अंतर्कथा - धर्म और समय का गठबंधन
बड़े दिनों से मेरे दिमाग मैं एक बात चल रही थी की अचानक हमारे शेहर में गणेश चतुर्थी की इतनी धूम क्यूँ हो गयी?पिछले ३ वर्षों में यह परंपरा हमारे शेहर में तेजी से बड़ी और अबकी बार तो वाह वाह किया कहने!!
आज कल मंदी का दौर चल रहा हैं हर व्यवसाय ठंडा पड़ा हुआ हैं लोगों को अपने जीवन यापन के लिए मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने में कठिनाई आ रही हैं, इन सब में एक वर्ग समाज का ऐसा भी हैं जो सिर्फ और सिर्फ दाल रोटी के बारे में ही सोच पाता हैं अगर उनके ऊपर भी यह मंदी का प्रभाव पड़ा तब तो उनका जीवन यापन मुश्किल हो जायेगा !!
जब जब समाज में इस तरह की विकट स्तिथियाँ आती हैं धर्म और समय का गठबंधन उनकी रक्षा करने को आगे आ जाता हैं और वे समाज के जीवन शैली के ढांचे में मूलभूत परिवर्तन कर जीवन शैली को नया आयाम दे देते हैं इस दुनिया मैं केवल हमारा ही देश एक ऐसा देश हैं जिसके पास मंदी जैसे विषय पर लड़ने का मंत्र हैं इसी लिए आज तक हमारा देश कभी मंदी का शिकार नहीं हुआ हैं हम शिकार हुए भी तो अमेरिका जैसे देशो की नक़ल करने पर, अगर केवल हम अपनी संस्कृति का अनुसरण करते तो कभी ऐसे हालात न आते लेकिन कोई बात नहीं अगर इंसान नहीं भी मानेगा तो धर्म और समय का ताना बाना उसको मानने मैं मजबूर कर देगा
देखिये कैसे धर्म ने समय के साथ गठबंधन कर रखा हैं -
१- भारत वर्ष में कई ऐसे प्रांत हैं जहाँ कृषि योग्य भूमि नहीं हैं वहां धार्मिक स्थल बनाये गए हैं जिससे पर्यटकों की आवक से लोगों का जीवन यापन चलता रहे
२- वर्षा ऋतू के बाद खेत को दुबारा कृषि योग्य बनाने में समय लगता हैं उस दौरान उधर किसी धार्मिक स्थल में मेला आदि की परंपरा शुरू हुई ताकि लोगों का जीवन चलता रहे और समय के साथ कृषि का उत्पादन भी शुरू किया जा सके
३- कई ऐसे प्रान्त हैं जो नदी के किनारे बसे हैं बाड़ आदि की स्तिथि हमेशा बनी रहती हैं जिससे कृषि योग्य भूमि की कमी बनी रहती हैं वहां पे धार्मिक कर्म कांड के स्थल स्थापित किये गए हैं ताकि लोगों की जीविका चलायी जा सके
४- कुछ उदाहरण -
बिहार में बोधगया हिन्दू धर्म का पवित्र तीर्थ स्थल हैं जहाँ पे पितर्पक्ष के दौरान पिंड दान आदि कर्म काण्ड संपन्न किये जाते हैं यह फल्गु नदी के किनारे बसा हैं रामायण में इस नदी को निरंजना कहा गया हैं वर्षा ऋतू के पश्चात पितार्पक्ष माह यहाँ आय का मुख्या श्रोत होता हैं
मथुरा वृन्दावन यमुना नदी के किनारे हैं जो कृष्ण जी की जन्मस्थली हैं वर्ष भर पर्यटकों से हरा भरा रहता हैं यहाँ का मौसम मैं अत्यधिक गर्मी और सर्दी का प्रभाव रहता हैं और यहाँ की मिटटी सुखी हैं
कृष्ण और राधा के मंदिर एवं दर्शानिये स्थल पर्यटकों को आकर्षित करतें हैं और यहीं लोगों की आये का साधन भी हैं
वाराणसी जिसे काशी नाम से भी जाना जाता हैं यह बोद्ध धर्म जैन धर्म और हिन्दू धर्मं के पवित्र स्थलों मैं से एक हैं वाराणसी शहर नदियों गंगा और वरुण के एक उच्च भूमि पर स्थित है और सहायक नदियों और नहरों के अभाव के कारन मुख्य भूमि सतत और अपेक्षाकृत सूखी है.
वाराणसी शेहर को दो संगम के बीच स्थित होना कहा जाता है: एक गंगा और वरुण के, और गंगा और वरुण इन दोनों के संगम के बीच दूरी लगभग 2.5 मील हैं , और धार्मिक हिंदुओं के बीच एक गोल यात्रा से इसका संबंध हैं जिसे एक पंच - कोसी यात्रा (एक पाँच (8 किमी मील) यात्रा) कहा जाता हैं
इन भोगोलिक जटिलताओं की वजह से यहाँ की जल्वायुं में गर्मी और सर्दी सामान्य से कहीं ज्यादा पड़ती हैं
मंदिरों के शेहर में आय का मुख्या श्रोत पर्यटक उद्योग हैं
अयोध्या, यह सरयू नदी के किनारे स्तिथि हैं
भारत के सात सबसे पवित्र शहरों में से एक हैं यहाँ का मौसम मैं अत्यधिक गर्मी और सर्दी का प्रभाव रहता हैं और यहाँ की मिटटी सुखी हैं
प्रभु श्री राम की नगरी हैं रामायण मैं इस जगह को विशेष स्थान प्राप्त हैं
अयोध्या में मनाया वर्ष भर
त्योहार का कैलेंडर इस प्रकार हैं - श्रावण झूला मेला (जुलाई - अगस्त), परिक्रमा मेला (अक्टूबर - नवंबर), राम Navmi (मार्च - अप्रैल), रथयात्रा (जून - जुलाई), सरयू स्नान (अक्टूबर - नवंबर), राम विवाह (नवंबर) शामिल, और रामायण मेला
पुरी भारत में एक तीर्थ यात्रा के रूप मैं एक पवित्र स्थान माना जाता है.पुरी मैं बहुत लंबे, व्यापक रेत समुद्र तट है. समुद्र बहुत बड़ी लहरों यहाँ पैदा करता है.
वर्ष भर मेले और त्याहारों के इस शेहर का कैलेंडर इस प्रकार हैं
(रथ यात्रा) समारोह जुलाई
चंदन यात्रा अप्रैल
Gosani यात्रा सितंबर / अक्टूबर दसहरा भी कहते हैं
साही यात्रा मार्च / अप्रैल राम नवमी से 7 दिनों के लिए
महा शिव Ratri फरवरी / मार्च में
Magha मेला जनवरी कोणार्क मैं
Harirajpur Melan मार्च
Jhamu यात्रा Kakatapur मई
मकर मेला जनवरी
ब्रह्मगिरि में राज समारोह के दौरान बाली Harachandi मेला जून
कोणार्क त्योहार - पर्यटन विभाग - Odisha सरकार - दिसंबर के 1 सप्ताह
कोणार्क संगीत एवं नृत्य महोत्सव - कोणार्क नाट्य मंडप - फरवरी
बसंत Utshav - परम्परा रघुराजपुर - फ़रवरी
पुरी पुरी समुद्र तट पर समारोह - Odisha भुबनेश्वर के होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन द्वारा आयोजित - नवंबर
Sriksetra Mohoshav, पुरी - Srikshetra Mahoshav समिति द्वारा आयोजित - अप्रैल
पुरी में Gundicha Utshav - Urreka, पुरी द्वारा आयोजित - जून
ऐसे बहुत से प्रान्त हैं जिनकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह से धार्मिक कार्यों उत्सवों मैं ही निर्भर हैं क्यूंकि इन प्रान्तों की भोगोलिक स्तिथि कृषि योग्य नहीं हैं
यह उन शहरों के नाम थे जो वर्ष भर धर्म के आशीष पर जीवन यापन करते हैं !! लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा की पर्व एवं त्यौहार ही भारतीय अर्थव्यवस्था को चलाते हैं
अब हम गणेश चतुर्थी पर लौट आते हैं मंदी के दौर में सभी वर्ग संघर्षरत से हो रहे थे सभी तरह के उद्योगों पर उत्पादन का खतरा मंडराने लगा, लोगों ने सामान खरीदना बंद क्यूंकि महंगाई उनको मारे डाल रही थी जिससे आर्थिक चक्र गड़बड़ाने लगा हैं, लोगों ने अपने खर्चों में कटोती शुरू कर दी लोगों ने अपने आपको जड़ रूप में बदलना शुरू कर दिया एक तरह से असंतोष की भावना जाग्रत होने लगी,
धर्म और समय के गठबंधन के द्वारा सहीं समय पर धार्मिक पर्व गणेश चतुर्थी का त्यौहार आया , हिन्दू धर्म में गणपति शुभ के प्रतीक हैं लोगों में उनसे शुभ की अपेक्षा हैं लोग मूर्तिकारों से गणपति की मूर्ती खरीद के लाते हैं, इस तरह से मूर्तिकारों की जीविका पटरी पर आने लगती हैं लोग भगवन को सजाने के लिए वस्त्र खरीदते हैं वस्त्र उद्योग चलने लगता हैं बिजली का सामान लाते हैं बिजली उद्योग चलने लगता हैं फल खरीदें जाते हैं कलाकारों को जागरण कीर्तन का मौका दिया जाता हैं कलाकारों का जीवनी चलने लगती हैं भगवान् के लिए लड्डू का भोग लगता हैं बेसन और बूंदी की मांग बदती हैं और बिक्री बदने लगती हैं लोग भंडारे लगाते हैं सब्जी आटा गैस तेल नमक बर्तन सब जगह मांग बदने लगती हैं लोग शास्त्र आदि की पुस्तकों की खरीदारी करते पुस्तक विक्रेताओं की दूकान चलने लगती हैं और इस तरह से आर्थिक चक्र फिर से चलने लगता हैं
हमारे देश पर्व और त्योंहार का देश हैं केवल इंसान उनको ही मनाता रहे तो आर्थिक सामाजिक और प्राकृतिक चक्र कभी नहीं बिगड़ सकता हैं
कुछ त्यौहार के नाम माह वार इस प्रकार हैं -
फ़रवरी माह में
स्नान-दानादि, मौनी अमावस्या, त्रिवेणी अमावस्या (उड़ीसा), रटन्ती कालिका पूजा (बंगाल)
स्नान-दान अमावस्या।
चन्द्रदर्शन, श्रीवल्लभाचार्य जयंती।
त्रिपुरा चतुर्थी (का.)
वसंत पंचमी, सरस्वती पूजा, वागीश्वरी ज., मत्याधार-लेखनी पूजा (बंगाल), मेला कण्वाश्रम-कोट्द्वार, रघुनाथ मन्दिर-देवप्रयाग
श्रीशीतला षष्ठी(बंगाल), देव नारायण जय.
रथसप्तमी, अचला सप्तमी, माघावाचार्या जयंती
महानन्दा नवमी, हरसू ब्रह्मादेव जयंती, सर्वोदय पखवारा
कुम्भ संक्रान्ति, माघी दशमी (मिथिला)
भैमी एकदशी (बंगाल)
प्रभु नित्यानंद जयंती
अग्युत्सव (उड़ीसा), रामचरण प्रभु जयंती
रविदास जयंती, सोन कुण्ड मेला
मेला मान-सरोवर (व्रज)
मार्च माह में
महाशिवतात्रि व्रत, वीरभद्रेश्वर-ऋषीकेश, ओणेश्वर महादेव मेला स्नान-दान श्राद्ध की अमावस्या, विश्नोई मेला
फुलरिया दोज, रामकृष्ण परमहंस जयंती, एकनाथ षष्टी
संत चतुर्थी (उड़ीसा)
गोरुपिणी षष्ठी (बंगाल)
दुर्गाष्टमी, होलाष्टक प्रारम्भ, तैलाष्टमी
खाटू श्यामजी मेला
काशी विश्वानाथ श्रृंगार दिवस
होलिका दहन, होलाष्टक समाप्त, चैतन्य महाप्रभु जयंती
होली सर्वत्र, वसन्तोत्सव।
चैत्र शक 1933 प्रारम्भ।
श्री शीतलाष्टमी, अष्ट का श्राद्ध
बुढ़वा मंगल
माँ कर्मा देवी जयंती (साहू समाज)
वारुणी पर्व
अप्रैल माह में
वारुणीपर्व हिंगलाज पूजा
स्नानदान श्राद्ध की अमावस्या
वासंतीय नवरात्र प्रारम्भ, गुड़ीपड़वा
सिंघारा दोज, झूलेलाल जयंती
गणगौर पूजा
वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत।
अशोकाषष्ठी (बंगाल)
भानु सप्तमी पर्व, अन्नपूर्णा परिक्रमा
श्रीदुर्गाष्टमी, महाष्टमी, साईं बाबा उत्सव प्रारंभ (शिरडी)
रामनवमी, महानवमी
ज्वारे विसर्जन
खरमास समाप्त
मदन द्वादशी
महावीर जयंती
हाटकेश्वर जयंती
हनुमान जयंती
आश द्वितीय, आसों दोज
संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत
श्री शीतलाष्टमी व्रत
वल्लभाचार्य जयंती
वरुथिनी
मई माह में
मास शिवरात्रि व्रत, शिव चतुर्दशी व्रत
श्राद्ध की अमावस्या
अक्षय तृतीया, आखा तीज
वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत
दुर्गाष्टमी, सीता नवमी
प्रदोष व्रत
श्री शीतलाष्टमी
अचला एकादशी व्रत
जून माह में
वटसावित्रि व्रत
रम्भा तृतीया व्रत
वैनायकी गणेश चतुर्थी व्रत
अरण्य षष्ठी व्रत
उमा-ब्राह्माणि पूजा व्रत
गंगा दशहरा
भीमसेनी एकादशी व्रत
प्रदोष व्रत
पूर्णिमा, वटसावित्री व्रत
शीतलाष्टमी व्रत
योगिनि एकादशी व्रत
जुलाई माह में
स्नानदान श्राद्ध की अमावस्या
श्रीराम-बलराम रथोत्सव
हेरापंचमी (उड़ीसा)
कर्दम षष्टी (बंगाल)
विवस्वत पूजा
परशुरामाष्टमी (उड़ीसा)
भडड्ली नवमी
आशा दशमी, पुनर्यात्रा-उल्टा रथ (उड़ीसा)
चातुर्मास आरम्भ
शिवशयन चतुर्दशी (उड़ीसा)
महाकाल सवारी उज्जैन
पार्थिव पूजन आरम्भ
नागपंचमी, मौनी पंचमी
कालाष्टमी, दुर्गाष्टमी
स्नान-दान-श्राद्ध अमावस्या, हरियाली अमावस
अगस्त माह में
सिंघारा दोज
हरियाली तीज, मधुश्रवा तीज
नागपंचमी
लुण्ठन षष्टी (बंगाल)
आखेट त्रयोदशी-उड़ीसा
रक्षाबन्धन
सतुआ तीज
भातृ-भागिनी पंचमी, रक्षा पंचमी-जैन
हलषष्ठी, बलदाऊ जयंती
गोकुलाष्टमी
पर्युषण पर्वारंभ-जैन
श्राद्ध अमावस्या
स्नान-दान अमावस्या, कुशोत्पाटनी अमावस्या, सती पूजा (मारवाड़)
चन्द्रदर्शन, बाबू दोज, बाबा रामदेव जयंती
सितम्बर माह में
गणेशोत्सव (महाराष्ट्र)
सांवत्सरी पंचमी-जैन
लोलार्ककुण्ड स्नान
दुर्गाष्टमी
महानन्दा नवमी
पितृपक्ष प्रारम्भ, फसली सन् 1419 प्रांरम्भ
विश्व्कर्मा पूजा
कृत्तिका श्राद्ध
कालाष्टमी, अष्ट का श्राद्ध्
मातृ नवमी, मातामह श्राद्ध
संन्यासियों का श्राद्ध
स्नानादि अमावस्या, पितृ विसर्जन
शारदीय नवरात्र, कलश स्थापना
अक्टूबर माह में
अन्नपूर्णा परिक्रमा रात्रि 2/21 से प्रारम्भ
महानिशा पूजा
विजय दशमी
भरत-मिलाप-नाटी ईमली (वाराणसी), बालाजी मेला बुरहानपुर (म.प्र.)
पद्भनाभ 12
राधाष्टमी, कराष्टमी (महाराष्ट्र)
गोवत्स द्वादशी, धनतेरस, धन्वन्तरी जयंती
नरक 14, मेला-कैलापीर देवता थाती कठूड़ (टिहरी)
दीपावली
अन्नकूट, गोवर्धन पूजा
भैयादूज, चित्रगुप्त पूजा, यम द्वितीया, कान्डा मंजु घोष यात्रा (गढ़वाल)
नवम्बर माह में
गोपाष्टमी अक्षय नवमी
तुलसी विवाह, पण्ढ़पुर मेला
देव दिपावली11 भेड़ाघाट मेला (जबलपुर)
भेड़ाघाट मेला (जबलपुर)
काल भैरव अष्टमी, प्रथमाष्टमी (उड़ीसा)
स्नान-दान-श्राद्ध की अमावस्या
दिसम्बर माह में
गीता जयंती
स्नान-दान-श्राद्ध की अमावस्या
अन्नरुपा षष्ठी (बंगाल)
यह सदियों से चलता आ रहा हैं चलता रहेगा यही समय चक्र हैं जो भारत वर्ष के हर प्रान्त को पर्व त्यौहार के माध्यम से बंधे रखता हैं और समय अन्तराल उनकी जरूरतों को पूरा करता रहता हैं
यहीं धर्म और समय का गठबंधन हैं
शेष फिर कभी..............