पिछले साल मैं अमरनाथ यात्रा पे गया था l
वापसी में स्टेशन में मैंने एक किताब खरीदी "प्रेम चन्द्र की कहानिया "
उसमें एक कहानी थी शीर्षक मुझे याद नहीं आ रहा हैं पर कहानी कुछ इस प्रकार से थी " एक गरीब परिवार जो दाने दाने का मोहताज था l
घर मैं केवल ३ लोग ससुर पति और बहु थे , एक दिन रात में बहु प्रसव पीड़ा से कराह रही थी, l रात का घुप अँधेरा था और उसके चिल्लाने की आवाज़ रात की खामोशी को तोड़ रही थी l पति और ससुर असहाए होकर घर के बहार बैठे थे
कुछ देर बाद बहु की आवाज़ आनी बंद हो जाती हैं ससुर कहता हैं पति से "जा देख आ अन्दर किया हुआ " पति जाने से मना कर देता हैं जब वोह चिल्लाता हैं तो पति देखने चला जाता हैं वहां पे वोह मिटटी से लपटी हुए मृत्यु के आगोश मैं जा चुकी थी उसको देखने से ऐसा प्रतीत होता था जैसे धरती माँ ने उससे कहा की "तेरा कोई नहीं तू मेरे पास आ जा "
अगले दिन ससुर और पति उसकी चिता जलाने के लिए ठाकुर के पास कर्जा लेने जाते हैं जहाँ पे उनको फटकार और मार मिलती हैं क्यूंकि ठाकुर पहले ही उनको बहुत कर्जा दे चूका था , लेकिन दया भाव मैं ठाकुर उनको पैसा दे देता हैं l
वापस आते समय उनको देसी शराब की दुकान दिख जाती हैं
दोनों ने काफी दिनों से पी भी नहीं थी दोनों ने थोड़ी थोड़ी पीने की एक दूसरे को कसम देते हुए दूकान मैं बैठ के पीना शुरू कर देते हैं l
पीने के बाद उनको भूख बहुत जोरो की लगती हैं लेकिन चिता के लिए पैसे भी बचाने थे दोनों हिसाब लगाते हैं की चिता के लिए कितने पैसे की जरूरत हैं और उस हिसाब से एक दुसरे को कसम दिला के खाना खाने लगते हैं खाना खाने में सारे पैसे खत्म हो जाते हैं l
ससुर और पति अपनी बहु और पत्नी के खूब तारीफ़ आशीर्वाद और प्यार जताते हैं की "जाते जाते उसने हमको भर पेट भोजन कराया बहुत प्यारी कुशल बहु थी भगवान् उसकी आत्मा को शान्ति दे " आज उन्होंने वाकई कई महीनो के बाद भर पेट खाना खाया था आज उनकी अपनी आत्मा तृप्त हो गयी थी फिर दोनों अपने कर्म और हालात पे रोने लगते हैं और उस अन्धकार मैं कहीं खो जाते हैं
यह कहानी मेरी जिंदगी मैं हकीकत बनके आयी जब मेरे मोहल्ले मैं बब्बू नाम के शख्स की भतीजी सबीना की शादी तये हुई
घर की माली हालत बहुत नाज़ुक थी , क्यूँ रहती थी उस विषय पे जाना बेकार हैं लेकिन शायद १ वक्त का खाना भी भर पेट नहीं मिलता था घर मैं ३ मर्द ३ औरतें और एक बच्चा
तीनो मर्दों में बहनोई जो की लंगड़ा था ,चाचा जोकि मोतियाबिंद की वजह से अँधा था और एक काहिल कमजोर चचेरा भाई , लेकिन इन छे लोगों की किस्मत भी उनको भर पेट भोजन भी नहीं करा पाती थी
एक दिन उसकी शादी तय हो जाती हैं , खैर वोह दिन भी धीरे धीरे आ गया जिस दिन उसके घर मैं शादी थी आज घर में रौशनी भी थी क्यूंकि उनके यहाँ बिजली का कनेक्शन भी नहीं था सबीना ने शादी का जोड़ा भी पहन रखा था घर के लोगों ने नए कपडे भी पहने
आज घर में ढोल भी बजा, बरात की मेहमानवाजी बिरयानी, मटन,कबाब, से की गयी , आज सबीना के घर वालों बहुत सालों बाद शायद भर पेट खाना भी खाया होगा और सबीना जाते जाते १० दिन का राशन भी दे गयी होगी
दोनों ही कहानीयों में एक ही समानता थी एक जिंदगी से रुखसत होने के बाद भी अपने धर्म को निभाते हुए अपने पति और ससुर को भर पेट खाना खिला गयी और एक ससुराल जाते हुए अपने चाचा चाची बहन बहनोई भाई को भर पेट खाना खिला के ससुराल को रुखसत हो गयी
शेष फिर कभी ...............
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