जानें मंदिर में दर्शन करने के पीछे छुपे हैं कौन से वैज्ञानिक रहस्य
OneIndia Hindi16 Jan. 15:17
भारत देश, अपनी समृद्ध परंपरा और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। पूरे देश के हर कोने में हिंदू मंदिरों की बहुतायत है। ये मंदिर अलग-अलग भगवानों और देवी-देवताओं को समर्पित होेते हैं। हर परिवार या समुदाय अपने इष्ट की आराधना करता है और उन्हें पूजता है। हिंदू धर्म के अनुयायी भारी संख्या में मंदिरों में दर्शन करने जाते हैं और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
हालांकि, मंदिर में दर्शन करने के पीछे छुपे कई वैज्ञानिक कारणों को बहुत कम लोग की जानते हैं। मंदिर में दर्शन के पीछे सबसे बड़ा कारण, सकारात्मक ऊर्जा को प्राप्त करना होता है।
इसके अलावा, इस सकारात्मक ऊर्जा को सिर्फ तभी प्राप्त किया जा सकता है, जब शरीर की पांचों इंद्रियां सक्रिय हो।
मंदिर में प्रवेश करने के बाद, ये पांचों इंद्रियां अपने आप ही ऊर्जावान हो सकती हैं। इसलिए, हम इस आर्टिकल में आपको बताएंगे कि मंदिर के दर्शन के पीछे क्या वैज्ञानिक तर्क होते हैं और वाकई में इनसे किस प्रकार लाभ मिलता है। आइए जानते हैं मंदिर में दर्शन करने के वैज्ञानिक लाभ:
मंदिर के लिए हमेशा ऐसा स्थान चुना जाता है जहां सकरात्मक ऊर्जा का भंडार हो। एक ऐसा स्थान जहां उत्तरी छोर से स्वतंत्र रूप से चुम्बकीय और विद्युत तरंगों का प्रवाह हो। अक्सर ऐसे ही स्थान का चयन करके विधिवत मंदिर का निर्माण करवाया जाता है, ताकि लोगों के शरीर में अधिकतम सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो।
मंदिर में भगवान की मूर्ति को गर्भगृह में या मंदिर के बिल्कुल मध्य स्थान पर स्थापित किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर सबसे अधिक ऊर्जा होती है जहां सकारात्मक सोच से खड़े होने पर शरीर में अच्छी ऊर्जा पहुंचती है और नकारात्मकता दूर भाग जाती है। हमेशा मूर्ति की स्थापना के बाद ही मंदिर का ढांचा खड़ा किया जाता है।
आप दुनिया के किसी भी देश में हिंदू मंदिर में प्रवेश करें तो नंगे पैर ही करना पड़ता है। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि मंदिर की फर्शों का निर्माण पुराने समय से अब तक इस प्रकार किया जाता है कि ये इलेक्ट्रिक और मैग्नैटिक तरंगों का सबसे बड़ा स्त्रोत होती हैं। जब इन पर नंगे पैर चला जाता है तो अधिकतम ऊर्जा पैरों के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर जाती है।
जब भी मंदिर में प्रवेश किया जाता है तो द्वार पर घंटा टंगा होता है जिसे बजाना होता है। मुख्य मंदिर (जहां भगवान की मूर्ति होती है) में भी प्रवेश करते समय घंटा या घंटी बजानी होती है, इसके पीछे कारण यह है कि इसे बजाने से निकलने वाली मधुर ध्वनि से सात सेकेंड तक गूंज बनी रहती है जो शरीर के सात हीलिंग सेंटर्स को सक्रिय कर देती है।
हर मंदिर में मूर्ति पूजा के समय कपूर जलाया जाता है, इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि जब अंधेरे मंदिर में कपूर को जलाया जाता है तो दृष्टि इंद्री सक्रिय हो जाती हैं।
आरती के बाद सभी लोग दिए पर या कपूर के ऊपर हाथ रखते हैं और उसके बाद सिर से लगाते हैं और आंखों पर स्पर्श करते हैं। ऐसा करने से हल्के गर्म हाथों से दृष्टि इंद्री सक्रिय हो जाती है और अचछा महसूस होता है।
भगवान की मूर्ति पर फूल चढ़ाना हर मंदिर में स्वीकार्य होता है। ऐसा करने से मंदिर और मंदिर परिसर में अच्छी और भीनी-भीनी सी खुशबु आती है। अगरबत्ती, कपूर और फूलों की खुशबु से सूंघने की शक्ति बढ़ती है और मन प्रसन्न हो जाता है।
चरणामृत को पांच सामग्रियों (दूध, दही, घी, गंगाजल और तुलसी के दल) से मिलकर बनाया जाता है। इसके बाद, इसे ईश्वर को भोग लगाया जाता है और बाद में सभी दर्शानर्थियों को बांट दिया जाता है। जिस पात्र में इसे रखा जाता है वह तांबे का होता है और उसमें पड़ी हुई चम्मच चांदी की होती है। इसे पीने से जीह्वा की इंद्रियां सक्रिय हो जाती हैं
हर मंदिर के मुख्य मंदिर में दर्शन करने और पूजा करने के बाद परिक्रमा करनी होती है। परिक्रमा 8 से 9 बार करनी होती है। जब मंदिर में परिक्रमा की जाती है तो सारी सकारात्मक ऊर्जा, शरीर में प्रवेश कर जाती है और मन को शांति मिलती है।
OneIndia Hindi16 Jan. 15:17
भारत देश, अपनी समृद्ध परंपरा और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। पूरे देश के हर कोने में हिंदू मंदिरों की बहुतायत है। ये मंदिर अलग-अलग भगवानों और देवी-देवताओं को समर्पित होेते हैं। हर परिवार या समुदाय अपने इष्ट की आराधना करता है और उन्हें पूजता है। हिंदू धर्म के अनुयायी भारी संख्या में मंदिरों में दर्शन करने जाते हैं और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
हालांकि, मंदिर में दर्शन करने के पीछे छुपे कई वैज्ञानिक कारणों को बहुत कम लोग की जानते हैं। मंदिर में दर्शन के पीछे सबसे बड़ा कारण, सकारात्मक ऊर्जा को प्राप्त करना होता है।
इसके अलावा, इस सकारात्मक ऊर्जा को सिर्फ तभी प्राप्त किया जा सकता है, जब शरीर की पांचों इंद्रियां सक्रिय हो।
मंदिर में प्रवेश करने के बाद, ये पांचों इंद्रियां अपने आप ही ऊर्जावान हो सकती हैं। इसलिए, हम इस आर्टिकल में आपको बताएंगे कि मंदिर के दर्शन के पीछे क्या वैज्ञानिक तर्क होते हैं और वाकई में इनसे किस प्रकार लाभ मिलता है। आइए जानते हैं मंदिर में दर्शन करने के वैज्ञानिक लाभ:
मंदिर के लिए हमेशा ऐसा स्थान चुना जाता है जहां सकरात्मक ऊर्जा का भंडार हो। एक ऐसा स्थान जहां उत्तरी छोर से स्वतंत्र रूप से चुम्बकीय और विद्युत तरंगों का प्रवाह हो। अक्सर ऐसे ही स्थान का चयन करके विधिवत मंदिर का निर्माण करवाया जाता है, ताकि लोगों के शरीर में अधिकतम सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो।
मंदिर में भगवान की मूर्ति को गर्भगृह में या मंदिर के बिल्कुल मध्य स्थान पर स्थापित किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर सबसे अधिक ऊर्जा होती है जहां सकारात्मक सोच से खड़े होने पर शरीर में अच्छी ऊर्जा पहुंचती है और नकारात्मकता दूर भाग जाती है। हमेशा मूर्ति की स्थापना के बाद ही मंदिर का ढांचा खड़ा किया जाता है।
आप दुनिया के किसी भी देश में हिंदू मंदिर में प्रवेश करें तो नंगे पैर ही करना पड़ता है। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि मंदिर की फर्शों का निर्माण पुराने समय से अब तक इस प्रकार किया जाता है कि ये इलेक्ट्रिक और मैग्नैटिक तरंगों का सबसे बड़ा स्त्रोत होती हैं। जब इन पर नंगे पैर चला जाता है तो अधिकतम ऊर्जा पैरों के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर जाती है।
जब भी मंदिर में प्रवेश किया जाता है तो द्वार पर घंटा टंगा होता है जिसे बजाना होता है। मुख्य मंदिर (जहां भगवान की मूर्ति होती है) में भी प्रवेश करते समय घंटा या घंटी बजानी होती है, इसके पीछे कारण यह है कि इसे बजाने से निकलने वाली मधुर ध्वनि से सात सेकेंड तक गूंज बनी रहती है जो शरीर के सात हीलिंग सेंटर्स को सक्रिय कर देती है।
हर मंदिर में मूर्ति पूजा के समय कपूर जलाया जाता है, इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि जब अंधेरे मंदिर में कपूर को जलाया जाता है तो दृष्टि इंद्री सक्रिय हो जाती हैं।
आरती के बाद सभी लोग दिए पर या कपूर के ऊपर हाथ रखते हैं और उसके बाद सिर से लगाते हैं और आंखों पर स्पर्श करते हैं। ऐसा करने से हल्के गर्म हाथों से दृष्टि इंद्री सक्रिय हो जाती है और अचछा महसूस होता है।
भगवान की मूर्ति पर फूल चढ़ाना हर मंदिर में स्वीकार्य होता है। ऐसा करने से मंदिर और मंदिर परिसर में अच्छी और भीनी-भीनी सी खुशबु आती है। अगरबत्ती, कपूर और फूलों की खुशबु से सूंघने की शक्ति बढ़ती है और मन प्रसन्न हो जाता है।
चरणामृत को पांच सामग्रियों (दूध, दही, घी, गंगाजल और तुलसी के दल) से मिलकर बनाया जाता है। इसके बाद, इसे ईश्वर को भोग लगाया जाता है और बाद में सभी दर्शानर्थियों को बांट दिया जाता है। जिस पात्र में इसे रखा जाता है वह तांबे का होता है और उसमें पड़ी हुई चम्मच चांदी की होती है। इसे पीने से जीह्वा की इंद्रियां सक्रिय हो जाती हैं
हर मंदिर के मुख्य मंदिर में दर्शन करने और पूजा करने के बाद परिक्रमा करनी होती है। परिक्रमा 8 से 9 बार करनी होती है। जब मंदिर में परिक्रमा की जाती है तो सारी सकारात्मक ऊर्जा, शरीर में प्रवेश कर जाती है और मन को शांति मिलती है।
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