मैं महेन्द्रा ..मैं कौन हूँ ? मेरा अपना परिचय ..
मित्रो आज ...किसी प्रबुद्ध मित्र ने हमसे हमारा परिचय चाहा .. तो हमने सोचा आज हम सभी को अपना पूर्ण परिचय दे दें ...
आदरणीया .. हम अनादि वर्षों तक वैदिक सनातनी, हजारों वर्षों से समुंद्र मंथन के विजेता आर्य रहे, तीन हज़ार वर्ष से सप्तसिंध की ईंदुधारा के तट पर संस्कृत श्लोक उवाचते देव इंद्र - रुपी ..हिन्दू बने, फिर कालचक्र चला सब नष्ट-भ्रष्ट हुआ .....तो महावीर, बुद्ध व् नानक ने फिर से जगाया ....पर फिर भी अपने ही घर के विरोध में आज क्या से क्या हैं बने ..
कश्यप मुनि के तपोभूमि भूमि, कश्मीर से लेकर महादेव के कैलाश एवं पवित्रं से पवित्र मानसरोवर की झील के स्त्रोत जहाँ से हमारी सभी पवित्र नदियां बहती हैं ..एकाकी पुरुष नदी ब्रह्मपुत्र को खो देने वाले ..
इरान के त्यागरस, रामपुल, तत्ता पानी तक के सब क्षेत्र खोने के बाद .. अमुधारा से लेकर कंधार को क्षुण करने वाले चक्रवर्ती सम्राट की उपद्धि को स्वयं बहिष्कार करके अशोक द्वारा बोध बन कर अपनी ही संस्कृति को दहन करने वाले बने !
भरत पुत्र तक्ष की तक्षशिला, यहाँ ज्ञान के विश्वविध्यालय थे ..उन्हें खोया, राम के सुपुत्र कुश के हिन्दुकुश को एवं लव के लाहौर को आज के युग में भी खोया ....
फिर पांच पाण्डवों के पंचावत्स में भाईओं के महाभारत से शुरू हुआ कुरुक्षेत्र का घमासान आज भी जारी हैं ! यही नहीं हमारे तो बच्चों को आज पंजाब नाम का अर्थ ..या फिर इसे यह नाम क्यूं और किसने दिया, यह तक नहीं पता है .. तो मैं कैसे बताऊँ मैं कौन हूँ?
आज के पंजाब में जो ब्यास तक राजपुताना का ही एक प्रान्त रहा है ....जहाँ पृथ्वीराज चौहान के सहस्त्रों सैनिकों ने श्रीनगर से लेकर राजपुताना तो क्या सौराष्ट्र तक अपना घर-ठिकाना बनाया ..
जहाँ अन्य राजपूतों के कुनबों मिन्हास, भट्टी, जंजुआ, जसवाल, सरोया, पन्नू, चौहान व् परमार आदि आदि अपने पूरे गाँव के साथ साथ .....बंदा बहादुर जैसे राजपूतों ने अपनी बीस हजार से भी अधिक सेना के साथ दशम गुरु से मिल कर राष्ट्र सेवा हेतु ... सिखी पंथ को इसलिए अपनाया था कि यह एक सनातनी पंथ है ..कोई अलग धर्म नहीं !
सहस्त्रों राजपूतों के कुनबों से बना पंजाब आज एक अलग कौम कैसे हो गया ?
जहाँ पंडित मत्ती दास और उनके भाई दयाल दास जो मोहायिल ब्राहमण थे ..उन्होंने अपने पूरे परिवार के साथ गुरु तेग बहादुर जी के शिष्य बन कर जो (भाई मत्ती ) त्याग किये ....और जिन पर आज आप अपने सिख होने पर गौरव करती हों ..
पंडित जती दास, पंडित बाल मुकुंद और पंडित सत्ती दास सारे वशिष्ठ जाति के ब्राहमण कुनबे हैं! उन्होंने सिख पंथ अपनाया ... यह सब किसी अलग देश से नहीं आए बल्कि भारतीय हिन्दू ही तो थे ...
अगर आज आप उन्हें भाई मत्ती दास, भाई दयाल, भाई सत्ती या फिर भाई मुकुंद के नाम दिए गए हैं तो ..इस से वो ना तो एक अलग कौम के हैं ....और ना ही वोह अलग धर्म के ..सभी उसी सनातन धर्म के एक अंश हैं ..जिसमे से हिन्दू, सिख या फिर बोधि बने हैं ..एक ही पुरातन विराट ज्ञानी बरगद की शाखाएं हैं !
तो मैं आपके लिए कौन हूँ ?
इसका प्रतिऊतर तो बहुत ही आसान है .. मैं एक वैदिक सनातन के नियमों पर चलने वाली ..आर्यों में क्षत्रिया वर्ग, हिन्दुओं में सिसोदिया राजपूत कुल की सुकन्या *कुंवरानी/कौर .... (कौर तो कुंवरानी का ही एक अपभ्रंश है) कश्मीर में से मुल्लों द्वारा हमारे परिवार को विस्थापित किये जाने के बाद ...कठुआ से जम्मू और जम्मू से पंजाब के पठानकोट के एक शरणार्थी कैम्प के रास्ते में 9 अगस्त 1974 को जन्मी महेन्द्रा ....
जो किसी एक धर्म को नहीं बल्कि 'ईंद नं मम' यानि के मूल 'हिंदुत्व' जो आज के इक्कसवीं शताब्दी के इस राष्ट्र की नागरिकता है !
मैं केवल उस नागरिकता की आस्था में प्रतिनिष्ठां रखने वाली एक भारतीया हूँ !
यदि आप सिख इतिहास पढ़ें तो आप ऐसे प्रश्न करना ही छोड़ देंगी ....दशम गुरु गोबिंद राय जी ..शिव भगत थे ..'दे शिव वर मोहे एहो सुभ कर्मन से कबहूँ ना टरों' .. गुरु नानक जी गीता का सार का प्रचार करने वाले .. खैर
यही तो कठिनाई है हमारे राष्ट्र में कि हिन्दू का नाम बदलते ही ... पता नहीं क्यूं ? .. सभी अपने आप को अलग कौम मान लेते हैं ..बिखर गए हैं हम सब .. इसीलिए तो आज तक अपने समुदाय में एकता ना ला सके ....और प्रताड़ित हो रहे हैं ..भ्रष्ट नेताओं और मुल्ले आतंकियों से ..
आशा है कि अब आपको अपने प्रशन का उत्तर मिल गया होगा ..जबकि ऐसा पूछना ही अनशिष्टाचारिकता है ..
आप का आज का दिन शुभ व् मंगलमय हो ..वन्दे ...
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