पिछले दो साल से जब से Recession शब्द का चलन बड़ा हैं तब से जिंदगी का रुख नहीं समझ प् रहा हूँ. एक एक दिन असंमजस मैं बीतता हैं कहीं आज आखरी दिन तो नहीं!अगर नौकरी नहीं रही तो किया करूँगा
कभी सोचता हूँ कोई हुनर होना जरुरी हैं ताकि कोई अपना काम कर सकू फिर OFFICE से आते समय उसी काम को किसी को करते हुए देखता हूँ और उसकी माली हालत देखता हूँ फिर असमंजस मैं पड़ जाता हूँ.
जिंदगी अपने आप चल रही हैं मैं ऑफिस मैं बैठा रहता हूँ अपने आप CLIENT/ब्रोकर का फ़ोन आ जाता हैं और काम हो जाता हैं फिर सोचता हूँ किया जिंदगी में किस्मत ही सब कुछ हैं अगर किस्मत में होगा तो अपने आप महनत करने का जज्बा भी किस्मत दे देती हैं आप महनत करने लगते हैं और आपको आपकी मंजिल मिलजाती हैं.!
फिर बड़े बड़े विद्युआन बड़ी बड़ी पींगे छोड़ने लगते हैं की महनत किस्मत बदल देती हैं ऐसा वैसा यह वोह .........फलाना ढिमका और जाने जाने किया किया...!!
आखिर यह जिंदगी किस दिशा में जा रही हैं????
किया यह GLOBALIZATION का खामीयाजा हमलोग भुगत रहे हैं?
हर तरफ अस्तव्यस्तता/भ्रम/ भ्रान्ति/हैं !!!! हम क्यूँ जी रहे हैं यही नहीं पता हैं !!
जब २०००/-रुपए कमाता था तब शायद ज्यादा खुश था और आज शायद उसका 20guna कमाता हूँ उतना ही दुखी.हमेशा पैसा का ही रोना बना रहता हैं! फिर कुछ बड़े बुजुर्ग जो आजकल ART OF LIVING/RAMDEV'S YOGA/ वागारह वागारह समझाते हैं
No doubt योग ध्यान की क्रियाओं से काफी शान्ति मिलती हैं लेकिन .................!!!
मेरे चारो तरह का माहोल तो योग ध्यान की क्रिया में हैं नहीं में शांत रहूँगा तो बाकी लोग अशांत रहेंगे और फिर में उसी माहोल में ढलने लगता हूँ.
सबको तो नहीं बदल सकता हूँ खुद को खुद के जज्बातों को बस समझाता रहता हूँ.!!! :-)
घर ऑफिस सड़क मार्केट सरकारी कामकाज हर तरह शोर हैं किच किच !!!!
हा हा हा में अपने आप से बात कर रहा हूँ और टाइप करता जा रहा हूँ.....
मन हलका हो जाता हैं
यह जिंदगी ऐसी ही हैं ऐसी ही चलती रहेगी ......
दो पेग लगाओ मस्त हो जाओ लेकिन एक बात तो पक्का हैं अबकी ऊपर वाले से गुजारिश जरूर करूँगा की दो लीवर और दो किडनीय जरूर दे क्यूंकि तुम टेंशन देते हो और शराब टेंशन दूर कर देती हैं...............
शेष फिर कभी.............................................................................
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