December 31, 2012

संस्कृति -हिंदू क्यों कहते हैं 'नमस्ते'? NAMASTE


हिंदू क्यों कहते हैं 'नमस्ते'?



शास्त्रों में पाँच प्रकार के अभिवादन बतलाये गए है जिन में से एक है 

"नमस्ते " या "नमस्कार "।

आदर के निम्न प्रकार है :


1-प्रत्युथान : किसी के स्वागत में उठ कर खड़े होना

2-नमस्कार : हाथ जोड़ कर सत्कार करना

3-उपसंग्रहण : बड़े, बुजुर्ग, शिक्षक के पाँव छूना

4-साष्टांग : पाँव, घुटने, पेट, सर और हाथ के बल जमीन पर पुरे लेट 

कर सम्मान करना

5-प्रत्याभिवादन : अभिनन्दन का अभिनन्दन से जवाब देना


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December 27, 2012

STORY 20



आज ही क्यों नहीं ?


एक बार की बात है कि एक शिष्य अपने गुरु का बहुत आदर-सम्मान किया करता था |गुरु भी अपने इस 

शिष्य से बहुत स्नेह करते थे लेकिन वह शिष्य अपने अध्ययन के प्रति आलसी और स्वभाव से दीर्घसूत्री था 

|सदा स्वाध्याय से दूर भागने की कोशिश करता तथा आज के काम को कल के लिए छोड़ दिया करता था | 

अब गुरूजी कुछ चिंतित रहने लगे कि कहीं उनका यह शिष्य जीवन-संग्राम में पराजित न हो जाये|आलस्य 

में व्यक्ति को अकर्मण्य बनाने की पूरी सामर्थ्य होती है |ऐसा व्यक्ति बिना परिश्रम के ही फलोपभोग की 

कामना करता है| वह शीघ्र निर्णय नहीं ले सकता और यदि ले भी लेता है,तो उसे कार्यान्वित नहीं कर पाता| 

यहाँ तक कि अपने पर्यावरण के प्रति भी सजग नहीं रहता है और न भाग्य द्वारा प्रदत्त सुअवसरों का लाभ 

उठाने की कला में ही प्रवीण हो पता है | उन्होंने मन ही मन अपने शिष्य के कल्याण के लिए एक योजना 

बना ली |एक दिन एक काले पत्थर का एक टुकड़ा उसके हाथ में देते हुए गुरु जी ने कहा –‘मैं तुम्हें यह 

जादुई पत्थर का टुकड़ा, दो दिन के लिए दे कर, कहीं दूसरे गाँव जा रहा हूँ| जिस भी लोहे की वस्तु को तुम 

इससे स्पर्श करोगे, वह स्वर्ण में परिवर्तित हो जायेगी| पर याद रहे कि दूसरे दिन सूर्यास्त के पश्चात मैं इसे 

तुमसे वापस ले लूँगा|’


शिष्य इस सुअवसर को पाकर बड़ा प्रसन्न हुआ लेकिन आलसी होने के कारण उसने अपना पहला दिन यह 

कल्पना करते-करते बिता दिया कि जब उसके पास बहुत सारा स्वर्ण होगा तब वह कितना प्रसन्न, 

सुखी,समृद्ध और संतुष्ट रहेगा, इतने नौकर-चाकर होंगे कि उसे पानी पीने के लिए भी नहीं उठाना पड़ेगा | 

फिर दूसरे दिन जब वह प्रातःकाल जागा,उसे अच्छी तरह से स्मरण था कि आज स्वर्ण पाने का दूसरा और 

अंतिम दिन है |उसने मन में पक्का विचार किया कि आज वह गुरूजी द्वारा दिए गये काले पत्थर का लाभ 

ज़रूर उठाएगा | उसने निश्चय किया कि वो बाज़ार से लोहे के बड़े-बड़े सामान खरीद कर लायेगा और उन्हें 

स्वर्ण में परिवर्तित कर देगा. दिन बीतता गया, पर वह इसी सोच में बैठा रहा की अभी तो बहुत समय है, 

कभी भी बाज़ार जाकर सामान लेता आएगा. उसने सोचा कि अब तो दोपहर का भोजन करने के पश्चात ही 

सामान लेने निकलूंगा.पर भोजन करने के बाद उसे विश्राम करने की आदत थी , और उसने बजाये उठ के 

मेहनत करने के थोड़ी देर आराम करना उचित समझा. पर आलस्य से परिपूर्ण उसका शरीर नीद की 

गहराइयों में खो गया, और जब वो उठा तो सूर्यास्त होने को था. अब वह जल्दी-जल्दी बाज़ार की तरफ 

भागने लगा, पर रास्ते में ही उसे गुरूजी मिल गए उनको देखते ही वह उनके चरणों पर गिरकर, उस जादुई 

पत्थर को एक दिन और अपने पास रखने के लिए याचना करने लगा लेकिन गुरूजी नहीं माने और उस 

शिष्य का धनी होने का सपना चूर-चूर हो गया | पर इस घटना की वजह से शिष्य को एक बहुत बड़ी सीख 

मिल गयी: उसे अपने आलस्य पर पछतावा होने लगा, वह समझ गया कि आलस्य उसके जीवन के लिए 

एक अभिशाप है और उसने प्रण किया कि अब वो कभी भी काम से जी नहीं चुराएगा और एक कर्मठ, 

सजग और सक्रिय व्यक्ति बन कर दिखायेगा.


मित्रों, जीवन में हर किसी को एक से बढ़कर एक अवसर मिलते हैं , पर कई लोग इन्हें बस अपने आलस्य 


के कारण गवां देते हैं. इसलिए मैं यही कहना चाहती हूँ कि यदि आप सफल, सुखी, भाग्यशाली, धनी अथवा 

महान बनना चाहते हैं तो आलस्य और दीर्घसूत्रता को त्यागकर, अपने अंदर विवेक, कष्टसाध्य श्रम,और 

सतत् जागरूकता जैसे गुणों को विकसित कीजिये और जब कभी आपके मन में किसी आवश्यक काम को 

टालने का विचार आये तो स्वयं से एक प्रश्न कीजिये – “आज ही क्यों नहीं ?”

December 26, 2012

STORY 18


एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोजाना भोजन पकाती थी और एक रोटी वह वहां से गुजरने वाले किसी भी भूखे के लिए पकाती थी ,
वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी जिसे कोई भी ले सकता था .
एक कुबड़ा व्यक्ति रोज उस रोटी को ले जाता और वज
ाय धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बडबडाता "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा "
दिन गुजर...ते गए और ये सिलसिला चलता रहा ,वो कुबड़ा रोज रोटी लेके जाता रहा और इन्ही शब्दों को बडबडाता
"जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा "
वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी कि "कितना अजीब व्यक्ति है ,एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है और न जाने क्या क्या बडबडाता रहता है ,
मतलब क्या है इसका ".
एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और बोली "मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी ".
और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में जहर मिला दीया जो वो रोज उसके लिए बनाती थी और जैसे ही उसने रोटी को को खिड़की पर रखने कि कोशिश कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और रुक गये और वह बोली "
हे भगवन मैं ये क्या करने जा रही थी ?" और उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे कि आँच में जला दीया .एक ताज़ा रोटी बनायीं और खिड़की के सहारे रख दी ,
हर रोज कि तरह वह कुबड़ा आया और रोटी लेके "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा " बडबडाता हुआ चला गया इस बात से बिलकुल बेखबर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल रहा है .
हर रोज जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह भगवान से अपने पुत्र कि सलामती और अच्छी सेहत और घर वापसी के लिए प्रार्थना करती थी जो कि अपने सुन्दर भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ था .महीनों से उसकी कोई खबर नहीं थी.
शाम को उसके दरवाजे पर एक दस्तक होती है ,वह दरवाजा खोलती है और भोंचक्की रह जाती है ,
अपने BETE को अपने सामने खड़ा देखती है.वह पतला और दुबला हो गया था. उसके कपडे फटे हुए थे और वह भूखा भी था ,भूख से वह कमजोर हो गया था. जैसे ही उसने अपनी माँ को देखा,
उसने कहा, "माँ, यह एक चमत्कार है कि मैं यहाँ हूँ. जब मैं एक मील दूर है, मैं इतना भूखा था कि मैं गिर. मैं मर गया होता,
लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था ,उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लीया,भूख के मरे मेरे प्राण निकल रहे थे
मैंने उससे खाने को कुछ माँगा ,उसने नि:संकोच अपनी रोटी मुझे यह कह कर दे दी कि "मैं हर रोज यही खाता हूँ लेकिन आज मुझसे ज्यादा जरुरत इसकी तुम्हें है सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो " .
जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी माँ का चेहरा पिला पड़ गया और अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाजे का सहारा लीया ,
उसके मस्तिष्क में वह बात घुमने लगी कि कैसे उसने सुबह रोटी में जहर मिलाया था
.अगर उसने वह रोटी आग में जला के नष्ट नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और अंजाम होता उसकी मौत
और इसके बाद उसे उन शब्दों का मतलब बिलकुल स्पष्ट हो चूका था
"जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा।

" निष्कर्ष "
~हमेशा अच्छा करो और अच्छा करने से अपने आप को कभी मत रोको फिर चाहे उसके लिए उस समय आपकी सराहना या प्रशंसा हो या न हो .
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मैं आपसे शर्त लगाने के लिए तैयार हूँ कि ये बहुत लोगों के दिल को छुएगी.
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STORY 17

अस्पताल के उस विशाल परिसर में एक चिंतित सैन्यकर्मी किसी शख्स को खोज रहा था। वह काफी थका हुआ भी था। तभी अस्पताल की एक नर्स उसे एक बीमार बुजुर्ग के पलंग के नजदीक ले गई, जो मरने से पहले आखिरी बार अपने बेटे से मिलना चाहता था। नर्स ने धीरे-से उस बीमार बुजुर्ग से कहा- 'आपका बेटा यहां है।' कोई प्रतिक्रिया न मिलने पर उसने दोबारा कहा- 'देखो कौन आया है? आपका बेटा।' यह सुनकर बीमार शख्स ने आंखें खोल दीं।

उस े दिल का दौरा पड़ा था और वह दवाइयों के नशे में था। उसने धुंधली आंखों से अपने पलंग के नजदीक यूनिफॉर्म में खड़े युवा मेरीन को देखा। यह देखकर उसने उसकी ओर अपना हाथ बढ़ाया। मेरीन ने उसके हाथ को थाम लिया और उसे प्यार से सहलाने लगा। तब तक नर्स कुर्सी लेकर आ गई और मेरीन पलंग के बाजू में बैठ गया। पूरी रात मेरीन उस कम रोशनी वाले वार्ड में बुजुर्ग शख्स के पास उसका हाथ थामे बैठा रहा और अपने प्यार भरे शब्दों के जरिये हौसला देता रहा। बीच-बीच में आकर नर्स मेरीन से थोड़ी देर आराम करने के लिए भी कहती रही। लेकिन मेरीन इनकार कर देता। वह मरणासन्न बुजुर्ग रातभर कुछ नहीं बोला। बस अपने बेटे का हाथ कसकर थामे रहा। सुबह होते-होते वह बुजुर्ग मर गया। अब जाकर मेरीन ने उसके बेजान हाथ को छोड़ा और जाकर नर्स को यह खबर दी। नर्स को जो कुछ करना था, उसने किया। तब तक मेरीन चुपचाप खड़ा रहा। आखिरकार नर्स मेरीन के पास आकर उससे संवेदनाएं जताने लगी, तब मेरीन ने उसे टोकते हुए पूछा- 'यह बुजुर्ग शख्स कौन थे?' यह सुनकर नर्स अचंभित रह गई। उसने जवाब दिया, 'यह आपके पिता थे।' इस पर मेरीन बोला, 'नहीं वह मेरे पिता नहीं थे। मैंने इस शख्स को अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखा।' यह सुनकर नर्स की उलझन और भी बढ़ गई। उसने पूछा, 'तो जब मैं आपको उसके पास लेकर गई, तब आपने कुछ क्यों नहीं कहा?'यह सुनकर मेरीन ने जवाब दिया, 'मैं पहले ही समझ गया था कि कुछ गलतफहमी है। लेकिन मैं यह भी जानता था कि उस शख्स को अपने बेटे की जरूरत है, जो उस वक्त वहां नहीं है। लेकिन उसकी नाजुक स्थिति को देखते हुए मुझे लगा कि फिलहाल उससे यह कहना ठीक नहीं होगा कि मैं उसका बेटा नहीं हूं। मुझे यह भी लगा कि फिलहाल उसे मेरी बहुत जरूरत है, लिहाजा मैं रुक गया।' तब नर्स ने पूछा, 'तो आप यहां किसलिए आए थे?' मेरीन ने जवाब दिया, 'मैं यहां विलियम ग्रे नामक एक शख्स की तलाश में आया था। उनका बेटा कल सुबह एक सैन्य अभियान के दौरान शहीद हो गया।

मेरे ऑफिस को देर शाम इसके बारे में खबर मिली और उनके घर पहुंचने पर हमें बताया गया कि मिस्टर ग्रे को कुछ घंटे पहले ही अस्पताल ले जाया गया है। मेरे अधिकारियों ने मुझे अस्पताल में मिस्टर ग्रे को यह सूचित करने के लिए भेजा था। वैसे इस शख्स का क्या नाम था?' यह सुनकर नर्स ने डबडबाई आंखों से जवाब दिया, 'यही मिस्टर विलियम ग्रे थे।'

STORY 16

शादी की पहली रात को नवविवाहित जोड़े ने तय किया की सुबह कोई भी बिना कारण दरवाजा खटखटाएगा तो वो दरवाजा नहीं खोलेंगे.
सुबह पति के माँ ने दरवाजा खटखटाया.
दोनों ने एक दूसरे को देखा.और रात में जैसा तय किया था उस अनुसार उन्होंने दरवाज़ा नहीं खोला.
थोड़ी देर बाद पत्नी के पिता ने दरवाजा खटखटाया.
दोनों ने फिर एक दूसरे की और देखा.
पत्नी के आँखों से आंसू बहने लगे और उसने रोना शुरू कर दिया.
बोली "मैं अपने पिता
को ऐसे ही दरवाज़ा खटखटाते नहीं छोड़ सकती, मैं पहले ही उन्हें हमेशा के लिए छोड़कर आयी हूँ, उन्हें कितना दुःख होगा अगर मैंने दरवाज़ा नहीं खोला तो."
पति ने कुछ नहीं कहा, पत्नी ने दरवाजा खोल दिया.
कई साल बीत गए,
इस युगल के 3 बच्चे हुए, जिनमे से पहले 2 लड़के थे और आख़िरी लड़की.
जब लड़की ने जन्म लिया तो उस व्यक्ति को बहुत खुशी हुई, उसे ऐसा लगा जैसे उसे भगवान ने ज़िंदगी का सबसे बड़ा उपहार दिया है.
उसने काफी बड़ा जश्न मनाया, और कई लोगो को बुलाया.
जश्न के दौरान उससे एक व्यक्ति ने पूछा की क्यों वह बेटी होने के खुशी में इतना जश्न मना रहा है, जबकी किसी भी बेटे के जन्म पर उसने जश्न नहीं मनाया.
उसने जवाब दिया : "ये बेटी ही है जो हमेशा मेरे लिए दरवाजा खोलेगी, बेटों का क्या भरोसा!"

इस कहानी को खुद वास्तविकता में परखिये, बेटे माता-पिता को नज़रंदाज़ कर सकते हैं, किन्तु बेटी नहीं 

STORY 15

नाव चली जा रही थी।

मझदार में नाविक ने कहा,

"नाव में बोझ ज्यादा है, कोई एक आदमी कम हो जाए तो अच्छा, नहीं तो नाव डूब जाएगी।"

अब कम हो जए तो कौन कम हो जाए? कई लोग तो तैरना नहीं जानते थे: जो जानते थे उनके लिए भी परले चार जाना खेल नहीं था। नाव में सभी प्रकार के लोग थे-डाक्टर,अफसर,वकील,व्यापारी, उद्योगपति,पुजारी,नेता के अलावा आम आदमी भी। डाक्टर,वकील,व्यापारी ये सभी चाहते थे कि आम आदमी पानी में कूद
जाए। वह तैरकर पार जा सकता है, हम नहीं।

उन्होंने आम आदमी से कूद जाने को कहा, तो उसने मना कर दिया। बोला,

"मैं जब डूबने को हो जाता हूँ तो आप में से कौन मेरी मदद को दौड़ता है, जो मैं आपकी बात मानूँ? "

जब आम आदमी काफी मनाने के बाद भी नहीं माना, तो ये लोग नेता के पास गए, जो इन सबसे अलग एक तरफ बैठा हुआ था। इन्होंने सब-कुछ नेता को सुनाने के बाद कहा,

"आम आदमी हमारी बात नहीं मानेगा तो हम उसे पकड़कर नदी में फेंक देंगे।"

नेता ने कहा,

"नहीं-नहीं ऐसा करना भूल होगी। आम आदमी के साथ अन्याय होगा। मैं देखता हूँ उसे। मैं भाषण देता हूँ। तुम लोग भी उसके साथ सुनो।"

नेता ने जोशीला भाषण आरम्भ किया जिसमें राष्ट्र,देश, इतिहास,परम्परा की गाथा गाते हुए, देश के लिए बलि चढ़ जाने के आह्वान में हाथ ऊँचा कर कहा,

"हम मर मिटेंगे, लेकिन अपनी नैया नहीं डूबने देंगे…नहीं डूबने देंगे…नहीं डूबने देंगे"….!

सुनकर आम आदमी इतना जोश में आया कि वह नदी में कूद पड़ा।

STORY 14

मेरे बच्चे जब तुम हमें एक दिन बूढा और कमज़ोर देखोगे, तब संयम रखना और हमें समझने की कोशिश करना।
अगर हम से खाना खाते वक्त कपड़े गंदे हो जाएं, अगर हम खुद कपड़े न पहन सकें तो जरा याद करना
जब बचपन में तुम हमारे हाथ से खाते और कपड़े पहनते थे।
अगर हम तुमसे बात करते वक्त एक ही बात बार बार दोहराएं तो गुस्सा खाकर हमें मत टोकना, धैर्य से हमें सुनना, याद करना, कैसे बचपन में कोई कहानी या लोरी तब तक तुम्हे सुनाते थे जब तक तुम सो नहीं जाते थे।
अगर कभी किसी कारणवश हम न नहाना चाहें तो हमें गं
दगी या आलस का हवाला देते हुए मत झिड़कना, क्योंकि यह उम्र का तकाजा होगा। याद करना बचपन में तु्म नहाने से बचने के लिए कितने बहाने बनाते थे और हमें तुम्हारे पीछे भागते रहना पड़ता था।
अगर आज हमें कंप्यूटर या आधुनिक उपकरण चलाने नहीं आते तो हम पर झल्लाना नहीं नाहीं शर्मिंदा होना, समझना कि इन नयी चीजों से हम वाकिफ नहीं हैं और याद करना कि तुम्हे कैसे एक-एक अक्षर हाथ पकड-पकड कर सिखाया था।
अगर हम कोई बात करते करते कुछ भूल जाएं तो हमें याद करने के लिए मौका देना, हम याद न कर पाएं तो खीझना मत। हमारे लिए बात से ज़्यादा अहम है बस तुम्हारे साथ होना और ये अहसास कि तुम हमें सुन रहे हो समझ रहे हो।
अगर हम कभी कुछ न खाना चाहें तो जबरदस्ती मत करना, हम जानते हैं कि हमें कब खाना है और कब नहीं खाना।
अगर चलते हुए हमारी टांगे थक जाएं और लाठी के बिना हम चल न सकें तो अपना हाथ आगे बढ़ाना, ठीक वैसे ही जब तुम पहली बार चलना सीखते वक्त लड़खड़ाए थे और हमने तुम्हे थामा था।

एक दिन तुम महसूस करोगे कि हमने अपनी गलतियों के बावजूद तुम्हारे लिए सदा सर्वेश्रेष्ठ ही सोचा, उसे मुमकिन बनाने की हर संभव कोशिश की। हमारे पास आने पर क्रोध, शर्म या दुख की भावना मन में कभी मत लाना, हमे समझने और वैसे ही मदद करने की कोशिश करना जैसे कि तुम्हारे बचपन में हम किया करते थे।
हमे अपनी बाकी की ज़िंदगी प्यार और गरिमा से जीने के लिए तुम्हारे साथ की जरूरत है। हमारा साथ दो, हम भी तुम्हे मुस्कुराहट और असीम प्यार से जवाब देंगे, जो हमारे दिल में तुम्हारे लिए हमेशा से रहा है।
बच्चे, हम तुमसे प्यार करते हैं।

पापा-मम्मी....

STORY 13

बहुत हाथ-पाँव जोड़े उसने, रोया गिड़-गिड़ाया, मोहल्ले में अपनी इज्ज़त की दुहाई दी। लेकिन उन्हें ना पसीजना था सो नहीं पसीजे। मोहल्ले से गायब हुई मोटर साइकल की चोरी का इलज़ाम लगा कर, पूछताछ के लिए पुलिस उसे थाने ले गई। शुक्रवार का दिन था और शाम तक पुलिस के हथकंडे उसे यह कबूलवाने में नाकाम रहे थे कि चोरी में उसका हाथ था। उसे हवालात में डाल दिया गया। सोमवार से पहले जमानत के कोई आसार ना थे। एक निम्न-मध्
यमवर्गीय आदमी के लिए इज्ज़त के अलावा देखने दिखाने के लिए और तो कोई दौलत होती नहीं, मगर दौलतमंदों के थाने में रहने वाले चौकीदारों ने आज वो दौलत भी लूट ली। जाने किसकी नज़र लगी कि उसकी गरीबी हालत ने उसे चोरी का भी आरोपी बना दिया।

अब मोहल्ले में कौन उसकी बात मानेगा कि उस पर लगा इलज़ाम झूठा है और वो इसे झूठा साबित करेगा भी कैसे। भविष्य को अमावस की रात में खोते देख उसने अपनी बेल्ट उतारी और उसकी कील अपने गले में घोंप ली। बलबला कर गले से निकलते खून को देख सारे थाने में हडकंप मच गया। आनन्-फानन में उसे हस्पताल पहुँचाया गया। बड़ी मुश्किल से जान बची, अगले दिन सुबह पता चला कि मोटरसाइकल बरामद हो गई, असली चोर पकड़ा गया। उसने कुछ राहत की साँस ली।

आजकल वह तारीखों के इंतज़ार में रहता है, अब उसपर आत्महत्या के प्रयास का मुकदमा चल रहा है।

STORY 12

महिलाओं में कुपोषण और उसके प्रभावों पर आधारित एक क्लब महिला गोष्ठी उस तारांकित होटल के टॉप फ्लोर पर चल रही थी। खाने और उसकी गुणवत्ता की कमी के कारण पैदा होते रोग व उससे हर साल होती महिलाओं की मृत्यु जैसे तथ्य मय आँकड़ों के प्रस्तुत हुए और एक मधुर घोषणा के साथ गोष्ठी समाप्त हुई।

"आप सभी भोजन के लिये आमंत्रित है।"

प्लेट में पनीर दो प्याजा लेती हुई मिसेस माहेश्वरी¸ "आपका प्रेजेन्टेशन तो बड़ा अच्छ
 हुआ मिसेस गुप्ता! काँग्रेट्‌स।"

"ओह थैंक्स!" चूंकि मिसेस गुप्ता अभी स्टार्टर पर थी इसलिये उन्हें वहीं छोड़ आपने मिसेस प्रसाद को पकड़ा। जिनके साथ अगले हफ्ते उन्हें इसी विषय पर प्रेजेन्टेशन देना था।

"मैं सोचती हूँ मिसेस प्रसाद¸ कि हमारी कामवाली बाईयाँ ही है जिनसे हम ये सारे सवाल पूछ सकते है।" मिसेस माहेश्वरी ने बेक्ड वेज का कुरकुरा चीज़ मुँह में रखते हुए कहा।

"हाँ! उन्हीं से हमें उनकी खान - पान की आदतों और उनमें सुधार की गुंजाइश की जानकारी मिलेगी। इस तरीके से हमारे प्रेजेन्टेशन में थोड़ी लाईवलीनेस आ जाएगी यू नो!" और उन्होने मन्चूरियन पर धावा बोला।

फिर कश्मीरी पुलाव और मखनी दाल के साथ यह तय हुआ कि मिसेस माहेश्वरी अगले प्रेजेन्टेशन के लिये बाईयों से आँकड़ें जमा करेंगी और मिसेस प्रसाद उसका स्पीच बनाएँगी। अंत में आईस्क्रीम विथ फ्रेश फ्रूट एण्ड़ जैली के साथ ही इस प्रेजेन्टेशन के लिये घर पर रिहर्सल का समय तय हुआ।

तभी एक हल्का सा शोर सुनाई दिया। "लाईव रोटी" के स्टॉल पर गर्मी सहन न होने के कारण गर्भवती रमाबाई की तबियत खराब हो रही थी। मैंनेजर पैसे काटने की धमकी दे रहा था। रमाबाई आधे घण्टे की छुट्टी लेकर नींबूपानी पी लेने के बाद काम निपटाए देने के लिये चिरौरी कर रही थी।

मिसेस माहेश्वरी और मिसेस प्रसाद एक दूसरे से बिदा लेकर¸ अपने भीमकाय जबड़ों में पान की गिलौरियाँ दबाए¸ एअर कण्डीशन्ड गाड़ियों के बंद दरवाजों के भीतर एक ही विषय पर सोच रही थी¸ "आखिर महिलाओं में कुपोषण के क्या कारण है?"

STORY 11

शहर के नामी पब्लिक स्कूल के प्रांगण में गहमा गहमी थी। आज प्राईमरी टीचर्स के इण्टरव्यू होने थे। ढेर सारी फेड़ेड़ मेकअप में सजी सजी सँवरी¸ सलवार सूट से लेकर पाश्चात्य कपड़ों में लिपटी कन्याएँ¸ गृहिणियाँ वहाँ थी। कोई अपने पहले के अनुभव बाँट रही थी तो कुछ अपने अंतर्राष्ट्रीय शिक्षण के तमगे लहरा रही थी। किसी को वक्त काटने के लिये जॉब चाहिये था तो कोई इंडिपेंडेंसी फील से परिचित होना चाह रही थी।

इतनी जगमगाहट के बीच¸ फीके नारंगी रंग पर बैंगनी फूलों की सुरूचिपूर्ण कढ़ाई वाली कलफ लगी सूती साड़ी पहने एक लड़की सकुचाई सी बैठी थी। पाश्चात्य शैली में सजाई हुई बैठक में¸ सोफा सेट¸ टीपॉय¸ शोकेस के बीच मोंढ़े सी रखी हुई वह थोड़ी सी आतंकित अवश्य थी लेकिन इसका असर उसके आत्मविश्वास पर नहीं पड़ पाया था। उसके आस - पास के सभी अपने व्यवहार से ही उसे "आऊट ड़ेटेड़" या "रिजेक्टेड़ पीस" जैसा किये दे रही थी।

तभी उनके बीच एक ढ़ाई साल का बालक रोता - रोता दाखिल हुआ। उसकी हाफ पैण्ट गन्दी और गीली थी¸ नाक बह रही थी। धूल में खेलकर आने के कारण आँसुओं से चेहरे पर काले निशान बन गये थे। वह करूणार्द्र स्वर में रोता हुआ¸ अपनी माँ को ढूँढ़ता हुआ वहाँ चला आया था और उसे वहाँ न पाकर उसकी हिचकियाँ बँधी जा रही थी। सारा वातावरण "ओ माय गॉड"¸ "वॉट अ डर्टी किड"¸ "वेयर इज हिज केयरलेस मदर?" जैसे जुमलों से भर गया। नन्हा बालक गोदी में लिये जाने के लिये हर किसी की ओर हाथ बढ़ाता लेकिन उस नन्हे देवदूत को देखकर किसी भी शहरी का दिल नहीं पसीजा।

तभी सूती साड़ी वाली¸ मोढ़े सी गाँव की लड़की ने अपने नयन पोंछे और उस बालक को प्यार से गोदी में लिया। उसके गंदे होने और उससे स्वयं के गंदे हो जाने की परवाह किये बिना! पास ही के गुसलखाने में ले जाकर उसने उसे साफ किया¸ मीठी बातें करने से उसका रूदन बंद हुआ। बालक की टी शर्ट की जेब में उसका नाम - पता लिखा था। वह झट रिसेप्शन पर जाकर सारी जानकारी के साथ उस नन्हे मुन्ने को दे आई जहाँ से माईक पर विधिवत घोषणा कर उसे उसकी माँ के पास सौंप दिया गया।

सूती साड़ी वाली से रिसेप्शन पर उसका नाम - पता आदी पूछा गया। वह वापिस वेटिंग रूम में पहुँची तब उसने पाया कि सारा पाश्चात्य माहौल अब उसे न सिर्फ हिकारत वरन्‌ मजाक की दृष्टि से भी देख रहा था। उसने पास लगे काँच में स्वयं को देखा¸ जगह - जगह गीले धब्बे¸ धूल के दाग। लगता था जैसे बिना इस्त्री की मुचड़ी सी साड़ी पहनी है। वह पसीना - पसीना हो आई। अब क्या खाक इंटरव्यू देगी यहाँ जहाँ पहले से ही इतनी लायक युवतियाँ है! एक नि:श्वास छोडकर वह चल दी। उसके जाने के दस मिनट बाद ही वह इंटरव्यू पोस्ट पोण्ड होने की खबर दी गई और वह वेटिंग रूम "ओह माई गॉड"¸ "हाऊ डिसगस्टिंग" और "सो सॅड" जैसे जुमलों के साथ खाली हुआ।

तीसरे ही दिन सूती साड़ी वाली के घर उस शाला का नियुक्ति पत्र आ पहुँचा। उनकी भाषा में वह एक प्रेक्टिकल थिंकर थी और इसीलिये चुनी गई...

STORY 10


"भारत बनाम इंडिया
भारत में गांव है, गली है, चौबारा है।
_________ इंडिया में सिटी है, माल है, पंचतारा है।
भारत में घर है, चबूतरा है, दालान है।
________ इंडिया में फ्लैट और मकान है।
भारत में काका है, बाबा है, दादा है, दादी है। ____.इंडिया में अंकल
आंटी की आबादी है।
भारत में खजूर है, जामुन है,आम है।
________इंडिया में मैगी, पिज़्ज़ा, माजा का नकली आम है।
भारत में मटके है, दोने है, पत्तल है।
_________इंडिया ­में पालीथीन, वाटर व
वाइन की बोतल है।
भारत में गाय है, गोबर है, कंडे है।
__________इंडिय ­ा में सेहत नाशी चिकन बिरयानी व अन्डे है।
भारत में दूध है, दही है, लस्सी है।
___________इंडि ­या में खतरनाक विस्की, कोक व पेप्सी है।
भारत में रसोई है, आंगन है, तुलसी है।
________इंडिया में रूम है, कमोड की कुर्सी है।
भारत में कथड़ी है, खटिया है,खर्राटे है।
________इंडिया में बेड है, डनलप है और करवटें है।
भारत में मंदिर है, मंडप है,पंडाल है।
_________इंडिया ­में पब है, डिस्को है, हॉल है।
भारत में गीत है, संगीत है, रिदम है।
_________.इंडिय ­ा में डांस है, पॉप है, आइटम है।
भारत में ममेरी, फुफेरी, चचेरी बहन है।
________इंडिया में सब के सब कजन है।
भारत में पीपल है, बरगद है, नीम है।
_________इंडिया ­में ड्राइंग रूम की वाल पर ये सीन है।
भारत में आदर है, प्रेम है, सत्कार है।
__________इंडिय ­ा में स्वार्थ, नफ़रत और दुत्कार है।
भारत में हजारो भाषा है, बोली है।
_________इंडिया ­में एक अंग्रेजी ही बडबोली है।
भारत सीधा है, सहज है, सरल है।
___________.इंड ­िया धूर्त है, चालाक है, कुटिल है।
भारत में संतोष है, सुख है, चैन है।
___________इंडि ­या बदहवास, दुखी, बेचैन है।
क्यों कि............. ­......
भारत को देवो ने, वीरो ने रचाया है।
___________इंडि ­या को लालचीअंग्रेजो ने बसाया 

STORY 9

कुछ समय पहले चीन में आये भूकंप में एक दिल को छु लेने वाली घटना हुई..
भूकंप के बाद बचाव कार्य का एक दल एक महिला के पूर्ण रूप से ध्वस्त हुए घर की जांच कर रहा था, बारीक दरारों में से महिला का मृत शारीर दिखा लेकिन वो एक अजीब अवस्था में था, महिला अपने घुटनों के बल बैठी थी ठीक वैसे ही जैसे मंदिर में लोग भगवान् के सामने नमन करते है, उसके दोनों हाथ किसी चीज़ को पकडे हुए थे, भूकंप से उस महिला
की पीठ व् सर को काफी क्षति पहुंची थी,
काफी मेंहनत के बाद दल के सदस्य ने बारीक दरारों में से जगह बना कर अपना हाथ महिला की तरफ बढाया इस उम्मीद में की शायद वो जिंदा हो, लेकिन महिला का शारीर ठंडा हो चूका था, जिसे बचाव दल समझ गया की महिला मर चुकी है,
बचाव दल ने उस घर को छोड़ दिया और दुसरे मकानों की तरफ चलने लगे, बचाव दल के प्रमुख का कहना थाकी "पता नहीं क्यूँ मुझे उस महिला का घर अपनी तरफ खींच रहा था,कुछ था जो मुझसे कह रहा था के मैं इस घर को ऐसे छोड़ कर न जाऊं और मैंने अपने दिल की बात मानने का फैसला किया"
उसके बाद बचाव दल एक बार फिर उस महिला के घर की तरफ पहुंचे, दल प्रमुख ने मलबे को सावधानी से हटा कर बारीक दरारों में से अपना हाथ महिला की तरफ बढ़ाया और उसके शरीर के निचे स्थित जगह को हाथों से टटोलने लगे, तभी उनके मुह से निकला "बच्चा... यहाँ एक बच्चा है "पूरा दल काम में जुट गया, सावधानी से मलबा हटाया जाने लगा, तब उन्हें महिला के मृत शारीर के निचे एक टोकरी में रेशमी कम्बल में लिपटा हुआ 3 माह का एक बच्चा मिला, दल को अब समझ में आ चूका था की महिला ने अपने बच्चे को बचाने के लिए अपने जीवन का त्याग किया है, भूकंप के दौरान जब घर गिरने वाला था तब उस महिला ने अपने शरीर से सुरक्षा देकर अपने बच्चे की रक्षा की थी, डॉक्टर भी जल्द ही वहां आ पहुंचे।
दल ने जब बच्चे को उठाया तब बच्चा बेहोश था, जब बचाव दल ने बच्चे का कम्बल हटाया तब उन्हें वहां एक मोबाइल मिला जिसके स्क्रीन पर सन्देश लिखा था, "मेरे बच्चे अगर तुम बच गए तो बस इतना याद रखना की तुम्हारी माँ तुमसे बहुत प्यार करती है" मोबाइल बचाव दल में एक हाथ से दुसरे हाथ जाने लगा, सभीने वो सन्देश पढ़ा, सबकी आँखें नम हो गयी...
माँ के प्रेम से बढ़ कर दुनिया में और कोई प्रेम नहीं हो सकता।

STORY 8

एक लड़के के आपात आपरेशन के लिए एक फोन के बाद डाक्टर जल्दी जल्दी अस्पताल में प्रवेश करते हैं....उन्होंने तुरंत अपने कपडे बदल कर सर्जिकल गाउन पहना, ऑपरेशन के लिए खुद को तैयार किया और ऑपरेशन थियेटर की तरफ चल पड़े...हॉल में प्रवेश करते ही उनकी नज़र लड़के की माँ पर जाती है...जो उनका इंतज़ार करती जान पड़ती थी और बहुत व्याकुल भी लग रही थी....

डॉक्टर को देखते ही लड़के की माँ एकदम गुस्से से बोली : आपने आने इतनी
देर क्यों कर दी..? आपको पता नहीं है कि मेरे बेटे की हालत बहुत गंभीर है..? आपको अपनी जिम्मेदारी का अहसास है की नहीं..??
डॉक्टर मंद मंद मुस्कुराते हुए कहता है : मैं अपनी गलती के लिए आपसे माफ़ी मांगता हूँ...फोन आया तब मैं अस्पताल में नहीं था,जैसे ही खबर मिली मैं तुरंत अस्पताल के लिए निकल पड़ा..रास्ते में ट्रैफिक ज्यादा होने की वजह से थोड़ी देर हो गयी. अब आप निश्चिन्त रहो मैं आ गया हूँ भ
गवान की मर्ज़ी से सब ठीक हो जाएगा..अब आप विलाप करना छोड़ दो..''

इस पर लड़के की माँ और ज्यादा गुस्से से : विलाप करना छोड़ दूं मतलब..? आपके कहने का मतलब क्या है..? मेरे बच्चे को कुछ हो गया होता तो.? इसकी जगह आपका बच्चा होता तो आप क्या करते..?? डॉक्टर फिर मंद मंद मुस्कुराते हुए : शांत हो जाओ बहन, जीवन और मरण वो तो भगवान के हाथ में है, मैं तो बस एक मनुष्य हूँ, फिर भी मैं मेरे से जितना अच्चा प्रयास हो सकेगा वो मैं करूँगा..बाकी आपकी दुआ और भगवान की मर्ज़ी..! क्या अब आप मुझे ऑपरेशन थियेटर में जाने देंगीं.?? डॉक्टर ने फिर नर्स को कुछ सलाह दी और ऑपरेशन रूम में चले गए..

कुछ घंटे बाद डॉक्टर प्रफुल्लित मुस्कान लिए ऑपरेशन रूम से बाहर आकर लड़के की माँ से कहते हैं : भगवान का लाख लाख शुक्र है की आपका लड़का सही सलामत है, अब वो जल्दी से ठीक हो जाएगा और आपको ज्यादा जानकारी मेरा साथी डॉक्टर दे देगा..ऐसा कह कर डॉक्टर तुरंत वहां से चल पड़ते हैं..

लड़के की माँ ने तुरंत नर्स से पुछा : ये डॉक्टर साहब को इतनी जल्दी भी क्या थी.? मेरा लड़का होश में आ जाता तब तक तो रूक जाते तो क्या बिगड़ जाता उनका..? डॉक्टर तो बहुत घमंडी लगते हैं''
ये सुनकर नर्स की आँखों में आंसू आ गए और कहा : ''मैडम ! ये वही डॉक्टर हैं जिनका इकलौता लड़का आपके लड़के की अंधाधुंध ड्राइविंग की चपेट में आकर मारा गया है..उनको पता था की आपके लड़के के कारण ही उनके इकलौते लड़के की जान गयी है फिर भी उन्होंने तुम्हारे लड़के की जान बचाई है...और जल्दी वो इसलिए चले गए क्योंकि वे अपने लड़के की अंतिम क्रिया अधूरी छोड़ कर आ गए थे...

मोरल : ''कर्तव्य मेरा सर्वोपरि''

STORY 7

दर्जी की सीख...

एक दिन किसी कारण से स्कूल में छुट्टी की घोषणा होने के कारण, एक दर्जी का बेटा, अपने पापा की दुकान पर चला गया ।वहाँ जाकर वह बड़े ध्यान से अपने पापा को काम करते हुए देखने लगा । उसने देखा कि उसके पापा कैंची से कपड़े को काटते हैं और कैंची को पैर के पास टांग से दबा कर रख देते हैं । फिर सुई से उसको सीते हैं और सीने के बाद सु ई को अपनी टोपी पर लगा लेते हैं । जब उसने इसी क्रिया को चार-पाँच

बार देखा तो उससे रहा नहीं गया, तो उसने अपने पापा से कहा कि वह एक बात उनसे पूछना चाहता है ? पापा ने कहा- बेटा बोलो क्या पूछना चाहते हो ? बेटा बोला- पापा मैं बड़ी देर से आपको देख रहा हूं , आप जब भी कपड़ा काटते हैं, उसके बाद कैंची को पैर के नीचे दबा देते हैं, और सुई से कपड़ा सीने के बाद, उसे टोपी पर लगा लेते हैं, ऐसा क्यों ? इसका जो उत्तर पापा ने दिया- उन दो पंक्तियाँ में मानों उसने ज़िन्दगी का सार समझा दिया ।

उत्तर था- ” बेटा, कैंची काटने का काम करती है, और सुई जोड़ने का काम करती है, और काटने वाले की जगह हमेशा नीची होती है परन्तु जोड़ने वाले की जगह हमेशा ऊपर होती है । यही कारण है कि मैं सुई को टोपी पर लगाता हूं और कैंची को पैर के नीचे रखता हूं ।”

STORY 6

बहुत समय पहले की बात है एक बड़ा सा तालाब था उसमें सैकड़ों मेंढक रहते थे। तालाब में कोई राजा नहीं था, सच मानो तो सभी राजा थे। दिन पर दिन अनुशासन हीनता बढ़ती जाती थी और स्थिति को नियंत्रण में करने वाला कोई नहीं था। उसे ठीक करने का कोई यंत्र तंत्र मंत्र दिखाई नहीं देता था। नई पीढ़ी उत्तरदायित्व हीन थी। जो थोड़े बहुत होशियार मेंढक निकलते थे वे पढ़-लिखकर अपना तालाब सुधारने की बजाय दूसरे तालाबों में चैन से जा बसते थे।

हार कर कुछ बूढ़े मेंढकों ने घनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया और उनसे आग्रह किया कि तालाब के लिये कोई राजा भेज दें। जिससे उनके तालाब में सुख चैन स्थापित हो सके। शिव जी ने प्रसन्न होकर नंदी को उनकी देखभाल के लिये भेज दिया। नंदी तालाब के किनारे इधर उधर घूमता, पहरेदारी करता लेकिन न वह उनकी भाषा समझता था न उनकी आवश्यकताएँ। अलबत्ता उसके खुर से कुचलकर अक्सर कोई न कोई मेंढक मर जाता। समस्या दूर होने की बजाय और बढ़ गई थी। पहले तो केवल झगड़े झंझट होते थे लेकिन अब तो मौतें भी होने लगीं।

फिर से कुछ बूढ़े मेंढकों ने तपस्या से शिव जी को प्रसन्न किया और राजा को बदल देने की प्रार्थना की। शिव जी ने उनकी बात का सम्मान करते हुए नंदी को वापस बुला लिया और अपने गले के सर्प को राजा बनाकर भेज दिया। फिर क्या था वह पहरेदारी करते समय एक दो मेंढक चट कर जाता। मेंढक उसके भोजन जो थे। मेंढक बुरी तरह से परेशानी में घिर गए थे।

फिर से मेंढकों ने घबराकर अपनी तपस्या से भोलेशंकर को प्रसन्न किया और कहा कि आप कोई पशु पक्षी राज करने के लिये न भेजें कोई यंत्र या मंत्र दे दें जिससे तालाब में सुख शांति स्थापित हो सके। शिव ने सर्प को वापस बुला लिया और अपनी शिला उन्हें पकड़ा दी। मेंढकों ने जैसे ही शिला को तालाब के किनारे रखा वह उनके हाथ से छूट गई और बहुत से मेंढक दबकर मर गए। मेंढकों की समस्याओं हल होना तो दूर उनके ऊपर मुसीबतों को पहाड़ टूट पड़ा

फिर क्या था। तालाब के मेंढकों में हंगामा मच गया। चीख पुकार रोना धोना वे मिलकर शिव की उपासना में लग गए,
'हे भगवान, आपने ही यह मुसीबत हमें दी है, आप ही इसे दूर करें।'
शिव भी थे तो भोलेबाबा ही, सो जल्दी से प्रकट हो गए।
मेंढकों ने कहा, 'आपका भेजा हुआ कोई भी राजा हमारे तालाब में व्यवस्था नहीं बना पाया। समझ में नहीं आता कि हमारे कष्ट कैसे दूर होंगे। कोई यंत्र या मंत्र काम नहीं करता। आप ही बताएँ हम क्या करें?'

इस बार शिव जी जरा गंभीर हो गए। थोड़ा रुक कर बोले, यंत्र मंत्र छोड़ो और स्वतंत्र स्थापित करो। मैं तुम्हें यही शिक्षा देना चाहता था। तुम्हें क्या चाहिये और तुम्हारे लिये क्या उपयोगी वह केवल तुम्हीं अच्छी तरह समझ सकते हो। किसी भी तंत्र में बाहर से भेजा गया कोई भी विदेशी शासन या नियम चाहे वह कितना ही अच्छा क्यों न हो तुम्हारे लिये अच्छा नहीं हो सकता। इसलिये अपना स्वाभिमान जागृत करो, संगठित बनो, अपना तंत्र बनाओ और उसे लागू करो। अपनी आवश्यकताएँ समझो, गलतियों से सीखो। माँगने से सबकुछ प्राप्त नहीं होता, अपने परिश्रम का मूल्य समझो और समझदारी से अपना तंत्र विकसित करो।

मालूम नहीं फिर से उस तालाब में शांति स्थापित हो सकी या नहीं। लेकिन इस कथा से भारतवासी भी बहुत कुछ सीख सकते हैं।

STORY 5

एक चौदह पंद्रह साल का लड़का एक टेलीफोन बूथ पर जाकर एक नंबर लगाता है और किसी के साथ बात करता है, बूथ मालिक उस लड़के की बात को ध्यान से सुनता रहता है ;
लड़का : किसी महिला से कहता है कि, मैंने बैंक से कुछ क़र्ज़ लिया है और मुझे उसका क़र्ज़ चुकाना है, इस कारण मुझे पैसों की बहुत जरुरत है, मैडम क्या आप मुझे अपने बगीचे की घास काटने की नौकरी दे सकती हैं..?
महिला : (दूसरी तरफ से) मेरे पास तो पहले से ही घास काटने वाला माली है..
लड़का : परन्तु मैं वह काम आपके माली से आधी तनख्वाह पर कर दूंगा..
महिला : तनख्वाह की बात ही नहीं हैमैं अपने माली के काम से पूरी तरह संतुष्ट हूँ..
लड़का : (और निवेदन करते हुए) घास काटने के साथ साथ मैं आपके घर की साफ़ सफाई भी करदूंगा वो भी बिना पैसे लिए..
महिला : धन्यवाद और ना करके फोन काट दिया..
लड़का चेहरे पर विस्मित भाव लिए फोन रख देता है..
बूथ मालिक जो अब तक लड़के की सारी बातों को सुन चूका होता है,लड़के
को अपने पास बुलाता है..
दुकानदार : बेटा मेरे को तेरा स्वभाव बहुत अच्छा लगा, मेरे को तेरा सकारात्मक बात करने का तरीका भी बहुत पसंद आया..अगर मैं तेरे को अपने यहाँ नौकरी करने का ऑफ़र दूं तो क्या तू मेरे यहाँ काम करेगा..??
लड़का : नहीं, धन्यवाद.
दुकानदार : पर तेरे को नौकरी की सख्त जरुरत है और तू नौकरी खोज भी रहा है.
लड़का : नहीं श्रीमान मुझे नौकरी की जरुरत नहीं है मैं तो नौकरी कर ही रहा हूँ, वो तो मैं अपने काम का मूल्यांकन कर रहा था..मैं वही मालीहूँ जिसकी बात अभी वो महिला फोन पर कर रही थी..!!!
इसे कहते हैं 'स्व मूल्यांकन'''

Story 4

जीवन रेलगाड़ी से दस लाख रुपये का तकादा लेकर दिल्ली से कोलकात्ता जा रहा था। बहुत ही बैचनी हो रही थी। रुपये ठीक से रखे या नहीं, बार बार उन्हें संभाल रहा था जीवन भर की जमा पूंजी भी जमा कर ले, तब भी न कमा पायेगा इतना….

रात को सोने से पहले तकिये के नीचे छुपा कर सोया, लेकिन आँखों में नींद ही नहीं। चिंता सताए जा रही थी, कहीं कुछ अनहोनी ना हो जाये। आस पास देखा सभी खर्राटे मार कर गहरी निद्रा में सो रहे थे, लेकिन उसकी आँखों से नींद कोसो दूर थी। सहसा... ट्रेन रूक रूक कर घर्र घर्र की आवाज के साथ धक्के खाने लगी, वह कुछ समझ पाता इतने में ही सर जाकर जोर से डब्बे की दीवार से जा टकराया, दिन में ही तारे नजर आने लगे, कुछ समझने की स्थिति में आया तो देखा कि उसका डब्बा लटका हुआ है कहीं, नीचे पानी दिख रहा था, दिमाग चक्कर खाने लगा, कि ये क्या हो गया। धीरे धीरे हिम्मत करके ऊपर की ओर से जो रास्ता नजर आया, उससे निकलने की कोशिश करने लगा। निकलने ही वाला था कि इतने में पैसा याद आया, बैग खोजने की सोच ही रहा था कि कई लोग उसे धक्का देने लगे, कहने लगे, “रास्ता छोडो, हमें भी बाहर निकलना है, डब्बा कभी भी पानी में गिर सकता है”। क्या करता ..बुझे मन से बाहर निकल गया। एक एक करके सभी बाहर निकल गये। उसने देखा, अब कोई भी बाहर नहीं निकल रहा तो वापस डब्बे के अंदर जाने लगा, सभी ने बहुत समझाया, लेकिन नहीं, उसने सोचा जल्दी से जाकर ले आऊंगा, नहीं तो इतना पैसा जिंदगी भर कटौती करूंगा तब भी भरपाई न हो सकेगी। हिम्मत जुटा कर नीचे उतरा धीरे से, अपना बैग खोजने लगा, जैसे ही बैग दिखा, उठाने को झुका तो देखा वहां एक बूढ़ा आदमी सीट के नीचे फंसा हुआ है, निकल नहीं पा रहा है। उसके शरीर पर कोई बड़े सी लोहे की पटरी सी गिरी पड़ी थी, जिसे वह उठा नहीं पा रहा था। पैरो से मजबूर किसी के सहारे को तलाश रहा था। एक बार मन में आया उसे बचाना चाहिए, लेकिन उसे क्या, वह तो पैसा लेने आया है, वर्ना पूरी जिंदगी भी नहीं चूका पायेगा, पत्नी बच्चों के भूखों मरने की नौबत आ जाएगी। ये तो बूढ़ा है कुछ दिनों की जिंदगी बची है। लेकिन वो आदमी कराह रहा था, दयनीय दृष्टि से उसकी ओर ताक रहा था, जीवन सोच में पड़ गया, क्या करे, रुपयों को संभाले या उसकी जान बचाए, कभी रूपया हावी हो रहे थे, तो कभी इंसानियत। समय बहुत कम था, डब्बा पानी की गोद में उसे लेकर कभी भी समा सकता था, इसी उहापोह में मानवता जीत गई और मन कड़क करके बैग पर एक विवशता भरी निगाह डाल कर उसकी सहायता करने लगा। उसे करीब करीब गोद में उठा कर चलने लगा, फिर से बैग देखा, लेकिन हाथ में उठा नहीं सकता था। जीवन उस आदमी को लेकर जैसे ही बाहर निकला, डब्बा पानी में गिर गया, जीवन का कलेजा मुहं को आ गया। एक तरफ जहाँ उस आदमी को बचाने का आत्मसंतोष था, दूसरी ओर पूरी जिंदगी की चिंता ...लेकिन अब क्या हो सकता है यह सोच कर वह बुझे मन से घर की ओर जाने लगा, तो देखा वह आदमी उसे कुछ इशारा कर रहा है। उसने देखा, उसके हाथ में बैग है खून से लथपथ, ध्यान से देखा, अरे ये तो मेरी बैग है। तब उसने बताया, जब वो उसे गोद में उठाये निकल रहा था, तब एक बार डब्बा थोडा हिला, उस समय लडखडाने से गोद में से वह फिसल सा गया था, उसी समय वो बैग उसके हाथ से टकराई और उसने उसे कस कर पकड़ लिया था, उसकी अनुभवी आँखों ने भांप लिया था कि जरूर इसमें उसके काम की कोई चीज है, लेकिन फिर भी उसने मानव धर्म को चुना, उसकी सहायता की, यह अपने आप में बहुत बड़ी बात है। उस समय सही निर्णय ले पाना कितना कठिन होता है, पर उसने कर दिखाया, अपने स्वार्थ से ऊपर उठ कर।

कहते हैं ना ... कर भला तो हो भला

STORY 3

सत्ताईस साल के सुमित ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ज़रा-सी चूक की वजह से उसे अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा।

बात बुधवार देर शाम की है। सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। ऑफिस के कैफेटेरिया में एक ऐसे कर्मचारी का ब्रथडे सेलिब्रेट हो रहा था जिसे सुबह ही बॉस ने गुस्से में कहा था कि आख़िर तुम पैदा ही क्यों हुए थे।

गौरतलब है कि महीने में एक-आध बार इस तरह की सस्ती पार्टियां दे और गेम-वेम खिलवा कम्पनियां अपने कर्मचारियों को इस वहम में रखने की कोशिश करती हैं कि हमारे यहां तुम कितने खुश हो!

उस दिन भी लोगों को खुश करने की एक ऐसी ही कवायद चल रही थी। केक काटने और केक लगी उंगलियां चाटने के बाद लो आईक्यू लोगों के तम्बोला टाइप कुछ गेम खेले जा रहे थे।

तम्बोला के ऐसे ही एक राउंड में ऑफिस की सबसे खूबसूरत लड़की जीत गई। उसके जीतते ही सब लड़के बीस से पच्चीस सेकंड तक उससे हाथ मिला उसे बधाई देने लगे। वो सब उसके जीतने पर इतने खुश थे जैसे सबका बचपन से यही सपना रहा हो कि बड़ी होकर एक दिन वो लड़की ऑफिस में तम्बोला जीते।

खैर, तम्बोला की रस्म पूरी हुई तो बारी आई पास द पार्सल की। इस पल तक सुमित को ज़रा भी भनक नहीं थी कि ये खेल ऑफिस से उसका पार्सल बांधने वाला है। इस खेल में परफॉर्म करने के लिए जब उसने पर्ची उठाई तो उस पर लिखा था किसी की मिमिक्री करके दिखाएं।

जैसे ही उसने अपना टास्क पढ़ा, महफिल में ठहाका गूंज उठा। सब जानते थे कि सुमित बॉस की नकल बड़ी अच्छी करता है। दो-चार लड़कियों ने कह भी दिया कि अरे! बॉस की नकल करके दिखाओ न…मासूम सुमित ने भी बिना सोचे-समझे लड़कियों के आगे नम्बर बनाने के लिए ऐसा कर दिया।

उसका ये एक्ट सबको खूब पसंद आया। ख़ासकर तम्बोला जीतने वाली उस खूबसूरत लड़की को। अपनी बेइज्ज़ती से ज़्यादा बॉस को ये बात बुरी लग रही थी कि लड़कियां सुमित से इम्प्रेस हो रही थीं।

खैर, कुछ देर में म्यूज़िक रुकने पर पार्सल बॉस के पास आया। पर्ची उठाई तो उसमें लिखा था, कोई जोक सुनाएं। ये पढ़ते ही बॉस की बांछे खिल गईं। वो खुद को बहुत बड़ा हंसोड़ मानता था। उसे लगता था कि उस जैसा सेंस ऑफ ह्यूमर आसपास के एक हज़ार गांवों में किसी के पास नहीं है।

बॉस जोक सुनाने वाला है, इसका मतलब था कि वहां मौजूद हर एम्पलॉई को ज़ोर-ज़ोर से हंसना है। पेट में हवा भर, होंठों पे जीभ फेर, मसूड़ों को आगे-पीछे कर सब हंसने की पोज़ीशन लेने लगे। शेर सुनने से पहले ही वाह-वाह की तर्ज पर कुछ पहले ही हंस भी दिए थे।

इस बीच आया वो पल…बॉस ने प्राइमरी स्कूल के बच्चों की तरह बिना पंच और पॉज के ऐसा चुटकुला सुनाया जिस पर पांच साल पहले ही फफूंद लग चुकी थी, मतलब उसकी एक्सपायरी डेट आ चुकी थी।

मगर बॉस के चमचों को इससे कोई सरोकार नहीं था। वो पेट पकड़कर ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगे। जिन्हें अच्छा नहीं लगा वो भी प्रोटोकॉल के तहत खिलखिलाने लगे। बिना चुटकुला समझे ही लड़कियां भी चहकने लगीं।

सब खुश थे। ठहाकों के डेसीबल से बॉस के ईगो को बल मिल रहा था। मगर तभी बॉस की नज़र सुमित पर पड़ी। उसके चेहरे पर कहीं कोई हंसी नहीं थी। सुमित को लगा कि अभी पंच आएगा…बॉस से नज़र मिलते ही उसने मासूमियत में कहा…आगे!

ये सुनते ही बॉस भड़क उठा…आगे मतलब क्या…चुटकुला ख़त्म हो गया।

ऑफिस के एक कर्मचारी ने हमें बताया कि पहले बॉस की मिमिक्री करना और फिर सुमित का ये पूछना… ‘आगे’…उसे उसके करियर में बहुत पीछे ले गया और अगले ही दिन उसे नौकरी से निकाल दिया गया। हालांकि वजह ये बताई गई कि वो ऑफिस में काम कम और हंसी-मज़ाक ज़्यादा करता था

STORY 2

गाँव से आई भागवंती पूछ-ताछ कर जब तक आनंद नगर पहुँची, सूर्य अग्नि-पिंड बन कर उसके सिर पर 

लटक रहा था। उसके भानजे ने शहर के इसी मुहल्ले में पिछले दिनों नई कोठी बनाई थी। उसी से मिलने 

आई थी भागवंती। गरमी बढ़ गई थी और गलियाँ सूनी पड़ी थीं। भागवंती साठ वर्ष की हो चुकी थी। वह 

घुटनों को सहारा देती धीरे-धीरे चल रही थी। वह गाँव के स्कूल में पढ़ने जाती रही थी, इसलिए थोड़ा बहुत 

पढ़ लेती थी। उसने कई कोठियों केनंबर पढ़े, परंतु भानजे की छप्पन नंबर कोठी उसे नज़र नहीं आई। 

स्कूल से आ रही सुन्दर वर्दी पहने दो लड़कियाँ दिखाई दीं तो भागवंती को थोड़ी आस बंधी। उसने उन्हें रोक 

कर पूछा, “बेटे, छप्पन नंबर कोठी किधर है?” लड़कियों ने एक-दूसरी की ओर हैरानी से देखा और फिर, 

“मालूम नहीं।” कह कर अपनी राह चली गईं। भागवंती थोड़ा आगे बढ़ी तो लगभग बारह वर्ष का एक लड़का 

साइकिल पर आता दिखाई दिया। उसने लड़के से भी छप्पन नंबर कोठी बारे पूछा। लड़का भी लड़कियों की 

तरह हैरान हो कर उसकी ओर देखने लगा तो वह बोली, “बादली वाले बिरजू की कोठी है। अभी बनाई है, 

पाँच-छह महीने हुए।” “मुझे नहीं पता।” कह कर लड़का साइकिल पर सवार हो गया। कई घरों के दरवाजों 

पर दस्तक देने के पश्चात अंतत: भागवंती छप्पन नंबर कोठी तक पहुँच ही गई। कोठी का गेट खुला तो वह 

हैरान रह गई, सामने वही साइकिल वाला लड़का खड़ा था। “आपका पोता है मौसी जी।” जब भानजे की पत्नी 

ने लड़के के बारे में बताया तो वह बोली, “अरी बहू, यह कैसा बेटा है तेरा! इसे तो अपने घर का नंबर भी 

नहीं पता।” बहू ने लड़के की ओर सवालिया नज़रों से देखा तो वह बोला, “छप्पन नंबर-छप्पन नंबर करे जा 

रही थी। अपनी कोठी का नंबर कोई छप्पन है?…अपना नंबर तो फिफ्टी-सिक्स है

STORY 1

हाथ मैं झोला लटकाए एक बुजुर्ग महिला बस मैं चडी, सीट खाली नही देख एकदम से वह निराश हो गयी,
फिर भी जैसा कि बस मैं चड़ने वाला हर यात्री सोचता है कि शायद किसी सीट पर अटकने की जगह मिलजाए, वह भी पीछे की और चली,
तभी उसकी नजर एक सीट पर पड़ी, उस पर बस एक ही युवक बेठा था, आंखों मैं संतोष की चमक आ गयी, पास जाने पर जब उस पर कोई कपडा या कुछ सामान नही दिखायी दिया।
उसने धम्म से शरीर को छोड़ दिया सीट पर,
अरे रे कहाँ बेठ रही हो, यहाँ सवारी आएगी,
आंखों मैं उभरी चमक घुप्प से गायब हो गयी , आगे और सीट देखने की हिम्मत उसमें नही रही और वह वहीं सीटों के बीच फर्श मैं ही बेठ गयी,
इसके बाद उस खाली सीट को देख कर कईं बार आंखों मैं चमक आती रही और बुझती रही,
तभी एक collage में पढनेवाली सुन्दर सी दिखने वाली लड़की बस मैं चडी ,
अन्य लोगों को खड़ा देख उसने समझ लिया कि वह सीट खाली नही है, एक सीट खाली देखकर मन हि मन समझ गई उस सीट पर कोई आना वाला है
और वह भी खड़ी हो गयी महिला के पास,
तभी आवाज आई बैठ जाइये न,यहाँ कोई नही आएगा,
इस आवाज पर लड़की ने मुड़कर देखा तो युवक उससे ही मुखातिब था, उसने आश्चर्य से पूछा कोई नही आएगा,
युवक उसी मुस्कान के साथ बोला,
जी नही,
इस पर लड़की मुडी और नीचे बेठी उस बुजर्ग महिला को बोली माँ जी आप ऊपर बैठ जाइये और उसने इतना कह कर बुजर्ग महिला को सीट में बैठा दिया,
अब युवक का चेहरा देखने लायक था, वह लड़की को खा जाने वाली नजरों से देख रहा था,

"दोस्तों याद रखे मानव कहलाना ही काफी नहीं है
आप के अन्दर मानवता का गुण होना भी जरुरी है"

December 18, 2012

संस्कृति -21 सदी की नारी कौन सी आजादी चाहती हैं ?



सीता-राम

राधे -श्याम

गौरी -शंकर

लक्ष्मी- नारायण


सोच रहा हूं क्या ये वही भारत है जहां नारी जाति को इतना सम्मान दिया जाता है कि भगवान के नाम तक 

में स्त्री नाम पहले आता है

तथा जहां पुत्र को मां के नाम तक से संबोधित किया जाता है...

अंजनिपुत्र -हनुमान

देवरीनंदन- कृष्ण

कौन्तेय- अर्जुन

गंगापुत्र- पितामह भीष्म "

जहां बेटियों को पिता का सरनाम क्या पूरा नाम मिल जाता था...

जनक/विदेह- जानकी/वैदेही

द्रुपद/पांचाल नरेश- द्रोपदी/पांचाली

वृषभानु - वृषभानु दुलारी/राधा

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जहां एक स्त्री की इज्जत के लिये पूरा महाभारत हो जाता है... और आज उसी हस्तिनापुर (दिल्ली) में 

किसी के सर में जूं तक नहीं रेंगती... ‼

ओह मैं भूल गया .. कि मैं भारत नहीं इण्डिया में रहता हूं.. मॉर्डन इण्डिया ..

मेरी सोच कितनी छोटी है अभी रामायण -गीता में उलझी पडी है... और यहां लोग 'मनोहर कहानियों' तक 

पहुंच गये..

जहां नमस्कार नहीं.. यो मैन सुनाई देता है.. लोग ठहाके लगाना भूल गये .. लोल जेनरेशन जो आ गई है..

जो खून कभी गर्म होता था अब कूल हो गया.. मतलब तो मुझे नहीं पता वो डूड भी हो गया.. जो जवानी 

कभी इंकलाब लाती थी.. वो अब अबला लडकियों पर अपनी मर्दानगी दिखा रही ह

ये मिला हमें देश को भारत से इण्डिया बनाकर.. फूहडता, नग्नता, अश्लीलता, बलात्कार ..

वैलकम टू इण्डिया गाय्ज..

21 सदी की नारी कौन सी आजादी चाहती हैं ?

शुभप्रभात.. .नमस्कार /यो यो..!

संस्कृति - OUR EDUCATION SYSTEM--

OUR EDUCATION SYSTEM


      2.                               

3.

November 29, 2012

संस्कृति - Tom Cruise or DASRATH MANJHI Who is our Real HERO?

Real Hero don't look like James Bond or has glamor of Tom Cruise .. They look like any ordinary people .. Except there work is extra-ordinary .. Dasarth Manjhi one of several Real hero of India .. Like Every Hero he worked for betterment of common people without expecting anything in return .. India is progressing because people like Dasarth Manji lives in india ... not because of Nehru Dynasty ..
 or Fake Gandhi ... Mountain Man Dashrath Manjhi (1934-2007) was born in a labourer family in Gahlour village, near Gaya in Bihar. His wife, Falguni, died due to lack of medical care, as the nearest centre was 70 km away. Dashrath did not want anyone else to suffer, so he single-handedly carved a 360-foot-long, 25-foot-high and 30-foot-wide road by cutting a mountain of Gehlour hills for 22 years from 1960 to 1982. He reduced the distance between Atri and Wazirganj blocks of Gaya district from 75 km to just one km. He died on August 17, 2007. He was given a state funeral by the Government of Bihar














BRAND Archetypes through lens -Indian-Brands

There has been so much already written about brand archetypes and this is certainly not one more of those articles. In fact, this is rather ...