August 27, 2013
August 19, 2013
घाघ-भड्डरी की मौसम संबंधी कहावतें
नक्षत्र ज्योतिष विद्या के महारथी कहे जाने वाले घाघ-भड्डरी की मौसम संबंधी कहावतें आज भी अचूक हैं
और अगर इनको गंभीरता से लिया जाए तो मानसून के बारे में सटीक जानकारी मिल सकती है। भारतीय
जन-मानस में रचे बसे घाघ-भड्डरी इसी परंपरा की एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं|
कृषि या मौसम वैज्ञानिक सदृश्य छवि बना चुके घाघ और भड्डरी के अस्तित्व के सम्बन्ध में कई
मान्यताएं प्रचलित है। हिन्दी भाषी क्षेत्रों में प्रचलित ये कहावतें आम ग्रामीणों के लिए मौसम के पूर्वानुमान
का अचूक स्रोत है। लोक मान्यताओं के अनुसार घाघ एक प्रसिद्ध ज्योतिषी भी थे, जिन्होंने भड्डरी जो
संभवतः गैर सवर्ण स्त्री थी की विद्वता से प्रभावित हो उससे विवाह किया था। घाघ-भड्डरी की नक्षत्र गणना
पर आधारित कहावतें ग्रामीण अंचलों में आज भी बुजुर्गों के लिए मौसम को मापने का यंत्र हैं। इन दिनों
जब सभी मानसून में देरी होने से व्यग्र हो रहे हैं, वर्षा और मानसून को लेकर उनकी कहावतों पर गौर
किया जा सकता है। भड्डरी की एक कहावत है –
उलटे गिरगिट ऊँचे चढै।
बरखा होइ भूइं जल बुडै।।
यानी यदि गिरगिट पेड़ पर उल्टा होकर अर्थात पूंछ ऊपर की ओर करके चढे़ तो समझना चाहिए कि इतनी
वर्षा होगी कि पृथ्वी पानी में डूब जाएगी। इसी तरह भड्डरी कहते हैं, कि
पछियांव के बाद।
लबार के आदर।।
जो बादल पश्चिम से या पश्चिम की हवा से उठता है ‘वह नहीं बरसता’ जैसे झूठ बोलने वाले का आदर
निष्फल होता है।
सूखे की तरफ संकेत करने वाली घाघ-भड्डरी की एक कहावत है –
दिन को बादर रात को तारे।
चलो कंत जहं जीवैं बारे।।
इसका मतलब है कि अगर दिन में बादल हों और रात में तारे दिखाई पड़े तो सूखा पडे़गा। हे नाथ वहां चलो
जहां बच्चे जीवित रह सकें।
सूखे से ही जुड़ी उनकी एक और कहावत है –
माघ क ऊखम जेठ क जाड।
पहिलै परखा भरिगा ताल।।
कहैं घाघ हम होब बियोगी।
कुआं खोदिके धोइहैं धोबी।।
अर्थात यदि माघ में गर्मी पडे़ और जेठ में जाड़ा हो, पहली वर्षा से तालाब भर जाए तो घाघ कहते हैं कि
ऐसा सूखा पडे़गा कि हमें परदेश जाना पडे़गा और धोबी कुएं के पानी से कपडे़ धोएंगे।
अतिवृष्टि की तरफ संकेत करने वाली भड्डरी की एक और कहावत है –
ढेले ऊपर चील जो बोलै।
गली गली में पानी डोलै।।
इसका तात्पर्य है कि अगर चील ढेले पत्थर पर बैठकर बोले तो समझना चाहिए कि इतना पानी बरसेगा
कि गली, कूचे पानी से भर जाएंगे।
वर्षा की विदाई का संकेत देने वाली उनकी एक कहावत है –
रात करे घापघूप दिन करे छाया।
कहैं घाघ अब वर्षा गया।।
अर्थात यदि रात में खूब घटा घिर आए, दिन में बादल तितर-बितर हो जाएं और उनकी छाया पृथ्वी पर
दौड़ने लगे तो घाघ कहते हैं कि वर्षा को गई हुई समझना चाहिए।
सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।
यदि रोहिणी भर तपे और मूल भी पूरा तपे तथा जेठ की प्रतिपदा तपे तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे।
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।
यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएं, तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं
जाएगा।
भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय।
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय।।
यदि भादो सुदी छठ को अनुराधा नक्षत्र पड़े तो ऊबड़-खाबड़ जमीन में भी उस दिन अन्न बो देने से बहुत
पैदावार होती है।
अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।
चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।
यदि द्वितीया का चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र, कृत्तिका, श्लेषा या मघा में अथवा भद्रा में उगे तो मनुष्य सुखी रहेंगे।
सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय।
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय।।
यदि पूस की अमावस्या को सोमवार, शुक्रवार बृहस्पतिवार पड़े तो घर घर बधाई बजेगी-कोई दुखी न
दिखाई पड़ेगा।
सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय।
महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय।।
यदि श्रावण कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को रोहिणी हो तो समझ लेना चाहिए अनाज महंगा होगा और वर्षा
स्वल्प होगी, विरले ही लोग सुखी रहेंगे।
पूस मास दसमी अंधियारी।
बदली घोर होय अधिकारी।
सावन बदि दसमी के दिवसे।
भरे मेघ चारो दिसि बरसे।।
यदि पूस बदी दसमी को घनघोर घटा छाई हो तो सावन बदी दसमी को चारों दिशाओं में वर्षा होगी। कहीं
कहीं इसे यों भी कहते हैं-‘काहे पंडित पढ़ि पढ़ि भरो, पूस अमावस की सुधि करो।
पूस उजेली सप्तमी, अष्टमी नौमी जाज।
मेघ होय तो जान लो, अब सुभ होइहै काज।।
यदि पूस सुदी सप्तमी, अष्टमी और नवमी को बदली और गर्जना हो तो सब काम सुफल होगा अर्थात् सुकाल
होगा।
अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत।
तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।
यदि वैशाख में अक्षम तृतीया को गुरुवार पड़े तो खूब अन्न पैदा होगा।
पैदावार संबंधी कहावतें
रोहिनी जो बरसै नहीं, बरसे जेठा मूर।
एक बूंद स्वाती पड़ै, लागै तीनिउ नूर।।
यदि रोहिनी में वर्षा न हो पर ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र बरस जाए तथा स्वाती नक्षत्र में भी कुछ बूंदे पड़ जाएं
तो तीनों अन्न (जौ, गेहूँ , और चना) अच्छा होगा।
खेत जोतने के लिए
गहिर न जोतै बोवै धान।
सो घर कोठिला भरै किसान।। गहरा न जोतकर धान बोने से उसकी पैदावार खूब होती है।
गेहूँ भवा काहें।
अषाढ़ के दुइ बाहें।। गेहूँ भवा काहें।
सोलह बाहें नौ गाहें।। गेहूँ भवा काहें।
सोलह दायं बाहें।। गेहूँ भवा काहें।
कातिक के चौबाहें।।
गेहूँ पैदावार अच्छी कैसे होती है ? आषाढ़ महीने में दो बांह जोतने से; कुल सोलह बांह करने से और नौ
बार हेंगाने से; कातिक में बोवाई करने से पहले चार बार जोतने से।
गेहूँ बाहें।
धान बिदाहें।।
गेहूँ की पैदावार अधिक बार जोतने से और धान की पैदावार विदाहने (धान होने के चार दिन बाद जोतवा
देने) से अच्छी होती है।
गेहूँ मटर सरसी।
औ जौ कुरसी।।
गेहूँ और मटर बोआई सरस खेत में तथा जौ की बोआई कुरसौ में करने से पैदावार अच्छी होती है।
गेहूँ बाहा, धान गाहा।
ऊख गोड़ाई से है आहा।।
जौ-गेहूँ कई बांह करने से धान बिदाहने से और ऊख कई बार गोड़ने से इनकी पैदावार अच्छी होती है।
गेहूँ बाहें, चना दलाये।
धान गाहें, मक्का निराये।
ऊख कसाये।
और अगर इनको गंभीरता से लिया जाए तो मानसून के बारे में सटीक जानकारी मिल सकती है। भारतीय
जन-मानस में रचे बसे घाघ-भड्डरी इसी परंपरा की एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं|
कृषि या मौसम वैज्ञानिक सदृश्य छवि बना चुके घाघ और भड्डरी के अस्तित्व के सम्बन्ध में कई
मान्यताएं प्रचलित है। हिन्दी भाषी क्षेत्रों में प्रचलित ये कहावतें आम ग्रामीणों के लिए मौसम के पूर्वानुमान
का अचूक स्रोत है। लोक मान्यताओं के अनुसार घाघ एक प्रसिद्ध ज्योतिषी भी थे, जिन्होंने भड्डरी जो
संभवतः गैर सवर्ण स्त्री थी की विद्वता से प्रभावित हो उससे विवाह किया था। घाघ-भड्डरी की नक्षत्र गणना
पर आधारित कहावतें ग्रामीण अंचलों में आज भी बुजुर्गों के लिए मौसम को मापने का यंत्र हैं। इन दिनों
जब सभी मानसून में देरी होने से व्यग्र हो रहे हैं, वर्षा और मानसून को लेकर उनकी कहावतों पर गौर
किया जा सकता है। भड्डरी की एक कहावत है –
उलटे गिरगिट ऊँचे चढै।
बरखा होइ भूइं जल बुडै।।
यानी यदि गिरगिट पेड़ पर उल्टा होकर अर्थात पूंछ ऊपर की ओर करके चढे़ तो समझना चाहिए कि इतनी
वर्षा होगी कि पृथ्वी पानी में डूब जाएगी। इसी तरह भड्डरी कहते हैं, कि
पछियांव के बाद।
लबार के आदर।।
जो बादल पश्चिम से या पश्चिम की हवा से उठता है ‘वह नहीं बरसता’ जैसे झूठ बोलने वाले का आदर
निष्फल होता है।
सूखे की तरफ संकेत करने वाली घाघ-भड्डरी की एक कहावत है –
दिन को बादर रात को तारे।
चलो कंत जहं जीवैं बारे।।
इसका मतलब है कि अगर दिन में बादल हों और रात में तारे दिखाई पड़े तो सूखा पडे़गा। हे नाथ वहां चलो
जहां बच्चे जीवित रह सकें।
सूखे से ही जुड़ी उनकी एक और कहावत है –
माघ क ऊखम जेठ क जाड।
पहिलै परखा भरिगा ताल।।
कहैं घाघ हम होब बियोगी।
कुआं खोदिके धोइहैं धोबी।।
अर्थात यदि माघ में गर्मी पडे़ और जेठ में जाड़ा हो, पहली वर्षा से तालाब भर जाए तो घाघ कहते हैं कि
ऐसा सूखा पडे़गा कि हमें परदेश जाना पडे़गा और धोबी कुएं के पानी से कपडे़ धोएंगे।
अतिवृष्टि की तरफ संकेत करने वाली भड्डरी की एक और कहावत है –
ढेले ऊपर चील जो बोलै।
गली गली में पानी डोलै।।
इसका तात्पर्य है कि अगर चील ढेले पत्थर पर बैठकर बोले तो समझना चाहिए कि इतना पानी बरसेगा
कि गली, कूचे पानी से भर जाएंगे।
वर्षा की विदाई का संकेत देने वाली उनकी एक कहावत है –
रात करे घापघूप दिन करे छाया।
कहैं घाघ अब वर्षा गया।।
अर्थात यदि रात में खूब घटा घिर आए, दिन में बादल तितर-बितर हो जाएं और उनकी छाया पृथ्वी पर
दौड़ने लगे तो घाघ कहते हैं कि वर्षा को गई हुई समझना चाहिए।
सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।
यदि रोहिणी भर तपे और मूल भी पूरा तपे तथा जेठ की प्रतिपदा तपे तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे।
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।
यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएं, तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं
जाएगा।
भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय।
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय।।
यदि भादो सुदी छठ को अनुराधा नक्षत्र पड़े तो ऊबड़-खाबड़ जमीन में भी उस दिन अन्न बो देने से बहुत
पैदावार होती है।
अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।
चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।
यदि द्वितीया का चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र, कृत्तिका, श्लेषा या मघा में अथवा भद्रा में उगे तो मनुष्य सुखी रहेंगे।
सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय।
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय।।
यदि पूस की अमावस्या को सोमवार, शुक्रवार बृहस्पतिवार पड़े तो घर घर बधाई बजेगी-कोई दुखी न
दिखाई पड़ेगा।
सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय।
महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय।।
यदि श्रावण कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को रोहिणी हो तो समझ लेना चाहिए अनाज महंगा होगा और वर्षा
स्वल्प होगी, विरले ही लोग सुखी रहेंगे।
पूस मास दसमी अंधियारी।
बदली घोर होय अधिकारी।
सावन बदि दसमी के दिवसे।
भरे मेघ चारो दिसि बरसे।।
यदि पूस बदी दसमी को घनघोर घटा छाई हो तो सावन बदी दसमी को चारों दिशाओं में वर्षा होगी। कहीं
कहीं इसे यों भी कहते हैं-‘काहे पंडित पढ़ि पढ़ि भरो, पूस अमावस की सुधि करो।
पूस उजेली सप्तमी, अष्टमी नौमी जाज।
मेघ होय तो जान लो, अब सुभ होइहै काज।।
यदि पूस सुदी सप्तमी, अष्टमी और नवमी को बदली और गर्जना हो तो सब काम सुफल होगा अर्थात् सुकाल
होगा।
अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत।
तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।
यदि वैशाख में अक्षम तृतीया को गुरुवार पड़े तो खूब अन्न पैदा होगा।
पैदावार संबंधी कहावतें
रोहिनी जो बरसै नहीं, बरसे जेठा मूर।
एक बूंद स्वाती पड़ै, लागै तीनिउ नूर।।
यदि रोहिनी में वर्षा न हो पर ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र बरस जाए तथा स्वाती नक्षत्र में भी कुछ बूंदे पड़ जाएं
तो तीनों अन्न (जौ, गेहूँ , और चना) अच्छा होगा।
खेत जोतने के लिए
गहिर न जोतै बोवै धान।
सो घर कोठिला भरै किसान।। गहरा न जोतकर धान बोने से उसकी पैदावार खूब होती है।
गेहूँ भवा काहें।
अषाढ़ के दुइ बाहें।। गेहूँ भवा काहें।
सोलह बाहें नौ गाहें।। गेहूँ भवा काहें।
सोलह दायं बाहें।। गेहूँ भवा काहें।
कातिक के चौबाहें।।
गेहूँ पैदावार अच्छी कैसे होती है ? आषाढ़ महीने में दो बांह जोतने से; कुल सोलह बांह करने से और नौ
बार हेंगाने से; कातिक में बोवाई करने से पहले चार बार जोतने से।
गेहूँ बाहें।
धान बिदाहें।।
गेहूँ की पैदावार अधिक बार जोतने से और धान की पैदावार विदाहने (धान होने के चार दिन बाद जोतवा
देने) से अच्छी होती है।
गेहूँ मटर सरसी।
औ जौ कुरसी।।
गेहूँ और मटर बोआई सरस खेत में तथा जौ की बोआई कुरसौ में करने से पैदावार अच्छी होती है।
गेहूँ बाहा, धान गाहा।
ऊख गोड़ाई से है आहा।।
जौ-गेहूँ कई बांह करने से धान बिदाहने से और ऊख कई बार गोड़ने से इनकी पैदावार अच्छी होती है।
गेहूँ बाहें, चना दलाये।
धान गाहें, मक्का निराये।
ऊख कसाये।
August 18, 2013
EAR PIERCING IN HINDUISM
EAR PIERCING IN HINDUISM
Ear Piercing has been there in almost each civilization.Now a days i see many boys specially wearing a ear ring on one ea,.but there is reason behind it...After a baby is born, it is a general practice by the Ancient Indians to pierce the baby( both boys or girls) ears.
Actually, it is a part of acupuncture treatment. Acupuncture and Acupressure is not new to Indians. These techniques originated in India and later they were conserved and modified by Chinese.
Outer part of ears carry a lot of important acupuncture and acupressure points. The point where the ears of a baby are pierced is known for curing asthma. That is why even ancient indians both men and women used to wear ear-rings.
Almost Everything in the indian culture and traditions are purely based on science..For some things we know the reasons... For some we don't know...People are there who says simply these traditions are some stupid beliefs...But for the fact those people don't know the real reason and science behind those...
Behind the ear lobe there is a natural, small microscopic depression which contains nerve endings linked with diseases like bronchial asthma, cough and tuberculosis. The Chinese science of acupuncture states that the root cause of some diseases lies in the subtle regions of every organ in the body. When that area is punctured, the disease is eliminated. The study of this science was done and recorded in the Hindu scriptures much earlier and the sanskar of piercing the ear lobes was already prescribed.
Ear Piercing has been there in almost each civilization.Now a days i see many boys specially wearing a ear ring on one ea,.but there is reason behind it...After a baby is born, it is a general practice by the Ancient Indians to pierce the baby( both boys or girls) ears.
Actually, it is a part of acupuncture treatment. Acupuncture and Acupressure is not new to Indians. These techniques originated in India and later they were conserved and modified by Chinese.
Outer part of ears carry a lot of important acupuncture and acupressure points. The point where the ears of a baby are pierced is known for curing asthma. That is why even ancient indians both men and women used to wear ear-rings.
Almost Everything in the indian culture and traditions are purely based on science..For some things we know the reasons... For some we don't know...People are there who says simply these traditions are some stupid beliefs...But for the fact those people don't know the real reason and science behind those...
Behind the ear lobe there is a natural, small microscopic depression which contains nerve endings linked with diseases like bronchial asthma, cough and tuberculosis. The Chinese science of acupuncture states that the root cause of some diseases lies in the subtle regions of every organ in the body. When that area is punctured, the disease is eliminated. The study of this science was done and recorded in the Hindu scriptures much earlier and the sanskar of piercing the ear lobes was already prescribed.
August 15, 2013
The Cockroach Theory for Self Development
Have you heard of the Cockroach Theory for Self Development?
At a restaurant, a cockroach suddenly flew from somewhere and sat on a lady. She started screaming out of fear. With a panic stricken face and trembling voice, she started jumping, with both her hands desperately trying to get rid of the cockroach. Her reaction was contagious, as everyone in her group also got panicky.
The lady finally managed to push the cockroach away but ...it landed on another lady in the group.
Now, it was the turn of the other lady in the group to
continue the drama. The waiter rushed forward to their rescue.
In the relay of throwing, the cockroach next fell upon the waiter. The waiter stood firm, composed himself and observed the behavior of the cockroach on his shirt. When he was confident enough, he grabbed it with his fingers and threw it out of the restaurant.
Sipping my coffee and watching the amusement, the antenna of my mind picked up a few thoughts and started wondering, was the cockroach responsible for their histrionic behavior?
If so, then why was the waiter not disturbed?
He handled it near to perfection, without any chaos. It is not the cockroach, but the inability of the ladies to handle the disturbance caused by the cockroach that disturbed the ladies.
I realized that, it is not the shouting of my father or my boss or my wife that disturbs me, but it's my inability to handle the disturbances caused by their shouting that
disturbs me. It's not the traffic jams on the road that disturbs me, but my inability to handle the disturbance caused by the traffic jam that disturbs me.
More than the problem, it's my reaction to the problem that creates chaos in my life.
Lessons learnt from the story:
Do not react in life. Always respond. The women reacted, whereas the waiter responded.
Reactions are always instinctive whereas responses are always well thought of, just and right to save a situation from going out of hands, to avoid cracks in relationship, to avoid taking decisions in anger, anxiety, stress or hurry.
August 13, 2013
August 07, 2013
STORY - SKILLFULLY TALK
राजा का भाग्य
एक बार एक ज्योतिषी एक राजा के पास गया| राजा ने उसे बहुत आदर दिया, उसे बिठाया और उसे सम्मान और उपहार दिए| राजा ने उसे अपनी हथेली और अपनी जन्म कुंडली दिखाई| सब कुछ देखकर ज्योतिषी ने राजा से कहा “हे राजन! तुम अपने सारे परिवार को खो दोगो| सब लोग तुम्हारे से पहले मृत्यु को प्राप्त कर लेंगे | तुम्हारी मृत्यु सबसे अंत में होगी”|
राजा यह सुनकर बहुत क्रोधित हो गया और उसने ज्योतिषी को कारागार में डाल दिया| इस समाचार को सुनकर सभी ज्योतिषी डर गए| उन्होंने सोचा “हम तो राजा को सच नहीं बता सकते, अगर हम ऐसा करते हैं तो वे हमें कारागार में डाल देगा, अब हम क्या करें”?
कोई भी व्यक्ति नकारात्मक भविष्यवाणी पसंद नहीं करता| वह निःसंदेह कोई अच्छी और सकारात्मक बात सुनना चाहता है| और ऐसा राजा के लिए भी सच था| राजा ने दूसरे ज्योतिषी को अपने सामने आने के लिए कहा| बहुत से ज्योतिषी राजा के इस निवेदन से पलायन कर गए पर एक वरिष्ठ ज्योतिषी राजा से मिलाने को तैयार हो गया| तो वह राजा के समक्ष प्रस्तुत हुआ, राजा ने उसका भी उसी भाव और उपहारों से स्वागत किया| राजा ने उसको अपनी हथेली दिखाई| ज्योतिषी बोला “हे राजन! आपको तो महान भविष्य का वरदान है! आपका राशिफल तो बहुत अच्छा है| समस्त इतिहास में किसी को भी इस तरह का दीर्घायु होने का सौभाग्य नहीं है जैसा आपका है| सच तो यह है कि आपके राजवंश में कोई भी इतना दीर्घायु नहीं हुआ है जितने आप होंगे”|
ज्योतिषी ने यह नहीं कहा कि राजा अपने राजपरिवार में सभी लोगों से ज्यादा समय तक जीवित रहेगा| उसके बदले में उसने कहा कि उसको दीर्घायु होने का सौभाग्य प्राप्त है और उसका राशिफल बहुत अच्छा है| राजा अपने दीर्घायु होने और अपने अच्छे स्वास्थ्य के बारे में सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ| उसने ज्योतिषी से कहा “आपको जो भी उपहार मुझसे मांगना है मांग लो मैं आपको वह दे दूंगा”| ज्योतिषी ने कहा “कृपया मेरा सहकर्मी जो कारगर में बंद है उसे छोड़ दीजिए”|
संवाद की कुशलता से बहुत फर्क पड़ता है| कन्नड़ भाषा में एक दोहा है, “शब्दों से ही हंसी और मस्ती होती है, और शब्दों से ही शत्रुता भी हो सकती है”| इस लिए, हमारे संवाद से ही द्वंद्व उत्पन्न होता है|
प्रश्न : प्रिय गुरुदेव, आप ने अनेकों बार कहा है छोड़ दो, भूल जाओ पर अगर कोई व्यक्ति वही गलती बार बार, दिन प्रति दिन करता रहे तो क्या करना चाहिए?उत्तर : आप को उनको बताना चाहिए, सिखाना चाहिए लेकिन उनको अपने दिमाग से बाहर रखना चाहिए | मुक्त रहने का मतलब चुप रहना नहीं है |
अगर कोई गलती कर रहा है और आप उसको कहोगे “ऐसा मत करो, क्योंकि इससे मुझे कष्ट होता है”, तब वे कभी भी उसको करना बंद नहीं करेंगे| उसकी जगह आप उनसे कहें कि “आप का यह गलती करना आप के लिए कष्टदेह हो सकता है” तब वे नहीं करेंगे|तब उस व्यक्ति के अन्दर कुछ हलचल होगी और तब वह आपकी बात सुनेगा| तब वह अपना रास्ता बदल लेगा| याद रखो “एक पीड़ित व्यक्ति कभी किसी दोषी में सुधर नहीं ला सकता और अगर आप किसी में कोई सुधार लाना चाहते हैं और उनको कुछ सिखाना चाहते हैं तो आपके अन्दर एक शिक्षक जैसी उदारता होनी चाहिए| आपके अन्दर सहानभूति, एक खुला दृष्टिकोण और धैर्य होना चाहिए”|
तीन चीज़ें अति आवश्यक हैं, उदारता, धैर्य और कौशल्| तभी आप उनकी गलतियों को आसानी से आत्मसात कर पाओगे|
एक बार एक ज्योतिषी एक राजा के पास गया| राजा ने उसे बहुत आदर दिया, उसे बिठाया और उसे सम्मान और उपहार दिए| राजा ने उसे अपनी हथेली और अपनी जन्म कुंडली दिखाई| सब कुछ देखकर ज्योतिषी ने राजा से कहा “हे राजन! तुम अपने सारे परिवार को खो दोगो| सब लोग तुम्हारे से पहले मृत्यु को प्राप्त कर लेंगे | तुम्हारी मृत्यु सबसे अंत में होगी”|
राजा यह सुनकर बहुत क्रोधित हो गया और उसने ज्योतिषी को कारागार में डाल दिया| इस समाचार को सुनकर सभी ज्योतिषी डर गए| उन्होंने सोचा “हम तो राजा को सच नहीं बता सकते, अगर हम ऐसा करते हैं तो वे हमें कारागार में डाल देगा, अब हम क्या करें”?
कोई भी व्यक्ति नकारात्मक भविष्यवाणी पसंद नहीं करता| वह निःसंदेह कोई अच्छी और सकारात्मक बात सुनना चाहता है| और ऐसा राजा के लिए भी सच था| राजा ने दूसरे ज्योतिषी को अपने सामने आने के लिए कहा| बहुत से ज्योतिषी राजा के इस निवेदन से पलायन कर गए पर एक वरिष्ठ ज्योतिषी राजा से मिलाने को तैयार हो गया| तो वह राजा के समक्ष प्रस्तुत हुआ, राजा ने उसका भी उसी भाव और उपहारों से स्वागत किया| राजा ने उसको अपनी हथेली दिखाई| ज्योतिषी बोला “हे राजन! आपको तो महान भविष्य का वरदान है! आपका राशिफल तो बहुत अच्छा है| समस्त इतिहास में किसी को भी इस तरह का दीर्घायु होने का सौभाग्य नहीं है जैसा आपका है| सच तो यह है कि आपके राजवंश में कोई भी इतना दीर्घायु नहीं हुआ है जितने आप होंगे”|
ज्योतिषी ने यह नहीं कहा कि राजा अपने राजपरिवार में सभी लोगों से ज्यादा समय तक जीवित रहेगा| उसके बदले में उसने कहा कि उसको दीर्घायु होने का सौभाग्य प्राप्त है और उसका राशिफल बहुत अच्छा है| राजा अपने दीर्घायु होने और अपने अच्छे स्वास्थ्य के बारे में सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ| उसने ज्योतिषी से कहा “आपको जो भी उपहार मुझसे मांगना है मांग लो मैं आपको वह दे दूंगा”| ज्योतिषी ने कहा “कृपया मेरा सहकर्मी जो कारगर में बंद है उसे छोड़ दीजिए”|
संवाद की कुशलता से बहुत फर्क पड़ता है| कन्नड़ भाषा में एक दोहा है, “शब्दों से ही हंसी और मस्ती होती है, और शब्दों से ही शत्रुता भी हो सकती है”| इस लिए, हमारे संवाद से ही द्वंद्व उत्पन्न होता है|
प्रश्न : प्रिय गुरुदेव, आप ने अनेकों बार कहा है छोड़ दो, भूल जाओ पर अगर कोई व्यक्ति वही गलती बार बार, दिन प्रति दिन करता रहे तो क्या करना चाहिए?उत्तर : आप को उनको बताना चाहिए, सिखाना चाहिए लेकिन उनको अपने दिमाग से बाहर रखना चाहिए | मुक्त रहने का मतलब चुप रहना नहीं है |
अगर कोई गलती कर रहा है और आप उसको कहोगे “ऐसा मत करो, क्योंकि इससे मुझे कष्ट होता है”, तब वे कभी भी उसको करना बंद नहीं करेंगे| उसकी जगह आप उनसे कहें कि “आप का यह गलती करना आप के लिए कष्टदेह हो सकता है” तब वे नहीं करेंगे|तब उस व्यक्ति के अन्दर कुछ हलचल होगी और तब वह आपकी बात सुनेगा| तब वह अपना रास्ता बदल लेगा| याद रखो “एक पीड़ित व्यक्ति कभी किसी दोषी में सुधर नहीं ला सकता और अगर आप किसी में कोई सुधार लाना चाहते हैं और उनको कुछ सिखाना चाहते हैं तो आपके अन्दर एक शिक्षक जैसी उदारता होनी चाहिए| आपके अन्दर सहानभूति, एक खुला दृष्टिकोण और धैर्य होना चाहिए”|
तीन चीज़ें अति आवश्यक हैं, उदारता, धैर्य और कौशल्| तभी आप उनकी गलतियों को आसानी से आत्मसात कर पाओगे|
August 01, 2013
Sri Sri Ravishankar Knowledge on Suicidal Tendencies
Q: Guruji, The suicide rate in our country Korea is very high. The children of our country are growing up in an environment where there is too much competition and very less culture and spirituality. Please send us your words of wisdom.
Sri Sri Ravi Shankar : When energy goes down you get depressed and when it goes further down suicidal tendencies arise. Through proper breathing exercises, some meditation and through good and loving company energy can go up. Usually when we have some negative things in our minds we share it with somebody and our so called friends confirm our negativity rather than dissolving the negativity. They say, 'Yes what you say is correct and everything is hopeless'. Instead we should raise their level of enthusiasm and energy. It is not only the poor people who commit suicide but those who are rich also commit suicide because it is the state of mind which is responsible for suicidal tendencies. It has nothing to do with material acquisition. I would say that anyone with suicidal tendencies should be led to someone who can teach them meditation, who can make them do some breathing exercises and raise their energy level. And this is possible. Violence against oneself is as bad as violence against someone else. So the world is caught between societal violence on one side and suicidal tendencies on the other side. It is only spirituality which can bring them to the center and which can relieve them from these two extremities. If you find anyone with the slightest suicidal tendency please ask them to do some yoga. Get them around some good company, get them to sing and dance, and make them understand that life is much more than just a few material positions. Life is much more than blame or appreciation from someone. Life is much more than a relationship or a job. The reason for suicide is failure in relationship, failure in job and not being able to achieve what you want to achieve. Life is much more than the small desires that pop up in your consciousness, in your mind. See life from a bigger perspective and engage yourself in some sort of social activity; service activity. Service or seva can keep people sane and keep them out of this mental depression. Mental depression is worse than an economic recession. One has to take responsibility to sail over this and help others around them. The Art of Living is very much involved in working with such people and I would like more people to join and work to eradicate this menace of depression and suicidal tendencies."
प्रश्न : गुरुदेव, इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी समस्या से परेशान है। क्या हम इस दुनिया में केवल समस्याओं का समाधान करने के लिए आये हैं?
श्री श्री रविशंकर : यदि आप उन्हें समस्या मानते हैं तो वे आपको समस्या की तरह दिखेंगे। पर यदि आप उन्हें सृष्टि के खेल की तरह लेते हैं तो वो आपको एक स्वाभाविक खेल की तरह दिखेंगे।
कई बार हम अपनी समस्याओं के इतने आदी हो जाते हैं की उनके बिना हम बेचैन सा महसूस करने लगते हैं| कई बार जब कोई समस्या नहीं होती तो हम अपने लिए खुद समस्याओं का निर्माण कर लेते हैं और फिर अपने आसपास के लोगों के लिए समस्या बन जाते हैं। हमें जीवन के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलना होगा। एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाना होगा।
यह संसार विभिन्नताओं से भरा हुआ है और प्रतेक व्यक्ति का स्वभाव और व्यवहार एक दूसरे से भिन्न है। इस बात को समझने की आवश्यकता है।
Sri Sri Ravi Shankar : When energy goes down you get depressed and when it goes further down suicidal tendencies arise. Through proper breathing exercises, some meditation and through good and loving company energy can go up. Usually when we have some negative things in our minds we share it with somebody and our so called friends confirm our negativity rather than dissolving the negativity. They say, 'Yes what you say is correct and everything is hopeless'. Instead we should raise their level of enthusiasm and energy. It is not only the poor people who commit suicide but those who are rich also commit suicide because it is the state of mind which is responsible for suicidal tendencies. It has nothing to do with material acquisition. I would say that anyone with suicidal tendencies should be led to someone who can teach them meditation, who can make them do some breathing exercises and raise their energy level. And this is possible. Violence against oneself is as bad as violence against someone else. So the world is caught between societal violence on one side and suicidal tendencies on the other side. It is only spirituality which can bring them to the center and which can relieve them from these two extremities. If you find anyone with the slightest suicidal tendency please ask them to do some yoga. Get them around some good company, get them to sing and dance, and make them understand that life is much more than just a few material positions. Life is much more than blame or appreciation from someone. Life is much more than a relationship or a job. The reason for suicide is failure in relationship, failure in job and not being able to achieve what you want to achieve. Life is much more than the small desires that pop up in your consciousness, in your mind. See life from a bigger perspective and engage yourself in some sort of social activity; service activity. Service or seva can keep people sane and keep them out of this mental depression. Mental depression is worse than an economic recession. One has to take responsibility to sail over this and help others around them. The Art of Living is very much involved in working with such people and I would like more people to join and work to eradicate this menace of depression and suicidal tendencies."
प्रश्न : गुरुदेव, इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी समस्या से परेशान है। क्या हम इस दुनिया में केवल समस्याओं का समाधान करने के लिए आये हैं?
श्री श्री रविशंकर : यदि आप उन्हें समस्या मानते हैं तो वे आपको समस्या की तरह दिखेंगे। पर यदि आप उन्हें सृष्टि के खेल की तरह लेते हैं तो वो आपको एक स्वाभाविक खेल की तरह दिखेंगे।
कई बार हम अपनी समस्याओं के इतने आदी हो जाते हैं की उनके बिना हम बेचैन सा महसूस करने लगते हैं| कई बार जब कोई समस्या नहीं होती तो हम अपने लिए खुद समस्याओं का निर्माण कर लेते हैं और फिर अपने आसपास के लोगों के लिए समस्या बन जाते हैं। हमें जीवन के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलना होगा। एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाना होगा।
यह संसार विभिन्नताओं से भरा हुआ है और प्रतेक व्यक्ति का स्वभाव और व्यवहार एक दूसरे से भिन्न है। इस बात को समझने की आवश्यकता है।
माँ...-- MOTHER/MUMMA/MUMMY/AMMY
हैलो माँ ... में रवि बोल रहा हूँ....,कैसी हो माँ....?
मैं.... मैं…ठीक हूँ बेटे.....,ये बताओ तुम और बहू दोनों कैसे हो?
हम दोनों ठीक है माँ...आपकी बहुत याद
आती है…,...अच्छा सुनो माँ,में अगले महीने इंडिया आ
रहा हूँ..... तुम्हें लेने।
क्या...?
हाँ माँ....,अब हम सब साथ ही रहेंगे....,नीतू कह
रही थी माज़ी कोअमेरिका ले आओ वहाँ अकेली बहुत
परेशान हो रही होंगी। हैलो ....सुनरही हो माँ...?
“हाँ...हाँ बेटे...“,बूढ़ी आंखो से खुशी की अश्रुधारा बह
निकली,बेटे और बहू का प्यार नस नस में दौड़ने लगा। जीवन
के सत्तर साल गुजार चुकीसावित्री ने जल्दी सेअपने पल्लू
से आँसू पोंछे और बेटे से बात करने लगी।
पूरे दो साल बाद बेटाघर आ रहा था। बूढ़ी सावित्री ने
मोहल्ले भरमे दौड़ दौड़ कर ये खबर सबको सुना दी।
सभी खुश थे की चलो बुढ़ापा चैनसे बेटे और बहू के साथ गुजर
जाएगा।
रवि अकेला आया था,उसने कहा की माँ हमे
जल्दी ही वापिस जाना है इसलिए
जो भी रुपया पैसा किसी से लेना है वो लेकर रखलों और तब
तक मे किसी प्रोपेर्टी डीलर से मकानकी बात करता हूँ।
“मकान...?”,माँ ने पूछा।
हाँ माँ,अब ये मकान बेचना पड़ेगा वरना कौन
इसकी देखभाल करेगा। हम सब तो अब अमेरिका मे
ही रहेंगे।बूढ़ी आंखो ने मकान के कोने कोने को ऐसे
निहारा जैसे किसी अबोध बच्चे को सहला रही हो।
आनन फानन और औने-पौने दाम मे रवि ने मकान बेच दिया।
सावित्री देवीने वो जरूरी सामान समेटा जिस से
उनको बहुत ज्यादा लगाव था।
रवि टैक्सी मँगवा चुका था।
एयरपोर्ट पहुँचकर रवि ने कहा,”माँ तुम यहाँ बैठो मे अंदर
जाकर सामान की जांच और बोर्डिंगऔर विजाका काम
निपटा लेता हूँ। “
“ठीक है बेटे। “,सावित्री देवी वही पास की बेंच पर बैठ
गई।
काफी समय बीत चुका था। बाहर
बैठी सावित्री देवी बार बार उस दरवाजेकी तरफ देख
रही थी जिसमे रवि गया था लेकिन अभी तक बाहर
नहीं आया।‘शायद अंदर बहुत भीड़ होगी...’,सोचकर
बूढ़ी आंखे फिर से टकटकी लगाए देखने लगती।
अंधेरा हो चुका था। एयरपोर्ट के बाहर गहमागहमी कम
हो चुकी थी।
“माजी...,किस से मिलना है?”,एक कर्मचारी ने वृद्धा से
पूछा ।
“मेरा बेटा अंदर गया था..... टिकिट लेने,वो मुझे
अमेरिका लेकर जा रहा है ....”,सावित्री देबी ने घबराकर
कहा।
“लेकिन अंदर तो कोई पैसेंजर नहींहै,अमेरिका जाने
वाली फ्लाइट तोदोपहर मे ही चली गई। क्या नाम
था आपके बेटे का?”,कर्मचारी ने सवाल किया।
“र....रवि....”,सावित्री के चेहरे पेचिंता की लकीरें उभर
आई। कर्मचारी अंदर गया और कुछ देर बाद बाहर आकर
बोला,“माजी.... आपका बेटा रवि तो अमेरिका जाने
वाली फ्लाइट से कब का जा चुका...।”
“क्या.....”,वृद्धा की आंखो से गरम आँसुओं का सैलाब फुट
पड़ा। बूढ़ी माँ का रोम रोम कांप उठा।
किसी तरह वापिस घर पहुंची जो अब बिक चुका था।
रात मेंघर के बाहर चबूतरे पर ही सो गई।
सुबह हुई तो दयालु मकान मालिक ने एक कमरा रहने को दे
दिया। पति की पेंशन से घर का किराया और खाने काकाम
चलने लगा।समय गुजरने लगा। एक दिन मकान मालिक ने
वृद्धा से पूछा।
“माजी... क्यों नही आप अपने किसी रिश्तेदार के
यहाँ चली जाए,अब आपकी उम्र भी बहुत हो गई,अकेली कब
तक रह पाएँगी।“
“हाँ,चली तो जाऊँ,लेकिन कल
कोमेरा बेटा आया तो..?,यहाँ फिर कौनउसका ख्याल
रखेगा?“
मैं.... मैं…ठीक हूँ बेटे.....,ये बताओ तुम और बहू दोनों कैसे हो?
हम दोनों ठीक है माँ...आपकी बहुत याद
आती है…,...अच्छा सुनो माँ,में अगले महीने इंडिया आ
रहा हूँ..... तुम्हें लेने।
क्या...?
हाँ माँ....,अब हम सब साथ ही रहेंगे....,नीतू कह
रही थी माज़ी कोअमेरिका ले आओ वहाँ अकेली बहुत
परेशान हो रही होंगी। हैलो ....सुनरही हो माँ...?
“हाँ...हाँ बेटे...“,बूढ़ी आंखो से खुशी की अश्रुधारा बह
निकली,बेटे और बहू का प्यार नस नस में दौड़ने लगा। जीवन
के सत्तर साल गुजार चुकीसावित्री ने जल्दी सेअपने पल्लू
से आँसू पोंछे और बेटे से बात करने लगी।
पूरे दो साल बाद बेटाघर आ रहा था। बूढ़ी सावित्री ने
मोहल्ले भरमे दौड़ दौड़ कर ये खबर सबको सुना दी।
सभी खुश थे की चलो बुढ़ापा चैनसे बेटे और बहू के साथ गुजर
जाएगा।
रवि अकेला आया था,उसने कहा की माँ हमे
जल्दी ही वापिस जाना है इसलिए
जो भी रुपया पैसा किसी से लेना है वो लेकर रखलों और तब
तक मे किसी प्रोपेर्टी डीलर से मकानकी बात करता हूँ।
“मकान...?”,माँ ने पूछा।
हाँ माँ,अब ये मकान बेचना पड़ेगा वरना कौन
इसकी देखभाल करेगा। हम सब तो अब अमेरिका मे
ही रहेंगे।बूढ़ी आंखो ने मकान के कोने कोने को ऐसे
निहारा जैसे किसी अबोध बच्चे को सहला रही हो।
आनन फानन और औने-पौने दाम मे रवि ने मकान बेच दिया।
सावित्री देवीने वो जरूरी सामान समेटा जिस से
उनको बहुत ज्यादा लगाव था।
रवि टैक्सी मँगवा चुका था।
एयरपोर्ट पहुँचकर रवि ने कहा,”माँ तुम यहाँ बैठो मे अंदर
जाकर सामान की जांच और बोर्डिंगऔर विजाका काम
निपटा लेता हूँ। “
“ठीक है बेटे। “,सावित्री देवी वही पास की बेंच पर बैठ
गई।
काफी समय बीत चुका था। बाहर
बैठी सावित्री देवी बार बार उस दरवाजेकी तरफ देख
रही थी जिसमे रवि गया था लेकिन अभी तक बाहर
नहीं आया।‘शायद अंदर बहुत भीड़ होगी...’,सोचकर
बूढ़ी आंखे फिर से टकटकी लगाए देखने लगती।
अंधेरा हो चुका था। एयरपोर्ट के बाहर गहमागहमी कम
हो चुकी थी।
“माजी...,किस से मिलना है?”,एक कर्मचारी ने वृद्धा से
पूछा ।
“मेरा बेटा अंदर गया था..... टिकिट लेने,वो मुझे
अमेरिका लेकर जा रहा है ....”,सावित्री देबी ने घबराकर
कहा।
“लेकिन अंदर तो कोई पैसेंजर नहींहै,अमेरिका जाने
वाली फ्लाइट तोदोपहर मे ही चली गई। क्या नाम
था आपके बेटे का?”,कर्मचारी ने सवाल किया।
“र....रवि....”,सावित्री के चेहरे पेचिंता की लकीरें उभर
आई। कर्मचारी अंदर गया और कुछ देर बाद बाहर आकर
बोला,“माजी.... आपका बेटा रवि तो अमेरिका जाने
वाली फ्लाइट से कब का जा चुका...।”
“क्या.....”,वृद्धा की आंखो से गरम आँसुओं का सैलाब फुट
पड़ा। बूढ़ी माँ का रोम रोम कांप उठा।
किसी तरह वापिस घर पहुंची जो अब बिक चुका था।
रात मेंघर के बाहर चबूतरे पर ही सो गई।
सुबह हुई तो दयालु मकान मालिक ने एक कमरा रहने को दे
दिया। पति की पेंशन से घर का किराया और खाने काकाम
चलने लगा।समय गुजरने लगा। एक दिन मकान मालिक ने
वृद्धा से पूछा।
“माजी... क्यों नही आप अपने किसी रिश्तेदार के
यहाँ चली जाए,अब आपकी उम्र भी बहुत हो गई,अकेली कब
तक रह पाएँगी।“
“हाँ,चली तो जाऊँ,लेकिन कल
कोमेरा बेटा आया तो..?,यहाँ फिर कौनउसका ख्याल
रखेगा?“
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