October 14, 2015

भारतीय-संस्कृति

भारतीय-संस्कृति के नाम पर कोई लट्ठ ठोक कर कहना चाहे तो भले ही कहता रहे कि जितना हम जानते हैं , भारतीयसंस्कृति  बस उतनी ही है ।
 वास्तव में ऐसी बात है नहीं ,सारी उम्र अध्ययन करते -करते ही बीती किन्तु एक से बडे एक अध्येता ने अन्त में भिन्न-भिन्न शब्दों में ऐसा ही कुछ कहा कि अभी तो समुद्र- तट के बालू का एक कण ही तो छुआ था । समुद्र की गहराई कहां जानी ? 
सचाई यह है कि भारत का भूगोल भी विस्तृत है और आनुवंशिकताओं का भी इतना विस्तार है ! देशकाल का वैविध्य !
कितने सांस्कृतिक -समूह इस विशाल देश में हैं ? इन सब की पहचान किसने की ? कब की ?
 इनकी आचार-प्रणाली , विचारप्रणाली , विश्वासप्रणाली , अभिव्यक्तिप्रणाली और सौन्दर्यबोध के कितने अभिलेख हैं ? कहां हैं वे ? किसके पास हैं ?

हालांकि हमारे यहां संस्कृतिमन्त्रालय है किन्तु संस्कृति को सांस्कृतिक-कार्यक्रमों , नाच-गान, मनोरंजन, कलाप्रदर्शनी और सांस्कृतिकदलों के भ्रमण ने अपने घेरे में बांध रखा है, जो सांस्कृतिक क्षेत्र में कार्य करने वाली संस्थाएं हैं , उन्हें नौकरशाही ने अपने घेरे में बांध रखा है, संस्कृति की व्यापक अवधारणा को सिक्यूलर का भय खाये जा रहा है । 
भारतीयसंस्कृति के अध्ययन की दिशा में अब तक जो कुछ हुआ , चाहे संस्थाओं में ही हुआ है , वह भी वैयक्तिक निष्ठा के बलबूते हो सका ।
बात केवल पोथियों की नहीं है , संस्कृति तो समष्टि-जीवन में रहती है , पोथी तो उसका एक अंश ही हैं ।

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