October 19, 2011

डायबिटीज के नियंत्रण की चाबी- अलसी

पिछले कुछ दशकों में भारत समेत पूरे विश्व में डायबिटीज टाइप-2 के रोगियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है व अब तो यह किशोरों और बच्चों को भी अपना शिकार बना रही है। डायबिटीज एक महामारी का रुप ले चुकी है। आइये हम जानने की कोशिश करते हैं कि पिछले कुछ दशकों में हमारे खान-पान, जीवनचर्या या वातावरण में ऐसा क्या बदलाव आया है। शोधकर्ताओं के अनुसार जब से परिष्कृत यानी “रिफाइन्ड तेल” (जो बनते समय उच्च तापमान, हेग्जेन, कास्टिक सोडा, फोस्फोरिक एसिड, ब्लीचिंग क्ले आदि घातक रसायनों के संपर्क से गुजरता है), ट्रांसफेट युक्त पूर्ण या आंशिक हाइड्रोजिनेटेड वसा यानी वनस्पति घी (जिसका प्रयोग सभी पैकेट बंद खाद्य पदार्थों व बेकरी उत्पादनों में धड़ल्ले से किया जाता है), रासायनिक खाद, कीटनाशक, प्रिजर्वेटिव, रंग, रसायन आदि का प्रयोग बढ़ा है तभी से डायबिटीज के रोगियों की संख्या बढ़ी है। हलवाई और भोजनालय भी वनस्पति घी या रिफाइन्ड तेल का प्रयोग भरपूर प्रयोग करते हैं और व्यंजनों को तलने के लिए तेल को बार-बार गर्म करते हैं जिससे वह जहर से भी बदतर हो जाता है। शोधकर्ता इन्ही को डायबिटीज का प्रमुख कारण मानते हैं।




 
पिछले तीन-चार दशकों से हमारे भोजन में ओमेगा-3 वसा अम्ल की मात्रा बहुत ही कम हो गई है और इस कारण हमारे शरीर में ओमेगा-3 व ओमेगा-6 वसा अम्ल यानी हिंदी में कहें तो ॐ-3 और ॐ-6 वसा अम्लों का अनुपात 1:40 या 1:80 हो गया है जबकि यह 1:1 होना चाहिये। यह भी डायबिटीज का एक बड़ा कारण है। डायबिटीज के नियंत्रण हेतु आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक व दैविक भोजन अलसी को “अमृत“ तुल्य माना गया है।


अलसी के तेल का अदभुत संरचना और ॐ खंड की क्वांटम भौतिकीः

अलसी के तेल में अल्फा-लिनोलेनिक एसिड (ए.एल.ए.) नामक ओमेगा-3 वसा अम्ल होता है। डा. बुडविज ने ए.एल.ए. और एल.ए. वसा अम्लों की अदभुत

संरचना का गूढ़ अध्ययन किया था। ए.एल.ए. में 18 कार्बन के परमाणुओं की लड़ी या श्रृंखला होती है जिसके एक सिरे से , जिसे ओमेगा एण्ड कहते हैं, मिथाइल (CH3) ग्रुप जुड़ा रहता है और दूसरे से जिसे डेल्टा एण्ड कहते हैं, कार्बोक्सिल (COOH) ग्रुप जुड़ा रहता है। ए.एल.ए. में तीन द्वि बंध क्रमशः तीसरे, छठे और नवें कार्बन परमाणु के बाद होते हैं। चुंकि ए.एल.ए. में पहला द्वि बंध तीसरे और एल.ए. में पहला द्वि बंध छठे कार्बन के बाद होता है इसीलिए इनको क्रमशः ओमेगा-3 और ओमेगा-6 वसा अम्ल कहते हैं। ए.एल.ए. और एल.ए. हमारे शरीर में नहीं बनते, इसलिए इनको “आवश्यक वसा अम्ल” कहते हैं तथा इनको भोजन के माध्यम से लेना आवश्यक है। आवश्यक वसा अम्लों की कार्बन लड़ी में जहां द्वि-बंध बनता है और दो हाइड्रोजन अलग होते हैं, उस स्थान पर इलेक्ट्रोनों का बादलनुमा समुह, जिसे पाई-इलेक्ट्रोन भी कहते हैं, बन जाता हैं और इस जगह ए.एल.ए. की लड़ मुड़ जाती है।




इलेक्ट्रोन के इस बादल में अपार विद्युत आवेश रहता है जो सूर्य ही नहीं बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड से आने वाले प्रकाश की किरणों के सबसे छोटे घटक फोटोन (जो असिमित, गतिशील, अनंत, जीवन शक्ति से भरपूर व ऊर्जावान हैं और अपना रंग, प्रकृति और आवृत्ति बदल सकते हैं) को आकर्षित करते हैं। ये फोटोन सूर्य से निकल कर, जो 9.3 अरब मील दूर हैं, असीम ऊर्जा लेकर, जीवन की आस लेकर, प्यार की बहार लेकर, खुशियों की सौगात लेकर आते हैं, अपनी लय, ताल व आवृत्ति बदल कर इलेक्ट्रोन, जो अपने कक्ष में निश्चत आवृत्ति पर सदैव गतिशील रहते हैं, की ओर आकर्षित होते हैं, साथ मिल कर नृत्य करते हैं और तब पूरा कक्ष समान आवृत्ति में दिव्य गुंजन करता है और असीम सौर ऊर्जा का प्रवाह होता है। यही है जीवन का अलसी फलसफा, प्रेम का उत्सव, यही है प्रकृति का संगीत। यही है फोटोन रूपी सूर्य और इलेक्ट्रोन रूपी चंद्र का परलौकिक गंधर्व विवाह, यही है शिव और पार्वती का तांण्डव नृत्य, यही है विष्णु और लक्ष्मी की रति क्रीड़ा, यही है कृष्ण और राधा का अंनत, असीम प्रेम।



पाई-इलेक्ट्रोन कोशिकाओं में भरपूर ऑक्सीजन को भी आकर्षित करते हैं। ए.एल.ए कोशिकाओं की भित्तियों को लचीला बनाते हैं जिससे इन्सुलिन का बड़ा अणु आसानी से कोशिका में प्रवेश कर जाता है। ये पाई-इलेक्ट्रोन ऊर्जा का संग्रहण करते हैं और एक केपेसिटर की तरह काम करते हैं। यही जीवन शक्ति है जो हमारे पूरे शरीर विशेष तौर पर मस्तिष्क, आँखों, मांसपेशियों और स्नायु तंत्र की कोशिकाओं में भरपूर ऊर्जा भरती है। डायबिटीज के रोगी को ऐसे ऊर्जावान इलेक्ट्रोन युक्त अलसी के 30 एम.एल. तेल और 80-100 एम.एल. दही या पनीर को विद्युत चालित हाथ से पकड़ने वाली मथनी द्वारा अच्छी तरह फेंट कर फलों और मेवों से सजा कर नाश्ते में लेना चाहिये। इसे एक बार लंच में भी ले सकते हैं। जिस तरह ॐ में सारा ब्रह्मांड समाया हुआ है ठीक उसी प्रकार अलसी के तेल में संम्पूर्ण ब्रह्मांड की जीवन शक्ति समायी हुई है। इसीलिए अलसी और दही, पनीर के इस व्यंजन को हम “ॐ खंड” कहते हैं। अलसी का तेल शीतल विधि द्वारा निकाला हुआ फ्रीज में संरक्षित किया हुआ ही काम में लेना चाहिए। इसे गर्म नहीं करना चाहिये और हवा व प्रकाश से बचाना चाहिये ताकि यह खराब न हो। 42 डिग्री सेल्सियस पर यह खराब हो जाता है।


अलसी की फाइबर युक्त स्वास्थयप्रद रोटीः

अलसी ब्लड शुगर नियंत्रित रखती है व डायबिटीज से शरीर पर होने वाले दुष्प्रभावों को कम करती है। डायबिटीज के रोगी को कम शर्करा व ज्यादा फाइबर खाने की सलाह दी जाती है। अलसी व गैहूं के मिश्रित आटे में (जहां अलसी और गैहूं बराबर मात्रा में हो) 50 प्रतिशत कार्ब, 16 प्रतिशत प्रोटीन व 20 प्रतिशत फाइबर होते हैं यानी इसका ग्लायसीमिक इन्डेक्स गैहूं के आटे से काफी कम होता है। जबकी गैहूं के आटे में 72 प्रतिशत कार्ब, 12.5 प्रतिशत प्रोटीन व 12 प्रतिशत फाइबर होते हैं। डायबिटीज पीडित के लिए इस मिश्रित आटे की रोटी सर्वोत्तम मानी गई है।
डायबिटीज के रोगी को रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट्स जैसे आलू, सफेद चावल, मेदा, चीनी और खुले हुए या पैकेट बंद सभी खाद्य पदार्थ, जंक फूड, फास्ट फूड, सोफ्ट ड्रिंक आदि का सेवन कतई नहीं करना चाहिये। रोज 4 से 6 बार परन्तु थोड़ा-थोड़ा भोजन करना चाहिये। सांयकालीन भोजन सोने के 4-5 घण्टे पहले ग्रहण करना चाहिये। प्याज, लहसुन, गोभी, टमाटर, पत्तागोभी, मेथी, भिण्डी, पालक, बैंगन, लौकी, ऑवला, गाजर, नीबू आदि हरी सब्जीयां भरपूर खानी चाहिये। फलों में जामुन, सेब, संतरा, अंगूर, पपीता, आम, केला आदि सभी फल खाने चाहिये। खाद्यान्न व दालें भी छिलके समेत खाएं। छिलकों में फाइबर व महत्वपूर्ण विटामिन होते हैं। अंकुरित दालों का सेवन अवश्य करें। रोज सुबह एक घण्टा व शांम को आधा घण्टा पैदल चलना चाहिये। सुबह कुछ समय प्राणायाम, योग व व्यायाम करना चाहिये। रोजाना चुटकी भर पिसी हुई दालचीनी सब्जी या चाय में मिला कर लेना चाहिये।


सर्व विदित है कि क्रोमियम और अल्फा-लाइपोइक एसिड शर्करा के चयापचय में सहायक हैं अतः डाटबिटीज के रोगी को रोज 200 माइक्रोग्राम क्रोमियम और 100 माइक्रोग्राम अल्फा-लाइपोइक एसिड लेना ही चाहिये। अधिकतर एंटीऑक्सीडेंट केप्स्यूल में ये दोनो तत्व होते हैं। मेथीदाना, करेला, जामुन के बीज, आंवला, नीम के पत्ते, घृतकुमारी (गंवार पाठा) आदि का सेवन करें। एक कप कलौंजी के बीज, एक कप राई, आधा कप अनार के छिलके और आधा कप पितपाप्र को पीस कर चूर्ण बना लें। आधी छोटी चम्मच कलौंजी के तेल के साथ रोज नाश्ते के पहले एक महीने तक लें।

डायबिटीज के दुष्प्रभावों में अलसी का महत्वः-



हृदय रोग एवं उच्च रक्तचापः-
डायबिटीज के रोगी को उच्च रक्तचाप, कोरोनरी आर्टरी डिजीज, हार्ट अटेक आदि की प्रबल संभावना रहती हैं। अलसी हमारे रक्तचाप को संतुलित रखती हैं। अलसी हमारे रक्त में अच्छे कॉलेस्ट्राल (HDL Cholesterol) की मात्रा को बढ़ाती है और ट्राइग्लीसराइड्स व खराब कोलेस्ट्रोल (LDL Cholesterol) की मात्रा को कम करती है। अलसी दिल की धमनियों में खून के थक्के बनने से रोकती है और हृदयाघात से बचाव करती हैं। हृदय की गति को नियंत्रित कर वेन्ट्रीकुलर एरिद्मिया से होने वाली मृत्यु दर को बहुत कम करती है।



नैत्र रोगः-


डायबिटीज के दुष्प्रभावों के कारण आँखों के दृष्टि पटल की रक्त वाहिनियों में कहीं-कहीं हल्का रक्त स्राव और रुई जैसे सफेद धब्बे बन जाते हैं। इसे रेटीनोपेथी कहते हैं जिसके कारण आँखों की ज्योति धीरे-धीरे कम होने लगती है। दृष्टि में धुंधलापन आ जाता है। अंतिम अवस्था में रोगी अंधा तक हो जाता है। अलसी इसके बचाव में बहुत लाभकारी पाई गई है। डायबिटीज के रोगी को मोतियाबिन्द और काला पानी होने की संभावना ज्यादा रहती है। ऑखों में रोजाना एक बूंद अलसी का तेल डालने से हम इन तकलीफों से बच सकते हैं। इससे नजर अच्छी हो जाती हैं, रंग ज्यादा स्पष्ट व उजले दिखाई देने लगते हैं तथा धीरे-धीरे चश्मे का नम्बर भी कम हो सकता है।

वृक्क रोगः-


डायबिटीज का बुरा असर गुर्दों पर भी पड़ता है। गुर्दों में डायबीटिक नेफ्रोपेथी नामक रोग हो जाता है, जिसकी आरंम्भिक अवस्था में प्रोटीन युक्त मूत्र आने लगता है, बाद में गुर्दे कमजोर होने लगते हैं और अंत में गुर्दे नाकाम हो जाते हैं। फिर जीने के लिए डायलेसिस व गुर्दा प्रत्यारोपण के सिवा कोई रास्ता नहीं बचता हैं। अलसी गुर्दे के उत्तकों को नयी ऊर्जा देती है। शिलाजीत भी गुर्दे का कायाकल्प करती है, डायबिटीज के दुष्प्रभावों से गुर्दे की रक्षा करती है व रक्त में शर्करा की मात्रा कम करती है। डायबिटीज के रोगी को शिलाजीत भी लेना ही चाहिये।



पैरः-

डायबिटीज के कारण पैरों में रक्त का संचार कम हो जाता है व पैरों में एसे घाव हो जाते हैं जो आसानी से ठीक नहीं होते। इससे कई बार गेंग्रीन बन जाती है और इलाज हेतु पैर कटवानाक पड़ जाता हैं। इसी लिए डायबिटीज पीड़ितों को चेहरे से ज्यादा अपने पैरों की देखभाल करने की सलाह दी जाती है। पैरों की नियमित देखभाल, अलसी के तेल की मालिश व अलसी खाने से पैरों में रक्त का प्रवाह बढ़ता हैं, पैर के घाव व फोड़े आदि ठीक होते हैं। पैर व नाखुन नम, मुलायम व सुन्दर हो जाते हैं।


अंतिम दो शब्दः-


डायबिटीज में कोशिका स्तर पर मुख्य विकृति इन्फ्लेमेशन या शोथ हैं। जब हम स्वस्थ आहार-विहार अपना लेते हैं और अलसी सेवन करते हैं तो हमें पर्याप्त ओमेगा-3 ए.एल.ए. मिलता हैं और हमारे शरीर में ओमेगा-3 व ओमेगा-6 वसा अम्ल का अनुपात सामान्य हो जाता है व डायबिटीज का नियंत्रण आसान हो जाता है और इंसुलिन या दवाओं की मात्रा कम होने लगती है।


अंत में डायबिटीज़ के रोगी के लिए मुख्य निर्देशों को क्रमबद्ध कर देता हूँ।

1) आपको परिष्कृत शर्करा जैसे आलू, सफेद चावल, मेदा, चीनी और खुले हुए या पेकेट बंद खाद्य पदार्थ जैसे ब्रेड, केक, पास्ता, मेगी, नूडल्स, बिस्कुट, अकंलचिप्स, कुरकुरे, पेप्सी, लिमका, कोकाकोला, फैंटा, फ्रूटी, पिज्जा, बर्गर, पेटीज, समोसा, कचोरी, भटूरा, नमकीन, सेव आदि का सेवन नहीं करना है। उपरोक्त सभी खाद्य पदार्थ मैदा व ट्रांसफैट युक्त खराब रिफाइंड तेलों से बनते हैं। तलने के लिए तेल को बार-बार गर्म किया जाता हैं जिससे उसमें अत्यंत हानिकारक कैंसर पैदा करने वाले रसायन जैसे एच.एन.ई. बन जाते हैं।

2) आपको खराब फैट जैसे परिष्कृत या रिफाइंड तेल जिसे बनाते वक्त 400 सेल्सियम तक गर्म किया जाता है व अत्यंत हानिकारक रसायन पदार्थ जैसे हैक्जेन, कास्टिक सोडा, फोस्फोरिक एसिड, ब्लीचिंग क्ले आदि-आदि मिलाये जाते हैं, का सेवन कतई नहीं करना है। आपको अच्छे वसा जैसे घाणी का निकला नारियल (हालांकि अमरीकी संस्था FDA ने अभी तक नारियल के तेल को सर्वश्रेष्ठ खाद्य तेल का दर्जा नहीं दिया है) , तिल या सरसों का तेल ही काम में लेना है। नारियल का तेल खाने के लिये सर्वोत्तम होता है, यह आपको दिल की बीमारियों से बचायेगा व आपके वज़न को भी कम करेगा।

3) यदि ठंडी विधि से निकला, फ्रीज में संरक्षित किया हुआ अलसी का तेल उपलब्ध हो जाये तो रोजाना दो चम्मच तेल को चार चम्मच दही या पनीर में हेंड ब्लेंडर से अच्छी तरह मिश्रण बना कर फलों या सलाद के साथ लें। अलसी का तेल हमेशा फ्रीज में रखें। 42 सेल्सियस पर यह खराब हो जाता है। यदि शुद्ध मिल सकता है तो आप थोड़ा घी या बटर भी काम में ले सकते हैं। हो सके तो आप सब्जियों को पानी में पकाये व बाद में तेल डालें। तली हुई चीजें कम से कम खायें।

4) रोजाना 30-60 ग्राम अलसी का सेवन करें। इसे ताज़ा पीस कर ही काम में लें। अलसी पीस कर रखने से खराब हो जाती है। डायबिटीज़ के रोगी को दोनों समय की रोटी के आटे में अलसी मिलानी चाहिए। आटा मिश्रित अन्नों जैसे गेहूँ, बाजरा, जौ, ज्वार, चना और कूटू को बराबर मात्रा में मिलाकर पिसवायें।

5) आप रोज 4 से 6 बार भोजन ले परंतु बहुत थोड़ा-थोड़ा। रात को सोने के 4-5 घण्टे पहले हल्का डिनर ले लें। आपको भोजन में सभी फल व सब्जियों का समावेश होना चाहिये। प्याज, लहसुन, गोभी, टमाटर, गोभी, पत्तागोभी, मेथी, भिण्डी, मूली, पालक, बैंगन, लौकी, ऑवला, गाजर, चुकंदर, नींबू आदि सभी हरी सब्जियां खूब खाएं। फलों में जामुन, सेब, संतरा, अंगूर, पपीता, चीकू, आम, केला आदि सभी फल खाएं। फलों का रस निकालकर नहीं बल्कि पूरा छिलके समेत फल खूब चबाकर खाए। अधिकतर कैंसर के रोगी यह समझते हैं कि उन्हें मीठे फल नहीं खाने चाहिये। जबकि दुनिया की कोई भी चिकित्सा पद्धति नहीं कहती है कि डायबिटीज के रोगी को मीठे फल और सूखे मेवे नहीं खाने चाहिये। फलों में पर्याप्त रेशे या फाइबर जटिल शर्करायें होती है जिनका ग्लाइसीमिक इन्डेक्स कम होता है अत: ये रक्त शर्करा की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाती है। दालें भी छिलके समेत खाएं। छिलकों में फाइबर व महत्वपूर्ण विटामिन होते हैं। अंकुरित अन्न का सेवन अवश्य करें।


6) रोज सुबह एक घण्टा व शाम को आधा घण्टा घूमना है। सुबह आधे घण्टे से पौन घंटे, प्राणायाम, योग व व्यायाम करना है।


7) रोजाना आधा चम्मच पिसी हुई दालचीनी सब्जी या चाय में डालकर लें। रोज एक क्रोमियम व एल्फालाइपोइक एसिड युक्त (ये दोनों मधुमेह उपचार में बहुत लाभ दायक है) एन्टीऑक्सीडेंट का केप्सूल जैसे Cap. Ebiza-L और Shilajit Dabur के दो केप्सूल सुबह शाम लेना है। मेथीं दाना, करेला, जामुन, आंवला, नीम के पत्ते आदि का सेवन करें। आजकल रोगी को अपनी रक्त शर्करा की नियमित जांच ग्लूकोमीटर द्वारा घर पर ही करने की सलाह दी जाती है।

8) हर तीन महीनों में HbA1C टेस्ट भी करवाये। इससे पिछले तीन महीने में आपकी बल्ड शुगर नियंत्रण की स्थिति मालूम हो जाती है। साल में एक बार आंखो की जांच (फन्डोस्कोपी), गुर्दे व यकृत के रक्त परिक्षण, ई.सी.जी. व हृदय की विस्तृत जांच अवश्य करवाये।

9) डायबिटीज के रोगी को हमेशा अपने पास एक कार्ड रखना चाहिए जिसमें इस बात का वर्णन हो की वह डायबिटीज से पिड़ित है डायबिटीज के रोगी को स्वास्थ्य बीमा भी करवाना चाहिये।

10) डायबिटीज के रोगी की कभी-कभी रक्त शर्करा बहुत कम हो जाती है जिसे हाइपो-ग्लाइसीमिया या शर्कराल्पता कहते हैं, जिसके लक्षण है – भूख लगना, घबराहट, पसीना आना, चक्कर आना, आवाज लड़खड़ाना, कमजोरी, अस्त-व्यस्तता, बेहोशी आदि हैं। ये बड़ी भयावह स्थिति होती है। इसमे तुरन्त चीनी, कोई मीठी वस्तु जैसे बिस्किट या मिठाई खा लेना चाहिए और तुरन्त किसी चिकित्सालय में जाकर जाँच करवाना चाहिये।








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प्रस्तावना


डॉ योहाना बुडविज (जन्म 30 सितम्बर, 1908 – मृत्यु 19 मई 2003) विश्व विख्यात जर्मन जीवरसायन विशेषज्ञ व चिकित्सक थीं। उन्होंने भौतिक विज्ञान, जीवरसायन विज्ञान, भेषज विज्ञान में मास्टर की डिग्री हासिल की थी व प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञान में पी.एच.डी. की थी। वे जर्मन सरकार के खाद्य और भेषज विभाग में सर्वोच्च पद पर कार्यरत थीं। वे जर्मनी व यूरोप की विख्यात वसा और तेल विशेषज्ञ थी। उन्होंने वसा, तेल तथा कैंसर के उपचार के लिए बहुत शोध की थी। उनका नाम नोबल पुरस्कार के लिए 7 बार चयनित हुआ था। वे आजीवन शाकाहारी रहीं। जीवन के अंतिम दिनों में भी वे सुंदर, स्वस्थ व अपनी आयु से काफी युवा दिखती थी। उन्होंने पहली बार संतृप्त और असंतृप्त वसा पर बहुत शोध किया।

उन्होंने पहली बार आवश्यक वसा अम्ल ओमेगा-3 व ओमेगा–6 को पहचाना और उन्हें पहचानने की पेपर क्रोमेटोग्राफी तकनीक विकसित की थी। इनके हमारे शरीर पर होने वाले प्रभावों का अध्ययन किया था। उन्होंने यह भी पता लगाया था कि ओमेगा–3 किस प्रकार हमारे शरीर को विभिन्न बीमारियों से बचाते हैं तथा स्वस्थ शरीर को ओमेगा–3 व ओमेगा–6 बराबर मात्रा में मिलना चाहिये। इसीलिये उन्हें “ओमेगा-3 लेडी” के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने पूर्ण या आंशिक हाइड्रोजिनेटेड वसा मार्जरीन (वनस्पति घी), ट्रांस फैट व रिफाइण्ड तेलों के हमारे स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों का भी पता लगाया था। वे मार्जरीन, हाइड्रोजिनेटेड वसा और रिफाइंड तेलों को प्रतिबंधित करना चाहती थी जिसके कारण खाद्य तेल और मार्जरीन बनाने वाले संस्थान उनसे काफी नाराज थे और बहुत परेशानी में थे।

डॉ. ओटो वारबर्ग की परिकल्पना और नोबेल पुरस्कार

1923 में डॉ. ओटो वारबर्ग ने कैंसर के मुख्य कारण की खोज कर ली थी। जिसके लिये उन्हें 1931 में नोबल पुरस्कार दिया गया था। उन्हें 1944 में भी नोबल पुरस्कार के लिए चयनित किया गया था । उन्होनें कोशिकाओं की श्वसन क्रिया और चयापचय पर बहुत परीक्षण किये थे। उन्होंने पता लगाया था कि कैंसर का मुख्य कारण कोशिकाओं में होने वाली श्वसन क्रिया का बाधित होना है। सामान्य कोशिकाएँ अपने चयापचय हेतु ऊर्जा ऑक्सीजन से ग्रहण करती है। जबकि कैंसर कोशिकाऐं ऑक्सीजन के अभाव और अम्लीय माध्यम में ही फलती फूलती है। कैंसर कोशिकायें ऑक्सीजन से श्वसन क्रिया नहीं करती। कैंसर कोशिकायें ग्लूकोज को फर्मेंट करके ऊर्जा प्राप्त करती हैं। यदि सामान्य कोशिकाओं को ऑक्सीजन की आपूर्ति 48 घन्टे के लिए लगभग 35 प्रतिशत कम कर दी जाए तो वह कैंसर कोशिकाओं में परिवर्तित हो जाती हैं। यदि कोशिकाओं को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती रहे तो कैंसर का अस्तित्व ही संभव नहीं है। उन्होनें कई परीक्षण किये परन्तु वारबर्ग यह पता नहीं कर पाये कि कैंसर कोशिकाओं की बाधित श्वसन क्रिया को कैसे ठीक किया जाये।

डॉ. योहाना ने शोध को जारी रखा

डॉ. योहाना ने वारबर्ग के शोध को जारी रखा। वर्षों तक शोध करके पता लगाया कि इलेक्ट्रोन युक्त, अत्यन्त असंतृप्त ओमेगा–3 वसा से भरपूर अलसी, जिसे अंग्रेजी में linseed या Flaxseed कहते हैं, का तेल कोशिकाओं में नई ऊर्जा भरता है, कोशिकाओं की स्वस्थ भित्तियों का निर्माण करता है और कोशिकाओं में ऑक्सीजन को आकर्षित करता है। परंतु इनके सामने मुख्य समस्या यह थी की अलसी के तेल , जो रक्त में नहीं घुलता है, को कोशिकाओं तक कैसे पहुँचाया जाये ? वर्षों तक कई परीक्षण करने के बाद डॉ. योहाना ने पाया कि अलसी के तेल को सल्फर युक्त प्रोटीन जैसे पनीर साथ मिलाने पर अलसी का तेल पानी में घुलनशील बन जाता है और तेल को सीधा कोशिकाओं तक पहुँचाता है। इससे कोशिकाओं को भरपूर ऑक्सीजन पहुँचती है व कैंसर खत्म होने लगता है।

इस प्रकार 1952 में डॉ. योहाना ने ठंडी विधि से निकले अलसी के तेल व पनीर के मिश्रण तथा कैंसर रोधी फलों व सब्जियों के साथ कैंसर रोगियों के उपचार का तरीका विकसित किया, जो “बुडविज प्रोटोकोल” के नाम से विख्यात हुआ। इस उपचार से कैंसर रोगियों को बहुत लाभ मिलने लगा था। इस सरल, सुगम, सुलभ उपचार से कैंसर के रोगी ठीक हो रहे थे। इस उपचार से 90 प्रतिशत तक सफलता मिलती थी। नेता और नोबेल पुरस्कार समिति के सभी सदस्य इन्हें नोबल पुरस्कार देना चाहते थे पर उन्हें डर था कि इस उपचार के प्रचलित होने और मान्यता मिलने से 200 बिलियन डालर का कैंसर व्यवसाय (कीमोथेरेपी और विकिरण चिकित्सा उपकरण बनाने वाले बहुराष्ट्रीय संस्थान) रातों रात धराशाही हो जायेगा। इसलिए उन्हें कहा गया कि आपको कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी को भी अपने उपचार में शामिल करना होगा। उन्होंने सशर्त दिये जाने वाले नोबल पुरस्कार को एक नहीं सात बार ठुकराया।

यह सब देखकर कैंसर व्यवसाय से जुड़े मंहगी कैंसररोधी दवाईयां और रेडियोथेरेपी उपकरण बनाने वाले संस्थानों की नींद हराम हो रही थी। उन्हें डर था कि यदि यह उपचार प्रचलित होता है तो उनकी कैंसररोधी दवाईयां और कीमोथेरिपी उपकरण कौन खरीदेगा ? इस कारण सभी बहुराष्ट्रीय संस्थानों ने उनके विरूद्ध कई षड़यन्त्र रचे। ये नेताओं और सरकारी संस्थाओं के उच्चाधिकारियों को रिश्वत देकर डॉ. योहाना को प्रताड़ित करने के लिए बाध्य करते रहे। फलस्वरूप इन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा, सरकारी प्रयोगशालाओं में इनके प्रवेश पर रोक लगा दी गई और इनके शोध पत्रों के प्रकाशन पर भी रोक लगा दी गई।

विभिन्न बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने इन पर तीस से ज्यादा मुकदमें दाखिल किये। डॉ. बुडविज ने अपने बचाव हेतु सारे दस्तावेज स्वंय तैयार किये और अन्तत: सारे मुकदमों मे जीत भी हासिल की। कई न्यायाधीशों ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लताड़ लगाई और कहा कि डॉ. बुडविज द्वारा प्रस्तुत किये गये शोध पत्र सही हैं, इनके प्रयोग वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित हैं, इनके द्वारा विकसित किया गया उपचार जनता के हित में है और आम जनता तक पहुंचना चाहिए। इन्हे व्यर्थ परेशान नहीं किया जाना चाहिए।

वे 1952 से 2002 तक कैंसर के लाखों रोगियों का उपचार करती रहीं। अलबर्ट आईन्स्टीन ने एक बार सच ही कहा था कि आधुनिक युग में भोजन ही दवा का काम करेगा। इस उपचार से सभी प्रकार के कैंसर रोगी कुछ महीनों में ठीक हो जाते थे। वे कैंसर के ऐसे रोगियों को, जिन्हें अस्पताल से यह कर छुट्टी दे दी जाती थी कि अब उनका कोई इलाज संभव नहीं है और उनके पास अब चंद घंटे या चंद दिन ही बचे हैं, अपने उपचार से ठीक कर देती थीं। कैंसर के अलावा इस उपचार से डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, आर्थ्राइटिस, हृदयाघात, अस्थमा, डिप्रेशन आदि बीमारियां भी ठीक हो जाती हैं।

डॉ. योहाना के पास अमेरिका व अन्य देशों के डाक्टर मिलने आते थे, उनके उपचार की प्रसंशा करते थे पर उनके उपचार से व्यावसायिक लाभ अर्जित करने हेतु आर्थिक सौदे बाज़ी की इच्छा व्यक्त करते थे। वे भी पूरी दुनिया का भ्रमण करती थीं। अपनी खोज के बारे में व्याख्यान देती थी। उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी जिनमें “फेट सिंड्रोम”, “डेथ आफ ए ट्यूमर”, “फलेक्स आयल – ए ट्रू एड अगेन्स्ट आर्थाइटिस, हार्ट इन्फार्कशन, कैंसर एण्ड अदर डिजीज़ेज”, “आयल प्रोटीन कुक बुक”, “कैंसर – द प्रोबलम एण्ड सोल्यूशन” आदि मुख्य हैं। उन्होंने अपनी आख़िरी पुस्तक 2002 में लिखी थी।

सौर ऊर्जा, इलेक्ट्रोन और लिनोलेनिक एसिड का अलौकिक संबंध :-

प्रकाश सबसे तेज चलता है। क्वांटम भौतिकी के अनुसार सूर्य की किरणों के सबसे छोटे घटक या कण को क्वांटम या फोटोन कहते हैं जो अनंत हैं, शाश्वत हैं, सक्रिय हैं, सदैव हैं, ऊर्जावान हैं और गतिशील हैं। इन्हें कोई नहीं रोक सकता है। ये ऊर्जा का सबसे परिष्कृत रूप हैं, ये सबसे निर्मल लहर हैं। इनमें ब्रह्मांड के सारे रंग है। ये अपना रंग, प्रकृति और आवृत्ति बदल सकते हैं।

इलेक्ट्रोन परमाणु का घटक है और न्यूक्लियस के चारों ओर अपने निश्चित कक्ष में निश्चित आवृत्ति में सदैव परिक्रमा करते रहते हैं, सदैव गतिशील रहते हैं। इलेक्ट्रोन का चुम्बकीय क्षेत्र अत्यन्त गतिशील फोटोन को अपनी ओर आकर्षित करता है, जब भी कोई विद्युत आवेश गतिशील होता है तो एक चुम्बकीय क्षेत्र बनता है। गतिशील फोटोन का भी चुम्बकीय क्षेत्र होता है। जब इलेक्ट्रोन और फोटोन के चुम्बकीय क्षेत्र समान आवृत्ति पर गुंजन करते हैं तो ये एक दूसरे को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

फोटोन सूर्य से निकलकर, जो 9.3 अरब मील दूर है, असीम ऊर्जा लेकर, जीवन की आस लेकर, प्यार की बहार लेकर, खुशियों की सौगात लेकर आते हैं, अपनी लय, ताल व आवृत्ति बदल कर इलेक्ट्रोन, जो अपने कक्ष में निश्चित आवृत्ति पर सदैव परिक्रमा करते रहते हैं, की ओर आकर्षित होते हैं, साथ मिल कर नृत्य करते हैं और तब पूरा कक्ष समान आवृत्ति में दिव्य गुंजन करता है और असीम सौर ऊर्जा का प्रवाह होता है। यही है जीवन का असली फलसफा, प्रेम का उत्सव, यही है प्रकृति का संगीत। यही है फोटोन रूपी सूर्य और इलेक्ट्रोन रूपी चंद्र का पारलौकिक गंधर्व विवाह, यही है शिव और पार्वति का तांण्डव नृत्य, यही है विष्णु और लक्ष्मी की रति क्रीड़ा, यही है कृष्ण और राधा का अनंत, असीम प्रेम।

हमें सूर्य से बहुत प्रेम है और यह सिर्फ कोई संयोग नहीं है। हमारे शरीर की लय सूर्य की लय से इतनी मिलती है कि हम सूर्य की ऊर्जा का सबसे ज्यादा अवशोषण करते हैं। इसलिए क्वांटम वैज्ञानिक कहते हैं कि संपूर्ण ब्रह्मांड सबसे ज्यादा सौर ऊर्जा या फोटोन मनुष्य के शरीर में ही होते हैं। यह क्षमता और बढ़ जाती है जब हम इलेक्ट्रोन से भरपूर अत्यंत असंतृप्त वसा अम्ल (अलसी जिनका भरपूर स्रोत है) का सेवन करते हैं।

जीवन शक्ति और अल्फा-लिनोलेनिक एसिड (ए.एल.ए):-

अलसी के तेल में अल्फा–लिनोलेनिक एसिड (ए.एल.ए.) नामक ओमेगा–3 वसा अम्ल होता है। डॉ. बुडविज ने ए.एल.ए. की अद्भुत संरचना का गूढ़ अध्ययन किया। ए.एल.ए. में 18 कार्बन के परमाणुओं की लड़ी या श्रंखला होती है जिसके एक सिरे से, जिसे ओमेगा सिरा कहते हैं, मिथाइल (CH3) ग्रुप जुड़ा रहता है और दूसरे से, जिसे डेल्टा सिरा कहते हैं, कार्बोक्सिल (COOH) जुड़ा रहता है। ए.एल.ए. में 3 द्वि-बंध ओमेगा सिरे से क्रमशः तीसरे, छठे और नवें कार्बन परमाणु के बाद होते हैं चूंकि पहला द्वि-बंध तीसरे कार्बन के बाद होता है इसीलिए इसको ओमेगा–3 वसा अम्ल (N–3) कहते हैं। ए.एल.ए. हमारे शरीर में नहीं बन सकते, इसलिए इनको “आवश्यक वसा” अम्ल कहते हैं अत: इनको भोजन द्वारा लेना अति “आवश्यक” है। ए.एल.ए की कार्बन श्रंखला में जहां द्वि-बंध बनता है और दो हाइड्रोजन के परमाणु अलग होते हैं, वहां इलेक्ट्रोनों का बडा झुंण्ड या बादल सा, जिसे “पाई–इलेक्ट्रोन्स” भी कहते हैं, बन जाता है और इस जगह ए.एल.ए. की लड़ मुड़ जाती है। इलेक्ट्रोन के इस बादल में अपार विद्युत आवेश रहता है जो सूर्य ही नहीं बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड से आने वाले प्रकाश की किरणों के सबसे छोटे घटक फोटोन को आकर्षित करते हैं, अवशोषण करते हैं। ओमेगा-3 ऑक्सीजन को कोशिका में खींचते हैं, प्रोटीन को आकर्षित करते हैं। ये पाई–इलेक्ट्रोन ऊर्जा का संग्रहण करते हैं और एक एन्टीना की तरह काम करते हैं। यही है जीवन शक्ति जो हमारे पूरे शरीर विशेष तौर पर मस्तिष्क, ऑखों, हृदय, मांसपेशियां, नाड़ीतंत्र, कोशिका की भित्तियों आदि को भरपूर ऊर्जा देती है।

कैंसररोधी योहाना बुडविज आहार विहार

डॉ. बुडविज आहार में प्रयुक्त खाद्य पदार्थ ताजा, इलेक्ट्रोन युक्त और (जैविक जहां तक सम्भव हो) होने चाहिए। इस आहार में अधिकांश खाद्य पदार्थ सलाद और रसों के रूप में लिये जाते है, जिन्हें ताजा तैयार किया जाना चाहिए ताकि रोगी को भरपूर इलेक्ट्रोन्स मिले। डॉ. बुडविज ने इलेक्ट्रोन्स पर बहुत जोर दिया है। अलसी के तेल में भरपूर इलेक्ट्रोन्स होते हैं और ड़ॉ बुडविज ने अन्य इलेक्ट्रोन्स युक्त खाद्यान्न भी ज्यादा से ज्यादा लेने की सलाह दी है। इस उपचार के बाद में कहा जाता है कि छोटी-छोटी बातें भी महत्वपूर्ण हैं। और जरा सी असावधानी इस आहार के औषधीय प्रभाव को प्रभावित कर सकती है।

रोज सूर्य के प्रकाश का सेवन अनिवार्य है। इससे विटामिन-डी भी प्राप्त होता है। रोजाना दस-दस मिनट के लिए दो बार कपड़े उतार कर धूप में लेटना आवश्यक है। पांच मिनट सीधा लेटे और करवट बदलकर पांच मिनट उल्टे लेट जायें ताकि शरीर के हर हिस्से को सूर्य के प्रकाश का लाभ मिले। रोगी की रोजाना अलसी के तेल की मालिश भी की जानी चाहिए इससे शरीर में रक्त का प्रवाह बढ़ता है और टॉक्सिन्स बाहर निकलते है। रोगी को हर तरह के प्रदूषण (जैसे मच्छर मारने के स्प्रे आदि) और इलेक्ट्रानिक उपकरणों (जैसे CRT वाले टी.वी. आदि) से निकलने वाले विकिरण से जहां तक सम्भव हो बचना चाहिए। रोगी को सिन्थेटिक कपड़ो की जगह ऊनी, लिनन और सूती कपड़े प्रयोग पहनना चाहिए। गद्दे भी फोम और पोलिएस्टर फाइबर की जगह रुई से बने हों।

यदि रोगी की स्थिति बहुत गंभीर हो या वह ठीक से भोजह नहीं ले पा रहा है तो उसे अलसी के तेल का एनीमा भी दिना चाहिये। ड़ॉ. बुडविज ऐसे रोगियों के लिए “अस्थाई आहार” लेने की सलाह देती थी। यह अस्थाई आहार यकृत और अग्न्याशय कैंसर के रोगियों को भी दिया जाता है क्योंकि वे भी शुरू में सम्पूर्ण बुडविज आहार नहीं पचा पाते हैं। अस्थाई आहार में रोगी को सामान्य भोजन के अलावा कुछ दिनों तक पिसी हुई अलसी और पपीते, अंगूर व अन्य फलों का रस दिया जाता है। कुछ दिनों बाद जब रोगी की पाचन शक्ति ठीक हो जाती है तो उसे धीरे-धीरे सम्पूर्ण बुडविज आहार शुरू कर दिया जाता है।


प्रातः-

प्रातः एक ग्लास सॉवरक्रॉट (खमीर की हुई पत्ता गोभी) का रस या एक गिलास छाछ लें। सॉवरक्रॉट में कैंसररोधी तत्व और भरपूर विटामिन-सी होता है और यह पाचन शक्ति भी बढ़ाता है। यह हमारे देश में उपलब्ध नहीं है परन्तु इसे घर पर पत्ता गोभी को ख़मीर करके बनाया जा सकता है।

नाश्ताः-


नाश्ते से आधा घंटा पहले बिना चीनी की गर्म हर्बल या हरी चाय लें। मीठा करने के लिए एक चम्मच शहद या स्टेविया (जो डॉ. स्वीट के नाम से बाजार में उपलब्ध है) का प्रयोग कर सकते हैं। यह पिसी अलसी के फूलने हेतु गर्म तरल माध्यम का कार्य करती है। अब आपको “ॐ खंड”, जो अलसी के तेल और घर पर बने वसा रहित पनीर या दही से बने पनीर को मिला कर बनाया जायेगा, लेना है।




पनीर बनाने के लिए गाय या बकरी का दूध सर्वोत्तम रहता है। इसे एकदम ताज़ा बनायें, तुरंत खूब चबा चबा कर आनंद लेते हुए सेवन करें। 3 बड़ी चम्मच यानी 45 एम.एल. अलसी का तेल और 6 बड़ी चम्मच यानी 90 एम.एल. पनीर को बिजली से चलने वाले हेन्ड ब्लेंडर से एक मिनट तक अच्छी तरह मिक्स करें। तेल और पनीर का मिश्रण क्रीम की तरह हो जाना चाहिये और तेल दिखाई देना नहीं चाहिये। तेल और पनीर को ब्लेंड करते समय यदि मिश्रण गाढ़ा लगे तो 1 या 2 चम्मच अंगूर का रस या दूध मिला लें। अब 2 बड़ी चम्मच अलसी ताज़ा पीस कर मिलायें। अलसी को पीसने के बाद पन्द्रह मिनट के अन्दर काम में ले लेना चाहिए।



मिश्रण में स्ट्राबेरी, रसबेरी, चेरी, जामुन आदि फल मिलाऐं। बेरों में एलेजिक एसिड होते हैं जो कैंसररोधी हैं। आप चाहें तो आधा कप कटे हुए अन्य फल भी मिला लें। इसे कटे हुए मेवे खुबानी, बादाम, अखरोट, किशमिश, मुनक्के आदि सूखे मेवों से सजाऐ। मूंगफली वर्जित है। मेवों में सल्फर युक्त प्रोटीन, वसा और विटामिन होते हैं। स्वाद के लिए वनिला, दाल चीनी, ताजा काकाओ, कसा नारियल या नींबू का रस मिला सकते हैं। दिन भर में कुल शहद 3 – 5 चम्मच से ज्यादा न लें। याद रहे शहद प्राकृतिक व मिलावट रहित हो। डिब्बा बंद या परिष्कृत कतई न हो। दिन भर में 6 या 8 खुबानी के बीज अवश्य ही खायें। इनमें विटामिन बी-17 होता हैं जो कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करता है। फल, मेवे और मसाले बदल कर प्रयोग करें। ओम खण्ड को बनाने के दस मिनट के भीतर ले लेना चाहिए।



यदि और खाने की इच्छा हो तो टमाटर, मूली, ककड़ी आदि के सलाद के साथ कूटू, ज्वार, बाजरा आदि साबुत अनाजों के आटे की बनी एक रोटी ले लें। कूटू को बुडविज ने सबसे अच्छा अन्न माना है। गैहू में ग्लूटेन होता है और पचने में भारी होता है अतः इसका प्रयोग तो कम ही करें।



10 बजेः-



नाश्ते के 1 घंटे बाद घर पर ताजा बना गाजर, मूली, लौकी, चुकंदर, गाजर, गेहूं के जवारों आदि का ताजा रस लें। गाजर और चुकंदर यकृत को ताकत देते हैं और अत्यंत कैंसर रोधी होते हैं।

दोपहर का खानाः-

अब नाश्ते की तरह ही 3 बड़ी चम्मच अलसी के तेल व 6 बड़ी चम्मच पनीर के मिश्रण में ताजा फल, मेवे और मसाले मिलाकर लें। यह अत्यंत आवश्यक हैं। हां पिसी अलसी इस बार न डालें।


सलाद को मीठा करना हो तो अलसी के तेल में अंगूर, संतरे या सेब का रस या शहद मिला कर लें। यदि फिर भी भूख है तो आप उबली या भाप में पकी सब्जियों के साथ एक दो मिश्रित आटे की रोटी ले सकते हैं। सब्जियों व रोटी पर ऑलियोलक्स (इसे नारियल, अलसी के तेल, प्याज, लहसुन से बनाया जाता है) भी डाल सकते हैं। मसाले, सब्जियों व फल बदल–बदल कर लेवें। रोज़ एक चम्मच कलौंजी का तेल भी लें। भोजन तनाव रहित होकर खूब चबा-चबा कर खाएं।





ॐ खंड” की दूसरी खुराकः-





अब नाश्ते की तरह ही 3 बड़ी चम्मच अलसी के तेल व 6 बड़ी चम्मच पनीर के मिश्रण में ताजा फल, मेवे और मसाले मिलाकर लें। यह अत्यंत आवश्यक हैं। हां पिसी अलसी इस बार न डालें।



दोपहर बादः-



अन्नानास, चेरी या अंगूर के रस में एक या दो चम्मच अलसी को ताजा पीस कर मिलाएं और खूब चबा कर, लार में मिला कर धीरे धीरे चुस्कियां ले लेकर पियें। चाहें तो आधा घंटे बाद एक गिलास रस और ले लें।



तीसरे पहरः-



पपीता या ब्लू बेरी (नीला जामुन) रस में एक या दो चम्मच अलसी को ताजा पीस कर डालें खूब चबा–चबा कर, लार में मिला कर धीरे–धीरे चुस्कियां ले लेकर पियें। पपीते में भरपूर एंज़ाइम होते हैं और इससे पाचन शक्ति भी ठीक होती है।



सायंकालीन भोजः-



शाम को बिना तेल डाले सब्जियों का शोरबा या अन्य विधि से सब्जियां बनायें। मसाले भी डालें। पकने के बाद ईस्ट फ्लेक्स और ऑलियोलक्स डालें। ईस्ट फ्लेक्स में विटामिन-बी होते हैं जो शरीर को ताकत देते हैं। टमाटर, गाजर, चुकंदर, प्याज, शतावर, शिमला मिर्च, पालक, पत्ता गोभी, गोभी, हरी गोभी (ब्रोकोली) आदि सब्जियों का सेवन करें। शोरबे को आप उबले कूटू, भूरे चावल, रतालू, आलू, मसूर, राजमा, मटर साबुत दालें या मिश्रित आटे की रोटी के साथ ले सकते हैं।



बुडविज आहार के अत्यंत महत्वपूर्ण बिन्दु



1. डॉ. योहाना कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी, वनस्पति घी, ट्रांस फेट, मक्खन, घी, चीनी, मिश्री, गुड़, रिफाइण्ड तेल, सोयाबीन व सोयाबीन से निर्मित दूध व टॉफू आदि, प्रिज़र्वेटिव, कीटनाशक, रसायन, सिंथेटिक कपड़ों, मच्छर मारने के स्प्रे, बाजार में उपलब्ध खुले व पेकेट बंद खाद्य पदार्थ, अंडा, मांस, मछली, मुर्गा, मैदा आदि से पूर्ण परहेज करने की सलाह देती थी। वे कैंसर रोगी को सनस्क्रीन लोशन, धूप के चश्में आदि का प्रयोग करने के लिए भी मना करती थी।



2. इस उपचार में यह बहुत आवश्यक है कि प्रयोग में आने वाले सभी खाद्य पदार्थ ताजा, जैविक और इलेक्ट्रोन युक्त हो। बचे हुए व्यंजन फेंक दें।



3. अलसी को जब आवश्यकता हो तभी पीसें। पीसकर रखने से ये खराब हो जाती है। तेल को तापमान (42 डिग्री सेल्सियस पर यह खराब हो जाता है), प्रकाश व ऑक्सीजन से बचायें। आप इसे गहरे रंग के पात्र में भरकर डीप फ्रीज़ में रखें।



4. दिन में कम से कम तीन बार हरी या हर्बल चाय लें।



5. इस उपचार में धूप का बहुत महत्व है। थोड़ी देर धूप में बैठना है या भ्रमण करना है जिससे आपको विटामिन डी प्राप्त होता है। सूर्य से ऊर्जा मिलेगी।



6. प्राणायाम, ध्यान व जितना संभव हो हल्का फुल्का व्यायाम या योगा करना है।



7. घर का वातावरण तनाव मुक्त, खुशनुमा, प्रेममय, आध्यात्मिक व सकारात्मक रहना चाहिये। आप मधुर संगीत सुनें, खूब हंसें, खेलें कूदें। क्रोध न करें।



8. सप्ताह में दो-तीन बार वाष्प-स्नान या सोना-बाथ लेना चाहिए।



9. पानी स्वच्छ व फिल्टर किया हुआ पियें।



10. इस उपचार से धीरे-धीरे लाभ मिलता है और यदि उपचार को ठीक प्रकार से लिया जाये तो सामान्यत: एक वर्ष या कम समय में कैंसर पूर्णरूप से ठीक हो जाता है। रोग ठीक होने के पश्चात भी इस उपचार को 2-3 वर्ष या आजीवन लेते रहना चाहिये।



11. अपने दांतो की पूरी देखभाल रखना है। दांतो को इंफेक्शन से बचाना चाहिये।



10. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस उपचार को जैसा ऊपर विस्तार से बताया गया है वैसे ही लेना है अन्यथा फायदा नहीं होता है या धीरे-धीरे होता है। अधिक जानकारी हेतु अंतरजाल पर हमारे इस पृष्ठ http://flaxindia.blogspot.com पर चटका मारें। इस लेख के सारे समुच्चित चित्र मेरे द्वारा ही बनाये गये हैं।

आप सोच रहे होगें कि डॉ. योहाना की उपचार पद्धति इतनी असरदायक व चमत्कारी है तो यह इतनी प्रचलित क्यों नहीं है। यह वास्तव में इंसानी लालच की पराकाष्ठा है। सोचिये यदि कैंसर के सारे रोगी अलसी के तेल व पनीर से ही ठीक होने लगते तो कैंसर की मंहगी दवाईया व रेडियोथेरेपी उपकरण बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कितना बड़ा आर्थिक नुकसान होता। इसलिए उन्होंने किसी भी हद तक जाकर डॉ. योहाना के उपचार को आम आदमी तक नहीं पहुंचने दिया। मेडीकल पाठ्यक्रम में उनके उपचार को कभी भी शामिल नहीं होने दिया। यह हम पृथ्वी वासियों का दुर्भाग्य है कि हमारे यहां शरीर के लिए घातक व बीमारियां पैदा करने वाले वनस्पति घी बनाने वालों पॉल सेबेटियर और विक्टर ग्रिगनार्ड को 1912 में नोबेल पुरस्कार दे दिया गया और कैंसर जैसी जान लेवा बीमारी के इलाज की खोज करने वाली डॉ. योहाना नोबेल पुरस्कार से वनचित रह गई। क्या कैंसर के उन करोड़ों रोगियों, जो इस उपचार से ठीक हो सकते थे, की आत्माएँ इन लालची बहुराष्ट्रीय कंपनियों को कभी क्षमा कर पायेगी ? ? ? लेकिन आज यह जानकारी हमारे पास है और हम इसे कैंसर के हर रोगी तक पहुँचाने का संकल्प लेते हैं। डॉ. योहाना का उपचार श्री कृष्ण भगवान का वो सुदर्शन चक्र है जिससे किसी भी कैंसर का बच पाना मुश्किल है।

October 18, 2011

ओम जय जगदीश हरे के रचयिता श्रद्धा राम फिल्लौरी

“ओम जय जगदीश हरे” भजन भला किसने गाया या सुना न होगा। यह हिन्दुओं का सर्वाधिक लोकप्रिय भजन है जिसे प्रायः मन्दिरों तथा घरों में भगवान की आरती उतारते समय गाया जाता है। “ओम जय जगदीश हरे” भजन लोगों के लिए एक प्रकार से सामान्य जीवन का अंग सा बन गया है किन्तु बहुत कम लोग जानते होंगे कि इस भजन को किसने और कब लिखा।


ओम जय जगदीश हरे के रचयिता हैं श्रद्धा राम फिल्लौरी जिनका जन्म जालंधर (पंजाब) के एक गाँव फिल्लौर में 30 सितम्बर 1837 को हुआ था। श्रद्धा राम जी ने सन् 1844 में अर्थात् मात्र सात वर्ष की उम्र में ही गुरुमुखी भाषा सीख लिया था। बाद में उन्होंने हिन्दी, संस्कृत और पारसी भाषाओं तथा ज्योतिष शास्त्र का भी अध्ययन किया।

श्रद्धा राम फिल्लौरी जी का गुरुमुखी और हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सन् 1868 में उन्होंने बाइबल का अनुवाद गुरुमुखी भाषा में किया था। उनकी गुरुमुखी रचना “सिखां दे राज दी विथिया” का प्रकाशन सन् 1866 में हुआ था तथा बाद में इस रचना का रोमन में अनुवाद भी हुआ। श्री श्रद्धा राम को भारत के प्रथम उपन्यासकार के रूप में भी जाना जाता है। उनके द्वारा लिखित प्रथम हिंदी उपन्यास “भाग्यवती” जिसको निर्मल प्रकाशन ने सन 1888 में प्रकाशित किया था।


श्री श्रद्धा राम जी को देश के स्वतन्त्रता आन्दोलनों में भाग लेने तथा अपने भाषणों में महाभारत के उद्धरणों का प्रयोग करने के कारण अंग्रेज़ों ने उनके गाँव फिल्लौर से देश निकला दे दिया था।

श्री श्रद्धा राम फिल्लौरी का स्वर्गवास मात्र 44 वर्ष की अल्पायु में 24 जून 1881 को लाहौर में हुआ।


October 17, 2011

आयुर्वेद – स्वास्थ्य रक्षा की हिन्दू पद्धति

•“आयुर्वेद” शब्द “आयुः” और “वेद” शब्दों की संधि से बना है। “आयुः” का अर्थ है “अवस्था, उम्र, जीवन” और “वेद” का अर्थ है “ज्ञान”, अतः “आयुर्वेद का अर्थ हुआ “आयु से सम्बंधित ज्ञान”।


•आयुर्वेद को स्वास्थ्य रक्षा हेतु हिन्दू पद्धति माना जाता है।

•भारत, नेपाल, श्रीलंका आदि देशों के अनगिनत लोग आयुर्वेद पर ही विश्वास रखते हैं। व्यापक रूप से इसे हमारे ग्रह की अनवरत रूप से चलने वाली औषधि प्रणाली, जिसका उद्गम वैदिक काल से भी पहले ईसा पूर्व 5000 में हुआ था, माना जाता है।

•पौराणिक कथाओं के अनुसार आयुर्वेद के समस्त श्लोक स्वयं भगवान ब्रह्मा के मुख से निकले थे अर्थात् वे ब्रह्मवाक्य हैं।

•परम्परा के अनुसार, आयुर्वेद का प्रथम वर्णन अग्निवेश लिखित “अग्निवेश तंत्र” के रूप में हुआ। कालान्तर में महर्षि चरक ने इसे पुनः लिखा और इसका नाम “चरक संहिता” पड़ा।

•आयुर्वेद का एक अन्य मुख्य ग्रंथ सुश्रुत संहिता है जिसे कि भगवान धन्वन्तरि के प्रमुख शिष्य सुश्रुत ने ईसा पूर्व लगभग 1000 में लिखा था। सुश्रुत को “शल्य चिकित्सा” के जनक के रूप में माना जाता है और “सुश्रुत संहिता” में भगवान धन्वन्तरि के द्वारा बताये गये शल्य चिकित्सा की विधियों, जिन्हें कि सुश्रुत ने अपने अनुभवों और भी परिमार्जित किया, का वर्णन है। चरक संहिता और सुश्रुत संहिता दोनों ही ग्रंथ भारत के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों, तक्षशिला और नालंदा, में पाठ्यक्रम के रूप में सम्मिलित थे।

•यद्यपि आयुर्वेद का प्रतिपादन प्राचीन काल में हुआ किन्तु मध्यकाल में अनेकों विद्वानों ने उसका और अधिक विकास किया। चरक और सुश्रुत के बाद 7वीं शताब्दी के विद्वान वाग्भट, जिन्होंने “आयुर्वेद” ग्रंथ की रचना की, को आयुर्वेद का महान विद्वान माना जाता है। आयुर्वेद के एक अन्य जाने माने विद्वान हैं 8वीं शताब्दी के माधव जिन्होंने “निदान” ग्रंथ लिख कर उसके 79 सर्गों में अनेकों रोगों, उनके लक्षणों, कारणों, जटिलताओं आदि को सूचीबद्ध किया।

•पश्चिमी दिग्गजों के द्वारा उनकी चिकित्सा प्रणाली के विकास के लिये उसमें आयुर्वद के सार तत्वों को जोड़ने का भी प्रयास किया जा रहा है।

•आयुर्वेद की शिक्षा के लिये अमेरिका में 26 तथा यूरोप में भी दर्जनों स्कूल कार्यरत हैं।

आयुर्वेद

आँवला (Amla)

स्वाद में कसैला किन्तु स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यन्त गुणकारी!
आँवला माता के सदृष हमारा पोषण करने वाला फल है इसलिए इसे “धातृ फल” नाम दिया गया है। आयुर्वेद आँवले का गुणगाण करते जरा भी थकता नहीं है।
आँवला अत्यन्त शीतल तासीर वाला फल है। अपनी शीतलता से यह मनुष्य के दिमाग को शान्त रखते के साथ ही शक्ति भी प्रदान करता है। आँवले का नियमित सेवन करना स्‍मरण शक्ति को बढ़ाने में सहायक होता है।
आयुर्वेद में उदर से सम्बन्धित रोगों के लिए आँवले को रामबाण माना गया है। आँवले के चूर्ण को शहद के साथ मिला कर चाटने सेपेट व गले की जलन, खाना न पचना, खट्टी डकार, गैस व कब्‍ज आदि रोग दूर होते हैं।
त्वचा सम्बन्धी रोगों के लिए आँवले का सेवन अत्यन्त लाभकारी है, त्वचा स्वस्थ बनी रहती है।
आँवला स्नायु तंत्र को मजबूती प्रदान करता है तथा सौन्दर्य में वृद्धि करता है।
आँवले के सेवन से नये खून का निर्माण होता है रक्त सम्बन्धी समस्त विकार दूर होते हैं। आँवला हानिकारक टॉक्सिन को शरीर से बाहर निकालता है और रक्त को साफ करता है। गर्भावस्‍था में आँवला रक्‍त की कमी को दूर करता है।
आँवला यौवन शक्ति प्रदान करता है तथा आँवले का नियमित सेवन वृद्धावस्था को पास ही नहीं फटकने देता।
प्रतिदिन एक बड़ा चम्‍मच आँवले का रस शहद के साथ मिलाकर चाटने से मोतियाबिन्‍द में लाभ होता है।
रात को सोने से पहले आँवला खाने से पेट में हानिकारक तत्व इकट्ठे नहीं हो पाते तथा पेट साफ रहता है।
मूत्र सम्बन्धी परेशानी में भी आँवले का सेवन लाभकारी होता है।
दाँत व मसूड़ों में तकलीफ होने पर एक कच्चा आँवला नियमित रूप से खाने पर अवश्य ही लाभ होता है।
आँवला कफ को निकालता है।
आँवले का मुरब्बा शक्तिदायक होता है। आँवला एक अंण्डे से अधिक बल देता है।
ब्लडप्रेशर वालों के लिये आँवला बहुत फायदेमंद है।
शहद के साथ आँवले के रस का सेवन मधुमेह में लाभकारी है।
आँवले का रस पीने से नेत्र ज्योति बढ़ती है।
आँवले के चूर्ण का उबटन चेहरे पर लगाने से चेहरा साफ होता है और दाग धब्बे दूर होते हैं।

तुलसी –

•तुलसी आयुर्वेदिक चिकित्सा की एक प्रमुख औषधि है।


•विभिन्न औषधीय गुणों के निहित होने के कारण भारत में तुलसी का प्रयोग हजारों वर्षों से किया जा रहा है।

•तनाव दूर करने में तुलसी अत्यन्त सहायक है।

•सर्दी-जुकाम, सरदर्द, उदर तथा हृदय से सम्बंधित व्याधियों के उपचार के लिये तुलसी के रस का औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।

•तुलसी का प्रयोग अनेकों प्रकार से किया जा सकता है जैसे कि काढ़ा या चाय के रूप में, चूर्ण या पाउडर के रूप में, ताजी पत्ती के रूप में या घी मिला कर।

•भारत में तुलसी का धार्मिक महत्व है तथा देवी के रूप में इसकी पूजा की जाती है।

•हिन्दू धर्म में तुलसी नाम को अतुलनीय माना जाता है।

•तुलसी को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है तथा प्रतिवर्ष भगवान विष्णु के साथ तुलसी विवाह का त्यौहार भी मनाया जाता है।

उपचार



•आँख: आँख की अनेकों बीमारियों के लिये तुलसी का रस बहुत फायदेमंद है।

•दांत व मसूढ़े: तुलसी के पत्तों का चूर्ण संवेदनशील दांतों तथा मसूढ़ों के लिये अत्यधिक लाभदायक है।

•दंश: एंटी एलर्जिक गुण होने के कारण तुलसी के रस का प्रयोग सर्व व जहरीले कीड़ों के दंश के उपचार में किया जाता है।

•तनाव: प्रतिदिन तुलसी के 4-5 पत्ते चबाने से तनाव दूर होता है।

•माइग्रेन: तुलसी के पत्तों को कूट-पीस कर पेस्ट बनायें तथा मस्तक पर लेप करें, माइग्रेन में अवश्य फायदा होगा।


अश्वगंधा

अश्वगंधा, जिसे कि विन्टर चेरी भी कहा जाता है, एक अत्यन्त लोकप्रिय आयुर्वेदिक औषधि है। वनस्पति शास्त्र में इसे “withania somnifera” के नाम से जाना जाता है। अश्वगंधा का प्रयोग तनाव मुक्ति के लिये किया जाता है। अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि अश्वगंधा में “एन्टी इंफ्लेमेटरी”, “एंट ट्यूमर”, “एंटी स्ट्रेस” तथा “एंटीआक्सीडेंट” गुण पाये जाते हैं।


•आयुर्वेद में अश्वगंधा को एक ऐसा रसायन माना जाता है जो कि स्वास्थ्य तथा आयु में वृद्धिकारक है।

•अश्वगंधा मनोवैज्ञानिक क्रियाओं को सामान्य बनाये रखता है।

•अश्वगंधा के जड़ तथा फलियों को आयुर्वेदिक औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।

•भारत में अश्वगंधा का प्रयोग प्रायः मानसिक कमियों को दूर करने के लिये किया जाता है।

घृतकुमारी (घीक्वार – Aloe Vera)
घृतकुमारी, जिसे घीक्वार भी कहा जाता है, एक अनगिनत गुणों वाली आयुर्वेदिक औषधि है। घृतकुमारी का वनस्पति शास्त्रीय नाम “एलो वेरा” (Aloe Vera) है। अपने आर्द्रताकारी (moisturizing) तथा उम्रवृद्धिकारक गुणों के कारण बहुधा इसका प्रयोग स्किन लोशन के रूप में किया जाता है। रक्तसंचरण तंत्र, लीव्हर, प्लीहा आदि के लिये घृतकुमारी अत्यन्त लाभदायक है। पाचनशक्ति बढ़ाने तथा उदर सम्बंधी अनेकों रोगों के उपचार में भी यह बहुत प्रभावशील है।

उपचार
जलने, कटने तथा घाव में
•घृतकुमारी के पत्ते का गूदा जलने, कटने तथा घाव वाले स्थान में लगायें, तत्काल राहत अनुभव करेंगे।

फोड़े तथा छालों में
•एक चम्मच हल्दी में घृतकुमारी के पत्तों का गूदा मिला कर प्रभावित त्वचा में लगायें और पट्टी बांध दें।

त्वचा रोगों में
•घृतकुमारी के पत्तों के गूदा को प्रभवित त्वचा में लेप करने से त्वचा रोगों में अपेक्षित लाभ मिलता है।

•घृतकुमारी के पत्तों का गूदा प्रतिदिन 1-2 चम्मच खाने से बहुत फायदा मिलता है।

कब्ज में
•घृतकुमारी के पत्तों का गूदा प्रतिदिन 1-2 चम्मच खाने से बहुत फायदा मिलता है।

सावधानी: गर्भवती औरतों और पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिये घृतकुमारी के आन्तरिक सेवन करने की सख्त मनाही है।

हिन्दी कहावतें तथा लोकोक्तियाँ

बाँझ का जाने प्रसव की पीड़ा


अर्थः पीड़ा को सहकर ही समझा जा सकता है।

बाड़ ही जब खेत को खाए तो रखवाली कौन करे

अर्थः रक्षक का भक्षक हो जाना।

बाप भला न भइया, सब से भला रूपइया

अर्थः धन ही सबसे बड़ा होता है।

बाप न मारे मेढकी, बेटा तीरंदाज़

अर्थः छोटे का बड़े से बढ़ जाना।

बाप से बैर, पूत से सगाई

अर्थः पिता से दुश्मनी और पुत्र से लगाव।

बारह गाँव का चौधरी अस्सी गाँव का राव, अपने काम न आवे तो ऐसी-तैसी में जाव

अर्थः बड़ा होकर यदि किसी के काम न आए, तो बड़प्पन व्यर्थ है।

बारह बरस पीछे घूरे के भी दिन फिरते हैं

अर्थः एक न एक दिन अच्छे दिन आ ही जाते हैं।

बासी कढ़ी में उबाल नहीं आता

अर्थः काम करने के लिए शक्ति का होना आवश्यक होता है।

बासी बचे न कुत्ता खाय

अर्थः जरूरत के अनुसार ही सामान बनाना।

बिंध गया सो मोती, रह गया सो सीप

अर्थः जो वस्तु काम आ जाए वही अच्छी।

बिच्छू का मंतर न जाने, साँप के बिल में हाथ डाले

अर्थः मूर्खतापूर्ण कार्य करना।

बिना रोए तो माँ भी दूध नहीं पिलाती

अर्थः बिना यत्न किए कुछ भी नहीं मिलता।

बिल्ली और दूध की रखवाली?

अर्थः भक्षक रक्षक नहीं हो सकता।

बिल्ली के सपने में चूहा

अर्थः जरूरतमंद को सपने में भी जरूरत की ही वस्तु दिखाई देती है।

बिल्ली गई चूहों की बन आयी

अर्थः डर खत्म होते ही मौज मनाना।

बीमार की रात पहाड़ बराबर

अर्थः खराब समय मुश्किल से कटता है।

बुड्ढी घोड़ी लाल लगाम

अर्थः वय के हिसाब से ही काम करना चाहिए।

बुढ़ापे में मिट्टी खराब

अर्थः बुढ़ापे में इज्जत में बट्टा लगना।

बुढि़या मरी तो आगरा तो देखा

अर्थः प्रत्येक घटना के दो पहलू होते हैं – अच्छा और बुरा।

लिखे ईसा पढ़े मूसा

अर्थः गंदी लिखावट।

लेना एक न देना दो

अर्थः कुछ मतलब न रखना।

लोहा लोहे को काटता है

अर्थः प्रत्येक वस्तु का सदुपयोग होता है।

वहम की दवा हकीम लुकमान के पास भी नहीं है

अर्थः वहम सबसे बुरा रोग है।

विष को सोने के बरतन में रखने से अमृत नहीं हो जाता

अर्थः किसी चीज़ का प्रभाव बदल नहीं सकता।

शैकीन बुढि़या मलमल का लहँगा

अर्थः अजीब शौक करना।

शक्करखोरे को शक्कर मिल ही जाता है

अर्थः जुगाड़ कर लेना।

सकल तीर्थ कर आई तुमडि़या तौ भी न गयी तिताई

अर्थः स्वाभाव नहीं बदलता।

सख़ी से सूम भला जो तुरन्त दे जवाब

अर्थः लटका कर रखनेवाले से तुरन्त इंकार कर देने वाला अच्छा।

सच्चा जाय रोता आय, झूठा जाय हँसता आय

अर्थः सच्चा दुखी, झूठा सुखी।

सबेरे का भूला सांझ को घर आ जाए तो भूला नहीं कहलाता

अर्थः गलती सुधर जाए तो दोष नहीं कहलाता।

समय पाइ तरूवर फले केतिक सीखे नीर

अर्थः काम अपने समय पर ही होता है।

समरथ को नहिं दोष गोसाई

अर्थः समर्थ आदमी का दोष नहीं देखा जाता।

ससुराल सुख की सार जो रहे दिना दो चार

अर्थः रिश्तेदारी में दो चार दिन ठहरना ही अच्छा होता है।

सहज पके सो मीठा होय

अर्थः धैर्य से किया गया काम सुखकर होता है।

साँच को आँच नहीं

अर्थः सच्चे आदमी को कोई खतरा नहीं होता।

साँप के मुँह में छछूँदर

अर्थः कहावत दुविधा में पड़ना।

साँप निकलने पर लकीर पीटना

अर्थः अवसर बीत जाने पर प्रयास व्यर्थ होता है।

सारी उम्र भाड़ ही झोका

अर्थः कुछ भी न सीख पाना।

सारी देग में एक ही चावल टटोला जाता है

अर्थः जाँच के लिए थोड़ा सा नमूना ले लिया जाता है।

सावन के अंधे को हरा ही हरा सूझता है

अर्थः परिस्थिति को न समझना।

सावन हरे न भादों सूखे

अर्थः सदा एक सी दशा।

मुँह में राम बगल में छुरी

अर्थः ऊपर से मित्र भीतर से शत्रु।

मुँह माँगी मौत नहीं मिलती

अर्थः अपनी इच्छा से कुछ नहीं होता।

मुफ्त की शराब काज़ी को भी हलाल

अर्थः मुफ्त का माल सभी ले लेते हैं।

मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक

अर्थः सीमित दायरा।

मोरी की ईंट चौबारे पर

अर्थः छोटी चीज का बड़े काम में लाना।

म्याऊँ के ठोर को कौन पकड़े

अर्थः कठिन काम कोई नहीं करना चाहता।

यह मुँह और मसूर की दाल

अर्थः औकात का न होना।

रंग लाती है हिना पत्थर पे घिसने के बाद

अर्थः दु:ख झेलकर ही आदमी का अनुभव और सम्मान बढ़ता है।

रस्सी जल गई पर ऐंठ न गई

अर्थः घमण्ड का खत्म न होना।

राजा के घर मोतियों का अकाल?

अर्थः समर्थ को अभाव नहीं होता।

रानी रूठेगी तो अपना सुहाग लेगी

अर्थः रूठने से अपना ही नुकसान होता है।

राम की माया कहीं धूप कहीं छाया

अर्थः कहीं सुख है तो कहीं दुःख है।

राम मिलाई जोड़ी, एक अंधा एक कोढ़ी

अर्थः बराबर का मेल हो जाना।

राम राम जपना पराया माल अपना

अर्थः ऊपर से भक्त, असल में ठग।

रोज कुआँ खोदना, रोज पानी पीना

अर्थः रोज कमाना रोज खाना।

रोगी से बैद

अर्थः भुक्तभोगी अनुभवी हो जाता है।

लड़े सिपाही नाम सरदार का

अर्थः काम का श्रेय अगुवा को ही मिलता है।

लड्डू कहे मुँह मीठा नहीं होता

अर्थः केवल कहने से काम नहीं बन जाता।

लातों के भूत बातों से नहीं मानते

अर्थः मार खाकर ही काम करने वाला।

लाल गुदड़ी में नहीं छिपते

अर्थः गुण नहीं छिपते।

मछली के बच्चे को तैरना कौन सिखाता है

अर्थः गुण जन्मजात आते हैं।

मजनू को लैला का कुत्ता भी प्यारा

अर्थः प्रेयसी की हर चीज प्रेमी को प्यारी लगती है।

मतलबी यार किसके, दम लगाया खिसके

अर्थः स्वार्थी व्यक्ति को अपना स्वार्थ साधने से काम रहता है।

मन के लड्ड़ओं से भूख नहीं मिटती

अर्थः इच्छा करने मात्र से ही इच्छापूर्ति नहीं होती।

मन चंगा तो कठौती में गंगा

अर्थः मन की शुद्धता ही वास्तंविक शुद्धता है।

मरज़ बढ़ता गया ज्यों- ज्यों इलाज करता गया

अर्थः सुधार के बजाय बिगाड़ होना।

मरता क्या न करता

अर्थः मजबूरी में आदमी सब कुछ करना पड़ता है।

मरी बछिया बाभन के सिर

अर्थः व्यर्थ दान।

मलयागिरि की भीलनी चंदन देत जलाय

अर्थः बहुत अधिक नजदीकी होने पर कद्र घट जाती है।

माँ का पेट कुम्हार का आवा

अर्थः संताने सभी एक-सी नहीं होती।

माँगे हरड़, दे बेहड़ा

अर्थः कुछ का कुछ करना।

मान न मान मैं तेरा मेहमान

अर्थः ज़बरदस्ती का मेहमान।

मानो तो देवता नहीं तो पत्थर

अर्थः माने तो आदर, नहीं तो उपेक्षा।

माया से माया मिले कर-कर लंबे हाथ

अर्थः धन ही धन को खींचता है।

माया बादल की छाया

अर्थः धन-दौलत का कोई भरोसा नहीं ।

मार के आगे भूत भागे

अर्थः मार से सब डरते हैं।

मियाँ की जूती मियाँ का सिर

अर्थः दुश्मन को दुश्मन के हथियार से मारना।

मिस्सों से पेट भरता है किस्सों से नहीं

अर्थः बातों से पेट नहीं भरता।

मीठा-मीठा गप, कड़वा-कड़वा थू-थू

अर्थः मतलबी होना।

पाँच पंच मिल कीजे काजा, हारे-जीते कुछ नहीं लाजा

अर्थः मिलकर काम करने पर हार-जीत की जिम्मेदारी एक पर नहीं आती।

पाँचों उँगलियाँ घी में

अर्थः चौतरफा लाभ।

पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं

अर्थः सब आदमी एक जैसे नहीं होते।

पागलों के क्या् सींग होते हैं

अर्थः पागल भी साधारण मनुष्य होता है।

पानी केरा बुलबुला अस मानुस के जात

अर्थः जीवन नश्वर है।

पानी पीकर जात पूछते हो

अर्थः काम करने के बाद उसके अच्छे-बुरे पहलुओं पर विचार करना।

पाप का घड़ा डूब कर रहता है

अर्थः पाप जब बढ़ जाता है तब विनाश होता है।

पिया गए परदेश, अब डर काहे का

अर्थः जब कोई निगरानी करने वाला न हो , तो मौज उड़ाना।

पीर बावर्ची भिस्ती खर

अर्थः किसी एक के द्वारा ही सभी तरह के काम करना।

पूत के पाँव पालने में पहचाने जाते हैं

अर्थः वर्तमान लक्षणों से भविष्य का अनुमान लग जाता है।

पूत सपूत तो का धन संचय, पूत कपूत तो का धन संचय

पूत स्वयं कमा लेगा, कपूत संचित धन को उड़ा देगा।

पूरब जाओ या पच्छिम, वही करम के लच्छन

अर्थः स्थान बदलने से भाग्य और स्व‍भाव नहीं बदलता।

पेड़ फल से जाना जाता है

अर्थः कर्म का महत्व उसके परिणाम से होता है।

प्यासा कुएँ के पास जाता है

अर्थः बिना परिश्रम सफलता नहीं मिलती।

फिसल पड़े तो हर गंगे

अर्थः बहाना करके अपना दोष छिपाना।

बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद

अर्थः ज्ञान न होना।

बकरे की जान गई खाने वाले को मज़ा नह आया

अर्थः भारी काम करने पर भी सराहना न मिलना।

बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है

अर्थः शक्तिशाली व्यक्ति निर्बल को दबा लेता है।

बड़े बरतन का खुरचन भी बहुत है

अर्थः जहाँ बहुत होता है वहाँ घटते-घटते भी काफी रह जाता है।

बड़े बोल का सिर नीचा

अर्थः घमंड करने वाले को नीचा देख्‍ाना पड़ता है।

बनिक पुत्र जाने कहा गढ़ लेवे की बात

अर्थः छोटा आदमी बड़ा काम नहीं कर सकता।

बनी के सब यार हैं

अर्थः अच्छे दिनों में सभी दोस्त बनते हैं।

बरतन से बरतन खटकता ही है

अर्थः जहाँ चार लोग होते हैं वहाँ कभी अनबन हो सकती है।

बहती गंगा में हाथ धोना

अर्थः मौके का लाभ उठाना।

नीचे की साँस नीचे, ऊपर की साँस ऊपर

अर्थः अत्यधिक घबराहट की स्थिति।

नीचे से जड़ काटना,ऊपर से पानी देना

अर्थः ऊपर से मित्र, भीतर से शत्रु।

नीम हकीम खतरा-ए-जान

अर्थः अनुभवहीन व्याक्ति के हाथों काम बिगड़ सकता है।

नेकी और पूछ-पूछ

अर्थः भलाई का काम।

नौ दिन चले अढ़ाई कोस

अर्थः अत्यन्त मंद गति से कार्य करना।

नौ नकद, न तेरह उधार

अर्थः नकद का काम उधार के काम से अच्छा।

नौ सौ चूहे खा के बिल्ली हज को चली

अर्थः जीवन भर कुकर्म करके अन्त में भला बनना।

पंच कहे बिल्ली तो बिल्ली‍ ही सही

अर्थः सबकी राय में राय मिलाना।

पंचों का कहना सिर माथे पर, परनाला वहीं रहेगा

अर्थः दूसरों की सुनकर भी अपने मन की करना।

पकाई खीर पर हो गया दलिया

अर्थः दुर्भाग्य।

पगड़ी रख, घी चख

अर्थः मान-सम्मान से ही जीवन का आनंद है।

पढ़े तो हैं पर गुने नहीं

अर्थः पढ़- लिखकर भी अनुभवहीन।

पढ़े फारसी बेचे तेल

अर्थः गुणवान होने पर भी दुर्भाग्यवश छोटा काम मिलना।

पत्थर को जोंक नहीं लगती

अर्थः निर्दय आदमी दयावान नहीं बन सकता।

पत्थर मोम नहीं होता

अर्थः निर्दय आदमी दयावान नहीं बन सकता।

पराया घर थूकने का भी डर

अर्थः दूसरे के घर में संकोच रहता है।

पराये धन पर लक्ष्मीनारायण

अर्थः दूसरे के धन पर गुलछर्रें उड़ाना।

पहले तोलो, फिर बोलो

अर्थः समझ-सोचकर मुँह खोलना चाहिए।

नंगा बड़ा परमेश्वर से

अर्थः निर्लज्ज से सब डरते हैं।

नंगा क्या नहाएगा क्या निचोड़ेगा

अर्थः अत्यन्त निर्धन होना।

नंगे से खुदा डरे

अर्थः निर्लज्ज से भगवान भी डरते हैं।

न अंधे को न्योता देते न दो जने आते

अर्थः गलत फैसला करके पछताना।

न इधर के रहे, न उधर के रहे

अर्थः दुविधा में रहने से हानि ही होती है।

नकटा बूचा सबसे ऊँचा

अर्थः निर्लज्ज से सब डरते हैं इसलिए वह सबसे ऊँचा होता है।

नक्कारखाने में तूती की आवाज

अर्थः महत्व न मिलना।

नदी किनारे रूखड़ा जब-तब होय विनाश

अर्थः नदी के किनारे के वृक्ष का कभी भी नाश हो सकता है।

न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी

अर्थः ऐसी परिस्थिति जिसमें काम न हो सके।

नमाज़ छुड़ाने गए थे, रोज़े गले पड़े

अर्थः छोटी मुसीबत से छुटकारा पाने के बदले बड़ी मुसीबत में पड़ना।

नया नौ दिन पुराना सौ दिन

अर्थः साधारण ज्ञान होने से अनुभव होने का अधिक महत्व होता है।

न रहेगा बॉंस, न बजेगी बाँसुरी

अर्थः ऐसी परिस्थिति जिसमें काम न हो सके।

नाई की बरात में सब ही ठाकुर

अर्थः सभी का अगुवा बनना।

नाक कटी पर घी तो चाटा

अर्थः लाभ के लिए निर्लज्ज हो जाना।

नाच न जाने आँगन टेढ़ा

अर्थः बहाना करके अपना दोष छिपाना।

नानी के आगे ननिहाल की बातें

अर्थः बुद्धिमान को सीख देना।

नानी के टुकड़े खावे, दादी का पोता कहावे

अर्थः खाना किसी का, गाना किसी का।

नानी क्वाँरी मर गई, नाती के नौ-नौ ब्याह

अर्थः झूठी बड़ाई।

नाम बड़े दर्शन छोटे

अर्थः झूठा दिखावा।

नाम बढ़ावे दाम

अर्थः किसी चीज का नाम हो जाने से उसकी कीमत बढ़ जाती है।

नामी चोर मारा जाए, नामी शाह कमाए खाए

अर्थः बदनामी से बुरा और नेकनामी से भला होता है।

दीवार के भी कान होते हैं

अर्थः सतर्क रहना चाहिए।

दुधारू गाय की लात सहनी पड़ती है

अर्थः जिससे लाभ होता है, उसकी धौंस भी सहनी पड़ती है।

दुनिया का मुँह किसने रोका है

अर्थः बोलने वालों की परवाह नहीं करनी चाहिए।

दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम

अर्थः दुविधा में पड़ने से कुछ भी नहीं मिलता।

दूल्हा को पत्त़ल नहीं, बजनिये को थाल

अर्थः बेतरतीब काम करना।

दूध का दूध पानी का पानी

अर्थः न्याय होना।

दूध पिलाकर साँप पोसना

अर्थः शत्रु का उपकार करना।

दूर के ढोल सुहावने

अर्थः देख परख कर ही सही गलत का ज्ञान करना।

दूसरे की पत्तल लंबा-लंबा भात

अर्थः दूसरे की वस्तु् अच्छी लगती है।

देसी कुतिया विलायती बोली

अर्थः दिखावा करना।

देह धरे के दण्ड हैं

अर्थः शरीर है तो कष्ट भी होगा।

दोनों हाथों में लड्डू

अर्थः सभी प्रकार से लाभ ही लाभ।

दो लड़े तीसरा ले उड़े

अर्थः दो की लड़ाई में तीसरे का लाभ होना।

धनवंती को काँटा लगा दौड़े लोग हजार

अर्थः धनी आदमी को थोड़ा सा भी कष्ट हो तो बहुत लोग उनकी सहायता को आ जाते हैं।

धन्ना सेठ के नाती बने हैं

अर्थः अपने को अमीर समझना।

धर्म छोड़ धन कौन खाए

अर्थः धर्मविरूद्ध कमाई सुख नहीं देती।

धूप में बाल सफ़ेद नहीं किए हैं

अर्थः अनुभवी होना।

धोबी का गधा घर का ना घाट का

अर्थः कहीं भी इज्जत न पाना।

धोबी पर बस न चला तो गधे के कान उमेठे

अर्थः शक्तिशाली पर आने वाले क्रोध को निर्बल पर उतारना।

धोबी के घर पड़े चोर, लुटे कोई और

अर्थः धोबी के घर चोरी होने पर कपड़े दूसरों के ही लुटते हैं।

धोबी रोवे धुलाई को, मियाँ रोवे कपड़े को

अर्थः सब अपने ही नुकसान की बात करते हैं।

तबेले की बला बंदर के सिर

अर्थः अपना अपराध दूसरे के सिर मढ़ना।

तन को कपड़ा न पेट को रोटी

अर्थः अत्यन्त दरिद्र।

तलवार का खेत हरा नहीं होता

अर्थः अत्याचार का फल अच्छा नहीं होता।

ताली दोनों हाथों से बजती है

अर्थः केवल एक पक्ष होने से लड़ाई नहीं हो सकती।

तिरिया बिन तो नर है ऐसा, राह बटाऊ होवे जैसा

अर्थः स्त्री के बिना पुरूष अधूरा होता है।

तीन बुलाए तेरह आए, दे दाल में पानी

अर्थः समय आ पड़े तो साधन निकाल लेना पड़ता है।

तीन में न तेरह में

अर्थः निष्पक्ष होना।

तेरी करनी तेरे आगे, मेरी करनी मेरे आगे

अर्थः सबको अपने-अपने कर्म का फल भुगतना ही पड़ता है।

तुम्हारे मुँह में घी शक्कर

अर्थः शुभ सन्देश।

तुरत दान महाकल्याण,

अर्थः काम को तत्काल निबटाना।

तू डाल-डाल मैं पात-पात

अर्थः चालाक के साथ चालाकी चलना।

तेल तिलों से ही निकलता है

अर्थः सामर्थ्यवान व्यक्ति से ही प्राप्ति होती है।

तेल देखो तेल की धार देखो

अर्थः धैर्य से काम लेना।

तेल न मिठाई, चूल्हे धरी कड़ाही

अर्थः दिखावा करना।

तेली का तेल जले, मशालची की छाती फटे

अर्थः दान कोई करे कुढ़न दूसरे को हो।

तेली के बैल को घर ही पचास कोस

अर्थः घर में रहने पर भी अक्ल का अंधा कष्ट ही भोगता है।

तेली खसम किया, फिर भी रूखा खाया

अर्थः सामर्थ्यतवान की शरण में रहकर भी दु:ख उठाना।

झूठ के पाँव नहीं होते

अर्थः झूठा आदमी अपनी बात पर खरा नहीं उतरता।

झोपड़ी में रहें, महलों के ख्वाब देखें

अर्थः अपनी सामर्थ्य से बढ़कर चाहना।

टके का सब खेल है

अर्थः धन सब कुछ करता है।

ठंडा करके खाओ

अर्थः धीरज से काम करो।

ठंडा लोहा गरम लोहे को काट देता है

अर्थः शान्त व्याक्ति क्रोधी को झुका देता है।

ठोक बजा ले चीज, ठोक बजा दे दाम

अर्थः अच्छी वस्तु का अच्छा दाम।

ठोकर लगे तब आँख खुले

अर्थः अक्ल अनुभव से आती है।

डण्डा सब का पीर

अर्थः सख्ती करने से लोग काबू में आते हैं।

डायन को दामाद प्यारा

अर्थः खराब लोगों को भी अपने प्यारे होते हैं।

डूबते को तिनके का सहारा

अर्थः विपत्ति में थोड़ी सी सहायता भी काफी होती है।

ढाक के तीन पात

अर्थः अपनी बात पर अड़े रहना।

ढोल के भीतर पोल

अर्थः झूठा दिखावा करने वाला।

तख्त या तख्ता

अर्थः या तो उद्देश्य की प्राप्ति हो या स्वयं मिट जाएँ।

जर जाए, घी न जाए

अर्थः महाकृपण।

जरती मक्खी नहीं निगली जाती

अर्थः जानते बूझते गलत काम नहीं किया जा सकता।

जीभ भी जली और स्वाद भी न आया

अर्थः कष्ट सहकर भी उद्देश्य पूर्ति न होना।

जूठा खाए मीठे के लालच

अर्थः लाभ के लालच में नीच काम करना।

जैसा करोगे वैसा भरोगे

अर्थः जैसा काम करोगे वैसा ही फल मिलेगा।

जैसा बोवोगे वैसा काटोगे

अर्थः जैसा काम करोगे वैसा ही फल मिलेगा।

जैसा मुँह वैसा थप्पड़

अर्थः जो जिसके योग्य हो उसको वही मिलता है।

जैसा राजा वैसी प्रजा

अर्थः राजा नेक तो प्रजा भी नेक, राजा बद तो प्रजा भी बद।

जैसी करनी वैसी भरनी

अर्थः जैसा काम करोगे वैसा ही फल मिलेगा।

जैसे तेरी बाँसुरी, वैसे मेरे गीत

अर्थः गुण के अनुसार ही प्राप्ति होती है।

जैसे कंता घर रहे वैसे रहे परदेश

अर्थः निकम्मा आदमी घर में रहे या बाहर कोई अंतर नहीं।

जैसे नागनाथ वैसे साँपनाथ

अर्थः दुष्ट लोग एक जैसे ही होते हैं।

जो गरजते हैं वो बरसते नहीं

अर्थः डींग हाँकनेवाले काम के नहीं होते हैं।

जोगी का बेटा खेलेगा तो साँप से

अर्थः बाप का प्रभाव बेटे पर पड़ता है।

जो गुड़ खाए सो कान छिदाए

अर्थः लाभ पाने वाले को कष्ट सहना ही पड़ता है।

जो तोको काँटा बुवे ताहि बोइ तू फूल

अर्थः बुराई का बदला भी भलाई से दो।

जो बोले सों घी को जाए

अर्थः बड़बोलेपन से हानी ही होती है।

जो हाँडी में होगा वह थाली में आएगा

अर्थः जो मन है वह प्रकट होगा ही।

ज्यों-ज्यों भीजे कामरी त्यों-त्यों भारी होय

अर्थः (1) पद के अनुसार जिम्मेदारियाँ भी बढ़ती जाती हैं। (2) उधारी को छूटते ही रहना चाहिए अन्यथा ब्याज बढ़ते ही जाता है।

जहँ जहँ पैर पड़े संतन के, तहँ तहँ बंटाधार

अर्थः अभागा व्यक्ति जहाँ भी जाता है बुरा होता है।

जहाँ गुड़ होगा, वहीं मक्खियाँ होंगी

अर्थः धन प्राप्त होने पर खुशामदी अपने आप मिल जाते हैं।

जहाँ चार बर्तन होंगे, वहाँ खटकेंगे भी

अर्थः सभी का मत एक जैसा नहीं हो सकता।

जहाँ चाह है वहाँ राह है

अर्थः काम के प्रति लगन हो तो काम करने का रास्ता निकल ही आता है।

जहाँ देखे तवा परात, वहाँ गुजारे सारी रात

अर्थः जहाँ कुछ प्राप्ति की आशा दिखे वहीं जम जाना।

जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि

अर्थः कवि की कल्पना की पहुँच सर्वत्र होती है।

जहाँ फूल वहाँ काँटा

अर्थः अच्छाई के साथ बुराई भी होती ही है।

जहाँ मुर्गा नहीं होता, क्या वहाँ सवेरा नहीं होता

अर्थः किसी के बिना किसी का काम रूकता नहीं है।

जाके पैर न फटी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई

अर्थः दु:ख को भुक्तभोगी ही जानता है।

जागेगा सो पावेगा,सोवेगा सो खोएगा

अर्थः हमेशा सतर्क रहना चाहिए।

जादू वह जो सिर पर चढ़कर बोले

अर्थः अत्यन्त प्रभावशाली होना।

जान मारे बनिया पहचान मारे चोर

अर्थः बनिया और चोर जान पहचान वालों को ठगते हैं।

जाए लाख, रहे साख

अर्थः धन भले ही चला जाए, इज्जत बचनी चाहिए।

जितना गुड़ डालोगे, उतना ही मीठा होगा

अर्थः जितना अधिक लगाओगे उतना ही अच्छा पाओगे।

जितनी चादर हो, उतने ही पैर पसारो

अर्थः आमदनी के हिसाब से खर्च करो।

जितने मुँह उतनी बातें

अर्थः अस्पष्ट होना।

जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैंठ

अर्थः परिश्रम करने वाले को ही लाभ होता है।

जिस थाली में खाना, उसी में छेद करना

अर्थः जो उपकार करे, उसका ही अहित करना।

जिसका काम उसी को साजै

अर्थः जो काम जिसका है वहीं उसे ठीक तरह से कर सकता है।

जिसका खाइए उसका गाइए

अर्थः जिससे लाभ हो उसी का पक्ष लो।

जिसका जूता उसी का सिर

अर्थः दुश्मन को दुश्मन के ही हथियार से मारना।

जिसकी लाठी उसकी भैंस

अर्थः शक्तिशाली ही समर्थ होता है।

जिसके ह‍ाथ डोई, उसका सब कोई

अर्थः धनी आदमी के सभी मित्र होते हैं।

जिसको पिया चाहे, वहीं सुहागिन

अर्थः समर्थ व्यक्ति जिसका चाहे कल्याण कर सकता है।

छलनी कहे सूई से तेरे पेट में छेद

अर्थः अपने अवगुणों को न देखकर दूसरों की आलोचना करना।

छाज (सूप) बोले तो बोले, छलनी भी बोले जिसमें हजार छेद

अर्थः ज्ञानी के समक्ष अज्ञानी का बोलना।

छीके कोई,नाक कटावे कोई

अर्थः किसी के दोष का फल किसी दूसरे के द्वारा भोगना।

छुरी खरबूजे पर गिरे या खरबूजा छुरी पर

अर्थः हर तरफ से हानि हानि होना।

छोटा मुँह बड़ी बात

अर्थः अपनी योग्यता से बढ़कर बात करना।

छोटे मियाँ तो छोटे मियाँ,बड़े मियाँ सुभानअल्लाह

अर्थः छोटे के अवगणों से बड़े के अवगुण अधिक होना।

जंगल में मोर नाचा किसने देखा

अर्थः कद्र न करने वालों के समक्ष योग्यता प्रदर्शन।

जड़ काटते जाएं, पानी देते जाएं

अर्थः भीतर से शत्रु ऊपर से मित्र।

जने-जने की लकड़ी, एक जने का बोझ

अर्थः अकेला व्यक्ति काम पूरा नहीं कर सकता किन्तु सब मिल काम करें तो काम पूरा हो जाता है।

जब चने थे दॉंत न थे, जब दाँत भये तब चने नहीं

अर्थः कभी वस्तु है तो उसका भोग करने वाला नहीं और कभी भोग करने वाला है तो वस्तु नहीं।

जब तक जीना तब तक सीना

अर्थः आदमी को मृत्युपर्यन्त काम करना ही पड़ता है।

जब तक साँस तब तक आस

अर्थः अंत समय तक आशा बनी रहती है।

जबरदस्ती का ठेंगा सिर पर

अर्थः जबरदस्त आदमी दबाव डाल कर काम लेता है ।

जबरा मारे रोने न दे

अर्थः जबरदस्त आदमी का अत्याचार चुपचाप सहन करना पड़ता है।

जबान को लगाम चाहिए

अर्थः सोच-समझकर बोलना चाहिए।

ज़बान ही हाथी चढ़ाए, ज़बान ही सिर कटाए

अर्थः मीठी बोली से आदर और कड़वी बोली से निरादर होता है।

जर का जोर पूरा है, और सब अधूरा है

अर्थः धन में सबसे अधिक शक्ति है।

जर है तो नर नहीं तो खंडहर

अर्थः पैसे से ही आदमी का सम्मान है।

जल में रहकर मगर से बैर

अर्थः जहाँ रहना हो वहाँ के शक्तिशाली व्यक्ति से बैर ठीक नहीं होता ।

जस दूल्हा तस बाराती

अर्थः स्वभाव के अनुसार ही मित्रता होती है।

चींटी की मौत आती है तो उसके पर निकलने लगते हैं

अर्थः घमंड करने से नाश होता है।

चील के घोसले में मांस कहाँ

अर्थः दरिद्र व्यक्ति क्या बचत कर सकता है?

चुड़ैल पर दिल आ जाए तो वह भी परी है

अर्थः पसंद आ जाए तो बुरी वस्तु भी अच्छी ही लगती है।

चुल्लू़ भर पानी में डूब मरना

अर्थः शर्म से डूब जाना।

चुल्लू-चुल्लू साधेगा, दुआरे हाथी बाँधेगा

अर्थः थोड़ा-थोड़ा जमा करके अमीर बना जा सकता है।

चूल्हे की न चक्की की

अर्थः किसी काम न होना।

चूहे का बच्चा बिल ही खोदता है

अर्थः स्वभाव नहीं बदलता।

चूहे के चाम से कहीं नगाड़े मढ़े जाते हैं

अर्थः अपर्याप्त।

चूहों की मौंत बिल्ली का खेल

अर्थः दूसरे को कष्ट देकर मजा लेना।

चोट्टी कुतिया जलेबियों की रखवाली

अर्थः चोर को रक्षा करने के कार्य पर लगाना।

चोर के पैर नहीं होते

अर्थः दोषी व्यक्ति स्वयं फँसता है।

चोर-चोर मौसेरे भाई

अर्थः एक जैसे बदमाशों का मेल हो ही जाता है।

चोर-चोरी से जाए, हेरा-फेरी से न जाए

अर्थः दुष्ट आदमी से पूरी तरह से दुष्टता नहीं छूटती।

चोर लाठी दो जने और हम बाप पूत अकेले

अर्थः शक्तिशाली आदमी से दो व्यक्ति भी हार जाते हैं।

चोर को कहे चारी कर और साह से कहे जागते रहो

अर्थः दो पक्षों को लड़ाने वाला।

चोरी और सीनाजोरी

अर्थः गलत काम करके भी अकड़ दिखाना।

चोरी का धन मोरी में

अर्थः हराम की कमाई बेकार जाती है।

चौबे गए छब्बे बनने, दूबे ही रह गए

अर्थः अधिक लालच करके अपना सब कुछ गवाँ देना।

छछूँदर के सिर में चमेली का तेल

चक्की में कौर डालोगे तो चून पाओगे

अर्थः कुछ पाने के लिए कुछ लगाना ही पड़ता है।

चट मँगनी पट ब्याह

अर्थः त्वरित गति से कार्य होना।

चढ़ जा बेटा सूली पर, भगवान भला करेंगे

अर्थः बिना सोचे विचारे खतरा मोल लेना।

चने के साथ कहीं घुन न पिस जाए

अर्थः दोषी के साथ कहीं निर्दोष न मारा जाए।

चमगादड़ों के घर मेहमान आए, हम भी लटके तुम भी लटको

अर्थः गरीब आदमी क्या आवभगत करेगा।

चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए

अर्थः महा कंजूस।

चमार चमड़े का यार

अर्थः स्वार्थी व्यक्ति।

चरसी यार किसके दम लगाया खिसके

अर्थः स्वार्थी व्यक्ति स्वार्थ सिद्ध होते ही मुँह फेर लेता है।

चलती का नाम गाड़ी

अर्थः कार्य चलते रहना चाहिए।

चाँद को भी ग्रहण लगता है

अर्थः भले आदमी की भी बदनामी हो जाती है।

चाकरी में न करी क्या?

अर्थः नौकरी में मालिक की आज्ञा अवहेलना नहीं की जा सकती।

चार दिन की चाँदनी फिर अँधियारी रात

अर्थः सुख थोड़े ही दिन का होता है।

चिकना मुँह पेट खाली

अर्थः देखने में अच्छा-भला भीतर से दु:खी।

चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता

अर्थः लिर्लज्ज़ आदमी पर किसी बात का असर नहीं पड़ता।

चिकने मुँह को सब चूमते हैं

अर्थः समृद्ध व्यक्ति के सभी यार होते हैं।

चिडिया की जान गई, खाने वाले को मजा न आया

अर्थः भारी काम करने पर भी सराहना न मिलना।

चित भी मेरी पट भी मेरी अंटी मेरे बाबा का

अर्थः हर हालत में अपना ही लाभ देखना।

चिराग तले अँधेरा

अर्थः पास की चीज़ दिखाई न पड़ना।

चिराग में बत्ती और आँख में पट्टी

अर्थः शाम होते ही सोने लगना।

गूदड़ में लाल नहीं छिपता

अर्थः गुण स्वयं ही झलकता है।

गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है

अर्थः दोषी के साथ निदोर्ष भी मारा जाता है।

गोद में बैठकर आँख में उँगली करना/ गोदी में बैठकर दाढ़ी नोचना

अर्थः भलाई के बदले बुराई करना।

गोद में लड़का, शहर में ढिंढोरा

अर्थः पास की वस्तु नजर न आना।

घड़ी भर में घर जले, अढ़ाई घड़ी भद्रा

अर्थः समय पहचान कर ही कार्य करना चाहिए।

घड़ी में तोला, घड़ी में माशा

अर्थः चंचल विचारों वाला।

घर आए कुत्ते को भी नहीं निकालते

अर्थः घर में आने वाले को मान देना चाहिए।

घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध

अर्थः अपने ही घर में अपनी कीमत नहीं होती।

घर का भेदी लंका ढाए

अर्थः आपसी फूट का परिणाम बुरा होता है।

घर की मुर्गी दाल बराबर

अर्थः अपनी चीज़ या अपने आदमी की कदर नहीं।

घर खीर तो बाहर खीर

अर्थः समृद्धि सम्मान प्रदान करती है।

घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने

अर्थः कुछ न होने पर भी होने का दिखावा करना।

घायल की गति घायल जाने

अर्थः कष्ट भोगने वाला ही वही दूसरों के कष्ट को समझ सकता है।

घी गिरी खिचड़ी में

अर्थः लापरवाही के बावजूद भी वस्तु का सदुपयोग होना।

घी सँवारे काम बड़ी बहू का नाम

अर्थः साधन पर्याप्त हों तो काम करने वाले को यश भी मिलता है।

घोड़ा घास से दोस्ती करेगा तो खाएगा क्या?

अर्थः व्यापार में रियायत नहीं की जाती।

घोड़े की दुम बढ़ेगी तो अपने ही मक्खियाँ उड़ाएगा

अर्थः उन्नति करके आदमी अपना ही भला करता है।

घोड़े को लात, आदमी को बात

अर्थः सामने वाले का स्वभाव पहचान कर उचित व्यहार करना।

खूँटे के बल बछड़ा कूदे

अर्थः दूसरे की शह पाकर ही अकड़ दिखाना।

खेत खाए गदहा, मार खाए जुलहा

अर्थः किसी के दोष की सजा किसी अन्य को मिलना।

खेती अपन सेती

अर्थः दूसरों के भरोसे खेती नहीं की जा सकती।

खेल -खिलाड़ी का,पैसा मदारी का

अर्थः मेहनत किसी की लाभ किसी और का।

खोदा पहाड़ निकली चुहिया

अर्थः परिश्रम कुछ भी फल न मिलना।

गंगा गए तो गंगादास, यमुना गए यमुनादास

अर्थः एक मत पर स्थिर न रहना।

गंजेडी यार किसके दम लगाया खिसके

अर्थः स्वार्थी आदमी स्वार्थ सिद्ध होते ही मुँह फेर लेता है।

गधा धोने से बछड़ा नहीं हो जाता

अर्थः स्वभाव नहीं बदलता।

गधा भी कहीं घोड़ा बन सकता है

अर्थः बुरा आदमी कभी भला नहीं बन सकता।

गई माँगने पूत, खो आई भरतार

अर्थः थोड़े लाभ के चक्कर में भारी नुकसान कर लेना।

गर्व का सिर नीचा

अर्थः घमंडी आदमी का घमंड चूर हो ही जाता है।

गरीब की लुगाई सब की भौजाई

अर्थः गरीब आदमी से सब लाभ उठाना चाहते हैं।

गरीबी तेरे तीन नाम - झूठा, पाजी, बेईमान

अर्थः गरीब का सवर्त्र अपमान होता रहता है।

गरीबों ने रोज़े रखे तो दिन ही बड़े हो गए

अर्थः गरीब की किस्म़त ही बुरी होती है।

गवाह चुस्त, मुद्दई सुस्त

अर्थः जिसका काम है वह तो आलस से करे, दूसरे फुर्ती दिखाएं।

गाँठ का पूरा, आँख का अंधा

अर्थः मालदार असामी।

गीदड़ की मौत आती है तो वह गाँव की ओर भागता है

अर्थः विपत्ति में बुद्धि काम नहीं करती।

गुड़ खाए, गुलगुलों से परहेज

अर्थः झूठ और ढोंग रचना।

गुड़ दिए मरे तो जहर क्यों दें

अर्थः काम प्रेम से निकल सके तो सख्ती न करें।

गुड़ न दें, पर गुड़ सी बात तो करें

अर्थः कुछ न दें पर मीठे बोल तो बोलें।

गुरु-गुड़ ही रहे, चेले शक्कर हो गए

अर्थः छोटों का बड़ों से आगे बढ़ जाना।

कुम्हार अपना ही घड़ा सराहता है

अर्थः अपनी ही वस्तु की प्रशंसा करना।

कै हंसा मोती चुगे कै भूखा मर जाय

अर्थः सम्मानित व्युक्ति अपनी मर्यादा में रहता है।

कोई माल मस्त, कोई हाल मस्त

अर्थः कोई अमीरी से संतुष्ट तो कोई गरीबी से।

कोठी वाला रोवें, छप्पर वाला सोवे

अर्थः धनवान की अपेक्षा गरीब अधिक निश्चिंत रहता है।

कोयल होय न उजली सौ मन साबुन लाइ

अर्थः स्वभाव नहीं बदलता।

कोयले की दालाली में मुँह काला

अर्थः बुरी संगत से कलंक लगता ही है।

कौड़ी नहीं गाँठ चले बाग की सैर

अर्थः अपनी सामर्थ्य से अधिक की सोचना।

कौन कहे राजाजी नंगे हैं

अर्थः बड़े लोगों की बुराई नहीं देखी जाती।

कौआ चला हंस की चाल, भूल गया अपनी भी चाल

अर्थः दूसरों की नकल करने से अपनी मौलिकता भी खो जाती है।

क्या पिद्दी और क्या पिद्दी का शोरबा

अर्थः अत्यन्त तुच्छं होना।

खग जाने खग ही की भाषा

अर्थः एक जैसे प्रकृति के लोग आपस में मिल ही जाते हैं।

ख्याली पुलाव से पेट नहीं भरता

अर्थः केवल सोचते रहने से काम पूरा नहीं हो जाता।

खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग पकड़ता है

अर्थः देखादेखी काम करना।

खाक डाले चाँद नहीं छिपता

अर्थः किसी की निंदा करने से उसका कुछ नहीं बिगड़ता।

खाल ओढ़ाए सिंह की, स्यार सिंह नहीं होय

अर्थः ऊपरी रूप बदलने से गुण अवगुण नहीं बदलता।

खाली बनिया क्या करे, इस कोठी का धान उस कोठी में धरे

अर्थः बेकाम आदमी उल्टे-सीधे काम करता रहता है।

खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे

अर्थः अपनी असफलता पर खीझना।

खुदा की लाठी में आवाज़ नहीं होती

अर्थः कोई नहीं जानता की अपने कर्मों का कब और कैसा फल मिलेगा।

खुदा गंजे को नाखून नहीं देता

अर्थः ईश्वर सभी की भलाई का ध्यान रखता है।

खुदा देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है

अर्थः भाग्यशाली होना।

खुशामद से ही आमद है

अर्थः खुशामद से कार्य सम्पन्न हो जाते हैं।

का वर्षा जब कृषी सुखाने

अर्थः अवसर निकलने जाने पर सहायता भी व्यर्थ होती है।

कागज़ की नाव नहीं चलती

अर्थः बेईमानी या धोखेबाज़ी ज्यादा दिन नहीं चल सकती।

काजल की कौठरी में कैसेहु सयानो जाय एक लीक काजल की लगिहै सो लागिहै

अर्थः बुरी संगत होने पर कलंक अवश्य ही लगता है।

काज़ी जी दुबले क्यों? शहर के अंदेशे से

अर्थः दूसरों की चिन्ता में घुलना।

काठ की हाँडी एक बार ही चढ़ती है

अर्थः धोखा केवल एक बार ही दिया जा सकता है, बार बार नहीं।

कान में तेल डाल कर बैठना

अर्थः आवश्यक चिन्ताओं से भी दूर रहना।

काबुल में क्या गधे नहीं होते

अर्थः अच्छाई के साथ साथ बुराई भी रहती है।

काम का न काज का, दुश्मन अनाज का

अर्थः खाना खाने के अलावा और कोई भी काम न करने वाला व्यक्ति।

काम को काम सिखाता है

अर्थः अभ्यास करते रहने से आदमी होशियार हो जाता है।

काल के हाथ कमान,बूढ़ा बचे न जवान

अर्थः मृत्यु एक शाश्वत सत्य है, वह सभी को ग्रसती है।

काल न छोड़े राजा, न छोड़े रंक

अर्थः मृत्यु एक शाश्वत सत्य है, वह सभी को ग्रसती है।

काला अक्षर भैंस बराबर

अर्थः अनपढ़ होना।

काली के ब्याह को सौ जोखिम

अर्थः एक दोष होने पर लोग अनेक दोष निकाल दिए जाते हैं।

किया चाहे चाकरी राखा चाहे मान

अर्थः नौकरी करके स्वाभिमान की रक्षा नहीं हो सकती।

किस खेत की मूली है

अर्थः महत्व न देना।

किसी का घर जले कोई तापे

अर्थः किसी की हानि पर किसी अन्य का लाभान्वित होना।

कुंजड़ा अपने बेरों को खट्टा नहीं बताता

अर्थः अपनी चीज को कोई खराब नहीं कहता।

कुँए की मिट्टी कुँए में ही लगती है

अर्थः कुछ भी बचत न होना।

कुतिया चोरों से मिल जाए तो पहरा कौन दे

अर्थः भरोसेमन्द व्यक्ति का बेईमान हो जाना।

कुत्ता भी दुम हिलाकर बैठता है

अर्थः कुत्ता भी बैठने के पहले बैठने के स्थान को साफ करता है।

कुत्ते की दुम बारह बरस नली में रखो तो भी टेढ़ी की टेढ़ी

अर्थः लाख कोशिश करने पर भी दुष्ट अपनी दुष्टता नहीं त्यागता।

कुत्ते को घी नहीं पचता

अर्थः नीच आदमी ऊँचा पद पाकर इतराने लगता है।

कुत्ता भूँके हजार, हाथी चले बजार

अर्थः समर्थ व्यक्ति को किसी का डर नहीं होता।

कंगाली में आटा गीला

अर्थः मुसीबत पर मुसीबत आना।

ककड़ी के चोर को फाँसी नहीं दी जाती

अर्थः अपराध के अनुसार ही दण्ड दिया जाना चाहिए।

कचहरी का दरवाजा खुला है

अर्थः न्याय पर सभी का अधिकार होता है।

कड़ाही सें गिरा चूल्हे में पड़ा

अर्थः छोटी विपत्ति से छूटकर बड़ी विपत्ति में पड़ जाना।

कब्र में पाँव लटकना

अर्थः अत्यधिक उम्र वाला।

कभी के दिन बड़े कभी की रात

अर्थः सब दिन एक समान नहीं होते।

कभी नाव गाड़ी पर , कभी गाड़ी नाव पर

अर्थः परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं।

कमली ओढ़ने से फकीर नहीं होता

अर्थः ऊपरी वेशभूषा से किसी के अवगुण नहीं छिप जाते ।

कमान से निकला तीर और मुँह से निकली बात वापस नहीं आती

अर्थः सोच- समझकर ही बात करनी चाहिए।

करत-करत अभ्यामस के जड़मति होत सुजान

अर्थः अभ्यास करते रहने से सफलता अवश्य ही प्राप्त होती है।

करम के बलिया, पकाई खीर हो गया दलिया

अर्थः काम बिगड़ना।

करमहीन खेती करे,बैल मरे या सूखा पड़े

अर्थः दुर्भाग्य हो तो कोई न कोई काम खराब होता रहता है।

कर लिया सो काम, भज लिया सो राम

अर्थः अधूरे काम का कुछ भी मतलब नहीं होता।

कर सेवा तो खा मेवा

अर्थः अच्छे कार्य का परिणाम अच्छा ही होता है।

करे कोई भरे कोई

अर्थः किसी की करनी का फल किसी अन्य द्वारा भोगना।

करे दाढ़ीवाला, पकड़ा जाए जाए मुँछोंवाला

अर्थः प्रभावशाली व्यक्ति के अपराध के लिए किसी छोटे आदमी को दोषी ठहराया जाना।

कल किसने देखा है

अर्थः आज का काम आज ही करना चाहिए।

कलार की दुकान पर पानी पियो तो भी शराब का शक होता है

अर्थः बुरी संगत होने पर कलंक लगता ही है।

कहाँ राम – राम, कहाँ टॉंय-टॉंय

अर्थः असमान चीजों की तुलना नहीं हो सकती।

कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा, भानमती ने कुनबा जोड़ा

अर्थः असम्बन्धित वस्तुओं का एक स्थान पर संग्रह।

कहे खेत की, सुने खलिहान की

अर्थः कुछ कहने पर कुछ समझना।

आधा तीतर आधा बटेर

अर्थः बेमेल वस्तु।

आधी छोड़ पूरी को धावै, आधी मिले न पूरी पावै

अर्थः लालच करने से हानि होती है।

आप काज़ महा काज़

अर्थः अपने उद्देश्य की पूर्ति करना चाहिए।

आप भला तो जग भला

अर्थः भले आदमी को सब लोग भले ही प्रतीत होते हैं।

आप मरे जग परलय

अर्थः मृत्यु के पश्चात कोई नहीं जानता कि संसार में क्या हो रहा है।

आप मियाँ जी मँगते द्वार खड़े दरवेश

अर्थः असमर्थ व्यक्ति दूसरों की सहायता नहीं कर सकता।

आपा तजे तो हरि को भजे

अर्थः परमार्थ करने के लिए स्वार्थ को त्यागना पड़ता है।

आम खाने से काम, पेड गिनने से क्या मतलब

अर्थः निरुद्देश्य कार्य न करना।

आए की खुशी न गए का गम

अर्थः अपनी हालात में संतुष्ट रहना।

आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास

अर्थः लक्ष्य को भूलकर अन्य कार्य करना।

आसमान का थूका मुँह पर आता है

अर्थः बड़े लोगों की निंदा करने से अपनी ही बदनामी होती है।

आसमान से गिरा खजूर पर अटका

अर्थः सफलता पाने में अनेक बाधाओं का आना।

इक नागिन अरु पंख लगाई

अर्थः एक के साथ दूसरे दोष का होना।

इतना खाए जितना पावे

अर्थः अपनी औकात को ध्यान में रखकर खर्च करना।

इतनी सी जान, गज भर की ज़बान

अर्थः अपनी उम्र के हिसाब से अधिक बोलना।

इधर कुआँ उधर खाई

अर्थः हर हाल में मुसीबत।

इध्‍ार न उधर, यह बला किधर

अर्थः अचानक विपत्ति आ पड़ना।

आँख ओट पहाड़ ओट

अर्थः अनुपलब्ध व्यक्ति से किसी प्रकार का सहारा करना व्यर्थ है।

आँख ओर कान में चार अंगुल का फर्क

अर्थः सुनी हुई बात की अपेक्षा देखा हुआ सत्य अधिक विश्वसनीय होता है।

आँख के अंधे नाम नैनसुख

अर्थः व्यक्ति के नाम की अपेक्षा गुण प्रभावशाली होता है।

आ बैल मुझे मार

अर्थः जानबूझकर मुसीबत मोल लेना।

आई तो ईद, न आई तो जुम्मेरात

अर्थः आमदनी हुई तो मौज मौज मनाना नहीं तो फाका करना।

आई मौज फकीर की, दिया झोपड़ा फूँक

अर्थः विरक्त व्यक्ति को किसी चीज की परवाह नहीं होती।

आई है जान के साथ जाएगी जनाज़े के साथ

अर्थः लाइलाज बीमारी।

आग कह देने से मुँह नहीं जल जाता

अर्थः कोसने से किसी का अहित नहीं हो जाता।

आग का जला आग ही से अच्छा होता है

अर्थः कष्ट देने वाली वस्तु कष्ट का निवारण भी कर देती है।

आग खाएगा तो अंगार उगलेगा

अर्थः बुरे काम का नतीजा बुरा ही होता है।

आग बिना धुआँ नहीं

अर्थः बिना कारण कुछ भी नहीं होता।

आगे जाए घुटना टूटे, पीछे देखे आँख फूटे

अर्थः दुर्दिन झेलना।

आगे नाथ न पीछे पगहा

अर्थः पूर्णत: स्वतन्त्र रहना।

आज का बनिया कल का सेठ

अर्थः परिश्रम करते रहने से आदमी आगे बढ़ता जाता है।

आटे का चिराग, घर रखूँ तो चूहा खाए,बाहर रखूँ तो कौआ ले जाए

अर्थः ऐसी वस्तु जिसे बचाना मुश्किल हो।

आदमी-आदमी में अंतर कोई हीरा कोंई कंकर

अर्थः व्यक्तियों के स्वभाव तथा गुण भिन्न-भिन्न होते हैं।

आदमी का दवा आदमी है

अर्थः मनुष्य ही मनुष्य की सहायता करते हैं।

आदमी को ढाई गज कफन काफी है

अर्थः अपनी हालत पर संतुष्ट रहना।

आदमी जाने बसे सोना जाने कसे

अर्थः आदमी की पहचान नजदीकी से और सोने की पहचान सोना कसौटी से होती है।

आम के आम गुठलियों के दाम

अर्थः दोहरा लाभ होना

अक्ल बड़ी या भैंस

अर्थः शारीरिक शक्ति की अपेक्षा बुद्धि का अधिक महत्व होता है।

अच्छी मति जो चाहों, बूढ़े पूछन जाओ

अर्थः बड़े-बूढ़ों के अनुभव का लाभ उठाना चाहिये।

अटकेगा सो भटकेगा

अर्थः दुविधा या सोच-विचार में पड़ने से काम नहीं होता।

अधजल गगरी छलकत जाए

अर्थः ओछा आदमी थोड़ा गुण या धन होने पर इतराने लगता है।

अनजान सुजान, सदा कल्याण

अर्थः मूर्ख और ज्ञानी सदा सुखी रहते हैं।

अब पछताए होत क्या जब चिडिया चुग गई खेत

अर्थः नुकसान हो जाने के बाद पछताना बेकार है।

अढ़ाई हाथ की ककड़ी, नौ हाथ का बीज

अर्थः अनहोनी बात।

बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख

अर्थः सौभाग्य से कोई बढिया चीज़ अपने-आप मिल जाती है और दुर्भाग्य से घटिया चीज़ प्रत्यत्न करने पर भी नहीं मिलती।

अपना-अपना कमाना,अपना-अपना खाना।

अर्थः किसी दूसरे के भरोसे नहीं रहना।

अपना ढेंढर देखे नहीं, दूसरे की फुल्ली निहारे।

अर्थः अपने बड़े से बड़े दुर्गुण को न देखना पर दूसरे के छोटे से छोटे अवगुण की चर्चा करना।

अपना मकान कोट समान।

अर्थः अपना घर सबसे सुरक्षित स्थान होता है।

अपना रख पराया चख।

अर्थः अपनी वस्तु बचाकर रखना और दूसरों की वस्तुएँ इस्तेमाल करना।

अपना लाल गँवाय के दर-दर माँगे भीख।

अर्थः अपनी बहुमूल्य वस्तु को गवाँ देने से आदमी दूसरों का मोहताज हो जाता है।

अपना ही सोना खोटा तो सुनार का क्या दोष।

अर्थः अपनी ही वस्तु खराब हो तो दूसरों को दोष देना उचित नहीं है।

अपनी- अपनी खाल में सब मस्त

अर्थः अपनी परिस्थिति से सतुष्ट रहना।

अपनी-अपनी ढफली, अपना-अपना राग

अर्थः सभी का अलग-अलग मत होना।

अपनी करनी पार उतरनी

अर्थः अच्छा परिणाम पाने के लिए स्वयं काम करना पड़ता है।

अपनी गरज से लोग गधे को भी बाप बनाते हैं

अर्थः येन-केन-प्रकारेण स्वार्थपूर्ति करना।

अपनी गरज बावली

अर्थः स्वार्थी आदमी दूसरों की परवाह नहीं करता।

अपनी गली में कुत्ता शेर

अर्थः अपने घर में आदमी शक्तिशाली होता है।

अंडा सिखावे बच्चे को चीं-चीं मत कर

अर्थः छोटे के द्वारा बड़े को उपदेश देना।

अंडे सेवे कोई, बच्चे लेवे कोई

अर्थः परिश्रम कोई करे लाभ किसी और को मिले।

अंडे होंगे तो बच्चे बहुतेरे हो जाएंगे

अर्थः मूल वस्तु रहने पर उससे बनने वाली वस्तुऍं मिल ही जाती हैं।

अंत भला सो सब भला

अर्थः कार्य का परिणाम सही हो जाए तो सारी गलतियाँ भुला दी जाती हैं।

अंत भले का भला

अर्थः भलाई करने वाले का भला ही होता है।

अंधा बाँटे रेवड़ी अपने-अपने को देय

अर्थः अपने अधिकार का लाभ अपनों लोगों को ही पहुँचाना।

अंधा क्या चाहे, दो आँखें

अर्थः मनचाही वस्तु प्राप्त होना।

अंधा क्या जाने बसंत बहार

अर्थः जो वस्तु देखी ही नहीं गई, उसका आनंद कैसे जाना जा सकता है।

अंधा पीसे कुत्ता‍ खाय

अर्थः एक की मजबूरी से दूसरे को लाभ हो जाता है।

अंधा बगुला कीचड़ खाय

अर्थः भाग्यहीन को सुख नहीं मिलता।

अंधा सिपाही कानी घोड़ी,विधि ने खूब मिलाई जोड़ी

अर्थः बराबर वाली जोड़ी बनना।

अंधे अंधा ठेलिया दोनों कूप पड़ंत

अर्थः दो मूर्ख एक दूसरे की सहायता करें तो भी दोनों को हानि ही होती है।

अंधे की लाठी

अर्थः बेसहारे का सहारा।

अंधे के आगे रोये, अपनी आँखें खोये

अर्थः मूर्ख को ज्ञान देना बेकार है।

अंधे के हाथ बटेर लगना

अर्थः अनायास ही मनचाही वस्तु मिल जाना।

अंधे को अंधा कहने से बुरा लगता है

अर्थः किसी के सामने उसका दोष बताने से उसे बुरा ही लगता है।

अंधे को अँधेरे में बड़े दूर की सूझी

अर्थः मूर्ख को बुद्धिमत्ता की बात सूझना।

अंधेर नगरी चौपट राजा , टके सेर भाजी टके सेर खाजा

अर्थः जहाँ मुखिया मूर्ख हो और न्याय अन्याय का ख्याल न रखता हो।

अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता

अर्थः अकेला व्यक्ति किसी बड़े काम को सम्पन्न करने में समर्थ नहीं हो सकता।

अकेला हँसता भला न रोता भला

अर्थः सुख हो या दु:ख साथी की जरूरत पड़ती ही है।

अंडा सिखावे बच्चे को चीं-चीं मत कर

अर्थः छोटे के द्वारा बड़े को उपदेश देना।

अंडे सेवे कोई, बच्चे लेवे कोई

अर्थः परिश्रम कोई करे लाभ किसी और को मिले।

अंडे होंगे तो बच्चे बहुतेरे हो जाएंगे

अर्थः मूल वस्तु रहने पर उससे बनने वाली वस्तुऍं मिल ही जाती हैं।

अंत भला सो सब भला

अर्थः कार्य का परिणाम सही हो जाए तो सारी गलतियाँ भुला दी जाती हैं।

अंत भले का भला

अर्थः भलाई करने वाले का भला ही होता है।

अंधा बाँटे रेवड़ी अपने-अपने को देय

अर्थः अपने अधिकार का लाभ अपनों लोगों को ही पहुँचाना।

अंधा क्या चाहे, दो आँखें

अर्थः मनचाही वस्तु प्राप्त होना।

अंधा क्या जाने बसंत बहार

अर्थः जो वस्तु देखी ही नहीं गई, उसका आनंद कैसे जाना जा सकता है।

अंधा पीसे कुत्ता‍ खाय

अर्थः एक की मजबूरी से दूसरे को लाभ हो जाता है।

अंधा बगुला कीचड़ खाय

अर्थः भाग्यहीन को सुख नहीं मिलता।

अंधा सिपाही कानी घोड़ी,विधि ने खूब मिलाई जोड़ी

अर्थः बराबर वाली जोड़ी बनना।

अंधे अंधा ठेलिया दोनों कूप पड़ंत

अर्थः दो मूर्ख एक दूसरे की सहायता करें तो भी दोनों को हानि ही होती है।

अंधे की लाठी

अर्थः बेसहारे का सहारा।

अंधे के आगे रोये, अपनी आँखें खोये

अर्थः मूर्ख को ज्ञान देना बेकार है।

अंधे के हाथ बटेर लगना

अर्थः अनायास ही मनचाही वस्तु मिल जाना।

अंधे को अंधा कहने से बुरा लगता है

अर्थः किसी के सामने उसका दोष बताने से उसे बुरा ही लगता है।

अंधे को अँधेरे में बड़े दूर की सूझी

अर्थः मूर्ख को बुद्धिमत्ता की बात सूझना।

अंधेर नगरी चौपट राजा , टके सेर भाजी टके सेर खाजा

अर्थः जहाँ मुखिया मूर्ख हो और न्याय अन्याय का ख्याल न रखता हो।

अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता

अर्थः अकेला व्यक्ति किसी बड़े काम को सम्पन्न करने में समर्थ नहीं हो सकता।

अकेला हँसता भला न रोता भला

अर्थः सुख हो या दु:ख साथी की जरूरत पड़ती ही है।







निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।

बिनु निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल॥

अँग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन।

पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन॥









































October 12, 2011

अन्तरिक्ष से सम्बन्धित कुछ रोचक जानकारी

•सूर्य से पृथ्वी पर आने वाला प्रकाश 30 हजार वर्ष पुराना होता है।


अब आप कहेंगे कि सूर्य से पृथ्वी की दूरी तो मात्र 8.3 प्रकाश मिनट है तो ऐसा कैसे हो सकता है। यह सच है कि प्रकाश को सूर्य से पृथ्वी तक आने में 8.3 मिनट ही लगते हैं किन्तु जो प्रकाश हम तक पहुँच रहा है उसे सूर्य के क्रोड (core) से उसके सतह तक आने में 30 हजार वर्ष लगते हैं और वह सूर्य की सतह पर आने के बाद ही 8.3 मिनट पश्चात् पृथ्वी तक पहुँचता है, याने कि वह प्रकाश 30 हजार वर्ष पुराना होता है।



•अन्तरिक्ष में यदि धातु के दो टुकड़े एक दूसरे को स्पर्श कर लें तो वे स्थायी रूप से जुड़ जाते हैं।

यह भी अविश्वसनीय लगता है किन्तु यह सच है। अन्तरिक्ष के निर्वात के कारण दो धातु आपस में स्पर्श करने पर स्थायी रूप से जुड़ जाते हैं, बशर्तें कि उन पर किसी प्रकार का लेप (coating) न किया गया हो। पृथ्वी पर ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि वायुमण्डल दोनों धातुओं के आपस में स्पर्श करते समय उनके बीच ऑक्सीडाइज्ड पदार्थ की एक परत बना देती है।



•अन्तरिक्ष में ध्वनि एक स्थान से दूसरे स्थान तक नहीं जा सकती।

•जी हाँ, ध्वनि को एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने के लिए किसी न किसी माध्यम की आवश्यकता होती है और अन्तरिक्ष में निर्वात् होने के कारण ध्वनि को गति के लिए कोई माध्यम उपलब्ध नहीं हो पाता।

•शनि ग्रह का घनत्व इतना कम है कि यदि काँच के किसी विशालाकार बर्तन में पानी भर कर शनि को उसमें डाला जाए तो वह उसमें तैरने लगेगा।

•वृहस्पति इतना बड़ा है कि शेष सभी ग्रहों को आपस में जोड़ दिया जाए तो भी वह संयुक्त ग्रह वृहस्पति से छोटा ही रहेगा।

•स्पेस शटल का मुख्य इंजिन का वजन एक ट्रेन के इंजिन के वजन का मात्र 1/7 के बराबर होता है किन्तु वह 39 लोकोमोटिव्ह के बराबर अश्वशक्ति उत्पन्न करता है।

•शुक्र ही एक ऐसा ग्रह है जो घड़ी की सुई की दिशा में घूमता है।

•चन्द्रमा का आयतन प्रशान्त महासागर के आयतन के बराबर है।

•सूर्य पृथ्वी से 330,330 गुना बड़ा है।

•अन्तरिक्ष में पृथ्वी की गति 660,000 मील प्रति घंटा है।

•शनि के वलय की परिधि 500,000 मील है जबकि उसकी मोटाई मात्र एक फुट है।

•वृहस्पति के चन्द्रमा, जिसका नाम गेनीमेड (Ganymede) है, बुध ग्रह से भी बड़ा है।

•किसी अन्तरिक्ष वाहन को वायुमण्डल से बाहर निकलने के लिए कम से कम 7 मील प्रति सेकण्ड की गति की आवश्यकता होती है।

•पृथ्वी के सारे महाद्वीप की चौड़ाई दक्षिण दिशा की अपेक्षा उत्तर दिशा में अधिक है, यह अभी तक ज्ञात नहीं है कि ऐसा क्यों है।

October 11, 2011

Boys have emotions....

Science & God - ABDUL KALAM

One Of The Best Arguments.!! I have ever read , Don’t miss even a single word…. I...t’s Too good

An atheist professor of philosophy speaks to his class on the problem science has with God, The Almighty.

He asks one of his new students to stand and…..
Prof: So you believe in God?
Student: Absolutely, sir.
Prof: Is God good?
Student: Sure.
Prof: Is God all-powerful?
Student: Yes..
Prof: My brother died of cancer even though he prayed to God to heal him. Most of us would attempt to help others who are ill. But God didn’t. How is this God good then? Hmm?
(Student is silent.)
Prof: You can’t answer, can you? Let’s start again, young fella. Is God good?
Student: Yes.
Prof: Is Satan good?
Student: No.
Prof: Where does Satan come from?
Student: From….God…
Prof: That’s right. Tell me son, is there evil in this world?
Student: Yes.
Prof: Evil is everywhere, isn’t it? And God did make everything. Correct?
Student: Yes.
Prof: So who created evil?
(Student does not answer.)
Prof: Is there sickness? Immorality? Hatred? Ugliness? All these terrible things exist in the world, don’t they?
Student: Yes, sir.
Prof: So, who created them?
(Student has no answer.)
Prof: Science says you have 5 senses you use to identify and observe the world around you. Tell me, son…Have you ever seen God?
Student: No, sir.
Prof: Tell us if you have ever heard your God?
Student: No, sir.
Prof: Have you ever felt your God, tasted your God, smelt your God? Have you ever had any sensory perception of God for that matter?
Student: No, sir. I’m afraid I haven’t.
Prof: Yet you still believe in Him?
Student: Yes.
Prof: According to empirical, testable, demonstrable protocol, science says your GOD doesn’t exist.
What do you say to that, son?
Student: Nothing. I only have my faith.
Prof: Yes. Faith. And that is the problem science has.
Student: Professor, is there such a thing as heat?
Prof: Yes.
Student: And is there such a thing as cold?
Prof: Yes.
Student: No sir. There isn’t.
(The lecture the after becomes very quiet with this turn of events.)
Student: Sir, you can have lots of heat, even more heat, superheat, mega heat, white heat, a little heat or no heat..
But we don’t have anything called cold. We can hit 458 degrees below zero which is no heat, but we can’t go any further after that. There is no such thing as cold. Cold is only a word we use to describe the absence of heat. We cannot measure cold. Heat is energy Cold is not the opposite of heat, sir, just the absence of it .

(There is pin-drop silence in the lecture theatre.)
Student: What about darkness, Professor? Is there such a thing as darkness?
Prof: Yes. What is night if there isn’t darkness?
Student : You’re wrong again, sir. Darkness is the absence of something. You can have low light, normal light, bright

light, flashing light…..But if you have no light constantly, you have nothing and it’s called darkness, isn’t it? In reality, darkness isn’t. If it were you would be able to make darkness darker, wouldn’t you?

Prof: So what is the point you are making, young man?
Student: Sir, my point is your philosophical premise is flawed.
Prof: Flawed? Can you explain how?
Student: Sir, you are working on the premise of duality. You argue there is life and then there is death, a good God and a bad God. You are viewing the concept of God as something finite, something we can measure. Sir, science can’t even explain a thought.. It uses electricity and magnetism, but has never seen, much less fully understood either one.To view death as the opposite of life is to be ignorant of the fact that death cannot exist as a substantive thing. Death is

not the opposite of life: just the absence of it.

Now tell me, Professor.Do you teach your students that they evolved from a monkey?
Prof: If you are referring to the natural evolutionary process, yes, of course, I do.
Student: Have you ever observed evolution with your own eyes, sir?

(The Professor shakes his head with a smile, beginning to realize where the argument is going.)



Student: Since no one has ever observed the process of evolution at work and cannot even prove that this process is an on-going endeavor, are you not teaching your opinion, sir? Are you not a scientist but a preacher? (The class is in uproar.)

Student: Is there anyone in the class who has ever seen the Professor’s brain?

(The class breaks out into laughter.)

Student : Is there anyone here who has ever heard the Professor’s brain, felt it, touched or smelt it? No one appears to have done so. So, according to the established rules of empirical, stable, demonstrable protocol, science says that you have no brain,sir. With all due respect, sir, how do we then trust your lectures, sir?

(The room is silent. The professor stares at the student, his face unfathomable.)

Prof: I guess you’ll have to take them on faith, son.

Student: That is it sir… The link between man & god is FAITH . That is all that keeps things moving & alive.

I believe you have enjoyed the conversation…and if so…you’ll probably want your friends/colleagues to enjoy the same…won’t you?….this is a true story, and the
student was none other than …….

APJ Abdul Kalam, the former President of India ( This was posted by our page fan and we shared it..) And it has came to our notice that it was Einstein not ABdul kalam.. sorry regarding this aspect..

BRAND Archetypes through lens -Indian-Brands

There has been so much already written about brand archetypes and this is certainly not one more of those articles. In fact, this is rather ...