September 14, 2011

लघुकथा - मेरा चिडचिडापन part 1



आर्थिक मंदी अपने पुरे जोश के साथ मेरे जीवन मैं सफ़र कर रही हैं विचारों के उथल पुथल में मेरा एक एक दिन निकलता जा रहा  हैं लेकिन किसी निष्कर्ष पे कभी नहीं पहुँच पाता हूँ
अपने जीवन को समझने  के लिए धर्म शाश्त्रियों के लेख भी पढने लगा हूँ ब्रह्मकुमारी की बहिन शिवानी का भक्त भी बन गया हूँ

जब तक उनके प्रवचन  सुनते रहो तब तक तो सब ठीक हैं, उस समय हम  अपने आपको अन्धकार से प्रकाश की तरफ जाते हुए महसूस भी करते हैं  लेकिन, जैसे ही घरवाली, घर के  राशन का परचा हाँथ में थमा देती   हैं सारी शिक्षा धरी की धरी रह जाती हैं और फिर से हम अपने  जीवन के एक अन्धकार भरे रास्ते में सफ़र करने निकल पड़ते हैं .


आज कल अपनी प्रिये BLENDERS PRIDE WHISKY और GOLD FLAKE CIGRETTE   को भी स्वस्थ्य का हवाला देते हुए छोड़ दिया हैं और आदर्श पुरषों की तरह लोगों को खर्चे और स्वास्थय का पाठ पड़ाने लगा हूँ


कभी गणेश चतुर्थी का व्रत रखता हूँ, और तो और   पितरपक्ष का भी व्रत रख लिया हैं कहने लगा हूँ नवरात्र पर व्रत तोड़ दूंगा

खबर आ रही हैं की कम्पनी छटनी करने जा रही हैं पता नहीं दिवाली बन भी पायेगी की नहीं

आजकल अपने साथियों के ऊपर भी मुझे गुस्सा आने लगा हैं मैं चिद्चिदाने लगा हूँ उनको पराजित करने मैं लगा रहता हूँ की मैं आज भी नंबर -१  हूँ  ...........................
"रस्सी जल गयी बल न गया "
कल तक १०००/- - २०००/- तो ऐसे ही देता था अगर कोई उधर लिए हैं तो कह देता था
"जाओ ऐश करो",
"दे देना यार" 
"कोई बात नहीं जब हो तब दे देना" 
"छोटी बात मत बोला  करो " 
"रोया मत करो "
और आज..................... मैं रोने लगा हूँ "मेरा पैसा दे दो " हा हा हा

बड़े बुजुर्गो ने सही कहा हैं
" बड़े बोल मत बोलो"0
"अपनी औकाद में रहो'
"उतनी टाँगे बहार निकालो जितनी बड़ी चादर हैं "
लेकिन हम लोग .......... धोनी का dialogue अपनाने लगे

                        " जिद्द करो "

हम्म्म्म किया बोलेन एक लम्बी सांस लेते हुए और एक कप चाय पीते हुए इस अंतर्कथा का यहीं पूर्ण विराम लगाता हूँ
शेष फिर कभी ............................







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