मोक्ष्यपातं : सांप-सीढी का खेल
सांप-सीढ़ी का खेल भरत में 'मोक्ष पातं' के नाम से बच्चों को धर्म सिखाने के लिए खेलाया जाता था।
सांप सीढ़ी का खेल तेरहवीं शताब्दीे में कवि संत ज्ञान देव (ज्ञानेश्वर देव जी ; महारास्त्र ) द्वारा तैयार किया गया था इसे मूल रूप से मोक्षपट कहते थे।
जहां सीढ़ी मोक्ष का रास्ता है और सांप पाप का रास्ता है।
इस खेल की अवधारणा 13वीं सदी में कवि संत 'ज्ञानदेव' ने दी थी।
मौलिक खेल में जिन खानों में सीढ़ी मिलती थी वो थे- 12वां खाना आस्था का था, 51वां खाना विश्वास का, 57वां खाना उदारता का, 76वां ज्ञान का और 78वां खाना वैराग्य का था। और जीन खानों में सांप मिलते थे वो इस प्रकार थे- 41 वां खाना अवमानना का, 44 वां खाना अहंकार का, 49 वां खाना अश्लीलता का, 52 वां खाना चोरी का, 58 वां खाना झूठ का, 62 वां खाना शराब पीने का, 69 वां खाना उधर लेने का, 73 वां खाना हत्या का , 84 वां खाना क्रोध का, 92 वां खाना लालच का, 95 वां खाना घमंड का ,99 वां खाना वासना का हुआ करता था। 100वें खाने में पहुचने पे मोक्ष मिल जाता था।
1892 में ये खेल अंग्रेज इंग्लैंड ले गए और सांप-सीढ़ी नाम से प्रचलित किया।
पांसा (Dice):
काफी पुराने पुरातात्विक प्रमाण मिले हैं जिसमें हड़प्पा की खुदाई में कई स्थानों पर (Kalibangan, Lothal, Ropar, Alamgirpur, Desalpur and surrounding territories) Oblong (लम्बे) पांसे मिले हैं। उनमें से कुछ ईसा से 3 सदी पहले के हैं। पांसों के प्रमाण ऋग्वेद और अथर्ववेद में मिलते हैं।
शतरंज का खेल (The Game of Chess):
शतरंज के खेल का अविष्कार भारत ने किया था , इसका मौलिक नाम 'अष्ट-पदम्' था।
उसके बाद आज से 1000 साल पहले ये खेल 'चतुरंग' नाम से खेला जाने लगा और फिर 600 AD में Persians के द्वारा इसका नाम शतरंज रखा गया।
ताश का खेल (The Game of Cards):
ताश के खेल की शुरुआत भारत में हुयी थी उसका मूल नाम 'क्रीडा पत्रं' था।
पत्ते कपड़ों के बने होते थे जिन्हें गंजिफा कहा जाता था। ये एक शाही खेल था, इस मूल खेल में कई परिवर्तन होते गए और आज का 52 पत्तों वाला खेल निष्काषित हुआ।
इन महान देनों के साथ साथ वेद प्राचीन भारत की सुव्यवस्थित सभ्यता के प्रमाण भी हैं।
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