May 23, 2012

संस्कृति- APJ Kalam On Gift

Excerpts from Dr. A.P.J. Abdul Kalam's address to the members of India Islamic Cultural Centre, New Delhi, 2007:



"I would like to mention the writings in Manu Smriti which, states that "By accepting gifts the divine light in the person gets extinguished". Manu warns every individual against accepting gifts for the reason that it places the acceptor under an obligation in favour of the person who ...gave the gift and ultimately it results in making a person to do things which are not permitted according to law.



I am sharing this thought with all of you since no one should get carried away by any gift which comes with a purpose and through which one loses his personality greatly."



(Dr. Kalam delivered this speech when he still was in the high office as the President of India)



May 17, 2012

बड़े ही काम की हैं ये वेबसाइट्स, आपको हो जाएगा फायदा (GOOD WEBSITES)

बड़े ही काम की हैं ये वेबसाइट्स, आपको हो जाएगा फायदा



स्टूडेंट्स क...ो गर्मी की छुट्टियों में कई असाइनमेंट्स मिले होंगे। इसके अलावा होम वर्क अलग से होगा। ऐसे में कुछ ऐसी वेबसाइट्स के बारे में जानते हैं, जो इन्हें पूरा करने में मदद करेंगी। स्टूडेंट्स कई बार घर पर पढ़ते हुए ऐसी डिटेल्स पाने की जरूरत महसूस करते हैं, जिनका जिक्र किताबों में तो होता है, लेकिन उस पर गहराई से जानकारी नहीं होती। ऐसे मुद्दों और विषयों पर गहराई से जानकारी हासिल करने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल किया जा सकता है। जानते हैं कौन सी साइट्स बनेंगी मददगार।

Refdesk.com
यह तथ्यों की जांच करने में मददगार वेबसाइट है। यहां पर इतने विविध तथ्य और जानकारियां मौजूद हैं कि छात्रों के लिए इससे बेहतर होमपेज कोई और नहीं हो सकता। गूगल, बिंग और याहू सर्च रेफडेस्क के होमपेज से ही की जा सकती है। इसके साथ-साथ विकीपीडिया, यू-ट्यूब तथा कई डिक्शनरियों तथा इनसाइक्लोपीडिया में भी सर्च की सुविधा मौजूद है। दिन के खास समाचारों, खास तथ्यों, खास लोगों, खास शब्दों, खास घटनाओं आदि की आकाईव भी उपलब्ध है।
Factmonster.com

इस वेबसाइट को ऑनलाइन अल्मनेक, डिक्शनरी, इनसाइक्लोपीडिया और होम वर्क में मदद करने वाले रिसोर्स के रूप में देख सकते हैं। होमपेज पर ही दुनिया की हलचल, लोग, खेल, विज्ञान, गणित जैसे लिंक्स दिए गए हैं, जिनके भीतर जाने पर तथ्यों और जानकारियों का खजाना खुल जाता है। टाइमलाइन सेक्शन यूजर को इतिहास की यात्रा करने का मौका देता है, तो वर्ड वाइस में शब्द-ज्ञान को आजमा सकते हैं। एटलस आपको दुनिया की सैर कराता है।

Wolframalpha.com

यह एक अनूठा सर्च इंजन है, जो विद्याथिर्यों और शोधकर्ताओं के लिए बेहद उपयोगी है। इसे कम्प्यूटेशनल नॉलेज इंजन कहा गया है, क्योंकि यह किसी भी विषय पर मांगी गई सामग्री को जरूरत के हिसाब से दिखाने में सक्षम है। यह सामान्य सर्च नहीं, बल्कि इंटेलीजेंट सर्च रिजल्ट है जो सिर्फ सूचनाएं नहीं खोजता बल्कि उनका विश्लेषण करके नतीजे दिखाने में सक्षम है। मिसाल के तौर पर गूगल hindi and mandarin लिखकर सर्च करने पर ऐसे पेजों को दिखाया जाता है, जिनमें हिंदी और मंदारिन दोनों का जिक्र हो।
लेकिन यही सर्च टर्म जब Wolframalpha में डाला जाता है, तो वह इन दोनों भाषाओं का तुलनात्मक विश्लेषण दिखाता है। यहां इतिहास से लेकर वर्तमान तक के बारे में जरूरी तथ्य मिलेंगे। विश्व एवं खबरें, इतिहास, खेल, जीवनियां, कलाएं, मनोरंजन, बिजनेस, हेल्थ एंड साइंसेज, कैलेंडर एंड हॉलीडेज जैसी कई श्रणियों में सूचनाओं का भंडार भरा पड़ा है। ज्ञानवर्धक पहेलियां, देशों के प्रोफाइल, कनवर्जन कैलकुलेटर आदि सुविधाएं आपको लुभाएंगी।

Wisegeek.com

इस वेबसाइट पर स्टूडेंट्स की जरूरत के विषयों पर स्तरीय लेखों का भंडार है। साइंस एंड इंजीनियरिंग से जुड़े विषयों पर कोई साढ़े चार हजार, एडल्ट एजुकेशन एंड ट्रेनिंग पर साढ़े पंद्रह हजार, महान हस्तियों पर तेरह सौ, बिजनेस एंड इकोनॉमी पर सात हजार से अधिक, जानवरों और पर्यावरण पर चार हजार, टेक्नोलॉजी और गैजेट्स पर करीब चार हजार लेख मौजूद हैं।

http://www.cultureunplugged.com/

यह साईट उन लोगों के लिए हैं जो विभिन्न संस्कृतियों पर लघु फिल्में और डाक्यूमेंट्री देखना पसंद करते हैं

http://www.totalbhakti.com/
यदि आप उन लोगों में से हैं जो घंटो भक्ति एवं आद्यात्मिक सामग्री सुन्ना पसंद करते हैं तो यह  वेबसाइट आपके लिए हैं



May 16, 2012

संस्कृति- अपनी भारत की संस्कृति को पहचाने ---

अपनी भारत की संस्कृति को पहचाने ---

दो पक्ष - कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष !


तीन ऋण - देव ऋण, पित्र ऋण एवं ऋषि त्रण !


चार युग - सतयुग , त्रेता युग , द्वापरयुग एवं कलयुग !


चार धाम - द्वारिका , बद्रीनाथ, जगन्नाथ पूरी एवं रामेश्वरम धाम !


चारपीठ - शारदा पीठ ( द्वारिका ), ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम), गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) एवं 


श्रन्गेरिपीठ !

चर वेद- ऋग्वेद , अथर्वेद, यजुर्वेद एवं सामवेद !


चार आश्रम - ब्रह्मचर्य , गृहस्थ , बानप्रस्थ एवं संन्यास !


चार अंतःकरण - मन , बुद्धि , चित्त , एवं अहंकार !


पञ्च गव्य - गाय का घी , दूध , दही , गोमूत्र एवं गोबर , !


पञ्च देव - गणेश , विष्णु , शिव , देवी और सूर्य !


पंच तत्त्व - प्रथ्वी , जल , अग्नि , वायु एवंआकाश !


छह दर्शन - वैशेषिक , न्याय , सांख्य, योग , पूर्व मिसांसा एवं दक्षिण मिसांसा !


सप्त ऋषि - विश्वामित्र , जमदाग्नि , भरद्वाज , गौतम , अत्री , वशिष्ठ और कश्यप !


सप्त पूरी - अयोध्या पूरी , मथुरा पूरी , माया पूरी ( हरिद्वार ) , कशी , कांची ( शिन कांची - विष्णु कांची ) ,


 अवंतिका और द्वारिका पूरी !

आठ योग - यम , नियम, आसन , प्राणायाम , प्रत्याहार , धारणा , ध्यान एवं समाधी !


आठ लक्ष्मी - आग्घ , विद्या , सौभाग्य , अमृत, काम , सत्य , भोग , एवं योग लक्ष्मी !


नव दुर्गा - शैल पुत्री , ब्रह्मचारिणी , चंद्रघंटा , कुष्मांडा , स्कंदमाता , कात्यायिनी , कालरात्रि , महागौरी एवं 


सिद्धिदात्री !

दस दिशाएं - पूर्व , पश्चिम , उत्तर , दक्षिण, इशान , नेत्रत्य , वायव्य आग्नेय ,आकाश एवं पाताल !


मुख्या ग्यारह अवतार - मत्स्य , कच्छप , बराह , नरसिंह , बामन , परशुराम , श्री राम , कृष्ण , बलराम 


, बुद्ध , एवं कल्कि !

बारह मास - चेत्र , वैशाख , ज्येष्ठ ,अषाड़ , श्रावन , भाद्रपद , अश्विन , कार्तिक , मार्गशीर्ष . पौष , माघ , 


फागुन !

बारह राशी - मेष , ब्रषभ , मिथुन , कर्क , सिंह, तुला , ब्रश्चिक , धनु , मकर , कुम्भ , एवं कन्या !


बारह ज्योतिर्लिंग - सोमनाथ , मल्लिकर्जुना , महाकाल , ओमकालेश्वर , बैजनाथ , रामेश्वरम , विश्वनाथ , 


त्रियम्वाकेश्वर , केदारनाथ , घुष्नेश्वर , भीमाशंकर एवं नागेश्वर !

पंद्रह तिथियाँ - प्रतिपदा , द्वतीय , तृतीय , चतुर्थी , पंचमी , षष्ठी , सप्तमी , अष्टमी , नवमी , दशमी , 


एकादशी , द्वादशी , त्रयोदशी , चतुर्दशी , पूर्णिमा , अमावश्या !

स्म्रतियां - मनु , विष्णु, अत्री , हारीत , याज्ञवल्क्य , उशना , अंगीरा , यम , आपस्तम्ब , सर्वत , 


कात्यायन , ब्रहस्पति , पराशर , व्यास , शांख्य , लिखित , दक्ष , शातातप , वशिष्ठ !

संस्कृति-अँग्रेजी भाषा के बारे में भ्रम *** गुलामी या आवश्यकता


  • आज के मैकाले मानसों द्वारा अँग्रेजी के पक्ष में तर्क और उसकी सच्चाई :

    1. अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है:: विश्व में इस समय १० सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थायें (Top 10 Economies) अमेरिका, चीन, जापान, भारत, जर्मनी, रशिया, ब्राजील, ब्रिटेन, फ्रांस एवं इटली है| जिसमे मात्र २ देश ही अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करते हैं अमेरिका और ब्रिटेन वोह भी एक सी नहीं, दोनों कि अंग्रेजी में भी अंतर है | अब आप ही बताएं कि किस आधार पर अंग्रेजी को वैश्विक भाषा (Global Language) माना जाए |दुनिया में इस समय 204 देश हैं और मात्र 12 देशों में अँग्रेजी बोली, पढ़ी और समझी जाती है। संयुक्त राष्ट्र संघ जो अमेरिका में है वहां की भाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है। इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे। ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी। अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी, समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी। पूरी दुनिया में जनसंख्या के हिसाब से सिर्फ 3% लोग अँग्रेजी बोलते हैं जिसमे भारत दूसरे नंबर पर है | इस हिसाब से तो अंतर्राष्ट्रीय भाषा चाइनीज हो सकती है क्यूंकि ये दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाती है और दूसरे नंबर पर हिन्दी हो सकती है।

    2. अँग्रेजी बहुत समृद्ध भाषा है:: किसी भी भाषा की समृद्धि इस बात से तय होती है की उसमें कितने शब्द हैं और अँग्रेजी में सिर्फ 12,000 मूल शब्द हैं बाकी अँग्रेजी के सारे शब्द चोरी के हैं या तो लैटिन के, या तो फ्रेंच के, या तो ग्रीक के, या तो दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ देशों की भाषाओं के हैं। उदाहरण: अँग्रेजी में चाचा, मामा, फूफा, ताऊ सब UNCLE चाची, ताई, मामी, बुआ सब AUNTY क्यूंकी अँग्रेजी भाषा में शब्द ही नहीं है। जबकि गुजराती में अकेले 40,000 मूल शब्द हैं। मराठी में 48000+ मूल शब्द हैं जबकि हिन्दी में 70000+ मूल शब्द हैं। कैसे माना जाए अँग्रेजी बहुत समृद्ध भाषा है ?? अँग्रेजी सबसे लाचार/ पंगु/ रद्दी भाषा है क्योंकि इस भाषा के नियम कभी एक से नहीं होते। दुनिया में सबसे अच्छी भाषा वो मानी जाती है जिसके नियम हमेशा एक जैसे हों, जैसे: संस्कृत। अँग्रेजी में आज से 200 साल पहले This की स्पेलिंग Tis होती थी। अँग्रेजी में 250 साल पहले Nice मतलब बेवकूफ होता था और आज Nice मतलब अच्छा होता है। अँग्रेजी भाषा में Pronunciation कभी एक सा नहीं होता। Today को ऑस्ट्रेलिया में Todie बोला जाता है जबकि ब्रिटेन में Today. अमेरिका और ब्रिटेन में इसी बात का झगड़ा है क्योंकि अमेरीकन अँग्रेजी में Z का ज्यादा प्रयोग करते हैं और ब्रिटिश अँग्रेजी में S का, क्यूंकी कोई नियम ही नहीं है और इसीलिए दोनों ने अपनी अपनी अलग अलग अँग्रेजी मान ली।

    3. अँग्रेजी नहीं होगी तो विज्ञान और तकनीक की पढ़ाई नहीं हो सकती:: दुनिया में 2 देश इसका उदाहरण हैं की बिना अँग्रेजी के भी विज्ञान और तकनीक की पढ़ाई होटी है- जापान और फ़्रांस । पूरे जापान में इंजीन्यरिंग, मेडिकल के जीतने भी कॉलेज और विश्वविद्यालय हैं सबमें पढ़ाई "JAPANESE" में होती है, इसी तरह फ़्रांस में बचपन से लेकर उच्चशिक्षा तक सब फ्रेंच में पढ़ाया जाता है।
    हमसे छोटे छोटे, हमारे शहरों जितने देशों में हर साल नोबल विजेता पैदा होते हैं लेकिन इतने बड़े भारत में नहीं क्यूंकी हम विदेशी भाषा में काम करते हैं और विदेशी भाषा में कोई भी मौलिक काम नहीं किया जा सकता सिर्फ रटा जा सकता है। ये अँग्रेजी का ही परिणाम है की हमारे देश में नोबल पुरस्कार विजेता पैदा नहीं होते हैं क्यूंकी नोबल पुरस्कार के लिए मौलिक काम करना पड़ता है और कोई भी मौलिक काम कभी भी विदेशी भाषा में नहीं किया जा सकता है। नोबल पुरस्कार के लिए P.hd, B.Tech, M.Tech की जरूरत नहीं होती है। उदाहरण: न्यूटन कक्षा 9 में फ़ेल हो गया था, आइंस्टीन कक्षा 10 के आगे पढे ही नही और E=hv बताने वाला मैक्स प्लांक कभी स्कूल गया ही नहीं। ऐसी ही शेक्सपियर, तुलसीदास, महर्षि वेदव्यास आदि के पास कोई डिग्री नहीं थी, इनहोने सिर्फ अपनी मात्रभाषा में काम किया।
    जब हम हमारे बच्चों को अँग्रेजी माध्यम से हटकर अपनी मात्रभाषा में पढ़ाना शुरू करेंगे तो इस अंग्रेज़ियत से हमारा रिश्ता टूटेगा। अंग्रेजी पढ़ायें इसमें कोई बुरे नहीं लेकिन हिंदी या मात्रभाषा की कीमत पर नहीं| किसी भी संस्कृति का पुट उसके साहित्य में होता है और साहित्य बिना भाषा के नहीं पढ़ा जा सकता| सोचिये यदि आज के बालकों को हिंदी का ज्ञान ही नहीं होगा तो वे कैसे रामायण, महाभारत और गीता पढ़ सकेंगे जिसका ज्ञान प्राप्त करने के लिए हजारों अंग्रेज ऋषिकेश, वाराणसी, वृन्दावन में पड़े रहते हैं और बड़ी लगन से हिंदी एवं संस्कृत का ज्ञान प्राप्त करतें हैं |

    क्या आप जानते हैं जापान ने इतनी जल्दी इतनी तरक्की कैसे कर ली ? क्यूंकी जापान के लोगों में अपनी मात्रभाषा से जितना प्यार है उतना ही अपने देश से प्यार है। जापान के बच्चों में बचपन से कूट- कूट कर राष्ट्रीयता की भावना भरी जाती है।

    * जो लोग अपनी मात्रभाषा से प्यार नहीं करते वो अपने देश से प्यार नहीं करते सिर्फ झूठा दिखावा करते हैं। *

    दुनिया भर के वैज्ञानिकों का मानना है की दुनिया में कम्प्युटर के लिए सबसे अच्छी भाषा 'संस्कृत' है। सबसे ज्यादा संस्कृत पर शोध इस समय जर्मनी और अमेरिका चल रही है। नासा ने 'मिशन संस्कृत' शुरू किया है और अमेरिका में बच्चों के पाठ्यक्रम में संस्कृत को शामिल किया गया है। सोचिए अगर अँग्रेजी अच्छी भाषा होती तो ये अँग्रेजी को क्यूँ छोड़ते और हम अंग्रेज़ियत की गुलामी में घुसे हुए है। कोई भी बड़े से बड़ा तीस मार खाँ अँग्रेजी बोलते समय सबसे पहले उसको अपनी मात्रभाषा में सोचता है और फिर उसको दिमाग में Translate करता है फिर दोगुनी मेहनत करके अँग्रेजी बोलता है। हर व्यक्ति अपने जीवन के अत्यंत निजी क्षणों में मात्रभाषा ही बोलता है। जैसे: जब कोई बहुत गुस्सा होता है तो गाली हमेशा मात्रभाषा में ही देता हैं।
    किसी भी व्यक्ति कि अपनी पहचान ३ बातो से होती है, उसकी भाषा, उसका भोजन और उसका भेष (पहनावा). अगर ये तीन बात नहीं हों अपनी संस्कृति की तो सोचिये अपना परिचय भी कैसे देंगे किसी को ?
    ॥ मात्रभाषा पर गर्व करो.....अँग्रेजी की गुलामी छोड़ो ॥

    !!! भारत माता की जय !!

May 10, 2012

संस्कृति-भारतीय काल गणना की वैज्ञानिक पद्धति

भारतीय काल गणना की वैज्ञानिक पद्धति

यह अति सूक्ष्म से लेकत अति विशाल है .यह एक सेकण्ड के ३००० वे भाग त्रुटी से शुरू होता है तो युग जो कई लाख वर्ष का होता है

ब्रिटिश केलेंडर रोमन कलेण्डर कल्पना पर आधारित था। उसमें कभी मात्र 10 महीने हुआ करते थे। जिनमें कुल 304 दिन थे। बाद में उन्होने जनवरी व फरवरी माह जोडकर 12 माह का वर्ष किया। इसमें भी उन्होने वर्ष के दिनो को ठीक करने के लिये फरवरी को 28 और 4 साल बाद 29 दिन की। कुल मिलाकर ईसवी सन् पद्धति अपना कोई वैज्ञानिक प्रभाव है।भारतीय पंचाग में यूं तो 9 प्रकार के वर्ष बताये गये जिसमें विक्रम संवत् सावन पद्धति पर आधारित है। उन्होने बताया कि भारतीय काल गणना में समय की सबसे छोटी इकाई से लेकर ब्रम्हांड की सबसे बडी ईकाई तक की गणना की जाती है। जो कि ब्रहाण्ड में व्याप्त लय और गति की वैज्ञानिकता को सटीक तरीके से प्रस्तुत करती है।आज कि वैज्ञानिक पद्धति कार्बन आधार पर पृथ्वी की आयु 2 अरब वर्ष के लगभग बताती है। और यहीं गणना भारतीय पंचाग करता है। जो कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर पूरी तरह से प्रमाणिकता के साथ खडा हुआ है। हमारी पृथ्वी पर जो ऋतु क्रम घटित होता है। वह भारतीय नववर्ष की संवत पद्धति से प्रारम्भ होता है। हमारे मौसम और विविध प्राकृतिक घटनाओं पर ग्रह नक्षत्रो का प्रभाव पडता है। जिसका गहन अध्ययन भारतीय काल गणना पद्धति मे हुआ है

भारतीय ज्योतिष ग्रहनक्षत्रों की गणना की वह पद्धति है जिसका भारत में विकास हुआ है। आजकल भी भारत में इसी पद्धति से पंचांग बनते हैं, जिनके आधार पर देश भर में धार्मिक कृत्य तथा पर्व मनाए जाते हैं। वर्तमान काल में अधिकांश पंचांग सूर्यसिद्धांत, मकरंद सारणियों तथा ग्रहलाघव की विधि से प्रस्तुत किए जाते हैं।

विषुवद् वृत्त में एक समगति से चलनेवाले मध्यम सूर्य (लंकोदयासन्न) के एक उदय से दूसरे उदय तक एक मध्यम सावन दिन होता है। यह वर्तमान कालिक अंग्रेजी के 'सिविल डे' (civil day) जैसा है। एक सावन दिन में 60 घटी; 1 घटी 24 मिनिट साठ पल; 1 पल 24 सेंकेड 60 विपल तथा 2 1/2 विपल 1 सेंकेंड होते हैं। सूर्य के किसी स्थिर बिंदु (नक्षत्र) के सापेक्ष पृथ्वी की परिक्रमा के काल को सौर वर्ष कहते हैं। यह स्थिर बिंदु मेषादि है। ईसा के पाँचवे शतक के आसन्न तक यह बिंदु कांतिवृत्त तथा विषुवत्‌ के संपात में था। अब यह उस स्थान से लगभग 23 पश्चिम हट गया है, जिसे अयनांश कहते हैं। अयनगति विभिन्न ग्रंथों में एक सी नहीं है। यह लगभग प्रति वर्ष 1 कला मानी गई है। वर्तमान सूक्ष्म अयनगति 50.2 विकला है। सिद्धांतग्रथों का वर्षमान 365 दिo 15 घo 31 पo 31 विo 24 प्रति विo है। यह वास्तव मान से 8।34।37 पलादि अधिक है। इतने समय में सूर्य की गति 8.27 होती है। इस प्रकार हमारे वर्षमान के कारण ही अयनगति की अधिक कल्पना है। वर्षों की गणना के लिये सौर वर्ष का प्रयोग किया जाता है। मासगणना के लिये चांद्र मासों का। सूर्य और चंद्रमा जब राश्यादि में समान होते हैं तब वह अमांतकाल तथा जब 6 राशि के अंतर पर होते हैं तब वह पूर्णिमांतकाल कहलाता है। एक अमांत से दूसरे अमांत तक एक चांद्र मास होता है, किंतु शर्त यह है कि उस समय में सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में अवश्य आ जाय। जिस चांद्र मास में सूर्य की संक्रांति नहीं पड़ती वह अधिमास कहलाता है। ऐसे वर्ष में 12 के स्थान पर 13 मास हो जाते हैं। इसी प्रकार यदि किसी चांद्र मास में दो संक्रांतियाँ पड़ जायँ तो एक मास का क्षय हो जाएगा। इस प्रकार मापों के चांद्र रहने पर भी यह प्रणाली सौर प्रणाली से संबद्ध है। चांद्र दिन की इकाई को तिथि कहते हैं। यह सूर्य और चंद्र के अंतर के 12वें भाग के बराबर होती है। हमारे धार्मिक दिन तिथियों से संबद्ध है1 चंद्रमा जिस नक्षत्र में रहता है उसे चांद्र नक्षत्र कहते हैं। अति प्राचीन काल में वार के स्थान पर चांद्र नक्षत्रों का प्रयोग होता था। काल के बड़े मानों को व्यक्त करने के लिये युग प्रणाली अपनाई जाती है। वह इस प्रकार है:



कृतयुग (सत्ययुग) 17,28,000 वर्ष
द्वापर 12,96,000 वर्ष
त्रेता 8, 64,000 वर्ष
कलि 4,32,000 वर्ष
योग महायुग 43,20,000 वर्ष
कल्प 1000 महायुग 4,32,00,00,000 वर्ष

सूर्य सिद्धांत में बताए आँकड़ों के अनुसार कलियुग का आरंभ 17 फरवरी, 3102 ईo पूo को हुआ था। युग से अहर्गण (दिनसमूहों) की गणना प्रणाली, जूलियन डे नंबर के दिनों के समान, भूत और भविष्य की सभी तिथियों की गणना में सहायक हो सकती है।
वायु पुराण में दिए गए विभिन्न काल खंडों के विवरण के अनुसार , दो परमाणु मिलकर एक अणु का निर्माण करते हैं और तीन अणुओं के मिलने से एक त्रसरेणु बनता है। तीन त्रसरेणुओं से एक त्रुटि , 100 त्रुटियों से एक वेध , तीन वेध से एक लव तथा तीन लव से एक निमेष (क्षण) बनता है। इसी प्रकार तीन निमेष से एक काष्ठा , 15 काष्ठा से एक लघु , 15 लघु से एक नाडिका , दो नाडिका से एक मुहूर्त , छह नाडिका से एक प्रहर तथा आठ प्रहर का एक दिन और एक रात बनते हैं। दिन और रात्रि की गणना साठ घड़ी में भी की जाती है। तदनुसार प्रचलित एक घंटे को ढाई घड़ी के बराबर कहा जा सकता है। एक मास में 15-15 दिन के दो पक्ष होते हैं। शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। सूर्य की दिशा की दृष्टि से वर्ष में भी छह-छह माह के दो पक्ष माने गए हैं- उत्तरायण तथा दक्षिणायन। वैदिक काल में वर्ष के 12 महीनों के नाम ऋतुओं के आधार पर रखे गए थे। बाद में उन नामों को नक्षत्रों के आधार पर परिवर्तित कर दिया गया , जो अब तक यथावत हैं। चैत्र , वैशाख , ज्येष्ठ , आषाढ़ श्रावण , भाद्रपद , आश्विन , कार्तिक , मार्गशीर्ष , पौष , माघ और फाल्गुन। इसी प्रकार दिनों के नाम ग्रहों के नाम पर रखे गए- रवि , सोम (चंद्रमा) , मंगल , बुध , गुरु , शुक्र और शनि। इस प्रकार काल खंडों को निश्चित आधार पर निश्चित नाम दिए गए और पल-पल की गणना स्पष्ट की गई।

सृष्टि की कुल आयु 4320000000 वर्ष मानी गई है। इसमें से वर्तमान आयु निकालकर सृष्टि की शेष आयु 2,35,91,46,895 वर्ष है।


इलाज - तुलसी के बीज का महत्त्व



तुलसी के बीज का महत्त्व


जब भी तुलसी में खूब फुल यानी मंजिरी लग जाए तो उन्हें पकने पर तोड़ लेना चाहिए वरना तुलसी के झाड में चीटियाँ और कीड़ें लग जाते है और उसे समाप्त कर देते है . इन पकी हुई मंजिरियों को रख ले . इनमे से काले काले बीज अलग होंगे उसे एकत्र कर ले . यही सब्जा है . तुलसी के पत्ते गर्म तासीर के होते है पर सब्जा शीतल होता है . इसे फालूदा में इस्तेमाल किया जाता है . इसे भिगाने से यह जेली की तरह फुल जाता है . इसे हम दूध या लस्सी के साथ थोड़ी देशी गुलाब की पंखुड़ियां दाल कर ले तो गर्मी में बहुत ठंडक देता है .इसके अलावा यह पाचन सम्बन्धी गड़बड़ी को भी दूर करता है .यह पित्त घटाता है.

आसाराम जी बापू ने तुलसी बीज और त्रिकटु (सोंठ ,काली मिर्च और पीपर )मिलाकर स्वादिष्ट गोलियां बनायी है जो सदैव घर में रखने योग्य है . ये कफनाशक , क्षुधावर्धक और पाचक है .

इलाज -क्या कारण है की गर्मी शुरू होते ही सभी प्रकार के बेक्टीरिया और वायरस क्रियाशील हो जाते है



क्या कारण है की गर्मी शुरू होते ही सभी प्रकार के बेक्टीरिया और वायरस क्रियाशील हो जाते है और मलेरिया , टायफोइड ,जोंडिस ,डायरिया , स्वाइन फ्लू जैसी बीमारियाँ फ़ैल जाती है ?

 इसका मुख्य कारण है पित्त का बढना .---

 इसलिए पित्त को सम रखो और इन सब बीमारियों से बचो .

 जीरा , धनिया , सौंफ , हिंग , अजवाइन ,लौकी , कच्चा नारियल , बेल , गाय के दूध से बना छाछ इनका भरपूर इस्तेमाल करो

शक्कर  की जगह मिश्री और नमक की जगह सेंधा या काले नमक का इस्तेमाल करें .

सुबह २ से ४ ग्लास पानी पिए, हो सके तो आंवला और एलो वेरा ज्यूस के साथ ..

पित्त सम होने से पसीने में बदबू नहीं आएगी ;

चाहे कितना ही पसीना क्यों ना आए और इससे होने वाली परेशानियां जैसे दाद , रेश , पिम्पल्स फोड़े , फुंसियां इत्यादि भी नहीं होंगी






संस्कृति- पुनर्जन्म सिद्धांत



पुनर्जन्म का भारतीय सिद्धांत --


क्या कारण है की विदेश में रहने वाले भारत आकर महसूस करते है की वे घर आ गए . यहाँ की गन्दगी , धुल , गर्मी के बावजूद वे भारत को पसंद करते है .
 यहाँ का आध्यात्म ,जीवन दर्शन ,त्यौहार इन्हें भाते है . क्योंकि ये कभी ना कभी पिछले किसी जन्म में भारतीय थे .
 एक बार जो भारत की पुण्य भूमि में जन्म ले ले उसके संस्कार हमेशा के लिए भारतीय हो जाते है .

क्या कारण है की कई भारतीय विदेश जाने के ख़्वाब देखते है और मौक़ा मिलते ही वही बस जाते है . यहाँ रह

कर भी वे रहते तो अंग्रेज ही है .उनकी बोली ,खान पान सब विदेशी . यहाँ तक की वे लूटते भी अंग्रेजों की तरह ही है .




संस्कृति-अक्षय तृतीया किया हैं ?( What is Akshaya Tritiya?)



Each second of" Akshaya Tritiya" is Auspicious.



This is the time to put in our best to get eternal benefits.
Akshaya (in Hindi) means "never diminishing"

Many things happened on this day in the History:

:) # Draupadi was given Akshaya Patra (bowl) by Krishna which supplied unlimited food;

:) # Kubera, treasurer of gods, prayed to Lakshmi, goddess of wealth, to fill his treasury;

:) # Parashurama, the sixth incarnation of Vishnu, was born;

:) # Sat-Yug ended and Treta-Yug began;

:) # The Ganga descended from Heaven;

:) # Ved Vyasa and Ganesha began writing the epic Maha-bharata;

:) # AND Sudama, the poor friend of Krishna, came to Dwarka to ask for help. In return for a handful of beaten rice, Krishna gave immense wealth to Sudama.

:) # Gates of the Badrinarayana temple open on this day.

:) # Construction of chariots for the Jagannath rath yatra at Puri commences.

:) # Jains observe fast and break it with sugarcane juice as king-turned-monk Rishabhdeva was offered sugarcane juice after a year-long fast.







May 07, 2012

संस्कृति - हिन्दू-धर्म का आधार--(BASE OF HINDU RELIGION)



हिन्दू-धर्म का आधार




हिन्दू-धर्म का आधारहिन्दू धर्म व्यक्ति प्रवर्तित धर्म नहीं है। इसका आधार वेदादि धर्मग्रन्थ है, जिनकी संख्या बहुत बड़ी है। ये सब दो विभागों में विभक्त है। 1॰ इस श्रेणी के ग्रन्थ ``श्रुति´´ कहलाते हैं। ये अपौरषेय माने जाते हैं। इसमें वेद की चार संहिताओं, ब्राह्मणों, आरण्यकों, उपनिषदों, वेदांग, सूत्र आदि ग्रन्थों की गणना की जाती है। आगम ग्रन्थ भी श्रुति-श्रेणी में माने जाते हैं।2॰ इस श्रेणी के ग्रन्थ ``स्मृति´´ कहलाते हैं। ये ऋषि प्रणीत माने जाते हैं। इस श्रेणी में 18 स्मृतियाँ, 18 पुराण तथा रामायण व महाभारत ये दो इतिहास भी माने जाते हैं।

1॰ श्रुति1॰1 वेदयद्यपि वेद से ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद की संहिताओं का ही बोध होता है, तथापि हिन्दू लोग इन संहिताओं के अलावा ब्राह्मण ग्रन्थों, आरण्यकों तथा उपनिषदों को भी वेद ही मानते हैं। इनमें ऋक् आदि संहितायें स्तुति प्रधान हैं, ब्राह्मण ग्रन्थ यज्ञ कर्म प्रधान हैं और आरण्यक तथा उपनिषद् ज्ञान चर्चा प्रधान हैं।ऋग्वेद संहिता - यह चारों संहिताओं में प्रथम गिनी जाती है। अन्य संहिताओं में इसके अनेक सूक्त संग्रह किये गये हैं। यह अष्टकों और मण्डलों में विभक्त है, जो फिर वर्गों और अनुवाकों में विभक्त है। इसमें 10 मण्डल हैं, जिनमें 1017 सूक्त है। इन सूक्तों में शौनक की अनुक्रमणी के अनुसार 10,580 मंत्र है। यह संहिता सूक्तों अर्थात् स्तोत्रों का भण्डार है।सामवेद संहिता - यह कोई स्वतन्त्र संहिता नहीं है। इसके अधिकांश मन्त्र ऋग्वेद के ही हैं। केवल 78 मंत्र इसके अपने हैं। कुल 1549 मन्त्र हैं। यह संहिता दो भागों में विभक्त है - 1॰ पूर्वार्चिक, तथा 2॰ उत्तरार्चिक। पूर्वार्चिक - छ: प्रपाठकों में विभक्त है। इसे `छन्द´ और `छन्दसी´ भी कहते हैं। पूर्वार्चिक को `प्रकृति´ भी कहते हैं और उत्तरार्चिक को `ऊह´ और `रहस्य´ कहते हैं।यजुर्वेद संहिता - इस वेद की दो संहितायें हैं एक शुक्ल, दूसरी कृष्ण। शुक्ल यजुर्वेद याज्ञवल्क्य को प्राप्त हुआ। उसे `वाजसनेयि-संहिता´ भी कहते हैं। कृष्ण-यजुर्वेद-संहिता उसके पहले की है। उसे `तैत्तिरिय-संहिता´ भी कहते हैं। यजुर्वेद के कुछ मन्त्र ऋग्वेद के हैं तो कुछ अथर्ववेद के हैं।`वाजसनेयि-संहिता´ की 17 शाखायें हैं। उसमें 40 अध्याय हैं। उसका प्रत्येक अध्याय कण्डिकाओं में विभक्त है, जिनकी संख्या 1975 है। इसके पहले के 25 अध्याय प्राचीन माने जाते हैं और पीछे के 15 अध्याय बाद के। इसमें दर्श पौर्णमास, अग्निष्टोम, वाजपेय, अग्निहोत्र, चातुर्मास्य, अश्वमेध, पुरूषमेध आदि यज्ञों के वर्णन है।`तैत्तिरिय-संहिता´ 7 अष्टकों या काण्डों में विभक्त है। इस संहिता में मन्त्रों के साथ ब्राह्मण का मिश्रण है। इसमें भी अश्वमेध, ज्योतिष्टोम, राजसूय, अतिरात्र आदि यज्ञों का वर्णन है।अथर्ववेद संहिता - यह संहिता 20 काण्डों में विभक्त है। प्रत्येक काण्ड अनुवाकों और अनुवाक 760 सूक्तों में विभक्त है। इस संहिता में 1200 मन्त्र ऋक्-संहिता के हैं। कुल मन्त्र संख्या 6015 है।

1॰2 ब्राह्मण इस श्रेणी के ग्रन्थ वेद के अंग ही माने जाते हैं। ये दो विभागों में विभक्त है। एक विभाग के कर्मकाण्ड-सम्बन्धी हैं, दूसरे विभाग के ज्ञानकाण्ड-सम्बन्धी है। ज्ञानकाण्ड-सम्बन्धी ब्राह्मण ग्रन्थ `उपनिषद्´ कहलाते हैं।प्रत्येक ब्राह्मण ग्रन्थ में एक-न-एक उपनिषद् अवश्य है, किन्तु स्वतन्त्र उपनिषद् ग्रन्थ भी हैं, जो किसी भी ब्राह्मण का भाग नहीं हैं और न `अरण्यकों´ के ही भाग हैं। कुछ उपनिषद् अरण्यकों में भी पाये जाते हैं। ब्राह्मण ग्रन्थों में यज्ञ-विषय का वर्णन है। अरण्यकों में वानप्रस्थ-आश्रम के नियमों का वर्णन है। उपनिषदों में ब्रह्मज्ञान का निरूपण किया गया है।प्रत्येक ब्राह्मण किसी न किसी वेद से सम्बन्ध रखता है। ऋग्वेद के ब्राह्मण -ऐतरेय और कौशीतकि (सामवेद के ब्राह्मण -ताण्डय, षड्विंश, सामविधान, वंश, आर्षेय, देवताध्याय, संहितोपनिषत्, छान्दोग्य, जैमिनीय, सत्यायन और भल्लवी है( कृष्ण यजुर्वेद का ब्राह्मण -तैत्तिरीय है और शुक्ल यजुर्वेद का शतपथ है( अथर्ववेद का ब्राह्मण - गोपथ ब्राह्मण है। ये कुछ मुख्य-मुख्य ब्राह्मणों के नाम हैं।

1॰3 आरण्यकइस विभाग में ऐतरेय, कौशीतकि और बृहदारण्यक मुख्य हैं।

1॰4 उपनिषद्इस विभाग के ग्रन्थों की संख्या 123 से लेकर 1194 तक मानी गई है, किन्तु उनमें 10 ही मुख्य माने गये हैं। ईष, केन, कठ, प्रश्, मुण्डक, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य और बृहदारण्यक के अतिरिक्त श्वेताश्वतर और कौशीतकि को भी महत्त्व दिया गया हैं।

उक्त श्रुति-ग्रन्थों के अलावा कुछ ऐसे ऋषि-प्रणीत ग्रन्थ भी हैं, जिनका श्रुति-ग्रन्थों से घनिष्ट सम्बन्ध है। वेदांग और सूत्र-ग्रन्थ -1॰5 वेदांगशिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, छन्द और निरूक्त - ये छ: वेदांग है।1॰ शिक्षा - इसमें वेद मन्त्रों के उच्चारण करने की विधि बताई गई है।2॰ कल्प - वेदों के किस मन्त्र का प्रयोग किस कर्म में करना चाहिये, इसका कथन किया गया है। इसकी तीन शाखायें हैं- श्रौत सूत्र, गृह्य सूत्र और धर्मसूत्र।3॰ व्याकरण - इससे प्रकृति और प्रत्यय आदि के योग से शब्दों की सिद्धि और उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित स्वरों की स्थिति का बोध होता है।4॰ निरूक्त - वेदों में जिन शब्दों का प्रयोग जिन-जिन अर्थों में किया गया है, उनके उन-उन अर्थों का निश्चयात्मक रूप से उल्लेख निरूक्त में किया गया है।5॰ ज्योतिष - इससे वैदिक यज्ञों और अनुष्ठानों का समय ज्ञात होता है। यहाँ ज्योतिष से मतलब `वेदांग ज्योतिष´ से है।6॰ छन्द - वेदों में प्रयुक्त गायत्री, उष्णिक आदि छन्दों की रचना का ज्ञान छन्दशास्त्र से होता है।1॰6 सूत्र-ग्रन्थ1॰ श्रौत सूत्र - इनमें मुख्य-मुख्य यज्ञों की विधियाँ बताई गई है। ऋग्वेद के सांख्यायन और आश्वलायन नाम के श्रौत-सूत्र हैं। सामवेद के मशक, कात्यायन और द्राह्यायन के श्रौतसूत्र हैं। शुक्ल यजुर्वेद का कात्यायन श्रौतसूत्र और कृष्ण यजुर्वेद के आपस्तम्ब, हिरण्यकेशी, बोधायन, भारद्वाज आदि के 6 श्रौतसूत्र हैं। अथर्ववेद का वैतान सूत्र है।2॰ धर्म सूत्र - इनमें समाज की व्यवस्था के नियम बताये गये हैं। आश्रम, भोज्याभोज्य, ऊँच-नीच, विवाह, दाय एवं अपराध आदि विषयों का वर्णन किया गया है। धर्मसूत्रकारों में आपस्तम्ब, हिरण्यकेशी, बोधायन, गौतम, वशिष्ठ आदि मुख्य हैं।3॰ गृह्य सूत्र - इनमें गृहस्थों के आन्हिक कृत्य एवं संस्कार तथा वैसी ही दूसरी धार्मिक बातें बताई गई है। गृह्य सूत्रों में सांख्यायन, शाम्बव्य तथा आश्वलायन के गृह्य सूत्र ऋग्वेद के हैं। सामवेद के गोभिल और खदिर गृह्य सूत्र हैं। शुक्ल यजुर्वेद का पारस्कर गृह्य सूत्र है और कृष्ण यजुर्वेद के 7 गृह्य सूत्र हैं जो उसके श्रौतसूत्रकारों के ही नाम पर हैं। अथर्ववेद का कौशिक गृह्य सूत्र है।

2॰ स्मृतिजिन महर्षियों ने श्रुति के मन्त्रों को प्राप्त किया है, उन्हींने अपनी स्मृति की सहायता से जिन धर्मशास्त्रों के ग्रन्थों की रचना की है, वे `स्मृति ग्रन्थ´ कहे गये हैं।

2॰1 स्मृति - इनमें समाज की धर्ममर्यादा- वर्णधर्म, आश्रम-धर्म, राज-धर्म, साधारण धर्म, दैनिक कृत्य, स्त्री-पुरूष का कर्तव्य आदि का निरूपण किया है।मुख्य स्मृतिकार ये हैं और इन्हीं के नाम पर इनकी स्मृतियाँ है - मनु, अत्रि, विष्णु, हारीत, याज्ञवल्क्य, उशना, अंगिरा, यम, आपस्तम्ब, संवर्त, कात्यायन, बृहस्पति, पराशर, व्यास, शंख, लिखित, दक्ष, गौतम, शातातप और वशिष्ठ।इनके अलावा निम्न ऋषि भी स्मृतिकार माने गये हैं और उनकी स्मृतियाँ `उपसमृतियाँ´ मानी जाती हैं। - गोभिल, जमदग्नि, विश्मित्र, प्रजापति, वृद्धशातातप, पैठीनसि, आश्वायन, पितामह, बौद्धायन, भारद्वाज, छागलेय, जाबालि, च्यवन, मरीचि, कश्यप आदि।2॰2 पुराण -18 पुराणों के नाम विष्णु पुराण में इस प्रकार है - ब्रह्म, पद्म, विष्णु, शिव, भागवत, नारद, मार्कण्डेय, अग्नि, भविष्य, ब्रह्मवैवर्त्त, लिंग, वराह, स्कन्द, वामन, कूर्म, मत्स्य, गरूड़ और ब्रह्माण्ड।इनके अलावा देवी भागवत में 18 उप-पुराणों का उल्लेख भी है - सनत्कुमार, नरसिंह, बृहन्नारदीय, शिव अथवा शिवधर्म, दुर्वासा, कपिल, मानव, औशनस, वरूण, कालिका, साम्ब, नन्दिकेश्वर, सौर, पराशर, आदित्य, महेश्र, भागवत तथा वशिष्ठ।इनके अलावा ब्रह्माण्ड, कौर्म, भार्गव, आदि, मुद्गल, कल्कि, देवीपुराण, महाभागवत, बृहद्धर्म, परानन्द, पशुपति पुराण नाम के 11 उपपुराण या `अतिपुराण´ और भी मिलते हैं।पुराणों में सृष्टिक्रम, राजवंशावली, मन्वन्तर-क्रम, ऋषिवंशावली, पंच-देवताओं की उपासना, तीर्थों, व्रतों, दानों का माहात्म्य विस्तार से वर्णन है। इस प्रकार पुराणों में हिन्दु धर्म का विस्तार से ललित रूप में वर्णन किया गया है।

3 आगम या तन्त्रशास्त्रइन शास्त्रों में मुख्यतया हिन्दू धर्म के देवताओं की साधना की विधियाँ बतलाई गई है। किन्तु इनके अलावा इनमें अन्य विषयों का भी समावेश है। ये शास्त्र तीन भागों में विभक्त है - आगम, तन्त्र व यामल।1॰ आगम ग्रन्थ - सृष्टि, प्रलय, देवताओं की पूजा तथा साधन विधि, पुरश्चरण, षट्कर्म-साधन, चतुर्विध ध्यान योग आदि विषयों का वर्णन है।2॰ तंत्र ग्रन्थ - सृष्टि, प्रलय, मंत्र-निर्णय, देवताओं का संस्थान, तीर्थवर्णन, आश्रम धर्म, विप्र संस्थान, भूतादि का संस्थान, कल्प वर्णन, ज्योतिष संस्थान, पुराणाख्यान, कोष, व्रत, शौचाऽशौच, स्त्री-पुरूष लक्षण, राजधर्म, दानधर्म, युग धर्म व्यवहार, अध्यात्म आदि विषयों का वर्णन किया गया है। तन्त्र शास्त्र सम्प्रदायात्मक है। वैष्णवों, शैवों, शाक्तों आदि के अलग-अलग तंत्र ग्रन्थ हैं।3॰ यामल ग्रन्थ - सृष्टि तत्त्व, ज्योतिष, नित्यकृत्य, कल्पसूत्र, वर्णभेद, जातिभेद और युगधर्म आदि विषयों का वर्णन किया गया है।

संस्कृति - मंत्र क्या है ? मंत्र कैसे कार्य करता है ?

मंत्र क्या है ? मंत्र कैसे कार्य करता है ?


मंत्र ध्वनी का समूह है. .. जिस तरह ध्वनि काफी सकती शाली होता है यह सिद्ध हो चूका है , अधिक DB के ध्वनि से जिस तरह काच टूट सकते है , लेकीन ध्वनि को हम नहीं दे सकते है . उसी तरह जब हम बीज मंत्रो , या सबर मंत्रो का जप करते है तो निश्तित DB की ध्वनि उत्पन होता, और हमारे मूलाधार चक्र को चोट करती है . हमारे शरिअर के अन्दर 7 चक्र होते है . जो अध्य्तिमिक शक्ति को गरहन करते है ,

जिस तरह वातावरण में काफी रेडियो तरंगे है जिसे हम देख नहीं सकते बगर किसी उपकरण के , उसी तरहअ पुरे वातावरण में अध्य्तिम्क तरंगे है , जब हम रेडियो को किसी स्टेशन पर TUNE करते तभी हमे कोई आवाज़ आती , उससे पहले नहीं . इसी तरहा जब हम मंत्र साधना करते है निश्चित मंत्र का उपयोग करके तब हमे अध्यात्मिक तरंगे से संपर्क होता है . और हमे कुछ अनुभव होता है, जब तक आप रेडियो या टीवी को सही चैनल नहीं लगाते तब तक न आवाज़ न चित्र आती है , सारा वातावरण में ऑडियो और वीडियो सिग्नल विचरण कर रहे लेकिन हमे दिखाई नहीं देता जब तक हम सही उपकरण का पर्योग नहीं करते तब तक, वैसे ही जब तक हम सही तरह से धवनी मंत्र का बगेर जपे फल की इच्छा करे ?

चिकित्साशास्त्री,शरीर विज्ञानी,ध्वनि विज्ञानी और अन्य भौतिक विज्ञानी ओम को लेकर आज बड़े आश्चर्यचकित हैं। इंसानी जिंदगी पर किसी शब्द का इतना अधिक प्रभाव सभी के आश्चर्य का विषय है। एक तरफ ध्वनिप्रदूषण बड़ी भारी समस्या बन चुका है, वहीं दूसरी तरफ एक ऐसी ध्वनि है जो हर तरह के प्रदूषण को दूर करती है। वो ध्वनि है ओम के उच्चारण से उत्पन्न ध्वनि। जरा देखें ऊँ के उच्चारण से क्या घटित और परिवर्तित होता है:-- ऊँ की ध्वनि मानव शरीर के लिये प्रतिकुल डेसीबल की सभी ध्वनियों को वातावरण से निष्प्रभावी बना देती है।- विभिन्न ग्रहों से आनेवाली अत्यंत घातक अल्ट्रावायलेट किरणें ओम उच्चारित वातारण में निष्प्रभावी हो जाती हैं।- ऊँ का उच्चारण करने वाले के शरीर का विद्युत प्रवाह आदर्श स्तर पर पहुंच जाता है।- इसके उच्चारण से इंसान को वाक्सिद्धि प्राप्त होती है।- अनिद्रा के साथ ही सभी मानसिक रोगों का स्थाई निवारण हो जाता है।- चित्त एवं मन शांत एवं नियंत्रित हो जाते हैं।

धर्म की जड़ें बहुत गहरी और मजबूत होती हैं। तभी तो मानव इतिहास के हजारों वर्ष बीत जाने के बावजूद धर्म की इमारत आज भी उसी बुलंदी के साथ तन कर खड़ी है। कुछ विद्वानों और विचारकों को डर था कि वैज्ञानिक प्रगति और आधुनिकता के साथ-साथ धर्म का प्रभाव और पहुंच घटने लगेगी, किन्त ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। भले ही इंसान चांद-तारों पर पहुंच गया हो पर अपनी जड़ों से कटकर ऊंचा उठना उसके लिये कभी भी संभव नहीं हो पाएगा।

' ऊँ'

' ऊँ' शब्द तीन अक्षरों अ, उ और म से मिलकर बना है। पर इसमें ऐसा क्या खास है कि इसे हिन्दुओं ने अपना पवित्र धार्मिक प्रतीक मान लिया है। हिन्दुओं में स्वास्तिक और ऊँ का विशेष महत्व माना जाता है। असंख्य शब्दों और चिह्नों में से ऊँ और स्वास्तिक को ही क्यों चुना गया। आइये ऊँ की खासियत जाने विज्ञान की प्रयोगशाला में चलकर...
चिकित्साशास्त्री, शरीर विज्ञानी, ध्वनि विज्ञानी और अन्य भौतिक विज्ञानी ओम को लेकर आज बड़े आश्चर्यचकित हैं। इंसानी जिंदगी पर किसी शब्द का इतना अधिक प्रभाव सभी के आश्चर्य का विषय है। एक तरफ ध्वनिप्रदूषण बड़ी भारी समस्या बन चुका है, वहीं दूसरी तरफ एक ऐसी ध्वनि है जो हर तरह के प्रदूषण को दूर करती है। वो ध्वनि है ओम के उच्चारण से उत्पन्न ध्वनि। जरा देखें ओम के उच्चारण से क्या घटित और परिवर्तित होता है:-

- ओम की ध्वनि मानव शरीर के लिये प्रतिकूल डेसीबल की सभी ध्वनियों को वातावरण से निष्प्रभावी बना देती है।

- विभिन्न ग्रहों से आनेवाली अत्यंत घातक अल्ट्रावायलेट किरणें ओम उच्चारित वातारण में निष्प्रभावी हो जाती हैं।

- ओम का उच्चारण करने वाले के शरीर का विद्युत प्रवाह आदर्श स्तर पर पहुंच जाता है।

- इसके उच्चारण से इंसान को वाक्सिद्धि प्राप्त होती है।

- अनिद्रा के साथ ही सभी मानसिक रोगों का स्थाई निवारण हो जाता है।

- चित्त एवं मन शांत एवं नियंत्रित हो जाते हैं।

BRAND Archetypes through lens -Indian-Brands

There has been so much already written about brand archetypes and this is certainly not one more of those articles. In fact, this is rather ...