January 03, 2011

धर्मों में ॐ उच्चारण का महत्व

हिंदू या सनातन धर्म की धार्मिक विधियों के प्रारंभ में 'ॐ' शब्द का उच्चारण होता है, जिसकी ध्वनि गहन होती है। इसे प्रणव मंत्र भी कहते हैं। प्राचीन भारतीय धर्म विश्वास के अनुसार ब्रह्मांड के सृजन के पहले प्रणव मंत्र का उच्चारण हुआ था। ॐ का हिंदू धर्म के अलावा अन्य धर्मों में भी महत्व है।

योगियों में यह विश्वास है कि इसके अंदर मनुष्य की सामान्य चेतना को परिवर्तित करने की शक्ति है। यह मंत्र मनुष्य की बुद्धि व देह में परिवर्तन लाता है। ॐ से शरीर, मन, मस्तिष्क में परिवर्तन होता है और वह स्वस्थ हो जाता है। ॐ के उच्चारण से फेफड़ों में, हृदय में स्वस्थता आती है। शरीर, मन और मस्तिष्क स्वस्थ और तनावरहित हो जाता है। ॐ के उच्चारण से वातावरण शुद्ध हो जाता है।


ॐ शब्द तीन ध्वनियों से बना हुआ है। जिनका उच्चारण एक के बाद एक होता है। ओ, उ, म इन तीनों ध्वनियों का अर्थ उपनिषद में भी आता है, जिसके अनुसार साधक या योगी इसका उच्चारण ध्यान करने के पहले व बाद में करता है।

ॐ 'ओ' से प्रारंभ होता है जो चेतना के पहलेस्तर को दिखाता है। चेतना के इस स्तर में इंद्रियाँ बहिर्मुख होती हैं। इससे ध्यान बाहरी विश्व की ओर जाता है। चेतना के इस अभ्यास व सही उच्चारण से मनुष्य को शारीरिक व मानसिक लाभ मिलता है।

आगे 'उ' की ध्वनि आती है, जहाँ पर साधक चेतना के दूसरे स्तर में जाता है। इसे तेजस भी कहते हैं। इस स्तर में साधक अंतर्मुखी हो जाता है और वह पूर्व कर्मों व वर्तमान आशा के बारे में सोचता है। इस स्तर पर अभ्यास करने पर जीवन की गुत्थियाँ सुलझती हैं व उसे आत्मज्ञान होने लगता है। वह जीवन को माया से अलग समझने लगता है। हृदय, मन, मस्तिष्क शांत हो जाता है।


'म' ध्वनि के उच्चार से चेतना के तृतीय स्तर का ज्ञान होता है, जिसे 'प्रज्ञा' भी कहते हैं। इस स्तर में साधक सपनों से आगे निकल जाता है व चेतना शक्ति को देखता है। साधक स्वयं को संसार का एक भाग समझता है और इस अनंत शक्ति स्रोत से शक्ति लेता है। इसके द्वारा साक्षात्कार के मार्ग में भी जा सकते हैं। इससे साधक के शरीर, मन, मस्तिष्क के अंदर आश्चर्यजनक परिवर्तन आता है। शरीर, मन, मस्तिष्क, शांत होकर तनावरहित हो जाता है।



हिंदू या सनातन धर्म की धार्मिक विधियों के प्रारंभ में 'ॐ' शब्द का उच्चारण होता है, जिसकी ध्वनि गहन होती है। इसे प्रणव मंत्र भी कहते हैं। प्राचीन भारतीय धर्म विश्वास के अनुसार ब्रह्मांड के सृजन के पहले प्रणव मंत्र का उच्चारण हुआ था।


ॐ का उच्चारण पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन, वज्रासन में बैठकर कर सकते हैं। साधक बैठने में असमर्थ हो तो लेटकर भी इसका उच्चारण कर सकता है। इससे मानसिक बीमारियाँ दूर होती हैं। काम करने की शक्ति बढ़ जाती है। इसका उच्चारण 5, 7, 10, 21 बार अपने समयानुसार कर सकते हैं। ॐ जोर से बोल सकते हैं, धीरे-धीरे बोल सकते हैं। ॐ जप माला से भी कर सकते हैं।



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