नक्षत्र ज्योतिष विद्या के महारथी कहे जाने वाले घाघ-भड्डरी की मौसम संबंधी कहावतें आज भी अचूक हैं
और अगर इनको गंभीरता से लिया जाए तो मानसून के बारे में सटीक जानकारी मिल सकती है। भारतीय
जन-मानस में रचे बसे घाघ-भड्डरी इसी परंपरा की एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं|
कृषि या मौसम वैज्ञानिक सदृश्य छवि बना चुके घाघ और भड्डरी के अस्तित्व के सम्बन्ध में कई
मान्यताएं प्रचलित है। हिन्दी भाषी क्षेत्रों में प्रचलित ये कहावतें आम ग्रामीणों के लिए मौसम के पूर्वानुमान
का अचूक स्रोत है। लोक मान्यताओं के अनुसार घाघ एक प्रसिद्ध ज्योतिषी भी थे, जिन्होंने भड्डरी जो
संभवतः गैर सवर्ण स्त्री थी की विद्वता से प्रभावित हो उससे विवाह किया था। घाघ-भड्डरी की नक्षत्र गणना
पर आधारित कहावतें ग्रामीण अंचलों में आज भी बुजुर्गों के लिए मौसम को मापने का यंत्र हैं। इन दिनों
जब सभी मानसून में देरी होने से व्यग्र हो रहे हैं, वर्षा और मानसून को लेकर उनकी कहावतों पर गौर
किया जा सकता है। भड्डरी की एक कहावत है –
उलटे गिरगिट ऊँचे चढै।
बरखा होइ भूइं जल बुडै।।
यानी यदि गिरगिट पेड़ पर उल्टा होकर अर्थात पूंछ ऊपर की ओर करके चढे़ तो समझना चाहिए कि इतनी
वर्षा होगी कि पृथ्वी पानी में डूब जाएगी। इसी तरह भड्डरी कहते हैं, कि
पछियांव के बाद।
लबार के आदर।।
जो बादल पश्चिम से या पश्चिम की हवा से उठता है ‘वह नहीं बरसता’ जैसे झूठ बोलने वाले का आदर
निष्फल होता है।
सूखे की तरफ संकेत करने वाली घाघ-भड्डरी की एक कहावत है –
दिन को बादर रात को तारे।
चलो कंत जहं जीवैं बारे।।
इसका मतलब है कि अगर दिन में बादल हों और रात में तारे दिखाई पड़े तो सूखा पडे़गा। हे नाथ वहां चलो
जहां बच्चे जीवित रह सकें।
सूखे से ही जुड़ी उनकी एक और कहावत है –
माघ क ऊखम जेठ क जाड।
पहिलै परखा भरिगा ताल।।
कहैं घाघ हम होब बियोगी।
कुआं खोदिके धोइहैं धोबी।।
अर्थात यदि माघ में गर्मी पडे़ और जेठ में जाड़ा हो, पहली वर्षा से तालाब भर जाए तो घाघ कहते हैं कि
ऐसा सूखा पडे़गा कि हमें परदेश जाना पडे़गा और धोबी कुएं के पानी से कपडे़ धोएंगे।
अतिवृष्टि की तरफ संकेत करने वाली भड्डरी की एक और कहावत है –
ढेले ऊपर चील जो बोलै।
गली गली में पानी डोलै।।
इसका तात्पर्य है कि अगर चील ढेले पत्थर पर बैठकर बोले तो समझना चाहिए कि इतना पानी बरसेगा
कि गली, कूचे पानी से भर जाएंगे।
वर्षा की विदाई का संकेत देने वाली उनकी एक कहावत है –
रात करे घापघूप दिन करे छाया।
कहैं घाघ अब वर्षा गया।।
अर्थात यदि रात में खूब घटा घिर आए, दिन में बादल तितर-बितर हो जाएं और उनकी छाया पृथ्वी पर
दौड़ने लगे तो घाघ कहते हैं कि वर्षा को गई हुई समझना चाहिए।
सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।
यदि रोहिणी भर तपे और मूल भी पूरा तपे तथा जेठ की प्रतिपदा तपे तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे।
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।
यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएं, तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं
जाएगा।
भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय।
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय।।
यदि भादो सुदी छठ को अनुराधा नक्षत्र पड़े तो ऊबड़-खाबड़ जमीन में भी उस दिन अन्न बो देने से बहुत
पैदावार होती है।
अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।
चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।
यदि द्वितीया का चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र, कृत्तिका, श्लेषा या मघा में अथवा भद्रा में उगे तो मनुष्य सुखी रहेंगे।
सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय।
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय।।
यदि पूस की अमावस्या को सोमवार, शुक्रवार बृहस्पतिवार पड़े तो घर घर बधाई बजेगी-कोई दुखी न
दिखाई पड़ेगा।
सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय।
महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय।।
यदि श्रावण कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को रोहिणी हो तो समझ लेना चाहिए अनाज महंगा होगा और वर्षा
स्वल्प होगी, विरले ही लोग सुखी रहेंगे।
पूस मास दसमी अंधियारी।
बदली घोर होय अधिकारी।
सावन बदि दसमी के दिवसे।
भरे मेघ चारो दिसि बरसे।।
यदि पूस बदी दसमी को घनघोर घटा छाई हो तो सावन बदी दसमी को चारों दिशाओं में वर्षा होगी। कहीं
कहीं इसे यों भी कहते हैं-‘काहे पंडित पढ़ि पढ़ि भरो, पूस अमावस की सुधि करो।
पूस उजेली सप्तमी, अष्टमी नौमी जाज।
मेघ होय तो जान लो, अब सुभ होइहै काज।।
यदि पूस सुदी सप्तमी, अष्टमी और नवमी को बदली और गर्जना हो तो सब काम सुफल होगा अर्थात् सुकाल
होगा।
अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत।
तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।
यदि वैशाख में अक्षम तृतीया को गुरुवार पड़े तो खूब अन्न पैदा होगा।
पैदावार संबंधी कहावतें
रोहिनी जो बरसै नहीं, बरसे जेठा मूर।
एक बूंद स्वाती पड़ै, लागै तीनिउ नूर।।
यदि रोहिनी में वर्षा न हो पर ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र बरस जाए तथा स्वाती नक्षत्र में भी कुछ बूंदे पड़ जाएं
तो तीनों अन्न (जौ, गेहूँ , और चना) अच्छा होगा।
खेत जोतने के लिए
गहिर न जोतै बोवै धान।
सो घर कोठिला भरै किसान।। गहरा न जोतकर धान बोने से उसकी पैदावार खूब होती है।
गेहूँ भवा काहें।
अषाढ़ के दुइ बाहें।। गेहूँ भवा काहें।
सोलह बाहें नौ गाहें।। गेहूँ भवा काहें।
सोलह दायं बाहें।। गेहूँ भवा काहें।
कातिक के चौबाहें।।
गेहूँ पैदावार अच्छी कैसे होती है ? आषाढ़ महीने में दो बांह जोतने से; कुल सोलह बांह करने से और नौ
बार हेंगाने से; कातिक में बोवाई करने से पहले चार बार जोतने से।
गेहूँ बाहें।
धान बिदाहें।।
गेहूँ की पैदावार अधिक बार जोतने से और धान की पैदावार विदाहने (धान होने के चार दिन बाद जोतवा
देने) से अच्छी होती है।
गेहूँ मटर सरसी।
औ जौ कुरसी।।
गेहूँ और मटर बोआई सरस खेत में तथा जौ की बोआई कुरसौ में करने से पैदावार अच्छी होती है।
गेहूँ बाहा, धान गाहा।
ऊख गोड़ाई से है आहा।।
जौ-गेहूँ कई बांह करने से धान बिदाहने से और ऊख कई बार गोड़ने से इनकी पैदावार अच्छी होती है।
गेहूँ बाहें, चना दलाये।
धान गाहें, मक्का निराये।
ऊख कसाये।
और अगर इनको गंभीरता से लिया जाए तो मानसून के बारे में सटीक जानकारी मिल सकती है। भारतीय
जन-मानस में रचे बसे घाघ-भड्डरी इसी परंपरा की एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं|
कृषि या मौसम वैज्ञानिक सदृश्य छवि बना चुके घाघ और भड्डरी के अस्तित्व के सम्बन्ध में कई
मान्यताएं प्रचलित है। हिन्दी भाषी क्षेत्रों में प्रचलित ये कहावतें आम ग्रामीणों के लिए मौसम के पूर्वानुमान
का अचूक स्रोत है। लोक मान्यताओं के अनुसार घाघ एक प्रसिद्ध ज्योतिषी भी थे, जिन्होंने भड्डरी जो
संभवतः गैर सवर्ण स्त्री थी की विद्वता से प्रभावित हो उससे विवाह किया था। घाघ-भड्डरी की नक्षत्र गणना
पर आधारित कहावतें ग्रामीण अंचलों में आज भी बुजुर्गों के लिए मौसम को मापने का यंत्र हैं। इन दिनों
जब सभी मानसून में देरी होने से व्यग्र हो रहे हैं, वर्षा और मानसून को लेकर उनकी कहावतों पर गौर
किया जा सकता है। भड्डरी की एक कहावत है –
उलटे गिरगिट ऊँचे चढै।
बरखा होइ भूइं जल बुडै।।
यानी यदि गिरगिट पेड़ पर उल्टा होकर अर्थात पूंछ ऊपर की ओर करके चढे़ तो समझना चाहिए कि इतनी
वर्षा होगी कि पृथ्वी पानी में डूब जाएगी। इसी तरह भड्डरी कहते हैं, कि
पछियांव के बाद।
लबार के आदर।।
जो बादल पश्चिम से या पश्चिम की हवा से उठता है ‘वह नहीं बरसता’ जैसे झूठ बोलने वाले का आदर
निष्फल होता है।
सूखे की तरफ संकेत करने वाली घाघ-भड्डरी की एक कहावत है –
दिन को बादर रात को तारे।
चलो कंत जहं जीवैं बारे।।
इसका मतलब है कि अगर दिन में बादल हों और रात में तारे दिखाई पड़े तो सूखा पडे़गा। हे नाथ वहां चलो
जहां बच्चे जीवित रह सकें।
सूखे से ही जुड़ी उनकी एक और कहावत है –
माघ क ऊखम जेठ क जाड।
पहिलै परखा भरिगा ताल।।
कहैं घाघ हम होब बियोगी।
कुआं खोदिके धोइहैं धोबी।।
अर्थात यदि माघ में गर्मी पडे़ और जेठ में जाड़ा हो, पहली वर्षा से तालाब भर जाए तो घाघ कहते हैं कि
ऐसा सूखा पडे़गा कि हमें परदेश जाना पडे़गा और धोबी कुएं के पानी से कपडे़ धोएंगे।
अतिवृष्टि की तरफ संकेत करने वाली भड्डरी की एक और कहावत है –
ढेले ऊपर चील जो बोलै।
गली गली में पानी डोलै।।
इसका तात्पर्य है कि अगर चील ढेले पत्थर पर बैठकर बोले तो समझना चाहिए कि इतना पानी बरसेगा
कि गली, कूचे पानी से भर जाएंगे।
वर्षा की विदाई का संकेत देने वाली उनकी एक कहावत है –
रात करे घापघूप दिन करे छाया।
कहैं घाघ अब वर्षा गया।।
अर्थात यदि रात में खूब घटा घिर आए, दिन में बादल तितर-बितर हो जाएं और उनकी छाया पृथ्वी पर
दौड़ने लगे तो घाघ कहते हैं कि वर्षा को गई हुई समझना चाहिए।
सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।
यदि रोहिणी भर तपे और मूल भी पूरा तपे तथा जेठ की प्रतिपदा तपे तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे।
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।
यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएं, तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं
जाएगा।
भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय।
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय।।
यदि भादो सुदी छठ को अनुराधा नक्षत्र पड़े तो ऊबड़-खाबड़ जमीन में भी उस दिन अन्न बो देने से बहुत
पैदावार होती है।
अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।
चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।
यदि द्वितीया का चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र, कृत्तिका, श्लेषा या मघा में अथवा भद्रा में उगे तो मनुष्य सुखी रहेंगे।
सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय।
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय।।
यदि पूस की अमावस्या को सोमवार, शुक्रवार बृहस्पतिवार पड़े तो घर घर बधाई बजेगी-कोई दुखी न
दिखाई पड़ेगा।
सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय।
महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय।।
यदि श्रावण कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को रोहिणी हो तो समझ लेना चाहिए अनाज महंगा होगा और वर्षा
स्वल्प होगी, विरले ही लोग सुखी रहेंगे।
पूस मास दसमी अंधियारी।
बदली घोर होय अधिकारी।
सावन बदि दसमी के दिवसे।
भरे मेघ चारो दिसि बरसे।।
यदि पूस बदी दसमी को घनघोर घटा छाई हो तो सावन बदी दसमी को चारों दिशाओं में वर्षा होगी। कहीं
कहीं इसे यों भी कहते हैं-‘काहे पंडित पढ़ि पढ़ि भरो, पूस अमावस की सुधि करो।
पूस उजेली सप्तमी, अष्टमी नौमी जाज।
मेघ होय तो जान लो, अब सुभ होइहै काज।।
यदि पूस सुदी सप्तमी, अष्टमी और नवमी को बदली और गर्जना हो तो सब काम सुफल होगा अर्थात् सुकाल
होगा।
अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत।
तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।
यदि वैशाख में अक्षम तृतीया को गुरुवार पड़े तो खूब अन्न पैदा होगा।
पैदावार संबंधी कहावतें
रोहिनी जो बरसै नहीं, बरसे जेठा मूर।
एक बूंद स्वाती पड़ै, लागै तीनिउ नूर।।
यदि रोहिनी में वर्षा न हो पर ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र बरस जाए तथा स्वाती नक्षत्र में भी कुछ बूंदे पड़ जाएं
तो तीनों अन्न (जौ, गेहूँ , और चना) अच्छा होगा।
खेत जोतने के लिए
गहिर न जोतै बोवै धान।
सो घर कोठिला भरै किसान।। गहरा न जोतकर धान बोने से उसकी पैदावार खूब होती है।
गेहूँ भवा काहें।
अषाढ़ के दुइ बाहें।। गेहूँ भवा काहें।
सोलह बाहें नौ गाहें।। गेहूँ भवा काहें।
सोलह दायं बाहें।। गेहूँ भवा काहें।
कातिक के चौबाहें।।
गेहूँ पैदावार अच्छी कैसे होती है ? आषाढ़ महीने में दो बांह जोतने से; कुल सोलह बांह करने से और नौ
बार हेंगाने से; कातिक में बोवाई करने से पहले चार बार जोतने से।
गेहूँ बाहें।
धान बिदाहें।।
गेहूँ की पैदावार अधिक बार जोतने से और धान की पैदावार विदाहने (धान होने के चार दिन बाद जोतवा
देने) से अच्छी होती है।
गेहूँ मटर सरसी।
औ जौ कुरसी।।
गेहूँ और मटर बोआई सरस खेत में तथा जौ की बोआई कुरसौ में करने से पैदावार अच्छी होती है।
गेहूँ बाहा, धान गाहा।
ऊख गोड़ाई से है आहा।।
जौ-गेहूँ कई बांह करने से धान बिदाहने से और ऊख कई बार गोड़ने से इनकी पैदावार अच्छी होती है।
गेहूँ बाहें, चना दलाये।
धान गाहें, मक्का निराये।
ऊख कसाये।
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