महाभारत युद्ध का आरंभ १६ नवंबर ५५६१ ईसा पूर्व हुआ और १८ दिन चलाने के बाद २ नवंबर ५५६१ ईसा पूर्व को समाप्त हुआ उसी रात दुर्योधन ने अश्वथामा को सेनापति नियुक्त किया । ३ नवंबर ५५६१ ईसा पूर्व के दिन भीम ने अश्वथामा को पकड़ने का प्रयत्न किया । तब अश्वथामा ने जो ब्रह्मास्त्र छोड़ा उस अस्त्र के कारण जो अग्नि उत्पन्न हुई वह प्रलंकारी था । वह अस्त्र प्रज्वलित हुआ तब एक भयानक ज्वाला उत्पन्न हुई जो तेजोमंडल को घिर जाने समर्थ थी ।
( तदस्त्रं प्रजज्वाल महाज्वालं तेजोमंडल संवृतम ।। ८ ।। ) इसके बाद भयंकर वायु जोरदार तमाचे मारने लगे । सहस्त्रावधि उल्का आकाश से गिरने लगे । भूतमातरा को भयंकर महाभय उत्पन्न हो गया । आकाश में बड़ा शब्द हुआ । आकाश में बड़ा शब्द हुआ । आकाश जलाने लगा पर्वत, अरण्य, वृक्षो के साथ पृथ्वी हिल गई । (सशब्द्म्भवम व्योम ज्वालामालाकुलं भृशम । चचाल च मही कृत्स्ना सपर्वतवनद्रुमा ।। १० ।। अ १४) जब दोनों अस्त्र पृथ्वी को जलाने लगे तब नारद तथा व्यास ये दो महारची बीच में आकर खड़े हो गए । उन्होने अर्जुन और अश्वत्थामा को अपने अपने अणुअस्त्रेय वापस लेने कि विनती कि । अर्जुन ने वह आज्ञा मान जल्दी अपना अस्त्र वापस ले लिया कुनतु अश्वत्थामा को अस्त्र वापस लेने कि जानकारी नहीं थी । व्यास लिखते हैं कि ब्रहास्त्र जैसा उग्र अस्त्र छोड़ने के बाद वापस लौटने का सामर्थ्य केवल अर्जुन में ही था । ब्रहमतेज से वह अस्त्र उत्पन्न होने के कारण जो ब्रह्मचारी हैं (अर्थात जो ब्रह्म के अनुसार वर्तन करता हैं) वह ही उसे वापस लौटा सकता हैं अन्य वीरों को यह असंभव होता हैं । अंग्रेज़ भी मानने लगे है की वास्तव मे महाभारत मे परमाणु बम का प्रयोग हुआ था, जिस पर शोध कार्य चल रहे है ।
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href="http://www.youtube.com/watch?v=_kw4hOoxq4M" target="_blank" class="fancybox-youtube">पुणे के डॉक्टर व लेखक पद्माकर विष्णु वर्तक ने तो 40 वर्ष पहले ही सिद्ध किया था कि वह महाभारत के समय जो ब्रह्मास्त्र इस्तेमाल किया गया था वह परमाणु बम के समान ही था ।डॉ॰ वर्तक ने १९६९ में एक किताब लिखनी शुरू कि थी ‘स्वयंभू’ नामक इस किताब के मुख्य पात्र के रूप में महाभारत के भीम को चुना गया हैं । भीम पर केन्द्रित इस पुस्तक में महाभारत कि लड़ाई कि तिथि भी बताई गई हैं । मूल रूप से मराठी भाषा में लिखी गई यह पुस्तक हिन्दी में अनुवादित करके हिन्दी भाषियों के लिए उपलब्ध कराने का काम २००५ मे किया नाग पब्लिशर ने । आज लोग इस बात को स्वीकार कर रहे है कि महाभारत के समय परमाणु बम का इस्तेमाल हुआ था । मराठी भाषा में स्वयंभू नामक पुस्तक १९७० मे ही लिखी जा चुकी थी इस पुस्तक को तब महाराष्ट्र ग्रंथोत्तेजक सभा का पहला पुरस्कार मिला था कई अखबारों कि पुस्तक कि समीक्षा में इसकी प्रशंसा हुई थी ।यहाँ व्यास लिखते हैं कि “जहां ब्रहास्त्र छोड़ा जाता है वहीं १२ व्रषों तक पर्जन्यवृष्ठी नहीं हो पाती “।
३ नवंबर ५५६१ ईसा पूर्व के दिन छोड़ा हुआ ब्रह्मास्त्र और ६ अगस्त १९४५ को फेंका गया एटम बम इन दोनों के परिणामों के साम्य अब देखें । दो घटनाओ के बीच ७५०६ वर्ष व्यतीत हो गए है तो भी दोनों मे पूर्ण साम्य दिखता है । आज के युग में वेज्ञानिक रिपोर्ट में एटम बम फेंका इतना ही बताया है । वह कैसा था, कितना बड़ा था, किस वस्तु का बना था , किस प्रकार फेंक दिया इसके बारें मे कुछ भी नहीं लिखा हैं महाभारत में इसी प्रकार का वर्णन आया है एक ऐषिका लेकर अश्वत्थामा ने ब्रहास्त्र छोड़ा इतना ही लिखा हैं । ऐषिका अर्थात दर्भ का तिनका ऐसा विद्वान कहते हैं, किंतु प्रमाण नहीं दे सकते । आज के वर्णन में‘बम’ शब्द का उपयोग हैं लेकिन बम क्या होता है इसका वर्णन नहीं मिलता आज से साथ सहस्त्र वर्षो बाद ‘बम’ शब्द का अर्थ वहाँ के लोग क्या कहेंगे ? वे लोग शब्द कोश में देख बम मतलब मिट्टी का गोला करेंगे मिट्टी का गोला फेंक कर इतना संहार कैसे हो सकता है ? यह सब कल्पना हैं । इसी तरह हम आज ब्रहास्त्र को कल्पना समझते हैं ।
वह गलत हैं । ‘ऐषिका’ शब्द में ‘इष’ अर्थात ज़ोर से फेंकना यह धातु हैं । इससे अर्थ हो जाता है कि ऐषिका एक साधन था जिससे अस्त्र फेंका जाता था । जैसे आज मिसाइल होते हैं जो परमाणु बम को ढ़ोने मे कारगर होते है । रॉकेट को भी ऐषिका कहा जा सकता है ।
अस्त्र ने प्रलयंकारी अग्नि निर्माण किया जो तीनों लोक जला सकता था, यह वर्णन आज के वर्णन पूरा मिलता हैं आज के पुस्तक में लिखा हैं कि बम फूटने के बाद एक भयंकर प्रकाश और अग्नि का गोला उत्पन्न हो गया जिसने सारा शहर नष्ट कर दिया ‘तेजोमंडल को ग्रस्त करने वाली महाजवाला’ विधान में प्रकाश तथा आग दोनों भी अन्तर्भूत हैं । निर्घाता बहवाश्चासंपेतु: उल्का सहस्त्रश: महाभारत लिखित इस वर्णन में ‘निर्घाता’ शब्द उपयोजित हैं । निर्घाता शब्द का अर्थ वराहमिहिर ने भी दिया हैं कि ‘विपरीत दिशा से आने वाले जो एक दूसरे पर टकराते हैं और पृथ्वी पर आघात कराते हैं उसे निर्घात कहते है ।’ आधुनिक काल बम का वर्णन देता है कि हवा का प्रचंड झोंका आ गया है एक घंटे में पाँच सौ मिल इतना ज़ोर उस वायु में था उसके कारण २.५ मिल त्रिज्या के वर्तुल में सब कुछ उद्धवस्त हुआ । अनेक वस्तुओं जैसे लकड़ी के टुकड़े, इनते पत्थर, काँच आदि ज़ोर से फेंके गए जिसने लोगो को कान्त दिया । ये वस्तुएँ उल्का जैसी फेंकी गई । महाभारत लिखता हैं कि ‘सहस्त्रश: उल्का गिरने लगी।‘ ‘आकाश शब्दमाय हो गया, पृथ्वी हिलने लगी, यह वर्णन विस्फोट का ही हुआ न ।’ब्रह्मास्त्र के कारण गाँव मे रहने वाली स्त्रियॉं के गर्भ मारे गए, ऐसा महाभारत लिखता है । वैसे ही हिरोशिमा में रेडिएशन फॉल आउट के कारण गर्भ मारे गए थे । ब्रह्मास्त्र के कारण १२ वर्ष अकाल का निर्माण होता है यह भी हिरोशिमा में देखने को मिलता है ।
( तदस्त्रं प्रजज्वाल महाज्वालं तेजोमंडल संवृतम ।। ८ ।। ) इसके बाद भयंकर वायु जोरदार तमाचे मारने लगे । सहस्त्रावधि उल्का आकाश से गिरने लगे । भूतमातरा को भयंकर महाभय उत्पन्न हो गया । आकाश में बड़ा शब्द हुआ । आकाश में बड़ा शब्द हुआ । आकाश जलाने लगा पर्वत, अरण्य, वृक्षो के साथ पृथ्वी हिल गई । (सशब्द्म्भवम व्योम ज्वालामालाकुलं भृशम । चचाल च मही कृत्स्ना सपर्वतवनद्रुमा ।। १० ।। अ १४) जब दोनों अस्त्र पृथ्वी को जलाने लगे तब नारद तथा व्यास ये दो महारची बीच में आकर खड़े हो गए । उन्होने अर्जुन और अश्वत्थामा को अपने अपने अणुअस्त्रेय वापस लेने कि विनती कि । अर्जुन ने वह आज्ञा मान जल्दी अपना अस्त्र वापस ले लिया कुनतु अश्वत्थामा को अस्त्र वापस लेने कि जानकारी नहीं थी । व्यास लिखते हैं कि ब्रहास्त्र जैसा उग्र अस्त्र छोड़ने के बाद वापस लौटने का सामर्थ्य केवल अर्जुन में ही था । ब्रहमतेज से वह अस्त्र उत्पन्न होने के कारण जो ब्रह्मचारी हैं (अर्थात जो ब्रह्म के अनुसार वर्तन करता हैं) वह ही उसे वापस लौटा सकता हैं अन्य वीरों को यह असंभव होता हैं । अंग्रेज़ भी मानने लगे है की वास्तव मे महाभारत मे परमाणु बम का प्रयोग हुआ था, जिस पर शोध कार्य चल रहे है ।
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href="http://www.youtube.com/watch?v=_kw4hOoxq4M" target="_blank" class="fancybox-youtube">पुणे के डॉक्टर व लेखक पद्माकर विष्णु वर्तक ने तो 40 वर्ष पहले ही सिद्ध किया था कि वह महाभारत के समय जो ब्रह्मास्त्र इस्तेमाल किया गया था वह परमाणु बम के समान ही था ।डॉ॰ वर्तक ने १९६९ में एक किताब लिखनी शुरू कि थी ‘स्वयंभू’ नामक इस किताब के मुख्य पात्र के रूप में महाभारत के भीम को चुना गया हैं । भीम पर केन्द्रित इस पुस्तक में महाभारत कि लड़ाई कि तिथि भी बताई गई हैं । मूल रूप से मराठी भाषा में लिखी गई यह पुस्तक हिन्दी में अनुवादित करके हिन्दी भाषियों के लिए उपलब्ध कराने का काम २००५ मे किया नाग पब्लिशर ने । आज लोग इस बात को स्वीकार कर रहे है कि महाभारत के समय परमाणु बम का इस्तेमाल हुआ था । मराठी भाषा में स्वयंभू नामक पुस्तक १९७० मे ही लिखी जा चुकी थी इस पुस्तक को तब महाराष्ट्र ग्रंथोत्तेजक सभा का पहला पुरस्कार मिला था कई अखबारों कि पुस्तक कि समीक्षा में इसकी प्रशंसा हुई थी ।यहाँ व्यास लिखते हैं कि “जहां ब्रहास्त्र छोड़ा जाता है वहीं १२ व्रषों तक पर्जन्यवृष्ठी नहीं हो पाती “।
३ नवंबर ५५६१ ईसा पूर्व के दिन छोड़ा हुआ ब्रह्मास्त्र और ६ अगस्त १९४५ को फेंका गया एटम बम इन दोनों के परिणामों के साम्य अब देखें । दो घटनाओ के बीच ७५०६ वर्ष व्यतीत हो गए है तो भी दोनों मे पूर्ण साम्य दिखता है । आज के युग में वेज्ञानिक रिपोर्ट में एटम बम फेंका इतना ही बताया है । वह कैसा था, कितना बड़ा था, किस वस्तु का बना था , किस प्रकार फेंक दिया इसके बारें मे कुछ भी नहीं लिखा हैं महाभारत में इसी प्रकार का वर्णन आया है एक ऐषिका लेकर अश्वत्थामा ने ब्रहास्त्र छोड़ा इतना ही लिखा हैं । ऐषिका अर्थात दर्भ का तिनका ऐसा विद्वान कहते हैं, किंतु प्रमाण नहीं दे सकते । आज के वर्णन में‘बम’ शब्द का उपयोग हैं लेकिन बम क्या होता है इसका वर्णन नहीं मिलता आज से साथ सहस्त्र वर्षो बाद ‘बम’ शब्द का अर्थ वहाँ के लोग क्या कहेंगे ? वे लोग शब्द कोश में देख बम मतलब मिट्टी का गोला करेंगे मिट्टी का गोला फेंक कर इतना संहार कैसे हो सकता है ? यह सब कल्पना हैं । इसी तरह हम आज ब्रहास्त्र को कल्पना समझते हैं ।
वह गलत हैं । ‘ऐषिका’ शब्द में ‘इष’ अर्थात ज़ोर से फेंकना यह धातु हैं । इससे अर्थ हो जाता है कि ऐषिका एक साधन था जिससे अस्त्र फेंका जाता था । जैसे आज मिसाइल होते हैं जो परमाणु बम को ढ़ोने मे कारगर होते है । रॉकेट को भी ऐषिका कहा जा सकता है ।
अस्त्र ने प्रलयंकारी अग्नि निर्माण किया जो तीनों लोक जला सकता था, यह वर्णन आज के वर्णन पूरा मिलता हैं आज के पुस्तक में लिखा हैं कि बम फूटने के बाद एक भयंकर प्रकाश और अग्नि का गोला उत्पन्न हो गया जिसने सारा शहर नष्ट कर दिया ‘तेजोमंडल को ग्रस्त करने वाली महाजवाला’ विधान में प्रकाश तथा आग दोनों भी अन्तर्भूत हैं । निर्घाता बहवाश्चासंपेतु: उल्का सहस्त्रश: महाभारत लिखित इस वर्णन में ‘निर्घाता’ शब्द उपयोजित हैं । निर्घाता शब्द का अर्थ वराहमिहिर ने भी दिया हैं कि ‘विपरीत दिशा से आने वाले जो एक दूसरे पर टकराते हैं और पृथ्वी पर आघात कराते हैं उसे निर्घात कहते है ।’ आधुनिक काल बम का वर्णन देता है कि हवा का प्रचंड झोंका आ गया है एक घंटे में पाँच सौ मिल इतना ज़ोर उस वायु में था उसके कारण २.५ मिल त्रिज्या के वर्तुल में सब कुछ उद्धवस्त हुआ । अनेक वस्तुओं जैसे लकड़ी के टुकड़े, इनते पत्थर, काँच आदि ज़ोर से फेंके गए जिसने लोगो को कान्त दिया । ये वस्तुएँ उल्का जैसी फेंकी गई । महाभारत लिखता हैं कि ‘सहस्त्रश: उल्का गिरने लगी।‘ ‘आकाश शब्दमाय हो गया, पृथ्वी हिलने लगी, यह वर्णन विस्फोट का ही हुआ न ।’ब्रह्मास्त्र के कारण गाँव मे रहने वाली स्त्रियॉं के गर्भ मारे गए, ऐसा महाभारत लिखता है । वैसे ही हिरोशिमा में रेडिएशन फॉल आउट के कारण गर्भ मारे गए थे । ब्रह्मास्त्र के कारण १२ वर्ष अकाल का निर्माण होता है यह भी हिरोशिमा में देखने को मिलता है ।
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