइयां हैं । सभी चालीसा इसी के बाद भिन्न भिन्न देवी
देवताओं के नाम पर रचे गये हैं ;
क्योंकि इसकी गुणवत्ता और व्यापक प्रचार प्रसार ने अन्यान्य उपासकों
एवं कवियों में चालीसा निर्माण की ललक जगा दी । अस्तु ।
हम यहां यह विचार कर रहे हैं कि परम हनुमद्भक्त पूज्य गोस्वामी
तुलसीदास जी महाराज ने इसमें 40 चौपाइयां ही क्यों रचीं ?
इससे अधिक या कम क्यों नहीं ?
नाम तो चौपाइयों के आधार पर हनुमान पचासा , हनुमानपैंतीसा आदि भी
रख सकते थे ।
40 संख्या को इतना अधिक महत्त्व देना निश्चित ही साभिप्राय है ।
कुछ महीने पूर्व ब्यावर में एक स्थान पर सवालाख हनुमान चालीसा का
पाठ और श्रीमद्वाल्मीकि रामायण की कथा का आयोजन 9 दिनों के लिए
रखा गया था ।
वहां हनुमान जी को कथा सुनाने का सौभाग्य मुझे ही मिला था ।
आयोजक ने मुझे चालीसा का महत्त्व बतलाने का आग्रह किया । उस
समय मारुति की कृपा से जो तथ्य प्रतीत हुए ।
उसे लिपिबद्ध कर रहा हूं । विद्वज्जन इस पर अपना परामर्श
"सिद्धस्य गतिश्चिन्तनीया" उक्ति को समक्ष रखकर अवश्य दें ।
मानवजीवन का परम लक्ष्य है --भगवद्धाम की प्राप्ति ;क्योंकि वहां जाकर
पुनः संसार में लौटना नहीं पड़ता है --
"यद् गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम" ।। --गीता,15/6,
ब्रह्मा जी के लोक तक को प्राप्त करके जीव को पुनः संसार में आकर
भटकना पड़ता है --
"आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन । --गीता,8/16,
अतः पुनरागमन से छूटने के लिए प्रत्येक जीव को ब्रह्म--भगवान् की प्राप्ति
आवश्यक है । इस के अतिरिक्त कोई मार्ग नही --
"तमेव विदित्वाऽतिमृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय"
--श्वेताश्वतर,3/8
अत एव ब्रह्मतत्त्व की प्राप्ति आवश्यक है और उसके धाम से लौटकर संसार
में पुनः भटकना भी नही पड़ता ।
वस्तुतः तत्त्वों का विभाग 3 तरह से किया गया है --
1-प्रकृति --भोग्या
2-जीव ---भोक्ता
3--ब्रह्म ---प्रेरक
--"भोक्ता भोग्यं प्रेरितारं च मत्वा सर्वं प्रोक्तं त्रिविधं ब्रह्ममेतत्"
---श्वेताश्वतरोपनिषद्,1/ 12,
जीव को ब्रह्म अर्थात् परमात्मा तक पहुंचना है ।
प्रकृति 24 तत्त्वमयी हैं --पथिवी आदि 5महाभूत + 5 शब्दादि तन्मात्रायें
+5 वाक् आदि कर्मेन्द्रियां +5 नेत्रादि ज्ञानेन्द्रियां +मन +1अहंकार
+1महत्+1अव्यक्त =24,
इसी को सांख्यकारिका में इस प्रकार परिगणित किया गया है --
"प्रकृतेर्महांस्ततोऽहंकारस ्तस्माद् गणश्च षोडशकः ।
तस्मादपि षोडशकात् पञ्चभ्यः पञ्चभूतानि ।। --22,
प्रकृति से महत्तत्त्व उससे अहंकार, पुनः सात्विक अहंकार से 11 इन्द्रियां
और तामस अहंकार से 5 तन्मात्रायें पुनः इनसे आकाशादि पञ्च महाभूतों
की उत्पत्ति होती है ।
अब जीवों को स्व स्व कर्मानुसार प्राप्त होने वाले लोक हैं --14,
तल+वितल +सुतल+तलातल+रसातल +महातल+पाताल=7
भूः+भुवः+स्वः+महः+जनः+तपः+ सत्य=7,
अब 24+14=38, हुआ।
अब इस 38 संख्या में परिगणित प्रकृति के बाद आया जीव ।
अर्थात् 38(प्रकृति)+1(जीव) =39,
अब जीव के बाद है परमात्मा अर्थात् 39वां जीव +1परमात्मा =40,
इस 40वें तत्त्व परमात्मा को दृष्टि में रखकर ही गोस्वामी जी ने इसका नाम
" हनुमान चालीसा " रखा ।
इसीलिए इसका पाठ करने वाले के लिए लिखते हैं कि वह अन्त में
भगवान् के धाम जाता है ---
"अन्तकाल रघुबर पुर जाई । "
वस्तुतः भगवद्भक्त भक्तिसुख के सम्मुख मुक्ति का भी निरादर कर देते हैं--
मुक्ति निरादर भगति लुभाने । --मानस-
सालोक्यसार्ष्टिसामीप्यसारू प्यैकत्वमप्युत ।
दीयमानं न गृह्णन्ति विना मत्सेवनं जनाः । ।
---भागवत,3/29/13,
भगवान् कहते हैं कि मेरे भक्त सालोक्य, सार्ष्टि,सामीप्य, सारूप्य और
सायुज्य इन मुक्तियों में किसी भी मुक्ति को देने पर ग्रहण नही करते ।
अत एव गोस्वामी जी चालीसा पाठ का फल लिखते हैं --
"जहां जन्म हरिभक्ति कहाई "
अर्थात् जो भक्त मुक्ति नहीं चाहते पर भक्ति ही चाहते हैं उनका निर्देश उक्त
पंक्ति से किया गया ।
भागवत में एक एक फल की प्राप्ति हेतु एक एक देवता की उपासना
बतलाकर शुकदेव जी ने कहा कि --
चाहे कामनाशून्य हो या सर्वकामनायुक्त अथवा मोक्ष की कामना हो ऐसा
उदारचेता तीव्र भक्तियोग से परमात्मा की उपासना करे --
"अकामः सर्वकामो वा मोक्षकाम उदारधीः ।
तीव्रेणभक्तियोगेन यजेत पुरुषं परम् । । "
---भागवत,2/3/10,
इसी तथ्य को चालीसा में --
"हनुमत सेइ सर्व सुख करई "
इस वाक्य से दर्शाया गया ।
अतः इसका "हनुमान चालीसा" नामकरण अनेक रहस्यों को ध्यान में
रखकर पूज्यपाद गोस्वामी जी ने किया है ।
»»»»»»»»»»»जय जय पवनकुमार «««««««««««
»»»»»»»»»»जय श्रीराम«««««««««««
»»»»»»»»»»»आचार्य सियारामदास नैयायिक«««««««««««
इसमें 40 चौपाइयां हैं । सभी चालीसा इसी के बाद भिन्न भिन्न देवी
देवताओं के नाम पर रचे गये हैं ;
क्योंकि इसकी गुणवत्ता और व्यापक प्रचार प्रसार ने अन्यान्य उपासकों
एवं कवियों में चालीसा निर्माण की ललक जगा दी । अस्तु ।
हम यहां यह विचार कर रहे हैं कि परम हनुमद्भक्त पूज्य गोस्वामी
तुलसीदास जी महाराज ने इसमें 40 चौपाइयां ही क्यों रचीं ?
इससे अधिक या कम क्यों नहीं ?
नाम तो चौपाइयों के आधार पर हनुमान पचासा , हनुमानपैंतीसा आदि भी
रख सकते थे ।
40 संख्या को इतना अधिक महत्त्व देना निश्चित ही साभिप्राय है ।
कुछ महीने पूर्व ब्यावर में एक स्थान पर सवालाख हनुमान चालीसा का
पाठ और श्रीमद्वाल्मीकि रामायण की कथा का आयोजन 9 दिनों के लिए
रखा गया था ।
वहां हनुमान जी को कथा सुनाने का सौभाग्य मुझे ही मिला था ।
आयोजक ने मुझे चालीसा का महत्त्व बतलाने का आग्रह किया । उस
समय मारुति की कृपा से जो तथ्य प्रतीत हुए ।
उसे लिपिबद्ध कर रहा हूं । विद्वज्जन इस पर अपना परामर्श
"सिद्धस्य गतिश्चिन्तनीया" उक्ति को समक्ष रखकर अवश्य दें ।
मानवजीवन का परम लक्ष्य है --भगवद्धाम की प्राप्ति ;क्योंकि वहां जाकर
पुनः संसार में लौटना नहीं पड़ता है --
"यद् गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम" ।। --गीता,15/6,
ब्रह्मा जी के लोक तक को प्राप्त करके जीव को पुनः संसार में आकर
भटकना पड़ता है --
"आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन । --गीता,8/16,
अतः पुनरागमन से छूटने के लिए प्रत्येक जीव को ब्रह्म--भगवान् की प्राप्ति
आवश्यक है । इस के अतिरिक्त कोई मार्ग नही --
"तमेव विदित्वाऽतिमृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय"
--श्वेताश्वतर,3/8
अत एव ब्रह्मतत्त्व की प्राप्ति आवश्यक है और उसके धाम से लौटकर संसार
में पुनः भटकना भी नही पड़ता ।
वस्तुतः तत्त्वों का विभाग 3 तरह से किया गया है --
1-प्रकृति --भोग्या
2-जीव ---भोक्ता
3--ब्रह्म ---प्रेरक
--"भोक्ता भोग्यं प्रेरितारं च मत्वा सर्वं प्रोक्तं त्रिविधं ब्रह्ममेतत्"
---श्वेताश्वतरोपनिषद्,1/
जीव को ब्रह्म अर्थात् परमात्मा तक पहुंचना है ।
प्रकृति 24 तत्त्वमयी हैं --पथिवी आदि 5महाभूत + 5 शब्दादि तन्मात्रायें
+5 वाक् आदि कर्मेन्द्रियां +5 नेत्रादि ज्ञानेन्द्रियां +मन +1अहंकार
+1महत्+1अव्यक्त =24,
इसी को सांख्यकारिका में इस प्रकार परिगणित किया गया है --
"प्रकृतेर्महांस्ततोऽहंकारस
तस्मादपि षोडशकात् पञ्चभ्यः पञ्चभूतानि ।। --22,
प्रकृति से महत्तत्त्व उससे अहंकार, पुनः सात्विक अहंकार से 11 इन्द्रियां
और तामस अहंकार से 5 तन्मात्रायें पुनः इनसे आकाशादि पञ्च महाभूतों
की उत्पत्ति होती है ।
अब जीवों को स्व स्व कर्मानुसार प्राप्त होने वाले लोक हैं --14,
तल+वितल +सुतल+तलातल+रसातल +महातल+पाताल=7
भूः+भुवः+स्वः+महः+जनः+तपः+
अब 24+14=38, हुआ।
अब इस 38 संख्या में परिगणित प्रकृति के बाद आया जीव ।
अर्थात् 38(प्रकृति)+1(जीव) =39,
अब जीव के बाद है परमात्मा अर्थात् 39वां जीव +1परमात्मा =40,
इस 40वें तत्त्व परमात्मा को दृष्टि में रखकर ही गोस्वामी जी ने इसका नाम
" हनुमान चालीसा " रखा ।
इसीलिए इसका पाठ करने वाले के लिए लिखते हैं कि वह अन्त में
भगवान् के धाम जाता है ---
"अन्तकाल रघुबर पुर जाई । "
वस्तुतः भगवद्भक्त भक्तिसुख के सम्मुख मुक्ति का भी निरादर कर देते हैं--
मुक्ति निरादर भगति लुभाने । --मानस-
सालोक्यसार्ष्टिसामीप्यसारू
दीयमानं न गृह्णन्ति विना मत्सेवनं जनाः । ।
---भागवत,3/29/13,
भगवान् कहते हैं कि मेरे भक्त सालोक्य, सार्ष्टि,सामीप्य, सारूप्य और
सायुज्य इन मुक्तियों में किसी भी मुक्ति को देने पर ग्रहण नही करते ।
अत एव गोस्वामी जी चालीसा पाठ का फल लिखते हैं --
"जहां जन्म हरिभक्ति कहाई "
अर्थात् जो भक्त मुक्ति नहीं चाहते पर भक्ति ही चाहते हैं उनका निर्देश उक्त
पंक्ति से किया गया ।
भागवत में एक एक फल की प्राप्ति हेतु एक एक देवता की उपासना
बतलाकर शुकदेव जी ने कहा कि --
चाहे कामनाशून्य हो या सर्वकामनायुक्त अथवा मोक्ष की कामना हो ऐसा
उदारचेता तीव्र भक्तियोग से परमात्मा की उपासना करे --
"अकामः सर्वकामो वा मोक्षकाम उदारधीः ।
तीव्रेणभक्तियोगेन यजेत पुरुषं परम् । । "
---भागवत,2/3/10,
इसी तथ्य को चालीसा में --
"हनुमत सेइ सर्व सुख करई "
इस वाक्य से दर्शाया गया ।
अतः इसका "हनुमान चालीसा" नामकरण अनेक रहस्यों को ध्यान में
रखकर पूज्यपाद गोस्वामी जी ने किया है ।
»»»»»»»»»»»जय जय पवनकुमार «««««««««««
»»»»»»»»»»जय श्रीराम«««««««««««
»»»»»»»»»»»आचार्य सियारामदास नैयायिक«««««««««««
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