इंदौर। हर चुनौती को मात दे जीत का सेहरा बांधने वाले भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तानी महेंद्र सिंह धोनी में आखिर ऎसा क्या खास है जो उन्हें दूसरे समकालीन कप्तानों से अलग बनाता है। इसका राज हैं नेतृत्व के वे पांच कॉरपोरेट गुर जो उन्हें मैदानी और दिमागी खेल में सिरमौर बनाते हैं।
यह बात सामने आई है इंदौर के भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम-आई) के एक ताजा अध्यय में।
अध्ययन में बताया गया है कि टीम इंडिया के कैप्टन कूल नेतृत्व के पांच कॉरपोरेट गुरों से लैस हैं, जो उन्हें मैदानी और दिमागी खेल में सिरमौर बनाते हैं। इन्हीं की बदौलत धोनी पाçुकस्तान जैसे धुर प्रतिद्वंद्वी को धूल चटाने में कामयाब रहे। अब श्रीलंका के खिलाफ मुंबई के वानखे़डे स्टेडियम में दो अप्रैल को होने वाले विश्वकप फाइनल में उनकी कप्तानी की एक बार फिर पैमाइश होनी है।
भारी दबाव और कशमकश से भरी भारत-पाक भि़डंत की पृष्ठभूमि में धोनी के नायकत्व का अध्ययन आईआईएण-आई में रणनीतिक प्रबंधन पढ़ाने वाले प्रोफेसर प्रशांत सालवान ने किया है। उन्होंने बताया, धोनी का पहला गुर है कि वह एक टीम प्लेयर है। आपने कई बार देखा होगा कि कई बार उन्होंने टीम के हित में अपनी स्वाभाविक शैली की आक्रामक बल्लेबाजी नहीं की और सबको साथ लेकर चले। उनका गुर नंबर दो है, वह अपने खिलाडियों की खूबियों और खामियों को भलीभांति जानते हैं और तमाम जोखिमों के बावजूद उन पर भरोसा करते हैं।
सालवान ने कहा, किसी कॉरपोरेट फर्म के अध्यक्ष की तरह धोनी अच्छी तरह जानते हैं कि टीम की ताकत को कब और किस तरह भुनाना है। पाकिस्तान के खिलाफ अहम सेमीफाइनल में आर अश्विन की जगह आशीष नेहरा को आजमाने का जोखिम भरा, लेकिन आखिरकार कामयाब फैसला धोनी के इस गुण को साबित करता है।
प्रो. सालवान के मुताबिक, 29 साला इस भारतीय कप्तान का तीसरा गुण है, एक संरक्षक की तरह खिलाडियों को उनकी प्रतिभा के विकास का पूरा मौका देना। इससे खिलाडियों में आत्मविश्वास और परस्पर विश्वास, दोनों पनपते हैं। उन्होंने बताया, ऎसा लगा कि पाकिस्तान के खिलाफ विश्व कप सेमीफाइनल में धोनी युवराज सिंह, हरभजन सिंह और सुरेश रैना के मन में उम़ड रहे भावनात्मक ज्वार को जांचने में कामयाब रहे और उन्हें मैदान के बाहरी वातावरण से प्रभावित हुए बिना अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने की ओर अग्रसर किया।
सालवान के मुताबिक धोनी का चौथा गुर है, मौके और माहौल के मुताबिक एक ऎसे खेल की रणनीति तैयार करने की कुशलता, जो अनिश्चितता से भरा है। मिसाल के तौर पर भारतीय कप्तान ने निर्णायक पलों के दौरान 42वें ओवर में हरभजन सिंह को गेंद थमाई, क्योंकि वह अपने पाकिस्तानी समकक्ष शाहिद आफरीदी की इस कमजोरी से वाकिफ ते कि वह ललचाती गेंद पर ऊंचे शॉट खेलने से खुद को रोक नहीं पाते। आफरीदी ने वही गलती की और पाकिस्तान का यह आक्रामक बल्लेबाज महज 19 रन के स्कोर पर हरभजन सिंह की गेंद पर वीरेंद्र सहवाग के हाथों लपक लिया गया। सालवान के अध्ययन के मुताबिक, कप्तान धोनी का पांचवां गुर उनके जीत या हार से अप्रभावित रहना है। दोनों ही सूरतों में उनकी मानसिक दृढ़ता कायम रहती है। धोनी की यह खूबी उनकी मानसिक शांति बनाए रखती है, जिससे उन्हें भविष्य की रणनीति बनाने में मदद मिलती है। इसके अलावा वह पेशेवर व्यस्तताओं के बावजूद अपने परिवार के साथ मजबूती से जु़डे हैं। सालवान ने कहा कि रांची से ताल्लुक रखने वाला यह युवा क्रिकेटर अहम फैसले करने तक अपने साथी खिलाडियों, अनुभवी लोगों और विशेषज्ञों की प्रतिक्रियाओं का पूरा ध्यान रखते हैं। यह भी एक सफल नायक की खूबी है।