November 23, 2011

वक़्त

इन खूबसूरत हसिनाओ पर भी वक़्त ने अपना असर दिखा दिया


किसी ने ठीक ही कहा है :

"ज़िन्दगी की राहों में ऐसे मोड़ भी आते हैं,

बहार के साथ-साथ यहाँ पतझड़ भी आते हैं ,

कौन उम्र भर किसी को याद रखता है ,

वक़्त के साथ तो पत्थर भी बदल जाते हैं !"

November 14, 2011

सम्राट विक्रम ने रोम के शासक जुलियस सीजर(juliyas seejar) को भी हराकर उसे बंदी बनाकर उज्जेन की सड़कों पर घुमाया था

सम्राट विक्रम ने रोम के शासक जुलियस सीजर को भी हराकर उसे बंदी बनाकर उज्जेन की सड़कों पर घुमाया था.


टिपण्णी यह है कि ----------------------


कालिदास-ज्योतिर्विदाभरण-अध्याय२२-ग्रन्थाध्यायनिरूपणम्-

श्लोकैश्चतुर्दशशतै सजिनैर्मयैव ज्योतिर्विदाभरणकाव्यविधा नमेतत् ॥ᅠ२२.६ᅠ॥

विक्रमार्कवर्णनम्-वर्षे श्रुतिस्मृतिविचारविवेकरम्ये श्रीभारते खधृतिसम्मितदेशपीठे।

मत्तोऽधुना कृतिरियं सति मालवेन्द्रे श्रीविक्रमार्कनृपराजवरे समासीत् ॥ᅠ२२.७ᅠ॥

नृपसभायां पण्डितवर्गा-शङ्कु सुवाग्वररुचिर्मणिरङ्गुदत्तो जिष्णुस्त्रिलोचनहरो घटखर्पराख्य।

अन्येऽपि सन्ति कवयोऽमरसिंहपूर्वा यस्यैव विक्रमनृपस्य सभासदोऽमो ॥ᅠ२२.८ᅠ॥

सत्यो वराहमिहिर श्रुतसेननामा श्रीबादरायणमणित्थकुमारसिंहा।

श्रविक्रमार्कंनृपसंसदि सन्ति चैते श्रीकालतन्त्रकवयस्त्वपरे मदाद्या ॥ᅠ२२.९ᅠ॥

नवरत्नानि-धन्वन्तरि क्षपणकामरसिंहशङ्कुर्वेतालभट्टघटखर्परकालिदासा।

ख्यातो वराहमिहिरो नृपते सभायां रत्नानि वै वररुचिर्नव विक्रमस्य ॥ᅠ२२.१०ᅠ॥

यो रुक्मदेशाधिपतिं शकेश्वरं जित्वा गृहीत्वोज्जयिनीं महाहवे।

आनीय सम्भ्राम्य मुमोच यत्त्वहो स विक्रमार्कः समसह्यविक्रमः ॥ २२.१७ ॥

तस्मिन् सदाविक्रममेदिनीशे विराजमाने समवन्तिकायाम्।

सर्वप्रजामङ्गलसौख्यसम्पद् बभूव सर्वत्र च वेदकर्म ॥ २२.१८ ॥

शङ्क्वादिपण्डितवराः कवयस्त्वनेके ज्योतिर्विदः सभमवंश्च वराहपूर्वाः।

श्रीविक्रमार्कनृपसंसदि मान्यबुद्घिस्तत्राप्यहं नृपसखा किल कालिदासः ॥ २२.१९ ॥

काव्यत्रयं सुमतिकृद्रघुवंशपूर्वं पूर्वं ततो ननु कियच्छ्रुतिकर्मवादः।

ज्योतिर्विदाभरणकालविधानशास्त्रं श्रीकालिदासकवितो हि ततो बभूव ॥ २२.२० ॥

वर्षैः सिन्धुरदर्शनाम्बरगुणै(३०६८)र्याते कलौ सम्मिते, मासे माधवसंज्ञिके च विहितो ग्रन्थक्रियोपक्रमः।

नानाकालविधानशास्त्रगदितज्ञानं विलोक्यादरा-दूर्जे ग्रन्थसमाप्तिरत्र विहिता ज्योतिर्विदां प्रीतये ॥ २२.२१ ॥

ज्योतिर्विदाभरण की रचना ३०६८ कलि वर्ष (विक्रम संवत् २४) या ईसा पूर्व ३३ में हुयी। विक्रम सम्वत् के प्रभाव से उसके १० पूर्ण वर्ष के पौष मास से जुलिअस सीजर द्वारा कैलेण्डर आरम्भ हुआ, यद्यपि उसे ७ दिन पूर्व आरम्भ करने का आदेश था। विक्रमादित्य ने रोम के इस शककर्त्ता को बन्दी बनाकर उज्जैन में भी घुमाया था (७८ इसा पूर्व में) तथा बाद में छोड़ दिया।। इसे रोमन लेखकों ने बहुत घुमा फिराकर जलदस्युओं द्वारा अपहरण बताया है तथा उसमें भी सीजर का गौरव दिखाया है कि वह अपना अपहरण मूल्य बढ़ाना चाहता था। इसी प्रकार सिकन्दर की पोरस (पुरु वंशी राजा) द्वारा पराजय को भी ग्रीक लेखकों ने उसकी जीत बताकर उसे क्षमादान के रूप में दिखाया है।

http://en.wikipedia.org/wiki/Julius_Caesar

Gaius Julius Caesar (13 July 100 BC – 15 March 44 BC) --- In 78 BC, --- On the way across the Aegean Sea, Caesar was kidnapped by pirates and held prisoner. He maintained an attitude of superiority throughout his captivity. When the pirates thought to demand a ransom of twenty talents of silver, he insisted they ask for fifty. After the ransom was paid, Caesar raised a fleet, pursued and captured the pirates, and imprisoned them. He had them crucified on his own authority.

Quoted from History of the Calendar, by M.N. Saha and N. C. Lahiri (part C of the Report of The Calendar Reforms Committee under Prof. M. N. Saha with Sri N.C. Lahiri as secretary in November 1952-Published by Council of Scientific & Industrial Research, Rafi Marg, New Delhi-110001, 1955, Second Edition 1992.

Page, 168-last para-“Caesar wanted to start the new year on the 25th December, the winter solstice day. But people resisted that choice because a new moon was due on January 1, 45 BC. And some people considered that the new moon was lucky. Caesar had to go along with them in their desire to start the new reckoning on a traditional lunar landmark.”

ज्योतिर्विदाभरण की कहानी ठीक होने के कई अन्य प्रमाण हैं-सिकन्दर के बाद सेल्युकस्, एण्टिओकस् आदि ने मध्य एसिआ में अपना प्रभाव बढ़ाने की बहुत कोशिश की, पर सीजर के बन्दी होने के बाद रोमन लोग भारत ही नहीं, इरान, इराक तथा अरब देशों का भी नाम लेने का साहस नहीं किये। केवल सीरिया तथा मिस्र का ही उल्लेख कर संतुष्ट हो गये। यहां तक कि सीरिया से पूर्व के किसी राजा के नाम का उल्लेख भी नहीं है। बाइबिल में लिखा है कि उनके जन्म के समय मगध के २ ज्योतिषी गये थे जिन्होंने ईसा के महापुरुष होने की भविष्यवाणी की थी। सीजर के राज्य में भी विक्रमादित्य के ज्योतिषियों की बात प्रामाणिक मानी गयी।

महाभारत काल मे हुआ था परमाणु बम, मिसाइल जैसे आग्नेयास्त्रों का प्रयोग

महाभारत युद्ध का आरंभ १६ नवंबर ५५६१ ईसा पूर्व हुआ और १८ दिन चलाने के बाद २ नवंबर ५५६१ ईसा पूर्व को समाप्त हुआ उसी रात दुर्योधन ने अश्वथामा को सेनापति नियुक्त किया । ३ नवंबर ५५६१ ईसा पूर्व के दिन भीम ने अश्वथामा को पकड़ने का प्रयत्न किया । तब अश्वथामा ने जो ब्रह्मास्त्र छोड़ा उस अस्त्र के कारण जो अग्नि उत्पन्न हुई वह प्रलंकारी था । वह अस्त्र प्रज्वलित हुआ तब एक भयानक ज्वाला उत्पन्न हुई जो तेजोमंडल को घिर जाने समर्थ थी ।


( तदस्त्रं प्रजज्वाल महाज्वालं तेजोमंडल संवृतम ।। ८ ।। ) इसके बाद भयंकर वायु जोरदार तमाचे मारने लगे । सहस्त्रावधि उल्का आकाश से गिरने लगे । भूतमातरा को भयंकर महाभय उत्पन्न हो गया । आकाश में बड़ा शब्द हुआ । आकाश में बड़ा शब्द हुआ । आकाश जलाने लगा पर्वत, अरण्य, वृक्षो के साथ पृथ्वी हिल गई । (सशब्द्म्भवम व्योम ज्वालामालाकुलं भृशम । चचाल च मही कृत्स्ना सपर्वतवनद्रुमा ।। १० ।। अ १४) जब दोनों अस्त्र पृथ्वी को जलाने लगे तब नारद तथा व्यास ये दो महारची बीच में आकर खड़े हो गए । उन्होने अर्जुन और अश्वत्थामा को अपने अपने अणुअस्त्रेय वापस लेने कि विनती कि । अर्जुन ने वह आज्ञा मान जल्दी अपना अस्त्र वापस ले लिया कुनतु अश्वत्थामा को अस्त्र वापस लेने कि जानकारी नहीं थी । व्यास लिखते हैं कि ब्रहास्त्र जैसा उग्र अस्त्र छोड़ने के बाद वापस लौटने का सामर्थ्य केवल अर्जुन में ही था । ब्रहमतेज से वह अस्त्र उत्पन्न होने के कारण जो ब्रह्मचारी हैं (अर्थात जो ब्रह्म के अनुसार वर्तन करता हैं) वह ही उसे वापस लौटा सकता हैं अन्य वीरों को यह असंभव होता हैं । अंग्रेज़ भी मानने लगे है की वास्तव मे महाभारत मे परमाणु बम का प्रयोग हुआ था, जिस पर शोध कार्य चल रहे है ।

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href="http://www.youtube.com/watch?v=_kw4hOoxq4M" target="_blank" class="fancybox-youtube">पुणे के डॉक्टर व लेखक पद्माकर विष्णु वर्तक ने तो 40 वर्ष पहले ही सिद्ध किया था कि वह महाभारत के समय जो ब्रह्मास्त्र इस्तेमाल किया गया था वह परमाणु बम के समान ही था ।डॉ॰ वर्तक ने १९६९ में एक किताब लिखनी शुरू कि थी ‘स्वयंभू’ नामक इस किताब के मुख्य पात्र के रूप में महाभारत के भीम को चुना गया हैं । भीम पर केन्द्रित इस पुस्तक में महाभारत कि लड़ाई कि तिथि भी बताई गई हैं । मूल रूप से मराठी भाषा में लिखी गई यह पुस्तक हिन्दी में अनुवादित करके हिन्दी भाषियों के लिए उपलब्ध कराने का काम २००५ मे किया नाग पब्लिशर ने । आज लोग इस बात को स्वीकार कर रहे है कि महाभारत के समय परमाणु बम का इस्तेमाल हुआ था । मराठी भाषा में स्वयंभू नामक पुस्तक १९७० मे ही लिखी जा चुकी थी इस पुस्तक को तब महाराष्ट्र ग्रंथोत्तेजक सभा का पहला पुरस्कार मिला था कई अखबारों कि पुस्तक कि समीक्षा में इसकी प्रशंसा हुई थी ।यहाँ व्यास लिखते हैं कि “जहां ब्रहास्त्र छोड़ा जाता है वहीं १२ व्रषों तक पर्जन्यवृष्ठी नहीं हो पाती “।

३ नवंबर ५५६१ ईसा पूर्व के दिन छोड़ा हुआ ब्रह्मास्त्र और ६ अगस्त १९४५ को फेंका गया एटम बम इन दोनों के परिणामों के साम्य अब देखें । दो घटनाओ के बीच ७५०६ वर्ष व्यतीत हो गए है तो भी दोनों मे पूर्ण साम्य दिखता है । आज के युग में वेज्ञानिक रिपोर्ट में एटम बम फेंका इतना ही बताया है । वह कैसा था, कितना बड़ा था, किस वस्तु का बना था , किस प्रकार फेंक दिया इसके बारें मे कुछ भी नहीं लिखा हैं महाभारत में इसी प्रकार का वर्णन आया है एक ऐषिका लेकर अश्वत्थामा ने ब्रहास्त्र छोड़ा इतना ही लिखा हैं । ऐषिका अर्थात दर्भ का तिनका ऐसा विद्वान कहते हैं, किंतु प्रमाण नहीं दे सकते । आज के वर्णन में‘बम’ शब्द का उपयोग हैं लेकिन बम क्या होता है इसका वर्णन नहीं मिलता आज से साथ सहस्त्र वर्षो बाद ‘बम’ शब्द का अर्थ वहाँ के लोग क्या कहेंगे ? वे लोग शब्द कोश में देख बम मतलब मिट्टी का गोला करेंगे मिट्टी का गोला फेंक कर इतना संहार कैसे हो सकता है ? यह सब कल्पना हैं । इसी तरह हम आज ब्रहास्त्र को कल्पना समझते हैं ।

वह गलत हैं । ‘ऐषिका’ शब्द में ‘इष’ अर्थात ज़ोर से फेंकना यह धातु हैं । इससे अर्थ हो जाता है कि ऐषिका एक साधन था जिससे अस्त्र फेंका जाता था । जैसे आज मिसाइल होते हैं जो परमाणु बम को ढ़ोने मे कारगर होते है । रॉकेट को भी ऐषिका कहा जा सकता है ।

अस्त्र ने प्रलयंकारी अग्नि निर्माण किया जो तीनों लोक जला सकता था, यह वर्णन आज के वर्णन पूरा मिलता हैं आज के पुस्तक में लिखा हैं कि बम फूटने के बाद एक भयंकर प्रकाश और अग्नि का गोला उत्पन्न हो गया जिसने सारा शहर नष्ट कर दिया ‘तेजोमंडल को ग्रस्त करने वाली महाजवाला’ विधान में प्रकाश तथा आग दोनों भी अन्तर्भूत हैं । निर्घाता बहवाश्चासंपेतु: उल्का सहस्त्रश: महाभारत लिखित इस वर्णन में ‘निर्घाता’ शब्द उपयोजित हैं । निर्घाता शब्द का अर्थ वराहमिहिर ने भी दिया हैं कि ‘विपरीत दिशा से आने वाले जो एक दूसरे पर टकराते हैं और पृथ्वी पर आघात कराते हैं उसे निर्घात कहते है ।’ आधुनिक काल बम का वर्णन देता है कि हवा का प्रचंड झोंका आ गया है एक घंटे में पाँच सौ मिल इतना ज़ोर उस वायु में था उसके कारण २.५ मिल त्रिज्या के वर्तुल में सब कुछ उद्धवस्त हुआ । अनेक वस्तुओं जैसे लकड़ी के टुकड़े, इनते पत्थर, काँच आदि ज़ोर से फेंके गए जिसने लोगो को कान्त दिया । ये वस्तुएँ उल्का जैसी फेंकी गई । महाभारत लिखता हैं कि ‘सहस्त्रश: उल्का गिरने लगी।‘ ‘आकाश शब्दमाय हो गया, पृथ्वी हिलने लगी, यह वर्णन विस्फोट का ही हुआ न ।’ब्रह्मास्त्र के कारण गाँव मे रहने वाली स्त्रियॉं के गर्भ मारे गए, ऐसा महाभारत लिखता है । वैसे ही हिरोशिमा में रेडिएशन फॉल आउट के कारण गर्भ मारे गए थे । ब्रह्मास्त्र के कारण १२ वर्ष अकाल का निर्माण होता है यह भी हिरोशिमा में देखने को मिलता है ।

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