May 15, 2013

इलाज - अर्जुन की छाल के फ़ायदे --------

अर्जुन की छाल के फ़ायदे --------
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शरीर शास्त्री वैज्ञानिकों और चिकित्सकों ने अनुसंधान व प्रयोगों में 'अर्जुन' वृक्ष को हृदय रोग की 

चिकित्सा में बहुत गुणकारी पाया है।

आयुर्वेद ने तो सदियों पहले इसे हृदय रोग की महान औषधि घोषित कर दिया था। आयुर्वेद के प्राचीन 


विद्वानों में वाग्भट, चक्रदत्त और भावमिश्र ने इसे हृदय रोग की महौषधि स्वीकार किया है।

विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत- ककुभ। हिन्दी- अर्जुन, कोह। मराठी- अर्जुन सादड़ा। गुजराती- सादड़ो 


। तेलुगू- तेल्लमद्दि। कन्नड़- मद्दि। तमिल मरुतै, बेल्म। इंग्लिश- अर्जुना। लैटिन- टरमिनेलिया अर्जुन।

गुण : यह शीतल, हृदय को हितकारी, कसैला और क्षत, क्षय, विष, रुधिर विकार, मेद, प्रमेह, व्रण, कफ 


तथा पित्त को नष्ट करता है।

परिचय : इसका वृक्ष 60 से 80 फीट तक ऊंचा होता है। इसके पत्ते अमरूद के पत्तों जैसे होते हैं। यह 


विशेषकर हिमालय की तराई, बंगाल, बिहार और मध्यप्रदेश के जंगलों में और नदी-नालों के किनारे 

पंक्तिबद्ध लगा हुआ पाया जाता है। ग्रीष्म ऋतु में फल पकते हैं।

उपयोग : इसका मुख्य उपयोग हृदय रोग के उपचार में किया जाता है। यह हृदय रोग की महाऔषधि माना 


जाता है। इसके अलावा इसका उपयोग रक्तपित्त, प्रमेह, मूत्राघात, शुक्रमेह, रक्तातिसार तथा क्षय और खांसी 

में भी लाभप्रद रहता है।

हृदय रोग : हृदय रोग के रोगी के लिए अर्जुनारिष्ट का सेवन बहुत लाभप्रद सिद्ध हुआ है। दोनों वक्त भोजन 


के बाद 2-2 चम्मच (बड़ा चम्मच) यानी 20-20 मि.ली. मात्रा में अर्जुनारिष्ट आधा कप पानी में डालकर 2-3 

माह तक निरंतर पीना चाहिए। इसके साथ ही इसकी छाल का महीन चूर्ण कपड़े से छानकर 3-3 ग्राम 

(आधा छोटा चम्मच) मात्रा में ताजे पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करना चाहिए।

रक्तपित्त : चरक के अनुसार, इसकी छाल रातभर पानी में भिगोकर रखें, सुबह इसे मसल-छानकर या काढ़ा 


बनाकर पीने से रक्तपित्त नामक व्याधि दूर हो जाती है।

मूत्राघात : पेशाब की रुकावट होने पर इसकी अंतरछाल को कूट-पीसकर 2 कप पानी में डालकर उबालें। 


जब आधा कप पानी शेष बचे, तब उतारकर छान लें और रोगी को पिला दें। इससे पेशाब की रुकावट दूर हो 

जाती है। लाभ होने तक दिन में एक बार पिलाएं।

खांसी : अर्जुन की छाल को सुखा लें और कूट-पीसकर महीन चूर्ण कर लें। ताजे हरे अडूसे के पत्तों का रस 


निकालकर इस चूर्ण में डाल दें और चूर्ण सुखा लें, फिर से इसमें अडूसे के पत्तों का रस डालकर सुखा लें। 

ऐसा सात बार करके चूर्ण को खूब सुखाकर पैक बंद शीशी में भर लें। इस चूर्ण को 3 ग्राम (छोटा आधा 

चम्मच) मात्रा में शहद में मिलाकर चटाने से रोगी को खांसी में आराम हो जाता है।

अर्जुन वृक्ष भारत में होने वाला एक औषधीय और सदाबहार वृक्ष है भारतीय पहाड़ी क्षेत्रों में नदी-नाले के 


किनारे, सड़क के किनारे ओर जंगलों में यह महा औषधिये वर्क्ष बहुतायत में पाया जाता है। इसका उपयोग 

रक्तपित्त (खून की उल्टी), प्रमेह, मूत्राघात, शुक्रमेह, खूनी प्रदर, श्वेतप्रदर, पेट दर्द, कान का दर्द, मुंह की 

झांइयां,कोढ बुखार, क्षय और खांसी में भी लाभप्रद रहता है। हृदय रोग के लिए तो इसे रामबाण औषधि 

माना जाता है। यह नाडी की क्षीणता को सक्रिय करता है, पुराणी खांसी, श्वास दमा, मधुमेह, सूजन,जलने 

पर, मुंह के छाले पर और हिस्टीरिया आदि रोगों में लाभदायक है। हृदय की रक्तवाही नलिकाओं में थक्का 

बनने से रोकता है। यह शक्तिवर्धक, चोट से निकलते खून को रोकने वाला (रक्त स्तम्भक) एवं प्रमेह नाशक 

भी है। इसे मोटापे को रोकने, हड्डियों को जोड़ने में, खूनी पेचिश में, बवासीर में, खून की कलाटिंग रोकने 

में मदद करता है और केलोस्ट्राल को भी घटाता है। यह ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करता है, पत्थरी को 

निकलता है, लीवर को मजबूत करता है, बवासीर को ठीक करता है। ताकत को बढ़ाने के लिए और यह 

एंटीसेप्टिक का भी काम करता है।

अर्जुन की छाल शारीरिक कमजोरी में हृदयाघात में, हृदय शूल में खूनी बवासीर में पेशाब की जलन, श्वेत 


प्रदर, सूजन व दर्द में तथा चर्म रोगों में एक चम्मच अर्जुन की छाल चूर्ण रूप में घी या गुड़ के साथ देते हैं। 

हृदय गति ढीली पड़ने पर अर्जुन की छाल व गुड़ को दूध में उबाल कर पिलाते हैं।


एक चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण एक कप (मलाई रहित) दूध के साथ सुबह-शाम नियमित सेवन करने 

से हृदय के सभी रोगों में लाभ मिलता है, दिल की धड़कन सामान्य होती है।

अर्जुन की छाल के चूर्ण को चाय के साथ एक चम्मच इस चूर्ण को उबालकर ले सकते हैं। उच्च रक्तचाप भी 

सामान्य हो जाता है। चायपत्ती की बजाये अर्जुन की छाल का चूर्ण डालकर ही चाय बनायें, यह और भी 

प्रभावी होगी। अर्जुन की छाल और गुड़ को दूध में उबाल कर रोगी को पिलाने से दिल मजबूत होता है और 

सूजन मिटता है।


एक गिलास टमाटर के रस में एक चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण मिलाकर नियमित सेवन करने से दिल 

की धड़कन सामान्य हो जाती है।


अर्जुन की छाल और मिश्री मिला कर हलुवा बना ले, इसका नित्य सेवन करने से हृदय की पीड़ा, दिल की 

घबराहट, अनियमित धड़कन आदि से निजात मिलती हैं।


अर्जुन की छाल का दूध के साथ काढ़ा बना ले यह काढ़ा हार्ट अटैक हो चुकने पर सुबह शाम सेवन करें। इस 

से हृदय की तेज धड़कन, हृदय शूल, घबराहट में निश्चित तोर से कमी आती हैं।


अर्जुन की छाल को कपड़े से छान ले इस चूर्ण को जीभ पर रखकर चूसते ही हृदय की अधिक अनियमित 

धड़कनें नियमित होने लगती है। यह दोष रहित है और इस का प्रभाव तुरंत स्थायी तोर पर होने लगता है।


आधा किलो दूध में दो चम्मच (टेबल स्पून) अर्जुन की छाल का चूर्ण मिला कर उबालकर खोया बना लें और 

खोये के बराबर का मिश्री पाउडर मिलाकर, हर रोज इस मिठाई को खाकर दूध पीने से हृदय की अनियमित 

धड़कन सामान्य होती है।


अर्जुन की छाल को छाया में सुखाकर, कूट-पीसकर और छान कर चूर्ण बनाकर प्रतिदिन एक चम्मच चूर्ण 

गाय के घी और मिश्री के साथ मिलाकर सेवन करने से दिल की कमजोरी दूर होती है। अर्जुन की छाल को 

गुड़ और मुलेठी तीनों को दूध में उबालकर भी सेवन कर सकते है।


अर्जुन शक्तिदायक टानिक है जो अपने लवण-खनिजों से दिल की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है। घी, 

दूध ,मिश्री या गुड़ के साथ अर्जुन की छाल का महीन चूर्ण नियमित सेवन करने से हृदय रोग, जीर्णज्वर, 

रक्त पित्त रोग दूर होते है तथा सेवन करने वाले की उम्र भी बढाती है।

अर्जुन की छाल के चूर्ण की गुड़ के साथ फंकी लेने से जीर्ण ज्वर ठीक होता है। तथा रात को दूध और चावल 

की खीरबना कर इस में सुबह 4 बजे अर्जुन की छाल के 2 चम्मच चूर्ण को मिलाकर सेवन करने से श्वांस 

रोग नष्ट हो जाते है।

अर्जुन की छाल में जरा-सी भुनी हेई हींग और सेंधा नमक मिलाकर सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ फंकी 

लेने से गुर्दे का दर्द, पेट के दर्द और पेट की जलन में लाभ होता है।

अर्जुन हृदय के विराम काल को बढ़ाता है और ह्रदय को मजबूत करता है तथा यह शरीर में जमा नहीं होता। 

यह मल-मूत्र द्वारा स्वयं ही बाहर निकल जाता है।

अर्जुन की 2 चम्मच छाल को रातभर पानी में भिगोकर सुबह उसको उबालकर उसका काढ़ा पीने से रक्तपित्त 

(खून की उल्टी) में लाभ होता है। खून की उल्टी में अर्जुन की छाल के 2 चम्मच बारीक चूर्ण को दूध में 

पकाकर खाने से आराम आता है। इससे रक्त का बहना रुकता है।


रक्तदोष त्वचा रोग एवं कुष्ठ रोग में अर्जुन की छाल का 1 चम्मच चूर्ण पानी के साथ सेवन करने से व इसकी 

छाल को पानी में घिसकर त्वचा पर लेप करने एवं अर्जुन की छाल को पानी में उबालकर या गुनगुने पानी 

में मिलाकर नहाने से कुष्ठ और त्वचा रोगों में बहुत लाभ होता है।


अर्जुन की छाल को रातभर पानी में भिगोकर रखें, सुबह इसे मसलकर-छानकर या काढ़ा बनाकर पीने से 

रक्तपित्त रोग ठीक होता है।


पेशाब की रुकावट को खोलने के लिए अर्जुन की छाल को एक गिलास पानी में डालकर 1/4 भाग शेष रह 

जाने तक उबालें। और छान कर रोगी को हर रोज सुबह लाभ होने तक पिलाये, पेशाब के खुलने के साथ-

साथ धातु का आना भी बंद हो जाता है।

सूखी अर्जुन की छाल को कूट-पीसकर महीन चूर्ण कर लें और अडूसे के ताजे पत्तों का रस निकालकर इस 

चूर्ण में डाल कर चूर्ण को सुखा लें, फिर अडूसे के पत्ते का रस डाले और फिर सुखा ले ऐसा सात बार करे चूर्ण 

को सुखाकर शीशी में भर लें। इसके आधा चम्मच चूर्ण को शहद में मिलाकर रोगी को चटाने से रोगी की 

खांसी में राहत मिलती है।

अर्जुन की छाल को शीशे या मिटटी के बर्तन में एक दिन के लिए भिगो दे दूसरे दिन इस छाल को पीसकर 

सुखा ले सूखने पर दोबारा पीस कर व छान कर किसी साफ़ बर्तन में भर कर रख लें। इस एक चम्मच चूर्ण 

को पानी में उबाल कर शहद मिला कर दिन में तिन बार सेवन से हर प्रकार की खांसी (क्षय रोग की खून 

मिश्रित खांसी) और पुरानी से पुराणी खांसी में भी आराम आता है ।

अर्जुन की छाल को बकरी के दूध में पीसकर दूध और शहद मिलकर पिलाने से खूनी दस्तो में शीघ्र आराम 

आ जाता है।

हड्डी टूट जाने और चोट लगने पर भी अर्जुन की छाल शीघ्र लाभ करती है। अर्जुन की छाल के चूर्ण की 

फंकी दूध के साथ लेने से टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है। और अर्जुन की छाल को पानी के साथ पीसकर लेप 

करने से दर्द में भी आराम मिलता है। टूटी हड्डी के स्थान पर अर्जुन की छाल को घी में पीसकर लेप करेंके 

पट्टी बांध ले हड्डी शीघ्र जुड़ जाती है।

आग से जलने पर होने वाला घाव पर अर्जुन की छाल के चूर्ण को लगाने से घाव शीघ्र ही भर जाता है। 

अर्जुन छाल को कूट कर काढ़ा बनाकर घावों और जख्मों को धोने से लाभ होता है।

बवासीर में अर्जुन की छाल, बकायन के फल और हारसिंगार के फूल तीनो को पीसकर बारीक चूर्ण बनाले 

इसे दिन में दो-तिन बार नियमित सेवन करने से खूनी बवासीर ठीक हो जाता है तथा बवासीर के मस्से 

ठीक हो जाते है।

अर्जुन और जामुन के सूखे पत्तों का चूर्ण शारीर पर उबटन की तरह लगाकर कुछ देर बाद नहाने से अधिक 

पसीने से पैदा दुर्गंध दूर होती है ।

नारियल के तेल में अर्जुन की छाल के चूर्ण को मिलाकर मुंह के छालों पर लगायें। मुंह के छाले ठीक हो 

जायेंगे।

विशेष : सीने में दर्द की शिकायत की अनदेखा न करें और न ही खुद से दवा या उपचार लें, बल्कि हृदय का 

उपचार किसी विशेषज्ञ की देखरेख में ही होना चाहिए।

आयुर्वेद ने तो सदियों पहले इसे हृदय रोग की महान औषधि घोषित कर दिया था। आयुर्वेद के प्राचीन 

विद्वानों में वाग्भट, चक्रदत्त और भावमिश्र ने इसे हृदय रोग की महौषधि स्वीकार किया है।


विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत- ककुभ। हिन्दी- अर्जुन, कोह। मराठी- अर्जुन सादड़ा। गुजराती- सादड़ो 

। तेलुगू- तेल्लमद्दि। कन्नड़- मद्दि। तमिल मरुतै, बेल्म। इंग्लिश- अर्जुना। लैटिन- टरमिनेलिया अर्जुन।

गुण : यह शीतल, हृदय को हितकारी, कसैला और क्षत, क्षय, विष, रुधिर विकार, मेद, प्रमेह, व्रण, कफ 

तथा पित्त को नष्ट करता है।

परिचय : इसका वृक्ष 60 से 80 फीट तक ऊंचा होता है। इसके पत्ते अमरूद के पत्तों जैसे होते हैं। यह 

विशेषकर हिमालय की तराई, बंगाल, बिहार और मध्यप्रदेश के जंगलों में और नदी-नालों के किनारे 

पंक्तिबद्ध लगा हुआ पाया जाता है। ग्रीष्म ऋतु में फल पकते हैं।


उपयोग : इसका मुख्य उपयोग हृदय रोग के उपचार में किया जाता है। यह हृदय रोग की महाऔषधि माना 

जाता है। इसके अलावा इसका उपयोग रक्तपित्त, प्रमेह, मूत्राघात, शुक्रमेह, रक्तातिसार तथा क्षय और खांसी 

में भी लाभप्रद रहता है।


हृदय रोग : हृदय रोग के रोगी के लिए अर्जुनारिष्ट का सेवन बहुत लाभप्रद सिद्ध हुआ है। दोनों वक्त भोजन 

के बाद 2-2 चम्मच (बड़ा चम्मच) यानी 20-20 मि.ली. मात्रा में अर्जुनारिष्ट आधा कप पानी में डालकर 2-3 

माह तक निरंतर पीना चाहिए। इसके साथ ही इसकी छाल का महीन चूर्ण कपड़े से छानकर 3-3 ग्राम 

(आधा छोटा चम्मच) मात्रा में ताजे पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करना चाहिए।

रक्तपित्त : चरक के अनुसार, इसकी छाल रातभर पानी में भिगोकर रखें, सुबह इसे मसल-छानकर या काढ़ा 

बनाकर पीने से रक्तपित्त नामक व्याधि दूर हो जाती है।

मूत्राघात : पेशाब की रुकावट होने पर इसकी अंतरछाल को कूट-पीसकर 2 कप पानी में डालकर उबालें। 

जब आधा कप पानी शेष बचे, तब उतारकर छान लें और रोगी को पिला दें। इससे पेशाब की रुकावट दूर हो 

जाती है। लाभ होने तक दिन में एक बार पिलाएं।

खांसी : अर्जुन की छाल को सुखा लें और कूट-पीसकर महीन चूर्ण कर लें। ताजे हरे अडूसे के पत्तों का रस 

निकालकर इस चूर्ण में डाल दें और चूर्ण सुखा लें, फिर से इसमें अडूसे के पत्तों का रस डालकर सुखा लें। 

ऐसा सात बार करके चूर्ण को खूब सुखाकर पैक बंद शीशी में भर लें। इस चूर्ण को 3 ग्राम (छोटा आधा 

चम्मच) मात्रा में शहद में मिलाकर चटाने से रोगी को खांसी में आराम हो जाता है।

अर्जुन वृक्ष भारत में होने वाला एक औषधीय और सदाबहार वृक्ष है भारतीय पहाड़ी क्षेत्रों में नदी-नाले के 

किनारे, सड़क के किनारे ओर जंगलों में यह महा औषधिये वर्क्ष बहुतायत में पाया जाता है। इसका उपयोग 

रक्तपित्त (खून की उल्टी), प्रमेह, मूत्राघात, शुक्रमेह, खूनी प्रदर, श्वेतप्रदर, पेट दर्द, कान का दर्द, मुंह की 

झांइयां,कोढ बुखार, क्षय और खांसी में भी लाभप्रद रहता है। हृदय रोग के लिए तो इसे रामबाण औषधि 

माना जाता है। यह नाडी की क्षीणता को सक्रिय करता है, पुराणी खांसी, श्वास दमा, मधुमेह, सूजन,जलने 

पर, मुंह के छाले पर और हिस्टीरिया आदि रोगों में लाभदायक है। हृदय की रक्तवाही नलिकाओं में थक्का 

बनने से रोकता है। यह शक्तिवर्धक, चोट से निकलते खून को रोकने वाला (रक्त स्तम्भक) एवं प्रमेह नाशक 

भी है। इसे मोटापे को रोकने, हड्डियों को जोड़ने में, खूनी पेचिश में, बवासीर में, खून की कलाटिंग रोकने 

में मदद करता है और केलोस्ट्राल को भी घटाता है। यह ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करता है, पत्थरी को 

निकलता है, लीवर को मजबूत करता है, बवासीर को ठीक करता है। ताकत को बढ़ाने के लिए और यह 

एंटीसेप्टिक का भी काम करता है।

अर्जुन की छाल शारीरिक कमजोरी में हृदयाघात में, हृदय शूल में खूनी बवासीर में पेशाब की जलन, श्वेत 

प्रदर, सूजन व दर्द में तथा चर्म रोगों में एक चम्मच अर्जुन की छाल चूर्ण रूप में घी या गुड़ के साथ देते हैं। 

हृदय गति ढीली पड़ने पर अर्जुन की छाल व गुड़ को दूध में उबाल कर पिलाते हैं।

एक चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण एक कप (मलाई रहित) दूध के साथ सुबह-शाम नियमित सेवन करने 

से हृदय के सभी रोगों में लाभ मिलता है, दिल की धड़कन सामान्य होती है।

अर्जुन की छाल के चूर्ण को चाय के साथ एक चम्मच इस चूर्ण को उबालकर ले सकते हैं। उच्च रक्तचाप भी 

सामान्य हो जाता है। चायपत्ती की बजाये अर्जुन की छाल का चूर्ण डालकर ही चाय बनायें, यह और भी 

प्रभावी होगी। अर्जुन की छाल और गुड़ को दूध में उबाल कर रोगी को पिलाने से दिल मजबूत होता है और 

सूजन मिटता है।

एक गिलास टमाटर के रस में एक चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण मिलाकर नियमित सेवन करने से दिल 

की धड़कन सामान्य हो जाती है।

अर्जुन की छाल और मिश्री मिला कर हलुवा बना ले, इसका नित्य सेवन करने से हृदय की पीड़ा, दिल की 

घबराहट, अनियमित धड़कन आदि से निजात मिलती हैं।

अर्जुन की छाल का दूध के साथ काढ़ा बना ले यह काढ़ा हार्ट अटैक हो चुकने पर सुबह शाम सेवन करें। इस 

से हृदय की तेज धड़कन, हृदय शूल, घबराहट में निश्चित तोर से कमी आती हैं।

अर्जुन की छाल को कपड़े से छान ले इस चूर्ण को जीभ पर रखकर चूसते ही हृदय की अधिक अनियमित 

धड़कनें नियमित होने लगती है। यह दोष रहित है और इस का प्रभाव तुरंत स्थायी तोर पर होने लगता है।

आधा किलो दूध में दो चम्मच (टेबल स्पून) अर्जुन की छाल का चूर्ण मिला कर उबालकर खोया बना लें और 

खोये के बराबर का मिश्री पाउडर मिलाकर, हर रोज इस मिठाई को खाकर दूध पीने से हृदय की अनियमित 

धड़कन सामान्य होती है।

अर्जुन की छाल को छाया में सुखाकर, कूट-पीसकर और छान कर चूर्ण बनाकर प्रतिदिन एक चम्मच चूर्ण 

गाय के घी और मिश्री के साथ मिलाकर सेवन करने से दिल की कमजोरी दूर होती है। अर्जुन की छाल को 

गुड़ और मुलेठी तीनों को दूध में उबालकर भी सेवन कर सकते है।

अर्जुन शक्तिदायक टानिक है जो अपने लवण-खनिजों से दिल की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है। घी, 

दूध ,मिश्री या गुड़ के साथ अर्जुन की छाल का महीन चूर्ण नियमित सेवन करने से हृदय रोग, जीर्णज्वर, 

रक्त पित्त रोग दूर होते है तथा सेवन करने वाले की उम्र भी बढाती है।

अर्जुन की छाल के चूर्ण की गुड़ के साथ फंकी लेने से जीर्ण ज्वर ठीक होता है। तथा रात को दूध और चावल 

की खीरबना कर इस में सुबह 4 बजे अर्जुन की छाल के 2 चम्मच चूर्ण को मिलाकर सेवन करने से श्वांस 

रोग नष्ट हो जाते है।

अर्जुन की छाल में जरा-सी भुनी हेई हींग और सेंधा नमक मिलाकर सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ फंकी 

लेने से गुर्दे का दर्द, पेट के दर्द और पेट की जलन में लाभ होता है।

अर्जुन हृदय के विराम काल को बढ़ाता है और ह्रदय को मजबूत करता है तथा यह शरीर में जमा नहीं होता। 

यह मल-मूत्र द्वारा स्वयं ही बाहर निकल जाता है।

अर्जुन की 2 चम्मच छाल को रातभर पानी में भिगोकर सुबह उसको उबालकर उसका काढ़ा पीने से रक्तपित्त 

(खून की उल्टी) में लाभ होता है। खून की उल्टी में अर्जुन की छाल के 2 चम्मच बारीक चूर्ण को दूध में 

पकाकर खाने से आराम आता है। इससे रक्त का बहना रुकता है।

रक्तदोष त्वचा रोग एवं कुष्ठ रोग में अर्जुन की छाल का 1 चम्मच चूर्ण पानी के साथ सेवन करने से व इसकी 

छाल को पानी में घिसकर त्वचा पर लेप करने एवं अर्जुन की छाल को पानी में उबालकर या गुनगुने पानी 

में मिलाकर नहाने से कुष्ठ और त्वचा रोगों में बहुत लाभ होता है।

अर्जुन की छाल को रातभर पानी में भिगोकर रखें, सुबह इसे मसलकर-छानकर या काढ़ा बनाकर पीने से 

रक्तपित्त रोग ठीक होता है।

पेशाब की रुकावट को खोलने के लिए अर्जुन की छाल को एक गिलास पानी में डालकर 1/4 भाग शेष रह 

जाने तक उबालें। और छान कर रोगी को हर रोज सुबह लाभ होने तक पिलाये, पेशाब के खुलने के साथ-

साथ धातु का आना भी बंद हो जाता है।

सूखी अर्जुन की छाल को कूट-पीसकर महीन चूर्ण कर लें और अडूसे के ताजे पत्तों का रस निकालकर इस 

चूर्ण में डाल कर चूर्ण को सुखा लें, फिर अडूसे के पत्ते का रस डाले और फिर सुखा ले ऐसा सात बार करे चूर्ण 

को सुखाकर शीशी में भर लें। इसके आधा चम्मच चूर्ण को शहद में मिलाकर रोगी को चटाने से रोगी की 

खांसी में राहत मिलती है।

अर्जुन की छाल को शीशे या मिटटी के बर्तन में एक दिन के लिए भिगो दे दूसरे दिन इस छाल को पीसकर 

सुखा ले सूखने पर दोबारा पीस कर व छान कर किसी साफ़ बर्तन में भर कर रख लें। इस एक चम्मच चूर्ण 

को पानी में उबाल कर शहद मिला कर दिन में तिन बार सेवन से हर प्रकार की खांसी (क्षय रोग की खून 

मिश्रित खांसी) और पुरानी से पुराणी खांसी में भी आराम आता है ।

अर्जुन की छाल को बकरी के दूध में पीसकर दूध और शहद मिलकर पिलाने से खूनी दस्तो में शीघ्र आराम 

आ जाता है।

हड्डी टूट जाने और चोट लगने पर भी अर्जुन की छाल शीघ्र लाभ करती है। अर्जुन की छाल के चूर्ण की 

फंकी दूध के साथ लेने से टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है। और अर्जुन की छाल को पानी के साथ पीसकर लेप 

करने से दर्द में भी आराम मिलता है। टूटी हड्डी के स्थान पर अर्जुन की छाल को घी में पीसकर लेप करेंके 

पट्टी बांध ले हड्डी शीघ्र जुड़ जाती है।

आग से जलने पर होने वाला घाव पर अर्जुन की छाल के चूर्ण को लगाने से घाव शीघ्र ही भर जाता है। 

अर्जुन छाल को कूट कर काढ़ा बनाकर घावों और जख्मों को धोने से लाभ होता है।

बवासीर में अर्जुन की छाल, बकायन के फल और हारसिंगार के फूल तीनो को पीसकर बारीक चूर्ण बनाले 

इसे दिन में दो-तिन बार नियमित सेवन करने से खूनी बवासीर ठीक हो जाता है तथा बवासीर के मस्से 

ठीक हो जाते है।

अर्जुन और जामुन के सूखे पत्तों का चूर्ण शारीर पर उबटन की तरह लगाकर कुछ देर बाद नहाने से अधिक 

पसीने से पैदा दुर्गंध दूर होती है ।

नारियल के तेल में अर्जुन की छाल के चूर्ण को मिलाकर मुंह के छालों पर लगायें। मुंह के छाले ठीक हो 

जायेंगे।


विशेष : सीने में दर्द की शिकायत की अनदेखा न करें और न ही खुद से दवा या उपचार लें, बल्कि हृदय का 

उपचार किसी विशेषज्ञ की देखरेख में ही होना चाहिए।

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